Sunday, May 22, 2016

परिचायिका / विद्यापति : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय 'परिचायिका'  सँ कविकोकिल विद्यापति आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।


विद्यापति
[VIDYAPATI]
[पृष्ठ-8]

रेखांकन : कुमार सौरभ
मैथिली-साहित्यक ई विशाल प्रासाद जँ कोनो एक टा स्तम्भपर ठाढ़ अछि तँ ओ निस्संदेह विद्यापति थिकाह । मैथिली साहित्यक एहि विशाल वटवृक्षक जे सीर सभसँ गहीँर धरि गेल अछि, तकर नाम विद्यापति थिक । जँ विद्यापतिरूपी सूर्यक आविर्भाव मैथिली काव्य-गगनमे नहि भेल रहैत तँ रात्रिक व्याप्ति आर कतेक सय वर्ष बेसी भ’ जाइत, से के कहि सकैछ ? वस्तुतः ई कविकोकिलक काकलीएक प्रभाव छल जे मैथिली काव्योपवनमे वसन्तक साम्राज्य व्याप्त भ’   गेल ।
विद्यापति जाहि युगमे भेला से सक्रांति युग छल । मुसलमानी शासन दिल्लीमे जड़ि जमा चुकल छल । सम्पूर्ण राष्ट्र ओकर प्रभाव-क्षेत्रमे आबि रहल छल । किन्तु, मिथिला बाँचल छल । तकर कारण ई छल जे एहि ठामक लोककेँ राजनीतिसँ ओतेक रूचि नहि. सभ सांस्कृतिक एकतामे आबद्ध छल । ओही समयमे कर्णाटवंशीय अन्तिम नरेश हरिसिंहदेव द्वारा पाँजिक व्यवस्था(1326 ई.) आरम्भ कयल गेल । ई आइयो भलेँ जर्जरे भ’ गेल हो, विद्यमान अछिए । मिथिलाक सांस्कृतिक पुनरूद्धार भेल । एहि पुनरूद्धारमे विद्यापतिक पूर्वज महत्वपूर्ण योगदान देने छलाह ।
          किछु वर्षक बाद मिथिलोमे मुसलमानी शासनक स्थापना भेल । से तँ भेल, किन्तु मिथिलाक सांस्कृतिक स्वरूप अपरिवर्तित रहल । एकर श्रेय जाहि किछु महापुरूषकेँ देल जाइत छनि ताहिमे विद्यापति अग्रगण्य छथि । कारण, ई अपन संस्कृत-अवहट्ट-मैथिली-रचना –रचना द्वारा जनमानसमे अपन संस्कृतिक प्रति समर्पणक भाव जाग्रत कयलनि । विद्यापतिक शैवसर्वस्वसार, गंगावाक्यावली, दुर्गाभक्ति तरंगगिणी, वर्षकृत्य, गयापत्तलक आदि रचना मिथिलाक धार्मिक संस्कार ओ कौलिक व्यवहारकेँ सुरक्षित रखबामे सहायक सिद्ध भेल । किन्तु, मैथिल एकताकेँ एकसूत्रमे आबद्ध रखबामे हिनक मैथिली पदावलीकेँ सर्वाधिक श्रेय प्राप्त छैक । विद्यापति तत्कालीन सामाजिक संघटनक रक्षा अपन व्यवहार-गीत द्वारा तथा धार्मिक भावनात्मक रक्षा भक्तिपदक माध्यमसँ कयलनि ।
          विद्यापतिक पूर्वज अनेक पीढ़ीसँ राज्याश्रयी छलाह । ओलोकनि विद्वताक बलपर राज्याश्रयण प्राप्त कयने छलाह । एहिसँ ई सिद्ध होइछ जे हिनक कुल विद्वानक कुल तँ छले, राज्यपोषित सेहो छल, तेँ प्रतिष्ठितो अवश्य छल ।
          जन्म- विद्यापति स्वयं अपन जन्मक सम्बन्धमे कतहु नहि कहने छथि । तेँ, अन्य सामग्रीक आधारपर, प्रकारान्तरसँ , हिनक जन्म-समयक निर्धारण कयल गेल अछि । एहि प्रसंग विभिन्न विद्वानमे मतभेद अछि ।
सर्वप्रथम ओहि सूत्र सभक विषयमे विचार कयल जाइछ, जाहि आधारपर हिनक जन्म-कालक निर्धारण कयल गेल अछि ।  ओ सूत्रसभ निम्नलिखित अछि-
