Monday, May 16, 2016

अहाँ के की बनबाक अछि / कुमार सौरभ

प्रस्तुत आलेख मैथिली मे बाल पत्रिकाक दीर्घकालिक अभावक उपरांत प्रकाशित भ’ रहल पत्रिका ‘नेना भुटकाक नियमित स्तम्भ ‘अपना सब किछु गप्प करी’ केर अप्रैल'2016 अंक मे प्रकाशित भेल अछि । एहि श्रृंखलाक ई तेसर किस्त थिकै । एहि श्रृंखलाक आलेख सब शैशवसँ किशोर होमय जा रहल पाठकवर्गकेँ ध्यानमे राखिकेँ लिखल जाइत छैक । 
ई अपेक्षा कएल जाइत अछि  जे बच्चाकेँ माय पिता वा अभिभावक, आलेख पढ़बा लेल प्रेरितो करता आ हुनका कतहु दिक्कत होइन तँ बुझेबा मे मदतो करता । अहाँ सबहक सुझाव आ कोनो त्रुटि दिस ध्यान दियायब लेखक केँ आर नीक लिखबा मे निश्चितरूपें मदति करत ।


अहाँ के की बनबाक अछि
कुमार सौरभ

लोक सब जतय ततय जखन तखन ई पूछि दैत हेता जे बौआ अहाँ की बनय चाहै छी ? अहाँ किछु उत्तरो दैत हेबनि । हमहुँ यैह पुछैत छी । अहाँ अपन उत्तर मने मन हमरा दिअ। की बजलहुँ डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, कलक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी, सेनाक अफसर वा एहने किछु आर ! कहू तहम ई कोना बुझलहुँ ? कोनो चमत्कार सँ नहि बल्कि एना बुझलहुँ जे मात्र अहीं टा नहि एहेने उत्तर एहि देशक लगभग सब नेना दैत अछि । मुदा हमरा किछु अलग उत्तर चाही छल रहय । एहि बात पर आगाँ चर्चा करब मुदा ताहि सँ पहिने अहँक विचार करबा लेल एकटा प्रश्न दैत छी । प्रश्न कने कठिन छै, मुदा एहि पर जतेक जल्दी विचार कए लेब ततबे नीक रहत । की डाक्टर, प्रोफेसर, अफसर आदि बनि गेनय सँ वा पैसा आ रुतबा आबि गेनय मात्र सँ जिनगी सफल  भजाइत छै ?
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एकटा छोट-छीन खिस्सा सुनबैत छी । एकटा गाम मे एकटा जमीनदार छलहि । नाम छलहि राय सुरगुन सिंह । ओ महले जोकाँ नीक घर बनौने छल आ अपन परिवार लेल सब सुख सुविधा जुटौने छल । ओकरा लग बहुत समपैत छलहि तेँ आगाँ पाछाँ करै बला सबहक सेहो कोनो कमी ने छलहि । कैक टा लठैत ओकर दुआर पर तैनात रहैत छलहि । इलाकाक लोक ओकर डर मानैय । समय समय पर धर्मक नाम पर कने दान पुण्य आ भोज भंडारा सेहो कदैत छलहि । एहि सँ खौकार सब ओकर जयकारा करै आ पंडित पुरोहित सब प्रसन्न रहैत छलहि । चापलूस सबकेँ आर कोनो काज तँ होइत नहि छैक, कहै- सरकार जे छी से अहीं छी । अहाँ के आगाँ ककरो कोन लखा । राय सुरगुन के होइ जे ओकर जिनगी एकटा सफल जिनगीक नीक उदाहरण अछि । मुदा दबल जुबाने लोक ओकर नींदो खूब करै । सबकेँ बूझल छलहि जे अपन फायदा आ मुनाफाक आगाँ ओकरा किछु आर ने देखैत छलहि । गरीब लोक के अन्न उधारी दैय तँ बाद मे दू के पाँच वसूल करय । मनमाना