Tuesday, May 31, 2016

बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान / रमानाथ झा + पं. भुवनेश्वर झा

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रमानाथ झा रचनावलीक तेसर खंडक भूमिकामे संपादक मोहन भारद्वाज सूचना देनय छथि जे ‘बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान’ लेख असगरे रमानाथ झा नहि लिखने छथि अपितु ओ आ पंडित भुवनेश्वर झा मिलि के ई लेख तैयार केनय छलाह । 1929 मे प्रकाशित एहि लेखक कतेको कारणसँ ऐतिहासिक महत्व छै , ई लेख पढ़ैत स्पष्ट होएत जायत । स्वतंत्रतासँ करीब दूई-ढाई दशक पहिने मैथिली भाषाके हिन्दीक बोली सिद्ध करबाक संगहि मिथिलाक संस्कृति आ मैथिल अस्मिताकेँ नकारबाक प्रयास आ प्रचार जोर पकड़ि चुकल छल । प्रतिवाद स्वरूप जे लिखल जा रहल छल ई लेख तकरे प्रतिनिधित्व करैत अछि ।
एहि लेख केर किछु अंश आलोचनोक विषय अछि । मैथिल संस्कृतिकेँ शुद्ध सनातनी आचारसँ बान्हल समाजक व्यवहारक रूपमे रेखांकित कए एकर महिमामंडनक प्रयास मैथिल संस्कृति आ समाजक प्रति समग्रतामूलक दृष्टिकोणक अभावक परिचायक थिक । एहि लेख केर कोनो अंशक आलोचना करैत काल एहू बातक ध्यान राखैक चाही जे ई लेख एकटा लेख श्रृंखलाक प्रतिक्रियामे लिखल गेल छल आ दोसर ई जे एकर पृष्ठभूमिमे 1929क समाज छल । पंडित भुवनेश्वर झाक विषयमे जानकारीक अभाव अछि मुदा कमसँ कम रमानाथ झाक बादक लेख सबहक आधार पर कहल जा सकैछ जे समयक संग हुनक दृष्टिकोण बेस परिपक्व आ समग्रतामूलक होइत गेलेन्हि ।
कहल जा सकैछ जे मैथिली भाषा अस्मिताक संदर्भक कोनो स्तरीय अकादमिक बहस लेल एहि लेखक महत्व असंदिग्ध छैक । 
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बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान
रमानाथ झा + पं. भुवनेश्वर झा

[पृष्ठ संख्या-14 ]
अनारम्भो हि कार्याणां प्रथमं बुद्धिलक्षणम् ।
प्रारब्धस्यान्तगमनं द्वितीयं बुद्धिलक्षणम् ।।
मैथिलसमाज मे अकर्मण्यता तया अस्तव्यस्तताक जेहन प्राधान्य अछि तेहन आन समाज मे दृष्टिगोचर नहि होएत । प्राय: सामाजिक जीवनक महता केँ बुझनिहार बहुत थोड़ व्यक्ति भेटताह । वैयक्तिक स्वार्थक समक्ष सामाजिक कल्याणक अवहेलना जाहि रूपें हमरा लोकनि के रहल छी से सबकाँ विदित अछि । व्यक्ति तथा समाज मे अन्योन्याश्रय सम्बन्ध अछि । एकक अस्तित्व पर दोसरक जीवन निर्भर अछि । समाज एक प्रकारक अंग थिक । जेना स्थूल शरीरक एक अवयव पर आघात भेला सँ सम्पूर्ण शरीर मे पीड़ाक संचार होइत अछि, तहिना व्यक्ति क दुख सँ समष्टि दुःखित तथा पीड़ित होइत अछि । यावत् धरि शरीर मे चेतना क संचार अछि तावत्पर्यन्त शरीरक प्रत्येक अवयव समष्टि रूप सँ शरीरक रक्षा मे तत्पर रहैत अछि । जैखन शरीर चेतना-विहीन भै जाइत अछि तैखन कर्मशीलताक स्रोत सर्वदाक हेतु रुकि जाइत अछि । कार्यशीलताक दोसर नाम जीवन अछि । जाहि समाजक व्यक्ति सामूहिक सुख साधनार्थ थोड़बो त्याग नहिं करैत छथि ताहि समाजक नाश अवश्यम्भावी अछि । एहन समाज के मृतप्राय बुझक चाही । मैथिल-समाजक अवस्था एखन अत्यन्त दयनीय अछि । समाजक कल्याण-साधनार्थ अनेक चेष्टा कैल गेल परंच