इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठक, शोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति क' सकैत अछि। 'मैथिली मंडन' समय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा ‘परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।ध्यान राखी जे 'परिचायिका' मूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही।एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय 'परिचायिका' सँ गोविन्ददास आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
गोविन्ददास
[GOVINDADAS]
[पृष्ठ-13]
गोविन्ददास, विद्यापतिक बाद, आदिकालक सभसँ
महत्वपूर्ण कवि छथि । विद्यापतिसँ
मैथिलीमे श्रृंगार आ भक्तिक धार जे प्रवाहित भेल, ताहिमे यद्यपि अनेको कवि
फूह-फाहसँ अपन योगदान देलनि, किन्तु गोविन्ददास रसक अनवरत मूसलाधार वृष्टि क’ ओहि
धारमे बाढ़ि आनि देलनि । हिनको ख्याति, विद्यापतिए जकाँ, मिथिलाक सीमाकेँ टपि
सम्पूर्ण बंगालमे पसरि गेल ।
हिनको
समय बहुत दिन धरि अनिर्णिते रहल । एखनहुँ एहिपर ऐक्यमत्य नहि भ’ सकल अछि । बंगाली
विद्वान बहुत दिन धरि हिनका बंगालक कवि मानैत रहलाह, किन्तु आब सिद्ध भ गेल अछि जे
ई मैथिल छलाह । अपन विषयमे ईहो किछु नहि लिखने छथि । पंजीमे एकसँ अधिक गोविन्ददास
नाम भेटैत अछि, तेँ ई निश्चय करब कठिन जे एहिमेसँ महाकवि गोविन्ददास के थिकाह ।
गोविन्ददासक भनितामे नरसिंहसँ ल’ कंसनारायण धरिक नाम भेटैत अछि । ताहिसँ एतबातँ
सिद्ध होइत अछि जे इहो राज्याश्रित कवि छलाह । किन्तु हिनक बहुतो गीत एहन अछि
जाहिमे कोनो राजाक उल्लेख नहि अछि । एहिसँ ईहो स्पष्ट होइछ जे ई स्वतन्त्रो रूपसँ,
बिना राज्याश्रयक, काव्यरचना कयने छलाह ।
हिनक परिचय आ समयक प्रसंग
विद्वानलोकनिक मत निम्नलिखित अछि-
कवीश्वर चन्दा झा पंजीक
आधार पर हिनक परिचय देने छथि “शुचिकर झा-एपुत्रः शिवदास झा, एपुत्रा
गंगादास-गोविन्ददास-हरिदास-रामदासाः । गंगादासस्य पुत्रः चानशर्मा चन्द्रशेखरोपनामा
एपुत्रः शोभानाथ शर्मा एपुत्रौ टेकनाथ शर्मा धुरपीशर्मा च । टेकनाथशर्मनो दौहित्रः
महाराजलक्ष्मीश्वर सिंह: ।”
प्रो. रमानाथ झा हिनका
कुजौलीवार मूलक कात्यायन गोत्रीय श्रोत्रिय ब्राह्मण मानने छथि तथा एहि वंशक उतेढ़
देखबैत एहि वंशक अनेक व्यक्तिक सम्बंध मिथिलाक राजपरिवारसँ सिद्ध कयने छथि ।
डॉ. जयकान्त मिश्र कहैत
छथि “He was a contemporary of Maharaja Sundara Thakur (1663/4-1670/1)
and belonged to the mother’s family of the late Maharaja Rameshwara Singha
Bahadur (1888-1929)” ई चारू भाइ कवि छलाह तथा हिनक अनुज रामदास अपन
आनन्दविजय नाटिकामे अपन अग्रज गोविन्ददासकेँ विद्यागुरू स्वीकार कयने छथि । आनन्द
विजय महाराज सुन्दर ठाकुरकेँ समर्पित अछि ।
डॉ. शैलेन्द्र मोहन झाक
अनुसार गोविन्ददास विद्यापतिक लगले परवर्ती-कालमे भेलाह । एकर पाछाँ हुनक तर्क छनि