लगान वसूल करै । मनमाना पैसा नहि भेटला पर कोनो गरीबक एक मात्र आधार बरद खोलि आनय, गाय खोलि आनय । सूद पर पैसा बाँटय आ गरीब सबसँ तकरे एबज मे जिनगी भरिक मजूरी बेगारे खटबए । कियो ओकरा लग भरि मुह नहि बाजय । सौंसे गाम जेना ओकरा खुशामद मे जुटल रहैत छलहि । देश आजाद भेलहि तँ जमीनदारी जाइत रहलै, मुदा शान मे कोनो कमी नहि एलहि । ओकर धंधा जरूर बदलि गेलहि । गामे लग एकटा बड्ड सघन वन छलहि । जतय दुर्लभ सखुआ सबहक गाछ छलहि । गाछ काटबा पर रोक छलहि मुदा राय सुरगुन के रोकि सकैत छल ! सखुआक लकड़ीक तस्करीसँ नीक आमदनी होइत रहलै । एकटा इट्टाक चिमनी सेहो बैसा लेलके । माछ आ मखानक कारोबार सेहो शुरू केलकै, जे पसरैते गेलहि । राय सरगुन आ ओकर परिवारक जीवन नीक जोकाँ कटैत रहलै !
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एहि खिस्साक बाद अपना सब फेर सँ ओहि प्रश्नक दिस घुरि जाहि पर अहाँ सबसँ हम विचार करबाक आग्रह केनेय छलहुँ । प्रश्न छल- की डाक्टर, प्रोफेसर, अफसर आदि बनि गेनय सँ वा पैसा आ रुतबा आबि गेनय मात्र सँ जिनगी सफल भजाइत छै ? जँ एना होइत होइ तखन तँ राय सुरगुन सिंहक जीवन केँ सफल मानल जेबाक चाही ने ? मुदा हमर विचार सँ राय सुरगुनक जीवन एकटा असफल जीवन छलहि । हम एहि जीवन केँ असफल कियैक कहलहुँ से आगाँ फरिछा दैत छी ।
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हमरा सबहक जीवनक मुख्य आधार थिक प्रकृति । पानि,हवा,रौद,अन्न सब एहि प्रकृतिये सँ प्राप्त होइत अछि । दोसर आधार थिक मनुखक समुदाय जे अपन श्रम आ बुधिक बलेँ प्रकृति सँ उपयोगी आ आवश्यक वस्तु प्राप्त करैत अछि । सुविधा लेल एहि समुदाय केँ हम सब समाज सेहो कहि सकैत छियैक । अपना सब जखन भोजन करैत छियै तखन प्रकृत्ति सँ लके खेत मे काज करय बला किसान मजदूर केँ मोन नहि पाड़ैत छियैन्ह जिनकर मेहनति सँ अन्न उपजि केँ हमरा सबहक थारी धरि पहुँचैत अछि । हम जाहि घर मे रहैत छी तकरा बनेबामे कतेको गोटय केर मेहनत रहैछ । जाहि सड़क पर चलैत छी ताहि सड़कक निर्माण में देशक कतेको लोकक पैसा लागल रहैछ ।  हम सब जकरा सरकारी पैसा कहैत छियैक वास्तवमे ओ देशक जनताक पैसा होइत छैक । जनताक मेहनतक पैसा । कियो एकटा सलाइयो केर डिब्बा किनैत छैक तँ ओ सरकार धरि किछु ने किछु टैक्स पहुँचाबैत छैक । सरकारी खजाना एहिना लोकक योगदानसँ  भरैत छैक । सोचला पर बुझायत जे कोनो मनुखक विकास प्रकृति आ जनसमुदायक सहयोगक बिना संभवे नहि अछि । हम जखन कखनो कोनो सार्वजनिक सरकारी समपैत आ सुविधाक उपभोग करैत छियै तखन हमरा सबकेँ ई गप ध्यानमे राखबाक चाही जे ओ हमरा सब पर प्रकृति आ समाजक उपकार थिकै । 

