Tuesday, March 15, 2016

अक्षर परिचय/ उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास'

हमर प्रायः सब भाइ बहिनक वर्णमाला ज्ञानक आधार यैह गीति काव्य अछि । बाबूजी आ माँ हमरा सब केँ गाबि गाबि केँ ई सुनाबथि आ ई हमरा सबहक जेना मन स्मृति मे अंकित होइत चलि जाए । कियो परिचित पाहुन लोकनि आबथि तँ हमरा यैह कविता सुनेबाक लेल कहल जाइत छल । हम उत्साहपूर्वक ई पूरा कविता सुना दैत छलियै ।
मातृभाषा शिक्षाक सबसँ सहज माध्यम होइत छैक । नेना सब केँ एहि मैथिली गीति काव्यक माध्यम सँ अक्षर-ज्ञान करायब बड्ड हल्लुक भजाइत छैक । शिशु केँ ज्ञानक पहिल पौदान पर चढ़ेबाक प्रसंगे ई कविता एकटा अनमोल निधि थिक ।
एहि सरस रचनाक रचियता छथि- उपेन्द्रनाथ झा व्यासनेना भुटका पत्रिकाक दोसर अंक मे एकर प्रस्तुति करैत दमन कुमार झा लिखने छथि- “ ‘व्यासगंभीर काव्य लिखबाक लेल ख्यात छथि, किन्तु शिशुलोकनिक हेतु सेहो केहेन सुबोध काव्य लिखी सकैत छथि, से एहि पोथीसँ सिद्ध अछि ।” “कवि सँ ज्ञअक्षर धरि प्रायः प्रत्येक वर्णपर बड़ सुबोध कविताक रचना कय कोमलमति बालककेँ अक्षरज्ञानक संग मातृभाषाक प्रति प्रेम सेहो जगौने छथि । मैथिली मे एहि प्रकारक वस्तुक नितान्त अल्पता छलैक । वर्णानुसार कविता मिथिला मिहिर (साप्ताहिक)क 14,21,28 अक्टूबर आ 4,11,18 नवम्बर 1979 केँ अंकमे प्रकाशितो भेल रहनि । [संदर्भ- नेना भुटका, मार्च, 2016, पृष्ठ सं.-24]
नेना भुटका मे प्रकाशित एहि रचना मे हम अपन स्मृतिक आधार पर किछुए टा तर्कसंगत परिवर्तन केनय छी । मूल कृति उपलब्ध भगेला पर एकरा तदनरूप करबाक प्रयास कएल जायत । एहि बातक ध्यान राखल जाए जे एहि मे किछु वर्णक लोप कएल गेल अछि जेना कि- वर्गक अंतिम वर्णक सेहो लोप छै । एहि वर्ण केँ शुरूमे राखि कोनो शब्दक गठन प्रायः नहि होइत छैक । किछु वर्णक तँ प्रायः प्रयोगो बन्न भगेल छैक । कोनो तरहक सुधारक लेल सुझावक स्वागत अछि ।  


अक्षर परिचय

टकन-मटकन खेल खेलाउ
म बीछि गाछीसँ लाउ
चना माछक साना होइछ
टासँ घर महल बनैछ
चकुनकेँ चुलहा पर देखू
सर खेतमे गोबर फेकू
षिमुनि सबहक फूट समाज
लृ लृकेर कोनो ने काज
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क पहिल गिनतीकेँ मानू
ना एक कतहुसँ आनू
ल बहुत कबकब अछि भाइ
टल पानि परम सुखदाइ
अंगा हमर छोट भ गेल
अः धन हमर चोर लगेल
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कबासँ अहाँ सीटू केस
टरलालकेँ लगलनि ठेस
दहा होइछ पशुमे बूड़ि
ड़ी अधिक छूनहिसँ दूरि
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लू चली मिली देखी नाच
ओ पैसामे किनलहुँ साँच
लमे बहुतो जीव रहैछ
ट दय करब नीक नहि होइछ
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टका जल सँ खूब नहाउ
कक संगमे पड़ी ने बाउ
मरू डिमडिम बजबी आनि
कर ढकर नहि पीबी पानि
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रबामे नहि होइछ केश
रथर काँपथि डरे धनेश
ही चुड़ामे गारू आम
न धन छला भरत ओ राम
रक जायब जँ करबे पाप
ड़ा-पड़ा कटतौ ओ साप
टक लगा कयबाहर भेल
ड़द केँ चरबय लय गेल
रत नामपर अछि ई देश
हाराज कहबथि मिथिलेश
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श भगवानक अपरमपार
मा संग जे करथि बिहार
लका धोती पहिरू बाउ
नमे एकसर अहाँ ने जाउ
ठ रावणकेँ मारल राम
ड्मुख सुर सेनापति नाम
बसँ पैघ थिका भगवान
म सब करी हुनक गुनगान
क्ष त्रिय ऊपर रक्षा भार

त्र ज्ञ पढ़िके अक्षर पार

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