भवनाथ,
मैथिली मंडन लेल फेसबुक परक उपलब्धि छथि । उर्जस्विता आ मैथिलीक प्रति निष्ठा हिनक
इन्टरनेट जगत मे मैथिलीक सन्दर्भ मे सक्रियता सँ प्रदर्शित होइत छन्हि । हिनक
लघुकथा- 'आशुकवि' अपन मूल मे व्यंग्य प्रधान अछि जे सुक्ष्म रुपें साहित्य केर सामाजिक
सरोकार कें साहित्यकारक व्यक्ति केर तौर पर दायित्वबोधक बिना अपूर्ण मानैत अछि ।
कामना जे भवनाथ मैथिली साहित्य जगत मे सतत रचनाशील रहथि आ सामजिक दायित्व केर
निर्वाह करैत अन्य रचनाकार लेल एकटा आदर्श प्रस्तुत करथि ।
आशुकवि
पटना सँ
गाम जएबा ले बस पकड़ने रही तँ वर्षाक कोनो संभावना नहि रहैक। मुदा गाँधीसेतु पार
करितहिं रुद्रदेव साकार भए गेलाह । आगाँ तेहन हुनक ताण्डव भेल जे बस के रोकि देबए पड़लैक
। रातुक एगारह बाजि रहल छल । अन्हार राति...झाँट, बिहाड़ि, बिजुलोका, मेघक अट्टहास...।
मुदा फेर सभटा शान्त भेलैक । बस चलल। आगाँ सड़क पर गाछ सभ खसल रहैक । बहुत ठाम तँ
बस निकलि गेलैक मुदा एक ठाम एकटा पैघ गाछ खसि पड़ल रहैक । बस रुकल आ भीतरक इजोत
बारि देल गेलैक । कंडक्टर जा क' देखलक आ आबि क' कहलकै जे अहूँ सभ जँ संग दी तँ गाछ के हटाओल जा सकै छै, नै तँ भिनसर भेला पर कोनो उपाय हेतै । सभ यात्री एक स्वर सँ आश्वासन
देलखिन आ सीट छोड़ि बहराए गेलाह आ जिनका जतहि गर लगलनि जोर लगा देलनि । तखनि की छल!
थोड़बे काल मे गाछ घिसिया के कात कए देल गेल । हम सभ जखनि घुरि क' बसमे अएलहुँ तँ एकटा युवक निश्चिन्त भेल किछु लिखि रहल छलाह । हुनका
पुछलियनि तँ ओ उत्तर देलनि -" हम तँ बैसले रही । मुदा भाई! आई अहाँ सभक जे
एकता हम देखलहुँ तँ ततेक नीक लागल जे हमरा रहल नहिं गेल। एकटा कविता लिखए लगलहुँ ।
सुना दैत छी ।" हम अवाक रहि गेलहुँ । ताबत बस चलि पड़ल आ हुनक कविता बसक
घड़घड़ीमे बिला गेलनि ।
नीक लघुकथा लेल धन्यवाद.
ReplyDeleteहमर लघुकथाक सुन्दर प्रस्तुतिक लेल 'मैथिली मण्डन'क सम्पादक कें बधाई!!
ReplyDeleteLAGHUKATHAKAR sambhavna san bharal chhathi
ReplyDeleteBhavnath jee san etek umed ta kele ja sakait achhi je o apan dhar ke aar majata .
ReplyDeletedhekhal sunal baat ke laghu katha me badalwak lel bhavnath ji badhai ke patara chal......
ReplyDeleteUttam Kriti.
ReplyDeleteबड निक
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