Saturday, December 16, 2017

परिचायिका / मनबोध : भीमनाथ झा

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एतय  'परिचायिकासँ मनबोध आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
मनबोध
 [MANBODH]
[पृष्ठ-20]
मनबोधक स्थान मैथिली साहित्यमे महत्वपूर्ण अछि, तकर कारण जे ई विद्यापतिक परम्पराकेँ भंग क, शृंगार-प्रधान गीतक विपरीत, कथाकाव्यक माध्यमे मैथिलीक भण्डारकेँ भरलनि । शिल्पक स्तरपर, भावक स्तरपर, तथा वर्णन-चमत्कारक स्तर पर हिनक कविताक प्रयोग सफल सिद्ध भेल अछि । हिनक प्रसिद्ध रचना ‘कृष्णजन्म’ अछि, जाहि आधार पर मध्ययुगीन कविमे हिनक  स्थान अग्रगण्य अछि ।
जहिना विद्यापतिक पद लोक-कंठमे अपन स्थान बना अमर भ’ गेल, तहिना ‘कृष्णजन्म’ क चौपाइ सभ सेहो स्त्रीगण-पुरुषक कण्ठमे बैसि अपन कविकेँ अमर क’ देलक । विद्यापतिक पश्चात सर्वसाधारणक बीच जतेक लोकप्रिय मनबोध भेलाह, ततेक हिनक पूर्ववर्ती आन कोनो कवि नहि भ’ सकलाह । आइयो गाम-घरक बूढ़-पुरान स्त्रीगण-पुरुषक जीहपर कृष्णजन्मक अनेक चौपाइ विराजमान अछि ।
एतेक लोकप्रिय रहितो, हिनक परिचय ओ समय सुनिश्चित नहि अछि । हिनको प्रसंग विद्वानलोकनिमे मतबैभिन्य देखल जाइछ ।
म.म. डा. उमेश मिश्र हिनक परिचयक सम्बंधमे दू गोट विवरण देलनि अछि ।
1. ई मंगरौनीक रहनिहार छलाह । ई पलिबार जमदौली मूलक योग्यवंशक सोनमणि झाक, जे पैघ ज्यौतिषी रहथि, बालक छलाह ।
2. दोसर मतक अनुसार पगुलबाड़ बड़िआम मूलक जमसम-निवासी चान झाक ई बालक छलाह आ हिनक नामान्तर भेल छलनि । पंजीमे ‘भाषाकवि भोलन’क उल्लेख भेटैत अछि ।
प्रो. रमानाथ झाक अनुसार मनबोध नरौने मलिछाम मूलक जटेश झाक बालक छलाह । ग्रियर्सन साहेबक मतेँ हिनक निधन 1788 ई. मे भेलनि । अतः हिनका अठारहम शताब्दीक मानल गेल अछि ।
प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’क शब्दमे “कवि मनबोध पलिबाड़ मूलक ज्योतिर्विद सोनमणि झाक बालक छलाह । महाराज नरेन्द्र सिंहक समकालीन, अठारहम शताब्दीक पूर्व भाग हिनक समय मानल जाइछ ।”
‘कृष्णजन्म’ क अतिरिक्त हिनक एक आओर पोथी ‘दानलीला’क उल्लेख भेटैत अछि, किन्तु ई पोथी अद्यावधि अनुपलब्ध अछि । कहल जाइछ जे ई शृंगार रसक काव्य छल ।