समाज क कुम्भकर्णी निद्रा एखन धरि भंग नहिं भेल । एकर की कारण भै सकैत अछि । प्रश्न क उत्तर अत्यन्त सरल अछि । हमरा लोकनि सामाजिक उन्नति के आत्मोन्नतिक साधन नहिं बुझैत छी । प्रयत्न मे सफलता नहिं भेटवाक दोसर कारण ई अछि जे हमरा लोकनि में समुचित अध्यवसाय नहिं अछि । नीतिकारक जे श्लोक हम ऊपर उद्घृत कैने छी ताहि श्लोक मे केहेन उपयोगी शिक्षा अछि । मैथिलसमाज मे कोनो वस्तुक कमी नहि । यदि कोनो वस्तुक अभाव अछि तँ ओ अछि सबल संगठन क हेतु दृढ संकल्प । समाज क शक्ति स्रोत विभिन्न मार्ग मे प्रवाहित भै रहल अछि । उद्योग एहन हैबाक चली जे समस्त स्रोत एक दिशा में प्रवाहित हो । मैंथिलसमाज कैं एकताक सूत्र में आबद्ध करबाक –
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- अनेक साधन अछि । एहि क्षुद्र लेख मे हम मिथिला भाषाकक महत्ता पर प्रकाश देम चाहे छी । कारण जे भाषाक अस्तित्व पर समाज क जीवन निश्चित अछि ।
मिथिला-भाषा में केहन जीवनी शक्ति अछि एकरा व्यक्त करबाक ततेक प्रयोजन एहि लेख मे नहिं । मैथिल कोकिल विद्यापतिक अमर वाणी सँ जे भाषा लालित तथा वर्द्धित भेलि अछि तकरा गौरव तथा भाषा-सौष्ठव मे अविश्वास कैनिहार अवश्य दयाक पात्र छथि । विहार में यदि कोनो भाषा प्रमुख स्थान क अधिकारिणी अछि तँ ओ अछि मिथिला भाषा । परन्तु दुर्भाग्यक विषय अछि जे हमरा लोकनि क अकर्मण्यता क कारणे एखन धरि मिथिला भाषा अपन न्याय्य स्थान कैँ नहि ग्रहण कैलक । बिहार में मिथिला-भाषा-भाषीक की संख्या अछि एकरा प्रमाण में हम Census of India, 1921 (Vol. VII), Bihar and Orissa Part- I सँ किछु अंश उद्घृत करैत छी ।
"The most common language in the province is Hindi or Urdu which is spoken by two third of the population. In north and south Behar it is practically universal, in Orissa it is spoken by 3 and in Chota Nagpur Plateau by 30 persons out of every 100. The language spoken is not really Hindi in the eye of the Linguistic survey, but the Bihari a language of the eastern group of the outer subbranch of the Indo-Aryan language. It has three principal dialects :- Maithili, which is spoken in North Bihar, excluding Saran and Champaran, Magahi, which is spoken in south Bihar excluding Shahabad, and Bhojpuri, which is spoken in the line of districts that from western fringe of the province Champaran to Palamu.
According to calculation the number of Maithili speakers is 10,272,711 of Magahi speakers 5,327,55 and Bhojpuri speakers 6,826,900.
(page 210,211)
