Saturday, March 12, 2016

परिचायिका केर भूमिका

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि । पाठक, शोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति क' सकैत अछि । 'मैथिली मंडन' समय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत । एकरा परिचायिका श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत । ध्यान राखी जे 'परिचायिका' मूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक । इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ । अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही । 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि । एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि । एहि मे किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । कोनो तरहक आपत्ति केर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत ।
भीमनाथ झाक श्रम सँ तैयार एहि ग्रंथक परिवर्धित दोसर संस्करणक भूमिका एतय देल  जा  रहल   अछि । एहि किताबक लेख सब केँ पढ़वा सँ पहिने एहि लेखकीय वक्तव्य केँ पढ़ब जरूरी आ उपयोगी अछि । 



लेखकीय


भीमनाथ झा
[पृष्ठ-क]

ठीक सात वर्ष पहिने परिचायिका छपल छल । बजारमे तँ ओ एक-डेढ़े वर्ष टिकलैक, मुदा कृपालु पाठक ओकरा बहुतदिन धरि मन रखने रहलाह-छात्रलोकनिक कानमे एकर नाम बादो धरि पड़ैत रहलैक । मुदा एम्हर, एकर नाम ओकर कानकेँ छुअब छोड़ि रहल छल प्रायः ।
हम तँ बहुत पहिने एकरा छोड़ि चुकल रही । पहिल खेप जखन ई तैयार भेल तँ हमर लेखकीय मनकेँ ततेक संकोच भेलैक जे पोथीक संग अपन नाम देबाक साहस हम नहि जुटा सकलहुँ । रचयिताक नीचाँ- मध्यम पाण्डव गेल रहैक ।
एहि सात वर्षमे बड़ परिवर्तन भेलैक अछि । कतिपय विद्वान लोकनिक ध्यान एहन वस्तुक बजार दिस गेलनि । फलतः एक-सँ-एक वस्तुक पथार लागलागल ! मुदा, कृपालु पाठकक आभारी छियनि, विशेषतः छात्र लोकनिक,जे तैयो सुनलाहा परिचायिकाक चर्चा चला देथि । ताहि सँ हमर संकोचभंजन सेहो भेल ।
श्री मदन मिश्रजीक सहजोर तगेदाक प्रसादात् जेना तेना ई लिखा गेल रहय तथा वैदेही पुस्तक भण्डार, पटना एकरा छपने रहय सीमित संख्यामे ।
तहिना, एकर लेखकोक सीमा रहनि-छनिहें, पोथियोक सीमा रहैक-छैके । लेखकक सीमा ई जे अपनामे समीक्षा लिखबाक अपेक्षित योग्यताक अभाव, पोथीक सीमा ई जे आलोचना-पक्ष सँ सूचना-पक्ष बेसी प्रबल हो, लेखकीय मतक अपेक्षा इतिहासकार आ आलोचक लोकनिक विचारक उल्लेख हो। एकर कारण ई जे प्रस्तुत पोथी विशुद्ध आलोचनाक नहि थिक, विद्वान लोकनिक हेतु नहि थिक । ई तँ मैथिलीक ओहन छात्र लोकनिक हेतु थिक जकरा कमसँ कम परिशेरममे बेसीसँ बेसी चाहिएक । प्रथम संस्करणमे एकर उद्देश्य स्पष्ट करैत कहल गेल छल- परिचायिका’  मैथिलीक किछु प्रमुख साहित्यकारसँ मोटामोटी परिचय करयबाक एक विनम्र प्रयास थिक । हुनकालोकनिक व्यक्तित्व-कृतित्वक समालोचना करब, ओहिपर स्वतंत्र विचार देब लेखकक उद्देश्य एहि ठाम नहि रहल अछि, इतिहासकार किंवा समालोचक वर्ग द्वारा देल गेल मतसँ, यथासम्भव हुनकेलोकनि शब्दमे, पाठककेँ परिचित करा देब एहि लेखकक अभीष्ट रहलैक अछि, जाहि सँ मैथिली साहित्यसँ नहियों परिचय रखनिहार लोक किछु विख्यात कृतिकार ओ कृतिक साहित्यिक महत्वक विषय मे सामान्य अवगति प्राप्त क लेअय ।