जे विद्यापति भैरवसिंहक आज्ञासँ दुर्गाभक्ति तरंगिणी लिखलनि । गोविन्ददास सेहो एक
गीतक भनितामे भैरवसिंहक उल्लेख कयने छथि । गोविन्ददास विद्यापतिकेँ अपन गुरू रूपमे
स्वीकार कयने छथि । अतः दुनू कवि समसामयिके थिकाह ।
[पृष्ठ-14]
डॉ. रामदेव झाक अनुसार
कंसनारायणक समकालिक, ‘नलचरित’-रचियता, दिघवय-सन्नहपुर मूलक तथा पंजीमे कवि आ
महामहोपाध्याय उपाधिधारी विशिष्ट मन्ति (मन्त्री) गोविन्दे ई गोविन्ददास थिकाह ।
श्री नरेन्द्रनाथ दासक
अनुसार गोविन्ददास कायस्थ कुलोद्भव श्रीधरदासक वंशपरम्परामे अबैत छथि ।
प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ उचिते
कहलनि अछि जे “गोविन्ददास कोनहु कालखण्डक होथु, कोनहु अभिजन ओ कुल परिवारक
होथु, ओ छथि मैथिलीक महाकवि, जनिक स्थान विद्यापतिक परम्पराक कोनहु कविसँ न्यून
नहि । ओ अपन शैलीक अनन्य कवि छथि । श्रुतिमाधुर्य, वर्णन विन्यास ओ लीलारसक
उपन्यासमे हुनक स्थान मैथिलीअहिमे नहि कोनो उत्तरभारतीय भाषामे अनुपम मानल जायत ।
हुनक पदमे शब्दशास्त्रीय पाण्डित्य, तार्किकता, अलंकारिता ओ भक्ति-अनुरक्ति सभ
तत्व परिलक्षित अछि । ‘रसना-रोचन श्रवण विलास’ उच्चारणमे मुख-सुखद ओ श्रवणमे श्रुति सुखदएहि समन्वित पदसौकुमार्यकेँ
अनिवार्य रूपेँ काव्यतत्वमे प्रवएश कयनिहार, ओकरा सफलतासँ प्रदर्शित कयनिहार कोनो
आन कवि हठात् दृष्टिगोचर नहि होइत छथि ।’’
गोविन्ददास अपन एक पदमे
विद्यापतिक स्मरण करैत लिखने छथि-
कविपति
विद्यापति मतिमाने
जाक गीत
जग-चीत चोराओल
गोविन्द
गौरि सरस रस गाने
तथा-
विद्यापति-पद-कमल
सरोरुह निस्पन्दित मकरन्दे
तसु मझु
मानस मातल मधुकर पिबइते करु अनुबंधे
एही पाँती सभसं ई प्रमाणित
होइत अछि जे ई विद्यापतिसँ विशेष प्रभावित छलाह । ईहो श्रृंगार आ भक्ति दुनू
प्रकारक पद, विद्यापतिए जकाँ, रचने छथि । किन्तु दुनूमे मौलिक अन्तर अछि । जतय विद्यापतिकेँ मुख्यतः श्रृंगारिक कवि मानल
जाइत छनि तत’ गोबिन्ददासकेँ मुख्यतः भक्तकवि । हिनक श्रृंगारिक पद सभमे सेहो
कृष्णभक्तिक छाप अछि । एकर कारण प्रायः ई
थिक जे हिनके समयमे बंगालमे चैतन्यदेव भेल
छलाह । चैतन्यदेव जाहि रूपमे श्रीकृष्णक प्रति सर्वस्व समर्पण-भाव प्रकट कयलनि, से
छल राधाभाव । अर्थात् अपनाकेँ राधा मानि क’ ओ श्रीकृष्णकेँ अपन प्रेमी मानने छलाह
। वस्तुतः एहेन स्थितिमे श्रृंगारक उदय होयब स्वाभाविके । किन्तु एहि श्रृंगारमे
समर्पण-भाव छैक, एकर मूलमे भक्तिक भाव छैक । एहि सम्प्रदायसँ प्रभावित गोविन्ददासक
पद सभक आवरण तँ अछि श्रृंगारक, किन्तु ओकर आत्मा अछि भक्तिक । यैह कारण थिक जे हिनक
पद सभक जे संकलन स्वनामधन्य डॉ. अमरनाथ झा कयलनि, तकर नाम ओ रखलनि ‘श्रृंगार
भजनावली’ । एकर तात्पर्य जे गोविन्ददासक पद सभ तँ भजन थिक, अर्थात भक्तिभावमूलक
