मैथिलीक व्यवहार करवा
मे हीनताबोधक अनुभव केनिहार मैथिलक अभाव नहि अछि । हुनका सबकेँ संभवतः ई नहि बूझल
रहैत छन्हि जे अपन मातृभाषाक प्रति हीनग्रंथि रखनिहार व्यवहारिक रूपें अपनहि टांग
मे कुरहरि मारैत अछि । अपन अस्मिताक नाशक संगहि ओ अपन आ अपन परिजनक सहजताक नाश
सेहो करैत अछि । व्यापकता मे ओ समग्र मैथिल समाजक अहित करैत अछि । मैथिली बिनु
मैथिलक पहचान की ? मैथिलीक ख्यातिलब्ध कथाकार
ललित क चिंताक केन्द्र मे ई विषय छल । एतय हुनकर एहि विषय पर केन्द्रित संस्मरणात्मक
टिप्पणी देल जा रहल अछि जे पहिल बेर ‘मिथिला मिहिरक’ 17 जनवरी 1971 अंक मे
प्रकाशित भेल छल । एहि संस्मरणात्मक टिप्पणी केर क्रमशः दू गोट पात्र व्यक्तिगत
रूपें हमर मन केँ बड्ड द्रवित करैत अछि पहिल नव ब्याहल कनिया आ दोसर आठ बरखक नेना !
एतय ललितक एहि संस्मरणात्मक टिप्पणी केर फोटो प्रति मैथिली अकादमी सँ प्रकाशित विभूति
आनंद द्वारा संकलित संपादित ‘ललित समग्र’ सँ साभार* लेल
गेल अछि ।
स्रोत*- संकलन संपादन - विभूति आनंद : ललित समग्र :
प्रथम संस्करण -2012 : मैथिली अकादमी. 740/800 लालबहादुर शास्त्री नगर, पटना-23
[ *स्पष्टिकरण : ‘मैथिली
मंडन’ पर एहि तरहक कोनो सामग्री मैथिली पाठक आ शोधार्थी धरि
प्रयोजनीय सामग्री केँ पहुँचेवाक उद्देश्य सँ प्रस्तुत कयल जाइत अछि । एकर पाछू किनको व्यवसायिक अहित करवाक भावना नहि होइत अछि
। संभव भेला पर सम्बंधित पक्ष सँ अनुमति लेवाक अथवा सम्बंधित पक्ष केँ सूचना देवाक
चेष्टा कयल जाइत छैक । कैक बेर एकर जरूरति नहि बुझेला पर अथवा सम्पर्क सम्भव नहि
भेलाक बावज़ूदो संदर्भ स्रोत केर साभार उल्लेख कयल जाइत छैक । मैथिली-मंडनक अपन
सम्पूर्ण प्रस्तुति केँ दुर्भावनारहित राखवा लेल कृतसंकल्प अछि । तथापि सम्बद्ध
पक्ष केँ जँ कोनो तरहक आपत्ति होइन त’ ब्लॉग पोस्ट पर अपन
प्रतिक्रिया मे अथवा जी-मेल पता maithilimandan@gmail.com पर
अपन आपत्ति दर्ज करा सकैत छथि । यथाशीघ्र हुनक
आपत्तिक निपटारा ‘मैथिली मंडनक’ प्राथमिकता होयत । ]
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