उद्देश्य एहू संस्करणमे यैह रहलैक अछि । किन्तु, ई प्रथम संस्करणक पुनर्मुद्रण मात्र नहि थिक । एहि सात वर्षमे जे विवेचित साहित्यकारक पोथी अयलनि अछि, लेखकीय क्षमतामे जे विकास भेलनि अछि, तकरा जोड़ि देल गेल अछि । शुरूसँ आधा पोथी तँ फेरसँ लिखल गेल अछि । सात गोट आर साहित्यकारकेँ शामिल कयल गेल अछि- पहिने चौवन टा शीर्षक छल, एहिमे एकसठि टा अछि । परिवर्तन दुनू संस्करणकेँ एक ठाम राखलापर स्वतः परिलक्षित होयत ।
किन्तु, त्रुटिक सोहो एहिमे कोनो कमी नहि अछि-गनयबाक काज नहि, विद्वान आ सचढ़ पाठककेँ भेटल चल जयतनि ।
[पृष्ठ-ख]
क्रम वयानुसार राखल गेल अछि । वयसक आधार विभिन्न ठाम प्रकाशित हुनका लोकनिक जन्मतिथि मानल गेल अछि । कोनो कारणेँ जँ से ओत अशुद्ध रहि गेल छैक तँ ओ दोष एहू मे आबि गेलैक अछि । एहन पहिल संस्करणक किछु दोषक एहिमे निराकरण कदेल गेल अछि ।
यद्यपि साहित्यकार लोकनिक व्यक्तित्व-कृतित्वक फराक-फराक, स्वतंत्र रूपेँ, एहिमे विचार कयल गेल अछि, किन्तु पाठक जँ कने गम्भीरतापूर्वक एकर अध्ययन करथि तँ विभिन्न विधा (कविता, कथा, उपन्यास, आलोचना आदि)क क्रमिक विकासक विषय सेहो मुख्य मुख्य ज्ञातव्य बातसँ ओ ओ अवगत भ सकैत छथि ।
जतेक गोटेक विषयमे एहिमे कहल गेल अछि, ताहिसँ कतोक बेसी, प्राचीनसँ ल आधुनिक काल धरि, साहित्यकारक संख्या अछि, हुनका लोकनिक अवदान समान रूपसँ साहित्यकेँ अलंकृत कयलक अछि, ओहो सब समान महत्वक थिकाह । हुनका लोकनिक चर्च एहि ठाम नहि होयबाक पाछाँ ई कारण कथमपि नहि थिक जे हुनकालोकनिक चर्च नहि होयबाक चाही ।
किन्तु सभसँ पहिने, आ सभसँ प्रमुखतासँ चर्च होयबाक चाही ओहि आदरणीय इतिहासकार ओ विद्वान लोकनिक, जनिका लोकनिक ग्रन्थ अथवा निबन्धक एहिमे उपयोग कयल गेल अछि । ओहि सभ परमादरणीय विद्वान साहित्यकार ओ समालोचक महानुभावक सम्मुख (दिवंगत लोकनिक स्मृतिमे) हम हृदय सँ आभारी छी, कारण बिना हुनका लोकनिक विचारक उल्लेख कयने कृति आ कृतिकारक परिचय प्रामाणिक नहि भपबैत ।
भवानी प्रकाशन पटनाक प्रति, विशेषतः श्री परमानन्द झाक प्रति कृतज्ञ छियनि जे एकर द्वितीय आ परिवर्धित संस्करण प्रकाशित करबा दिस प्रबृत्त भेलाह ।
पटना छुटियो गेलापर पटनाक मित्र नहि छुटलाह अछि, छुटबो नहि करताह । श्री मोहन भारद्वाज, श्री कुलानंद मिश्र आ श्री पूर्णेन्दु चौधरीक सहयोग एहू मे लेबहि पड़ल । मुदा ताहि लेल आभार प्रदर्शित कर जयबनि, तखन ओसभ बुझताह ? श्री महारूद्र झाक तत्परता हमरा बड़ उपयोगी भेल अछि ।
अपनेकेँ ई पोथी केहेन उपयोगी भसकत, से तँ हम नहि जनैत छी, मुदा अपने लोकनिक  सहयोगसँ एकर नाम किछु दिन आर जीवित रहि जाइक तँ सैह हमरा लेल कोन कम ?

रामनवमी                                                                             भीमनाथ झा
30-03-1985


प्रकाशक : भवानी प्रकाशन, मुसल्लहपुर, पटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेस, पटना-800006

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