(1) दरभंगा राज-पुस्तकालयमे सुरक्षित विद्यापति द्वारा लिखित श्रीमद्भागवतक प्रतिलिपि । एकरा विद्यापति राजबनौलीमे ल.सं. 309मे लिखलनि ।
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(2) कवि (विद्यापति) द्वारा लिखनावलीक रचना कालक उल्लेख ल.सं. 299मे भेल अछि ।
(3) अबहट्टक एक गीतमे महाराज शिवसिंहक सत्तारूढ़ होयबाक तिथि ल.सं. 263 लिखल भेटैत अछि । एहिमे ल.सं.क अतिरिक्त शक संवतक उल्लेख सेहो छैक-1324 अर्थात् 1402 ई. ।
(4) कीर्तिलताक द्वितीय पल्लवमे असलान द्वारा गणेश्वर रायक हत्याक समय लिखल गेल अछि ल. सं. 293 ।
अबहट्टक-गीतक आधार पर ल.सं. (लक्ष्मण संवत)क प्रारम्भक पता चलि गेल अछि । एहि आधारपर ल.सं. शक संवत् 1031, अर्थात् 1109 ई. सँ प्रारम्भ होइत अछि ।
चन्दाझा ‘पुरुष-परीक्षा’क अनुवादक भूमिकामे लिखने छथि जे जनश्रुतिक आधारपर ज्ञात होइछ जे विद्यापति महाराज शिवसिंहसँ दू वर्षक जेठ छलाह ।  शिवसिंह पचासम वर्षमे राजा भेलाह । विद्यापति ओहि समयमे बाबन वर्षक रहल होयताह । राजा शिवसिंह 1402 ई. मे सत्तासीन भेल छलाह । एहि आधारपर विद्यापतिक जन्म निश्चित होइत अछि 1350 ई. मे । डॉ. सुभद्र झा, प्रो. रमानाथ झा तथा पं. शसिनाथ झा एही मतक समर्थक छथि, किन्तु म.म. डॉ. उमेश मिश्र तथा डॉ. जयकान्त मिश्र हिनक जन्म-काल 1360 ई. मानलनि अछि ।
मृत्यु- हिनक मृत्युक सम्बन्धमे सुप्रसिद्ध पद – ‘विद्यापतिक आयु अवसान कार्तिक धवल त्रयोदशि जान’- आनो आधारसँ सिद्ध होइछ ।
ई ज्ञात होइछ जे राजा शिवसिंह तीन वर्ष नओ मास धरि राज्य कयलनि । तकर बाद, मुसलमानक संग युद्ध करैत ओ निपत्ता भ’ गेलाह । ओ 1402 ई. मे सत्तासीन भेल छलाह तथा 1406 ई. धरि राजा रहल छलाह । विद्यापति राजा शिवसिंहक निपत्ता भेलाक बत्तीस वर्षक बाद हुनका स्वप्नमे देखने छलाह । अर्थात् ताबत धरि विद्यापति जीवित छलाह । ओ स्वप्न देखने छल होयताह 1438-39ई. मे । तकर आगां वर्ष हिनक देहान्त भेल होयतनि, अर्थात् 1439-40 ई. मे ।
डॉ. सुभद्र झाक अनुसार हिनक निधन 1448सँ 61 ई.क बीचमे भेलनि । डॉ. उमेश मिश्रक अनुसार 1446 ई. मे ई दिवंगत भेलाह । तथ्य जे हो, मुदा ई दीर्घजीवी भेलाह ताहिमे संदेह नहि ।
भनिता – विद्यापति जाहि-जाहि राजाक दरबारमे रहलाह, ताहि सभ राजाक लेल गीतक रचना कयलनि । सभसँ बेसी गीत शिवसिंहक लेल लिखलनि, जे हिनक समवयस्क छलथिन । हिनक गीतक भनितामे राजाक संग रानीक नामक सेहो उल्लेख अछि । एहि क्रमने सबसँ बेसी लखिमा, तखन मोदवती, सोरमदेवी, मेधा देवी, सुखमादेवीक नाम उल्लेख भेटैत अछि । एकर अतिरिक्त देवसिंह-हासिनी देवी, अर्जुन सिंह कमला देवी, राधवासिंह मोदवती तथा सोनमति, बैजलदेव चन्दलदेवी आदिक नाम हिनक गीतक भनितामे भेटैछ । किछु आनो भनितायुक्त पद विद्यापतिक नामसँ प्राप्त अछि, यथा रमापति, दामोदर, जयराम, कविराज आदि, किन्तु ओहि पद सभक जाँच हेतु अनुसन्धान अपेक्षित अछि ।
