Sunday, May 29, 2016

मिथिला / मार्कण्डेय काटजू

भारतक सर्वोच्च न्यायालयक सेवानिवृत न्यायाधीश आ प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडियाक पूर्व अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू बेबाकीसँ अपन विचार राखबा लेल जानल जाइत छथि । हुनक विचारसँ कएक बेर असहमत होइतो हुनक स्पष्ट नजरिया आ तात्कालिक मुद्दा सभपर प्रतिक्रियाशील रहबा लेल प्रशंसा कएल जाइत छनि । ई आलेख मूलतः हुनक एकटा ब्लॉग-पोस्टक थिकै, जे हुनक ब्लॉग - सत्यम् ब्रुयात' पर 27 दिसम्बर 2014केँ पोस्ट कएल गेल  छलैक । एहि ब्लॉग-पोस्टकेँ बहुत महत्त्वक सामग्री नहि कहल जा सकैत अछि, मुदा ई पोस्ट मिथिलाकेँ एकटा एहन अमैथिल व्यक्तिक नजरियासँ देखबाक अवसर प्रदान करैत अछि, जिनक प्रतिक्रियाकेँ पर्याप्त महत्त्व भेटैत रहलैक अछि । ध्यान देबा योग्य बात ई अछि जे ओ मिथिलाक भूमिकेँ महान दार्शनिक आ न्यायविद् लोकनिक जन्मभूमिक रूपमे चिन्हैत छथि आ तेँ ई भूमिक लेल हुनका मनमे अगाध श्रद्धा छनि । एहि ब्लॉग-पोस्टक अनुवाद लेखकक अनुमति प्राप्त केलाक उपरान्त कयल गेल अछि । अनुवाद करैत काल नीक अभिव्यक्तिक उद्देश्यसँ कएक ठाम किछु छूट अवश्य लेल गेल अछि ।