उपर्युक्त अवतरण क सारांश ई अछि जे बिहार प्रान्तक साधारण भाषा हिन्दी अथवा उर्दू थिक । जनसंख्याक दू-तेहाई मनुष्य हिन्दी-भाषा-भाषी छथि । उत्तरीय तया दक्षिणी बिहार में सब गोटे इयेह भाषा बजैत छथि । उडीसा तथा छोटा नागपुर मे हिन्दी-भाषा बजनिहारक संख्या प्रतिशत क्रमश: 3 तथा 30 अछि । परन्तु प्रान्तस्थित भाषासमूहक यथार्थ निरीक्षण सँ ई स्पष्ट अछि जे एहि भाषा कैँ 'हिन्दी' कहब ठीक नहिँ, प्रत्युत एकरा 'बिहारी' कहब अधिक उपयुक्त । एहि भाषाक उत्पति भारतीय आर्य भाषाक पूर्वीय उपशाखा सँ अछि । एहि भाषा में प्रधान तीन 'बोली’(dialects)अछि । सारन क्या चम्पारन जिलाक अतिरिक्त उत्तरी बिहारक आन सब जिला मे मैथिली बाजल जाइत अछि । दक्षिणी बिहार क भाषा 'मगही' थिक । दक्षिणी बिहार मे केवल 'शाहावाद' टा एहन जिला अछि जते 'मगही' क प्रचार नहि । प्रान्तक पश्चिमीय सीमा पर अवस्थित आन सब जिला में 'भोजपुरी' क प्रसार अछि । चम्पारन –
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- सँ पलामू पर्यन्त भोजपुरीक विस्तार बुझ क चाही।
गणना क अनुसार मिथिला-भाषा-भाषीक संख्या 10272711,'मगही' बजनिहारक 5327553, एवं भोजपुरी-भाषा-भाषीक; 6826990 अछि ।
उपर्युक्त अवतरण सँ स्पष्टतः ज्ञात होएत जे बिहार मे मैथिली-भाषा-भाषी कतेक छथि । की जाहि भाषाक एतेक बजनिहार होथि से भाषा अग्रण्य कहा सकैत अछि ? मैथिली भाषा केँ एम.ए. मे स्थान दै कलकत्ता-युनिवरसिटी जेहन उदारता तथा कृतज्ञताक परिचय देलक अछि से सर्वथा श्लाघनीय तया अनुकरणीय अछि । मैथिली भाषाक पथ सर्वथा कण्टकाकीर्ण अछि । कारण जे शिक्षित समुदाय में बहुतो व्यक्ति एहन छथि जनिका मिथिला भाषाक नाम सुनैत कँपकपी भै जाइत छन्हि ।
किछु दिन भेल पटना सँ प्रकाशित 'देश' नामक समाचार पत्र मे 'बिहार मे मिथिलाभाषा' शीर्षक एक लेखमाला छपल छल । उक्त लेख मे मिथिला तथा मैथिल संस्कृति पर एहन निराधार तथा कुत्सित आक्षेप कैल गेल अछि जाहि सँ लेखक महोदयक विषयानभिज्ञता प्रकट होइत अछि। हुनक कथन छैन्हि जे मिथिलाभाषा क तँ चर्चा कोन मिथिला प्रान्तहु क अस्तित्व नहि अछि तथा जाहि संस्कृति वा आचार-विचार के हमरा लोकनि मैथिल विशेषण दैत छी से यथार्थत: प्राचीन मैथिल नहि थिक । हुनक दिचारदृष्टि मे मैथिल जाति यदि अति प्राचीन काल मै कतहु छलो तथापि ओकर शेष आब कतहु नहि अछि तथा मगधक आधिपत्य समय मे सबहु एक भय मागध भय गेलहुँ, अत: हमरा लोकनि सभ बिहारी थिकहुँ, हिन्दी हमरा लोकनिक मातृभाषा थिक तथा बिहार हमर देश थिक ।" संक्षेपतया है ओहि लेखमाला क प्रतिपाद्य विषय छैन्ह । हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे केओ मैथिल एहन निर्मूल ओ भ्रमात्मक कथनक युक्तियुक्त खण्डन कय सकैत अछि । किन्तु खेदक विषय थिक जे एहि लेखहुक लिखनिहार अपना केँ मैथिल कहैत छथि । अतएव यदि अन्य मैथिल पर नहि तँ मैथिलेतर व्यक्ति पर हुनक लेखक प्रभाव पड़ि सकैतअछि। हम सम्प्रति हुनक लेखक खण्डन करय नहि चाहैत छी किन्तु पंजाब सँ बंगाल तथा नेपाल सेँ कुमारी अन्तरीप धरि के हिन्दू अपन प्राचीन सभ्यता जो हिन्दूघर्म के जनैत मैथिल ओ मिथिला सँ परिचित नहि छथि? राजर्षि जनकक राज्य मिथिला छलैन्ह । याज्ञवल्क्य मिथिला मे छलाह जनिके धर्म-शास्त्र प्राय: बंगाल छाड़ि समस्त भारतवर्ष मे प्रमाण मानल जाइत अछि। बौद्धधर्म के घोर प्रतिद्वंद्वी मंडन मिश्र, उदयनाचार्य, प्रभृति, षट्दर्शनपण्डित वाचस्पतिमिश्र, शङ्करमिश्र आदि अपन प्रकाण्ड विद्वता तथा अविचलित धर्मपरता सँ केवल मिथिला केँ नहिं समस्त हिन्दू जाति केँ उज्ज्वल –