थिक, किन्तु से भक्ति प्रकट भेल अछि श्रृंगारक माध्यमसँ । उक्त ‘श्रृंगार भजनावली’ जकर संकलयिता आ सम्पादक डॉ. अमरनाथ झा
छलाह, सर्वप्रथम प्रो. रमानाथझाक ‘साहित्य-पत्र’मे प्रकाशित भेल । बादमे
पुस्तकाकार सेहो बहार भेल ।
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श्रृंगार-भजनावलीक अतिरिक्त गोविन्ददासक
गीतक दू गोट आओर संकलन मुख्य अछि । प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’ द्वारा संपादित
‘गोविन्द गीतांजलि’मे गोविन्ददासक समस्त उपलब्ध पद संकलित कयल गेल अछि, जकर कुल
संख्या 340 अछि । सम्पादक हिनक पदकेँ ‘श्री राधाकृष्ण-रसलीला-पदावली’कहलनि अछि । सभ
पदक ऊपर रागक नाम तथा शीर्षक देल गेल अछि, जे पदक भावकेँ ध्वनित करैत अछि । दोसर संकलन जकर नाम ‘गोविन्ददास-भजनावली’ थिक,
मैथिली अकादमी पटना द्वारा प्रकाशित अछि, जकर सम्पादक पं. गोविन्द झा थिकाह ।
एहिमे कविक 130 पदक अर्थ देल गेल अछि ।
विद्यापतिसँ हिनकामे एक अंतर ई अछि जे
जत’ विद्यापतिक पद प्रसादगुण युक्त अछि, अर्थात् सहज रीतिएँ अर्थ लागि जाइत अछि,
तत’ हिनक पद शब्दालंकारसँ ततेक बोझिल भ’ गेल अछि जे अर्थानुसन्धानमे कठिनता
उत्तपन्न क’ दैछ । प्रो. रमानाथ झाक शब्दमे “शब्दक एहन विन्यासी कवि मिथिला भाषामे
दोसर नहि भेल तथा पदकेँ ललित श्रुति मधुर अर्थानुग्राही एवं समता-संयुक्त बनएबामे
यदि शब्दकेँ तोड़हु पड़लन्हि, ओकर स्वरूप विकृतो करए पड़लन्हि तथा अपन हृदयक भाव
झाँपलो भए गेलन्हि, तथापि गोविन्ददासक अर्थक प्रसादक हेतु शब्दविन्यास नहि दूरि
कएलन्हि ।”
हिनक पदक दुरूहताक कारणक तहमे जाइत डॉ.
दुर्गानाथ झा ‘श्रीश’ कहैत छथि- “हिनक रचनामे जे दुरूहता अछि, तकर प्रधान कारम थिक
नैयायिक कविक कठोर परन्तु सूक्ष्म कल्पनाशक्ति । आशयक गाम्भीर्य, ध्वनिक
सूक्ष्मता, व्यंगक दूरत्व सेहो प्रायः अधिक ठाम हिनक गीतमे अर्थक दुरूहताक कारण
बनि गेल अछि, से सब नैयायिकक सूक्ष्म विवेचनक अभ्यासक परिणाम कहल जा सकैत अछि ।”
गोविन्ददासक पद जेहने काव्यकलाक
दृष्टिएँ उत्कृष्ट, तेहने भाव पक्षक दृष्टिएँ स्वच्छ प्रांजल । हिनक श्रृंगारिक
पद, जकरा ब्रजबुलिबला लोकनि रहस्यात्मक भाव बोधयुक्त विशिष्ट भक्ति-पक्षक पद मानैत
छथि, राधाकृष्णक विराट् लीला-रूप समक्षमे राखि दैत अछि । प्रेमक कतेको प्रकार मानल
गेलैक अछि, यथा-मान, विरह, अभिसार, संवाद आदि, ताहि सभ पक्ष पर प्रचुर सामग्री,
सेहो उत्कृष्ट कोटिक, कवि द्वारा लिखल गेल अछि ।
राधाक अंग-प्रत्यंगकेँ विभिन्न फूलसँ
समता देखब’वला कविक कुसुम-वदनाक किछु पाँती द्रष्टव्य थिक-
कानन
कुसुम तोड़ल किए गोरी
कुसुमहि
सब तन निरमित तोरी
आनन
हेम सरोरूह भास
सौरभ
श्याम भ्रमर मिलु पास
नयन
युगल निल उतपल जोर
सहज
सोहाओन श्रवणक ओर
हिनक
‘नवधा-भक्ति’ (भक्ति भाव प्रदर्शित करबाक नओ प्रकारक विधि)क –
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- प्रसंग