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उपनाम- विद्यापति अपन जीवने कालमे बड़ प्रसिद्ध भ’ गेल छलाह । हिनक अनेक पदबी अथवा उपनाम भेटैत अछि, यथा- अभिनव जयदेव, सुकवि-कण्ठहार, महाराज पण्डित, राजपण्डित, सरस कवि, नव कविशेखर, कवि-कण्ठहार, कविवर, सुकवि, नव जयदेव । कवि कोकिल तँ हिनक नामक पर्याय भ’ गेल अछि । ई सभ उपनाम गुणबोधक थिक । एहिसँ विद्यापतिक काव्यात्मक विशेषताक तथा लोकप्रियताक परिचय ज्ञात होइत अछि ।
कृति- संस्कृत, अवहट्ट तथा मैथिली- एही तीन भाषामे विद्यापतिक रचना भेटैत अछि ।ई सभसँ अधिक लिखलनि संस्कृतमे, जाहिमे छोट-पैघ मिलाक’ हिनक क दर्जन ग्रन्थ अछि । अवहट्टमे दू गोट ग्रन्थ तथा मैथिलीमे पुस्तक तँ नहि, केवल पद प्राप्त अछि, जकर संख्या सात-आठ सय धरि एखन गल अछि । एकर अतिरिक्त एकटा नाटक अछि ।
संस्कृत कृति- भूपरिक्रमा, विभागसागर, दान-वाक्यावली, पुरुष-परीक्षा, शैवसर्वस्वसार ओ शैवसर्वस्वसार प्रमाणभूत पुराण-संग्रह, गंगावाक्यावली, दुर्गाभक्तितरंगणी, मणिमंजरी, लिखनावली, गयापत्तलक, लर्षकृत्य तथा व्याडिभक्तितरंगिनी ।
अवहट्ट-कृति-  कीर्त्तिलता तथा कीर्त्तिपताका ।
नाटक – गोरक्षविजय । एहिमे कथोपकथन एवं निर्देश संस्कृत आ प्राकृतमे अछि । मैथिलीक प्रयोग गीतमेतँ अछिए जे आनो ठाम भेटैछ । प्रो. रमानाथ झा एकरा संस्कृत-प्राकृत नाटक मानैत छथि, किन्तु डॉ. जयकान्त मिश्र भाषा-नाटक ।
मैथिली – मैथिलीमे हिनक लिखल पदसभ, जे विद्यापति पदावलीक नामसँ प्रसिद्ध अछि, अनेक स्रोतसँ प्राप्त भेल अछि । यैह पदावली हिनक कवि व्यक्तित्वकेँ कालजयी बना देने अछि । विद्यापति पदावली अनेक व्यक्ति आ अनेक संस्था द्वारा प्रकाशित भेल अछि । एहिमे मुख्य अछि शिवनन्दन ठाकुरक विद्यापतिक विशुद्ध पदावली, पुस्तक भंडार द्वारा प्रकाशित रामबृक्ष बेनीपुरीक विद्यापति-पदावली, डॉ. सुभद्र झाक विद्यापति गीत संग्रह, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद पटना द्वारा प्रकाशित विद्यापति पदावलीक तीन खण्ड, मैथिली अकादमी, पटना द्वारा प्रकाशित पं. गोविन्द झाक विद्यापति पदावली । एकर अतिरिक्त आरो अनेक संकलन छपल अछि ।
विद्यापतिक पद सभ निम्नलिखित स्रोतसँ प्राप्त भेल अछि-
(1) नेपाल तड़िपत- ई नेपाल सरकारक दरबार पुस्तकालयमे सुरक्षित अछि । ई सभसँ पुरान मानल जाइत अछि । डॉ. सुभद्र झाक अनुसार ई सोरहम शताब्दीक पाण्डुलिपि थिक, मुदा लिपि-विशेषज्ञक अनुसार अठाहरम शताब्दीक । एहिमे 184 गोट पद अछि, जाहिमे 261 टा पद विद्यापतिक भनितासँ युक्त अछि । एकर फोटो स्टेट पटना विश्वविद्यालय तथा पटना कालेजक पुस्तकालय मे अछि । एहि आधारपर दू गोट संग्रह डॉ. सुभद्र झा एवं बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना द्वारा प्रकाशित भेल अछि ।