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- बनओने छथि । हिन्दू धर्मशास्त्र ओ हिन्दू दर्शनशास्त्रक एक मुख्य केन्द्र मिथिला आदि सँ अछि । न्यायदर्शन क प्रवर्त्तक गौतम मिथिला क छलाह । एखनहु मिथिला क भिन्न धर्मशास्त्र बृटिश गवर्नमेन्ट द्वारा स्वीकृत अछि तथापि यदि केओ कहथि जे मिथिला क अस्तित्व नहिँ अछि तै हुनका मूर्ख छाड़ि आओर की कहि सकैत   छियैन्ह ।
यदि मैथिल केँ एखनहुँ कोनहु वस्तुक अभिमान छैन्ह तँ अपन प्राचीन सभ्यता ओ धर्मपरताक यदि कोनो समाजक आचार जो विचार याज्ञवल्क्यादिस्मृति क अनुसरण एखनहु करैत अछि तँ जो समाज मैथिल थिक । हम प्रौढ़ता सँ कहैत छी जे हमरा लोकनि सम्प्रति अपन धर्मपरकताक हेतु अन्य समाज में असभ्य कहबैत छी तथापि समस्त उत्तर भारतवर्ष क कोन जाति हमरा संग एहि अंश मे स्पर्धा कय सकैत अछि? अति प्राचीनकाल सँ अनेको कष्ट सह्य करैत हमरा लोकनि अपन शुद्ध आर्यरक्त ओ श्रौतस्मार्त्त आचार-विचार मात्रहिक रक्षा करैत अयलहुँ अछि । हमरा समाज मे बौद्धधर्मक प्रभाव लक्षित होइत अछि । अहिंसाक प्राधान्य सदा सँ हमरा ओहि ठाम अछि । सभ समाज मे हमरा लोकनि सदा सँ एही हेतुक भिन्न रहि अयलहुं अछि तथा यथार्थ जे केओ व्यक्ति सनातनघर्माभिज्ञ होयताह से हमरा लोकनि क सत्कार करितहि छथि । भारत क अन्यान्य प्रान्त मे जतय प्राचीन संस्कृति क लेश छैक हमरा लोकनि सत्कृत होइतहिं छी । तखन दक्षिण भागलपुरीय मैथिल हमरा किछु कहथु ओहि सँ हुनक अपन क्षुद्रता, मूर्खता ओ विषयानभिज्ञता मात्र द्योतित होइत छैन्ह ।
उक्त लेखमाला क प्रकाशित होएवाक कारण ई भेल जे गत अगस्त मास मे पटना मे मैथिल छात्रक संख्या विशेष बढ़ि गेल तथा एक समिति के स्थापना करब सबहि कै आवश्यक बुझना गेल । समितिक स्थापना भेला सन्ता येनकेनोपायेन मैथिली केँ पटना-युनिवर्सिटी मे कलकत्ता-युनिवर्सिटी जकाँ स्थान भेटय एकर यत्न करब ओकर एक मुख्य अंश बुझना गेल तथा जखन एकर यत्न होमय लागल तखन उल्लिखित लेखमालाक लेखक प्रभृतिक दिशि सँ एका घोर विरोध होमय लागल ओ एही प्रसंग मे जनताक चित्त कलुषित करवा क हेतु 'देश' मे उक्त लेख छपल । मैथिलीक विरोध मे हुनका लोकनि के मुस्काया तीनिटा युक्ति छैन्ह । “प्रथमतः मैथिली हिन्दीक अंग थिक ओ एकर उन्नति भेला सँ हिन्दीक उन्नति मे बाधा  होएत । (2) मैथिलीक साहित्य दरिद्र अछि तथा भागलपुर, चम्पारन आदिक मैथिल केँ मैथिली सिखवा में ओतबे कष्ट होएतैन्ह जतबा हिन्दी सिखवा मे । (3) मैथिलीक स्वीकृति 'मेला सँ सम्भव जे भविष्य मे मिथिला बिहार सँ भाषाभिन्नत्ताक कारणे प्रान्त भिन्नताहुक चेष्टा करय तथा लिपिसाम्य सँ बंगाल में अन्तर्भुक्त कय लेल   जाय ।'' पटना-समिति, अपना मे विरोध नहि हो अतएव एक प्रश्नावली बनाय मुख्य मुख्य मैथिल विद्वान म. म. डाक्टर श्री गंगानाथ झा प्रभृति सात गोटाक ओतय पठओलक तथा सबहिक उत्तर मैथिलीक घोर पक्ष मे आएल ।