कृष्णजन्म - ‘कृष्णजन्म’ एक आख्यान-काव्य थिक जकर कथानक गोकुल-मथुरा-द्वारकाक परिधिमे घुमैत कृष्ण जन्म, तखन कंसक वध आ तकर बाद जरासंघक संहार धरि सीमित अछि । स्मपूर्ण ग्रंथ के छन्द चौपाइमे रचित अछि । एकर कथा भागवत ओ हरिवंश पुराणसँ लेल गेल अछि । एहिपर हरिवंशक छाप -
[पृष्ठ-21]
 - ततेक गाढ़ अछि जे कतोक विद्वान एकर मौलिकतेपर संदेह व्यक्त क’ देलनि । किन्तु, पद ततेक रमनगर अछि, कथा ततेक छटासँ कहल गेल अछि जे ई सर्वथा मौलिकक स्वाद दैत अछि ।
उपलब्ध ‘कृष्णजन्म’ मे अठारह अध्याय अछि, मुदा पढ़ला उत्तर स्पष्ट होइत अछि जे दस अध्यायक बाद ओ छटा, ओ चमत्कारक अभाव अछि जाहि हेतु मनबोध प्रसिद्ध छथि । तेँ, ई संदेह कयल जाइछ जे एगारहसँ अठारह अध्यायक अंश, मनबोधक नामपर, कोनो आन कविक जोड़ल अछि ।
एकर रचना महाकाव्यक रूपमे नहि भ’क’ पौराणिक कथाक रूपेँ भेल अछि । महाकाव्यमे सर्ग होइत अछि, किन्तु कृष्णजन्ममे अध्याय अछि । तहुँ एकरा महाकाव्य कहब समीचीन नहि । एहिमे ‘काव्यकलाक अलंकार-चमत्कार नहि, लोकजीवनक सहज संस्कार अछि ।’ तेँ एकरा पौराणिक कथकाव्य कहब अधिक समीचीन होयत ।
मनबोधकेँ भाषाकवि कहल जाइत छनि । कृष्णजन्ममे जे भाषा प्रयुक्त भेल अछि तकरा निस्सन्देह लोकभाषा कहल जा सकैछ । “तत्कालीन साहित्यिक संस्कृत एवं अवहट्ट, जे संयुक्ताक्षरक प्रयोगक कारणेँ, कर्णपटु प्रतीत होमय लागल छल से घसि कय, कोमल उच्चारणसँ मजि-चिकनाकय, लोककंठक अनुकूल बनि गेल अछि । यथा कुमारी-कुम्मरि-कूमरि, हस्ती-हत्थी-हाथी, अर्जुन-अज्जुन-अरजुन, दुग्ध-दुद्ध-दुध, कार्य-कज्ज-काज, दर्व-दप्प-दाप आदि । उदाहरणस्वरूप, तेसर अध्यायक ई प्रसिद्ध चौपाइ देखल जा सकैछ-
कतओक  दिवस जखन बिति गेल । हरि पुनु हथगर गोड़गर भेल ।
से  कोन  ठाम  जतय  धरि जाथि । कय  बेरि अंगनहुँसँ  बहराथि ।
द्वार  उपरसँ  धरि  धरि  आनी । हरखथि  हँसथि जसोमति रानी ।
कय  बेरि  आगि  हाथसँ  छीनु ।  कय  बेरि  पलका  तकला  बीनु ।
कय  बेर  साप  धरय  पुनि  जाथि । कय बेर चून दही बदि खाथि ।
कौसल चलथि मारिकहुँ चाल । जसोमतिकाँ भेल जिबक जंजाल ।