मिथिला
श्री मार्कण्डेय काटजू

अपन पछिला पोस्टमे हम महान न्यायिक दार्शनिक उदयनाचार्यक चर्चा केने छलहुँ । उदयनाचार्य प्रसिद्ध टीका न्याय कुसमांजलिक लेखक छथि । ओ मिथिलाक छलाह ।
          मिथिला, भारतक उत्तर बिहारमे (अंशतः नेपालोमे) अवस्थित एकटा क्षेत्र अछि, जतय हम कहियो नहि गेल छी, मुदा मरबासँ पहिने कमसँ कम एक बेर ओतए जेबाक सेहन्ता अछि । एकर कारण ई अछि जे एहिठाम बहुत पैघ संख्यामे असाधारण दार्शनिक, विद्वान आ कवि लोकनिक जन्म भेल छनि । गौतम, बुद्ध आ महावीर एतय रहलाह । उदयनाचार्य, जिनकर हम उल्लेख केने छी, हुनका अतिरिक्त कएकटा श्रेष्ठ विद्वान जाहिमे कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, डॉ. गंगा नाथ झा आदि छथि, केँ यैह भूमि जनम देनए अछि । महान कवि विद्यापति (1352-1448) सेहो मिथिलेक छलाह ।
एहन कहल जाइत अछि जे जखन आदि शंकराचार्य अपन गृह-राज्य केरलसँ उत्तर भारतक प्रसिद्ध मीमांसाविद् मंडन मिश्र (प्रख्यात मीमांसाविद् कुमारिल भट्टक शिष्य) सँ शास्त्रार्थक लेल आयल छलाह, आ ओ मंडन मिश्रक घरक रस्ता पूछलनि तँ हुनका कहल गेलनि जे मंडन मिश्रक घर एकटा गाछक तरमे छनि, जकर ठारिपर बैसल सुग्गा सभ बजैत रहै छै जे सत्य की थिक आ असत्य की थिक? मोक्ष कोना प्राप्त कएल जाइत छैक? इत्यादि । दोसर शब्दमे कही तँ ई जे मिथिला भरिमे कएकटा श्रेष्ठ विद्वान लोकनि छलाह, जिनका लोकनिक बीच वाद-प्रतिवाद चलैत रहैत छलनि ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे, जतय हम 1963 सँ 1967 धरि पढ़ने छलहुँ, ओतय मिथिलासँ आएल कएकटा श्रेष्ठ विद्वान कुलपति रहि चुकल छथि । डॉ0 गंगानाथ झा, मीमांसा शास्त्रक (जकर हमहुँ दीर्घकाल धरि अध्येता रहि चुकल छी), पैघ विद्वान छलाह । कुमारिल भट्टक तन्त्र वर्तिका’, ‘श्लोक वर्तिकाशाबर भाष्यआदि केर संस्कृतसँ अंग्रेजी अनुवादक माध्यमे ओ एकटा पैघ योगदान देलनि, जाहिसँ हम व्यक्तिगत रूपेँ लाभान्वित रहलहुँ । इलाहाबाद उच्च न्यायालयक न्यायाधीशक बतौर हम नियमित रूपसँ एहि किताब सबहक अध्ययन करबा लेल इलाहाबादक अल्फ्रेड पार्क स्थित डॉ. गंगानाथ झा पुस्तकालय जाएल करैत रही, जाहिसँ हमरा वैधानिक पाठ सबहक व्याख्या करबामे बड्ड मदति भेटल ।
हम पूर्व मीमांसाक अध्येता रहल छी, कियै कि ई शास्त्र व्याख्याक सिद्धान्त उपलब्ध करबैत अछि, जे वैधानिक नियम सबहक व्याख्या करबामे उपयोगी होइत अछि । एहि शास्त्रकेँ विकसित करएबला किछु श्रेष्ठ विद्वान लोकनि मिथिलेक छलाह । जखन हम इलाहाबाद उच्च न्यायालयक न्यायाधीश छलहुँ, हम एकटा पोथी व्याख्याक मीमांसा पद्धति (The Mimansa Rules of Interpretation)क पांडुलिपि तैयार केने छलहुँ । ई अंग्रेजीमे एहि विषयपर एकमात्र पोथी थिक (बाँकी सब पोथी संस्कृतमे छैक) । एकरा लेल एकटा प्रकाशकक जरूरति छलैक । इलाहाबादमे एकटा समारोहमे हमरा मिथिला विश्वविद्यालयक एकटा प्रोफेसर भेट भेलाह, हुनका पोथीक विषयमे बतौलियनि । हम हुनका कहलियनि - सर, अपने मिथिलाक छी, जे राजा जनक आ भारतक कतेको महानतम मीमांसाविद लोकनिक भूमि रहल अछि; कृपया एहि पोथीकेँ प्रकाशित कराबी ।ओ सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि, मुदा बादमे किछु केलथि नहि ।
मिथिलाक भाषा मैथिली, हमर सुनल मधुरतम भाषामेसँ एक अछि, हालाँकि हम एकरा बूझि नहि पबैत छियैक ।
जखन हम मद्रास उच्च न्यायालयमे मुख्य न्यायाधीश छलहुँ, मैथिली नामक एकटा तमिल वकील हमरा समक्ष प्रस्तुत भेली । हम हुनकासँ पूछलियनि जे कि ओ अपन नामक अर्थ जानैत छथि? ओ कहलियनि - नहि । तखन हम हुनका बतौलियनि जे एकर अर्थ होइछ - ओ जे मिथिलासँ सम्बद्ध अछि । मिथिला, उत्तर बिहारमे स्थित श्रेष्ठ दार्शनिक राजा जनकक आ भारतक किछु महानतम विद्वान लोकनिक भूमि थिक । राजा जनक सीताजीक पिता छलाह । सीताजीक विवाह भगवान राम संगे भेल छलनि ।
किछु दिन पहिने हमरा मिथिला अएबाक निमंत्रण भेटल छल । किछु पहिनहिसँ निर्धारित काजक कारणें हम एकर लाभ नहि उठा सकलहुँ, मुदा जँ ई निमन्त्रण आब भेटय तँ हम एकर लाभ उठेबा लेल तत्पर रहब ।

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मूल आलेखक लिंक : Mithila (Saturday, 27 December 2014)

[अंग्रेजीसँ अनुवाद : कुमार सौरभ]


स्पष्टीकरण :
गुगल सर्चसँ ज्ञात भेल जे मार्कण्डेय काटजूक एहि लेखक मैथिली अनुवाद प्रवीण नारायण चौधरी बहुत पहिने कए चुकल छथि । ई जानकारी रहितय तँ अनुवाद कार्यक श्रमसँ बचितहुँ । हमरा विचारें प्रवीण जीक अनुवाद हमर एहि अनुवादसँ बेसी नीक आ स्तरीय अछि । कृपया हुनक कयल अनुवाद अवश्य पढ़ी । हुनक कयल अनुवादक लिंक एतय देल जा रहल अछि : प्रवीण नारायण चौधरीक कयल मैथिली अनुवाद

         [कुमार सौरभ / 30.05.2016, 11:45 AM]

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