(2) रामभद्रपुर तड़िपत- ई दरभंगा जिलाक रामभद्रपुर गाममे पाओल गेल छल । सम्प्रति एकर मूल प्रति लुप्त भ’ गेल अछि । एकर फोटो-प्रति बिहार –
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- राष्ट्रभाषा परिषदमे उपलब्ध अछि । एहिमे बीचक पन्ना उड़ल अछि । प्राप्त पाण्डुलिपिमे 445 गोट पद अछि । शिवनन्दन ठाकुर  एकरे आधार पर 84 पदक विद्यापति विशुद्ध पदावलीक संग्रह कयने छलाह ।
(3) तरौनी तड़िपत – तरौनी (दरभंगा)क स्व. लोकनाथ झाक ओहि ठाम श्रीमद्भागवतक संग पदावलीयोक तड़िपत सुरक्षित छल । मोहनी मोहन दत्त एकरा प्राप्त कयलनि, हुनकासँ ई नगेन्द्रनाथ गुप्तकेँ भेटलनि । ओ कलकत्ता विश्वविद्यालयमे एकरा जमा कयलनि, मुदा बादमे ओत’ ई लुप्त भ’ गेल । नरेन्द्रनाथ गुप्तक अनुसार ओहिमे 350 पद छल, किन्तु, ओ 239 मात्र पदक संकलन कयलनि । तेँ, निश्चित पद संख्या कहल नहि जा सकैछ । किछु पदक भनितामे विद्यापतिक नहि, आन कविक नाम अछि ।
(4.) रागतरंगिणी- लोचनकृत रागतरंगिणीक प्राचीन हस्तलएख आब लुप्त भ गेल अछि । राजप्रेस, दरभंगासँ प्रकाशित एकर आदि संस्करममे विद्यापतिक एकाबन गोट पद अछि । रागतरंगिणीरचना संगीतशास्त्रकेँ दृष्टिमे राखि क’ कयल अछि ।
(5)  वैष्णव पदावली- ब्रजबुलि-साहित्यमे अनेक पद्य संग्रह प्राप्त अछि, जाहिमे विद्यापतिक पद सोहो संकलित अछि । राधामोहन ठाकुरक पादामृत-समुद्रमे 64 पद, गोकुलानन्द सेनक पदकल्पतरुमे 161 पद,  दीनबन्धुदासक संकीर्तनामृतमे 10 पद तथा अज्ञात व्यक्ति द्वारा संकलित कीर्तनानन्दमे 58 गोट पद विद्यापतिक नामसँ संकलित अछि ।
(6) लोककंठसं उपलब्ध पद- जार्ज ग्रियर्सन 84 टा पद प्रकाशित करबौलनि । चन्दाझाक सहायतासँ नगेन्द्रनाथ गुप्त 663 टा पद उपलब्ध कयलनि । एकर अतिरिक्त अन्यो किछु स्रोतसं पदसभ प्राप्त भेल अछि ।
विद्यापतिक काव्य साहित्यक मुख्य विशेषता थिक गेयधर्मिता, निर्दोष आवेगात्मक भावाभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, भावक वि विधता पौराणिक आख्यान तथा संस्कृत-रीतिक पालन एवं भनिताक प्रयोग ।”
विद्यापति जनसाहित्यक निर्माण कयलनि तथा मानव हृदयक मूलभूत वासनाकेँ अत्यन्त सूक्ष्मतासँ यथावत चित्रण कयलनि । ई रागताललयाश्रित कोमलकान्त पदावलीक रचना कयलनि जाहिमे माधुर्यगुण परिपूर्ण अछि । ई संस्कृत-काव्यरीतिक भाषा-साहित्यमे अत्यन्त मनोहर तथा सफल प्रयोग कयलनि ।
हिनक सम्पूर्ण पदावलीकेँ,  अध्ययनक सुविधा हेतु, मोटामोटी चारि भागमे बाँटल जा सकैछ- (1) श्रृंगारिक गीत (2) भक्तिगीत (3) व्यवहारगीत तथा (4) कूटपद ।
हिनक सम्पूर्ण श्रृंगारिक पदावलीकेँ दू भागमे बाँटि क’ बूझल जा सकैत अछि । प्रथमतः ओहन श्रृंगारिक पद जाहिमे गोपीलोकनिक संग, विशेषतः राधाक संग, श्री कृष्णक प्रणयलीलाक वर्णन अछि । द्वितीयतः ओहन श्रृंगारिक पद जाहिमे नरनारीक सहज आकर्षणमूलक प्रेम आ विलासक, विविध भाव आ अवस्थाक, स्वाभाविक चित्रण अछि । राधाकेँ खण्डिता भेलाक पश्चात सखीक उक्ति कृष्णक प्रति द्रष्टव्य-