कृष्णजन्ममे तद्भव शब्दक प्रयोगक अतिरिक्त मिथिलाक लोककोक्ति ओ मोहाबराक प्रयोग सेहो पर्याप्त भेल अछि । यथा- लाजक लेल मुख हेरलो न होय, एहिसँ सुखद साप बरु खाय, जुड़ायल कान, विधाता बंक, सब दुख जिव पनिछाय, आदि । ‘बाभन पोथी छत्री तीर’ ‘नेरु हरेयने जेहने धेनु गाय’ आदि कहबी सम्पूर्ण काव्यग्रन्थमे जीवन्तता आनि देने अछि । तत्कालीन चिन्तनकेँ कतहु व्यंग्यसँ तँ कतहु तीक्ष्ण कटाक्षसँ एहिमे उभारल गेल अछि ।
यैह कारण थिक जे कृष्णजन्म मिथिलामे पर्याप्त लोकप्रिय भेल । विद्यापतिक पद जकाँ ईहो पोथी सकलसाधारणक जीह पर विराजमान भ’ गेल । एहि लोकप्रियताक जड़िमे अछि कृष्ण सन लोकप्रिय चरितक बाल्यकालक वर्णन जे वात्सल्यसँ ओतप्रोत अछि, तथा सहज-सरल भाषाक प्रयोग एवं मिथिलाक सामाजिक-धार्मिक संस्कारक सफल चित्रण । भाषाक सहजताक निर्वाह करितो कवि एहिमे अलंकारक पर्याप्त प्रयोग कयलनि अछि । अन्यो काव्यगुणसँ ई कृति परिपूर्ण अछि ।
[पृष्ठ-22]
मैथिली साहित्यमे वात्सल्य रसक वर्णनक अभाव अछि । वर्तमानो काल मे कम कवि भेलाह अछि जे वात्सल्य रसक नीक जकाँ परिपाक क’ सकलाह अछि । तेहना स्थितिमे, मनबोधक महत्त्व आओरो बढ़ि जाइछ । मैथिलीमे तँ प्रायः मनबोधेसँ एहि रसक धारा आरम्भ होइत अछि । नेनाक लालन-पालन करब, ओकर चंचलताकेँ भोगब, ओहिसँ आनन्द उठायब, ओकरा उच्छृंखल बनवासँ रोकब, अपन एक-एकटा व्यवहारसँ ओकर चरित्र-निर्माण करब, नीकक शिक्षा देब, अधलाहसँ परहेज करब सिखायब, ओकर मोन पर कोनो तीव्र दबाव नहि देब- ई सभ तेहन तत्व अछि जे बालकक भविष्यक निर्माणमे सहायक होइत अछि । काव्य मे एकरा उतारब आ पुनि तकरा लोकप्रिय बनायब- कविक आसाधारण सामर्थ्यक काज थिक । एहू दृष्टिएँ मनबोधक काव्य-दृष्टि बाल-मनोविज्ञानक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म विन्दु धरि प्रवेश क’ गेलनि अछि ।
कृष्णक बाल-स्वभावकवर्णन करैत काल कवि कथाक सूत्रकेँ छोड़ैत नहि छथि तथा लगले-लागल कृष्णक ईश्वरत्वक भान पाठककेँ करा दैत छथि । कवि सावधान रहैत छथि जे पाठक वर्णनक रसानुभूति करैत एतेक दूर धरि नहि चलि जाय जे ओकरा मूल कथे विस्मृत भ’ जाइक । तेँ अमलार्जुनउद्धारक प्रकरण कृष्णक बाल-लीलाक बीचमे कवि राखि देलनि अछि-
भेलहि निसंक समय हरि पाओल
भरि-भरि पाँज उखरि ओंघरायल
गुड़कल –गुड़कल भिड़ुकल जाय
जतय  अछल  दुइ  बिर्छ  अकाय
जमला    अर्जुन   कमला    नाथ
जुगति  उपाड़ल  छुइल  न  हाथ
खसल   महातरु   हँसल   मुरारि
भेल    अघात   जगत   परिचारि

कृष्णजन्मक भाषाक प्रसंग डा. ग्रियर्सन कहने छथि- The poem is deserving of special attention as an example of the Maithili of the last century affording a connecting link between the old Maithili of Vidyapati and the modern Maithili of Harsnath Jha and the other writers of present day.  
एकर समर्थनमे प्रो. सुमनक एहि उक्तिकेँ देखल जा सकैछ- “कविक काव्य-प्रबन्ध पूर्वरंगक संगीतकक इंगितपर नहि, छन्दबन्धक उन्मुक्त वातावरणमे विकसित लक्षित होइछ । एहि दृष्टिएँ आधुनिक मैथिलीपर जतेक प्रभाव ज्योतिरीश्वर विदयापतिक नहि, गोविन्ददास-रामदासक नहि. उमापति-नन्दीपतिक नहि, ततेक मनबोधक पड़ल अछि ।”
तेँ डा. जयकान्त मिश्रक ई मान्यता जे- In the history of Maithili literature Manbodha occupies a very important place अक्षरशः सत्य अछि ।
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प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

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