एक प्रसिद्ध पद निम्नलिखित अछि-
भजहु
रे मन नन्द-नन्दन अभय चरणारबिन्द ।
दुलभ
मानुष जनम सत्संग तरह ए भवसिंधु ।।
शीत-आतप-बात-बरषा
ए दिन-यामिनी जागि ।
विफल
सेवन कृपन दुर्जन चपल सुख सभ लागि ।।
ई
धन यौवन पुत्र परिजन एतेक अछि परतीत ।
कमलदल
जल जीवन ढलमल भजहु हरिपद नीति ।।
श्रवण
कीर्त्तन स्मरण वंदन पादसेवन दास ।
पुजन
ध्यान आत्मनिवेदन गोविंददास अभिलाष ।।
विद्यापति
आ गोविन्ददासक अन्तर स्पष्ट करबा लेल डॉ. जयकान्त मिश्र दू गोट संस्कृतमहाकविक संग
एहि दुनू गोटेक तुलना करैत कहैत छथि- “Vidyapati is like
Kalidas-having eminently prasadgun (the quality of pleasing)-and
Govinddasa is like Magha-hard to construes.”
हिनक
कविताक विशेषता सभकेँ समटैत डॉ. सुकुमार सेन कहने छथि-“He drew
largely upon classical lyric poetry for treatment in vernacular. All the simple
and complex figures of speech and other devices known in Sanskrit Rhetoric were utilized by our poet but the
greatest achievement…is metrical perfection added tomusical assonance and
rhythmic movement.”
गोविन्ददास
स्वयं अपन कविताक प्रसंग कहने छथि-
रसना
रोचन श्रवण-विलास
रचइ
रूचिर पद गोविन्ददास
वास्तवमे
गोविन्ददासक पद रूचिर होइत अछि, कारण ओ सुनबामे सुखद ओ स्वादमे मधुर होइछ । से
होइतो, हिनक पदक प्रचार मिथिलामे ओतेक नहि भेल, जतेक विद्यापतिक । तकर कारण दू टा
। पहिल तँ ई जे विद्यापतिक पद प्रसाद गुणयुक्त छल, सोझ छल, किन्तु हिनक पद क्लिष्ट
। तेँ, सर्वसाधारणक जीह पर ओ नहि चढ़ि सकल । दोसर, गोविन्ददास चैतन्यदेवक ‘मधुर रस’क रसी छलाह, जे मिथिलाक हेतु ओतेक आकर्षणक
केन्द्र-बिन्दु कहियो नहि रहल । तथापि हिनक साहित्यक महत्वतँ अक्षुण्ण अछिए ।
प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’क शब्दमे “मैथिलीक साहित्याकाशमे विद्यापति ओ गोविन्द दास
सूर्य-चन्द्रमा जकाँ प्रतिभाभास्वर छथि । एकर परिधिजँ सुविस्तृत अछि, प्रभाव-प्रताप जँ प्रखरतर अछि, तँ दोसरक स्वर-ध्वनि सीमित रहितहुँ अशेष
अह्लादक अछि, भाव-प्रवाह विशेष प्रकारक स्वादु शीतल अछि । विद्यापतिकेँ गुरू-गौरव
प्रदान कयनिहार गोविन्ददासक शिष्यताक महत्ता कम कमनीय नहि । कोनहु अंशमे गुरूक
पद-पद्धतिकेँ कोमलतम रूप प्रदान करबामे, प्रकृतिक अनुकरणकेँ कलाक अभिधान दिएबामे,
रसश्रृंगारकेँ भाव-भक्तिमे परिणत करबामे, गोविन्द दासक शिष्यत्व विशेषत्व प्राप्त
कय लैछ । ‘श्रुतेरिवार्थ स्मृति रन्धगच्छत” एहि कालिदासीय
उक्तिक चरितार्थता दुहूक समन्वित अध्ययनसँ सिद्ध होइछ ।
______________
प्रकाशक : भवानी प्रकाशन, मुसल्लहपुर, पटना-800006
सर्वाधिकार
: भीमनाथ झा
परिवर्धित
द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक
: मुरलीधर प्रेस, पटना-800006
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