Thursday, April 2, 2015

यात्री जीक रथ पर सवार एक टा दलित पंडित

तारानन्द वियोगी क संस्मरणात्मक पोथी तुमि चिर सारथि क प्रकाशन 1999 मे भारती-मंडन पुस्तिका’  रूप मे भेल छल । यात्री जी पर लिखल गेल संस्मरणक सभक बीच एहि संस्मरणक विशिष्ट स्थान अछि । तारानन्दक एहि संस्मरणक मादे केदार कानन पहल पुस्तिकाक रूप मे अप्रैल-मई 2006 मे प्रकाशित हिन्दी संस्करणक भूमिका मे लिखैत छथि- ‘‘एहि पोथीक प्रकाशन बाबा क पहिल बरखी पर भेल छल । छपितहि ई विचारोत्तेजनाक पैघ लहरि उठौलक । दूर-दराज तक केर लोक सब ताकि ताकि के एहि किताब केँ पढ़लन्हि । मैथिली क सबसँ बेसी पढ़य जाइ वाला पोथी सभ मे ई एक बनल । एहि पर कतेको लेख, समीक्षा आ टिप्पणी आदि लिखल गेल । मुदा जेना कि तारानन्द क रचना सभक संग होइत आयल अछि, विचारक सभ अहू बेर दूइ कोटि में बँटल देखार पड़लाह ।

केदार क बताओल एहि दूइ कोटि केँ प्रशंसक आ आलोचक केर दूइ गोट कोटि क रूप मे चिन्हल जा सकैत अछि । सारंग कुमारकेदार क बताओल दोसर कोटिक प्रतिनिधित्व करएति छथि । अंतिका’ क अप्रैल-जून 2000 अंक मे ‘तुमि चिर सारथि’ पर हुनक लिखल समीक्षा प्रकाशित भेल छल । यात्री जीक रथ पर सवार एक टा दलित पंडित’  शीर्षक सँ प्रकाशित एहि समीक्षा केँ मैथिली मे उपलब्ध किछुएटा  संतुलित समीक्षाक उदाहरण मानल जा सकैत अछि । एहि समीक्षा मे आलोचनाक जे बिन्दु चुनल गेल छैक से पर्याप्त महत्व रखैत अछि । सारंग कुमार द्वारा कएल एहि समीक्षा क पक्ष-प्रतिपक्ष भ सकैत अछि, मुदा एकर तार्किक गठन आ गहीर विश्लेषण पर प्रश्न नहि उठाओल जा सकैत अछि । एहि समीक्षा केँ प्रस्तुत करवाक आशय अछि जे युवा समीक्षक लोकनि एहि समीक्षा सँ सीखथि जे मैथिलियो मे एहेन समीक्षा कएल जा सकैत अछि । एतय अंतिका पत्रिका सँ साभार समीक्षा पृष्ठ केर छाया प्रति जेपीईजी फार्म मे उपलब्ध कारायल जा रहल अछि । एहि सँ टाइप करवाक मेहनत सँ पलखति भेटल अछि । समीक्षा केँ बेसी स्पष्ट पढ़वा लेल इमेज पर राइट क्लिक क डॉनलोड करी आ तकर बाद पैघ क के पढ़ल जा सकैत अछि 

साभार- अंतिका, संपादक-अनलकांत (गौरीनाथ) प्रकाशक- नंदिनी, दिलशाद गार्डन,दिल्ली-95

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