Tuesday, December 11, 2012

वाणी मिश्र केर दू गोट कविता


12 नवम्वर 1953 के तिलाठीनेपाल मे जन्म । देहांत - 2 जून 1996 । मात्र बियालिस वर्ष केर जीवन जीवय वाली वाणी रचनात्मक प्रतिभा सँ भरल छलि । हुनक जीवन काल मे कतेको कविताकथा आ निबंध पत्र-पत्रिका मे प्रकाशित भेल छलन्हि । हुनक मृत्युक बाद 1997 मे चन्द्रेश केर संपादन मे ‘अमर वाणी’ नामक काव्य संकलन बबुआजी मिश्र प्रकाशन, लेहरियासराय, दरभंगा सँ प्रकाशित भेल अछि । वाणी मिश्रक कविताक संग यात्रा केनय संवेदना केर एकटा अज्ञात लोक केर यात्राक अनुभव करबैत अछि । स्त्रीक नजरि सँ सम्बंधसमाज आ अन्यान्य विषय केर संगहि स्वयं स्त्री के देखबाक एकटा अलग ढंगक टूल्स वाणी केर कविता सभ मे भेटैत अछि । संभावना सँ भरल कवयित्री केर असमय चलि जायब सब दिन एकटा टीस जोकाँ रहत । विनम्र श्रद्धांजलिक संग प्रस्तुत अछि संकलन सँ साभार दू गोट कविता ।


सृजनक पीड़ा
अपन रक्तक
एक-एक बुन्न सँ
आइ फेर गढ़ैत छी
एकटा मूर्ति
सुन्दर, स्पष्ट, सुचिक्कन

ओकर आनन पर
प्रतिबिम्बित होयत
हमर चेतन अचेतन सभ सौन्दर्य
ओकर गरिमा पर चढ़ायब
हम अपन जीवन

आ फेर सृजनक पीड़ाक बादक
ओहि असीम आनन्दक लेल
हम लालायित नहि रहि जायब

आ आइ हमर शोणितक सभ बुन्न
एक बिन्दु पर मिलिक
हमरा दर्दक समुद्र मे धकेलि देलक अछि
आ अपन एतेक बेसी दर्द
हमरा कतेक बेसी नीक लगैछ ।

स्मृति
मोन नहि अछि ओ दिन, महीना आ तारीख
बरख सेहो मोन नहि अछि
हँ, मोन अछित एतबे जे, तखन सब किछु
हमरा अपन बड्ड अपन बुझाइत छल

आ तखन कोनो दिन हम अहाँकेँ
अपन आत्मीय क्षण मे कहने रही
जे देखू कतेक सुन्नर गुलाब अछि
एकरा अहाँ देखि लिय’,  अपन बना लिय
आ अहाँ नहि देखने रही

फेर एक दिन जखन आशाक फूल केँ
हम प्रतीक्षाक फूल बनौने, करेज मे सटौने रही
तँ कहने रही, हे लिय एकटा अहाँ ल लिय
आ अहाँ तमसा क मुह घुमा लेने रही
आ हम आहत भ चुप्प भगेल रही

फेर हम अहाँ नहि जानि कोना एक भ' गेलहुँ
आ हमर आहत स्वाभिमान
अहाँक अधिकारक गर्व सँ चकनाचूर भ गेल
हम पिसाइत पिसाइत धूरा भ गेलहुँ
आ अहाँक अधिकार बढ़ैत गेल
आ हमर कर्तव्यक कहियो अन्ते नहि भेल

आ फेर अपन हाताक गुलाब दिस नुका-नुका क
हम देखैत रहलहुँ आ एकटा गुलाब
उम्मीदक गुलाब बनि फुलाइत रहल
कतेक बेसी गुलाब फुलायल अछि हमरा चारू कात
आ बीच मे ठाढ़ि हम गुनधुन करैत छी

की एहि सब फूल केँ बीछी हम
अहाँक लेल एकटा माला बना लिय
मुदा मोन हमरा एना नहि करय दैछ
आब हमर स्वाभिमान जागल अछि
आ हम थकमकायल छी
संस्कारक सक्कत जड़ि हमरा छोड़य नहि दैछ
आ आधुनिकताक प्रबल बेग हमरा उधियौने जाइछ

की करू हम, की कने अहीँ घूमि क बुझा नहि लेब
आइ फेर एकटा लाल गुलाब फुलायल अछि
एकरा अहाँकेँ देखहि फड़त ।

[चित्र- अमृता शेरगिल / साभार- hindi.webdunia.com]

1 comment:

  1. बहुत बहत द्रवित करैत अछि ई कविता आ सोचावाक लेल सेहो बाध्य करैत अछि ,बहुत बहुत धन्यवाद मैथिलि मंडन के एही रचना के सुलभ रुपे उपलब्ध करेवाक लेल...

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