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राष्ट्रभाषाक नाम पर मैथिल लोकनि यदि अपन मातृभाषाक तिरस्कार करथि तँ हुनका लोकनि क अस्तित्वहि क लोप भय जयतैन्ह । राष्ट्रभाषा हिन्दी तँ समस्त भारतवर्षक होएत परंच कोनो प्रान्त अपन मातृभाषाक त्याग नहि कय रहल अछि । हमर साहित्यक सबसँ उज्जवल रत्न विद्यापति छथि तया उमापति, हर्षनाथ प्रभृति कतेको आओर छथि । अतएव साहित्यहुक दृष्टि सँ नितान्त दरिद्र मैथिली नहि कहल जाय सकैत अछि । शुद्ध मैथिली सिखवा मे प्राय: सभक उत्तर पहिने अछि जे दक्षिण भागलपुरीय व्यक्ति केँ छाड़ि आन सभ कें सुगमते होएतैक । प्रान्त विच्छेदक हेतुक जे विरोध अछि तकर सभ तिरस्कारपूर्ण उत्तर देलैन्ह अछि ओ हमरा लोकनि के अपना में ततबा भेद बुद्धि अछिए जे एक भाषाक स्वीकृति भेलहु सन्ता, ओहि मे विशेष वृद्धि क सम्भव नहिं । अतएव आब समय प्राप्त भेल अछि जे हमरा लोकनि कटिबद्ध भय तत्पर होइ जाहि सँ मैथिली आबहु स्वीकृत हो । हमरा तँ विश्वास अछि जे यदि पचीस वर्ष पूर्व मैथिलीक स्वीकृतिक हेतु यत्न कयल जाइत तँ आइ बिहार क भाषा हिन्दी नहि किन्तु मैथिली कहबैत । 1925 ई. मे पटना-युनिवर्सिटी मे मैथिली स्वीकृतक हेतु एक प्रस्तावो कयल गेल छल परंच मैथिलक पक्ष में बंगाली छाड़ि आओर केओ नहि भेल । मैथिलीक उन्नति भेनहि सन्ताँ मैथिल जातिहुक उन्नतिक आशा अछि ओ बिहारक सभ समाज के भय छैक जे जखन मैथिल अग्रसर भेल, ओ सभ सब केँ हरा कय अगुआ जाएत । अतएव अपन प्रान्त में हमरा लोकनि केँ चारूदिशि शत्रुए देखना जाइत   अछि । एतेक दिन तँ कोनो अपन पत्र नहि छल जाहि द्वारा एहि विषय क कोनो प्रचार कयल जाइत । जाब आशा अछि जे मिथिला अपन नामक मर्यादाक रक्षा करैत अपन भाषाक पूर्ण प्रचार करत । सम्प्रति निम्नलिखित प्रस्ताव हम समस्त समाजक समक्ष उपस्थित करैत छी ओ पूर्ण विश्वास अछि जे आबहु हमरा लोकनि यत्नपर भय जाएब जाहि सँ मैथिलीक उन्नति हो तैखन हमरहु लोकनि क उन्नति होएत ।
प्रस्ताव-
(1.)             दरभंगा मे एक मैथिली-साहित्य-परिषदक स्थापना हो जाहि सँ मैथिल विद्वान लोकनि सँ प्रार्थना कयल जाइन्ह जे ओ लोकनि मैथिली मे ग्रन्थ लीखि परिषद कैँ देथि ।
(2.)             मैथिल महासभा मे प्रस्ताव हो जे गवर्नमेन्ट सँ अनुरोध कयल जाइत अछि जे मैथिली के पटना युनिवर्सिटी मे स्थान हो । कारण मैथिल महासभा हमरा लोकनिक एकमात्र बृहत संघ अछि ।
(3.)             प्रत्येक स्थान मे एहि हेतु क सभा हो तथा सभठाम सँ गवर्नमेन्टक ओतय प्रार्थना कयल जाय तथा दरभंगा डि. बोर्ड में सबहि चेष्टा करथि जे प्राथमिक शिक्षा मैथिली मे अन्तत: एकोठाम प्रारम्द्रभ हो जाहि सँ ओकर –
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-           फलाफल बुझना जाइक ।
(4.)             यदि आवश्यक बुझना जाय तँ मैथिल महासभाक दिशि सँ Minister of Education तथा Vice-Chancellor Patna University क ओतय एक Deputation मैथिलीक स्वीकृति हेतु आबय ।
(5.)             प्रत्येक शहर मे मैथिल समितिक स्थापना हो ओ सभ क्यो एहि यत्न मे तत्पर भय जाइ अन्यथा आब दिनानुदिन सफलता कठिन भेल जाइत अधि जो सबहि हास्यास्पद भेल जाइत छी ।

(मिथिला, वर्ष- 1, अंक-.1, 1929)


साभार
आचार्य रमानाथ झा रचनावली -3
[प्रथम संस्करण-2010]
संकलन-सम्पादन: मोहन भारद्वाज
वाणी प्रकाशन, दिल्ली-11002

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