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आब एकटा गप कहू जे अहाँ के बेगड़ता पर कियो किछु मददि करथि तँ सामर्थ्य भेला पर अहाँ हुनका घुरेबैन्हि की नहि ? यैह हिसाब प्रकृति आ समाजक संगे सेहो लागू हेतय ने ? मतलब ई जे प्रकृति आ समाज हमरा सबकेँ बहुत किछु दैत अछि ओकरा घुरायब हमर सबहक दायित्व भेलय की नहि जँ एना नहि होइ तखन एक दोसरक देखार-अनदेखार सहयोगक ई व्यवस्थे चरमरा जेतेक ने ! राय सुरगुन तेँ खाली एहि प्रकृति आ समाजक शोषण केलकै, एकरा किछु देलकै कहाँ? ओ तँ खाली अपने स्वार्थ मे बाझल रहलै तखन ओ नीक मनुख वा सफल मनुख कोना भेलै? नीक आ सफल मनुख हेबाक बहुत रास आधार भसकैत छै मुदा प्रकृति आ समाजक लेल जँ अहाँ उपयोगी नहि भसकलहुँ तँ सफल कहेबाक अधिकार तँ कतहु सँ नहि अछि ।
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प्रकृतिक रक्षा आ मनुखक प्रगति लेल ई आवश्यक अछि जे सब क्यो अलग अलग भूमिकाक निर्वाह करथि । कियो डाक्टर बनि बेमारकेँ ठीक करथि । कियो पुलिसक नौकरी करैत अपराध सँ समाजकेँ मुक्त करथि । कियो साफ सफाई केर जिम्मा अपना ऊपर लैथि । कियो शिक्षक बनैथि त कियो दोकानदार आ एहिना कतेको काज छै । कोनो काज जे प्रकृति आ समाज लेल उपयोगी होइ, छोट नहि होइत छै । जीवन जीबाक लेल पायक जोगाड़ आवश्यक छैक । ई जरूरी छैक जे अहाँ डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, रसोइया, कलाकार वा अपन पसंदक कोनो व्यवसाय केँ चुनी । मुदा जीवनक लक्ष्य यैह तँ नहि हेबाक चाही ने? हमरा विचारसँ लक्ष्य जँ होइ तँ ई होइ जे अहाँ नीक डाक्टर बनिकेँ बेमारक सेवा करी, एहेन प्रयास करी जे पायक अभाव मे कोनो बेमारक इलाज नहि रुकए । इंजीनियर वा वैज्ञानिक बनी तँ लक्ष्य मात्र ई नहि होय जे बेसी सँ बेसी पैसा जहिठाम भेटय ओतहि जाय । विचार एहेन रहबाक चाही जे अहाँक काज सँ प्रकृति आ मनुखकेँ लाभ पहुँचय ।
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हमरा सँ जँ पूछब तँ हम कहब जे सबसँ जरूरी अछि जे हम सब नीक मनुख बनबाक प्रयास करी । नीक मनुख मने ईमानदार मनुख भेनय । गलत आ अन्यायक विरोध करए बला मनुख भेनय । समाजक लेल अपन दयित्व केँ बुझय वला मनुख भेनय । अकारण ककरो कष्ट नहि देबय वाला मनुख भेनय । एहेन मनुख भेनए जे सामूहिक हित लेल अपन आ अपन परिवारक स्वार्थसँ ऊपर उठि सकय । जे अपन अधिकार आ अपन कर्तव्यकेँ नीक सँ बुझैत आ निमाहैत होइ । नीक मनुख हेबाक प्रयास जीवन भरि चलैत रहैत छैक ।
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जखन अहाँ ई बजैत छियै जे हम पैघ भअफसर की किसान वा किछु आर बनब तखन अहाँ अपन जीवनक लक्ष्य नहि कोनो व्यवसाय वा नौकरी लेल अपन रूचि वा अपन इच्छा व्यक्त करैत छियै । की अहाँके नहि लगैत अछि जे जीवनक लक्ष्य आ सफलता तँ नीक मनुख बनबामे होइत छैक ? जँ हमर गप बुझने होयब आ सही लागल होयत तँ आब पूछयबला केँ फरिछा केँ कहबैन्हि जे हम एकटा नीक मनुख बनए चाहैत छी । फेर कहबनि जे हमर रूचि अमुक व्यवसाय वा नौकरी मे अछि । मुदा किनको आनकेँ कहबा सँ पहिने ई बड्ड जरूरी छै जे अपना मन मे संकल्प ली जे अहाँके नीक मनुष्य बनबाक अछि । एहीमे जीवनक सार्थकता छैक । एहिमे जीवनक सफलता  छैक ।


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