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हृदय तोहर जानि न भेला । परक रतन आनि मअ’ देला ।
कएल माधव, हमे अकाजे । हाथि मेराउलि सिंह-समाजे ।
राखह माधव मोरि विनती । देहे परिहरि पर-युवती ।
चुम्बने नयन काजर गेला । दसने अधर खण्डित भेला ।
पीन पयोधर नखरे मन्दा । जनि महेसर-शेखर चन्दा ।
न मुख वचन, न मन थीरे । काम्प घनहन सबे सरीरे ।
घर गुरुजन दुरजन शंका । लओलह माधव, मोहि कलंका ।
भन विद्यापति तुअ’ दूती भोरि । चेतन गोपए बेकत चोरि ।

हिनक भक्तिगीतकेँ सेहो तीन कोटिमे विभाजित कयल जा सकैछ । पहिल कोटिक गीतमे शिवविषयक नचारी ओ महेशवानी अबैछ । दोसर कोटिक गीतमे अबैछ अबैछ शक्ति, गंगा आ विष्णुक स्तुति, तथा तेसर कोटिमे शान्तिपदकेँ राखल जा सकैछ । भक्तिभक्तिपदमे हिनक गोसाउनिक गीत तँ मिथिलाक कोनो उत्सवक मंगलाचरणे भ’ गेल अछि-
जय-जय भैरवि असुरभयाउनि पसुपति –भाविनी माया ।
सहज सुमति वर दिअ हे गोसाउनि अनुगत गति तुअ पाया ।।
वासर-रइनि सवासने सोभित, चरन चन्द-मनि-चूड़ा ।
कतओक दैत मारि मुहे मेरल, कतन उगलि उगिलि करू कूड़ा ।।
सामर वदन नयन अनुरंजित, जलद जोग फुल कोका ।
कटकट विकट ओठ –फुट-पाँड़रि, लिधुर फेन उठि फोका ।।
घन घन घनन घुघुरू कटि बाजय, हन हन कर तुअ काता ।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक पुत्र बिसरू जनु माता ।।

हिनक व्यवहारक गीतकेँ सेहो दू भागमे बाँटल जा सकैछ । पहिलमे भिन्न-भिन्न समयक अनुकूल गीत, यथा फागु, चैत, बारहमासा, चौमासा, पावस-प्रसंग आदि । दोसर प्रकारक गीतमे भिन्न-भिन्न अवसरक उपयुक्त-यथा योग, उचिती, कोबर, कुमार आदि अबैत अछि ।
विद्यापतिक कूटपद सेहो भेटैत अछि ।
हिनक प्रसंग डॉ. सुभद्र झा एक ठाम लिखने छथि “विद्यापति प्रीति-सत्ताक  प्रबल समर्थक छथि । आध्यात्मिक तत्वें विवेचित हिनक पदावलीक गीतसभ सोहो एकरे पुष्टि करैछ ।”
इतिहास प्रसिद्ध अछि जे ई बिसपी (मधुवनी जिला)क निवासी छलाह, जे गाम हिनका महाराज शिवसिंहक दिससँ पुरस्कार-स्वरूप प्राप्त भेल छलनि । किंवदन्ति ईहो अछि जे स्वयं महादेव उगना नाम राखि हिनक नोकर बनि सेवा कयने छलाह तथा गंगा हिनका अपन कोरमे लेबाक हेतु धार छोड़िक’ हिनका लग उपस्थित भेल छलीह । एहि किंवदन्तीमे सत्यता जे हो, किन्तु ई बात तँ आब प्रमाणित भ’ चुकल अछि जे हिनक काव्यमे ओहन किछु तत्व अवश्य अछि जे ओकरा कथमपि मर’ नहि देलक अछि  तथा आइयो ओ ओहने चिरनवीन बुझि पड़ैत अछि । यावत ई मिथिला, ई सभ्यता रहत, ताधरि विद्यापतिक पद रहत, ता धरि ई स्वयं रहता । कीर्तिर्यस्य सजीवति ।
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प्रकाशक : भवानी प्रकाशन
मुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985

मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

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