Saturday, January 21, 2017

श्मशान-धथूर / ललित

मैथिलीक प्रतिष्ठित कथाकार ललित अपन पीढ़ीक मैथिली आ हिन्दीक प्रतिष्ठित रचनाकार राजकमल चौधरीक घनिष्ठ मित्र छलाह । एहि कारणें राजकमल चौधरी पर लिखल हुनक संस्मरण श्मशान-धथूर राजकमल चौधरी पर लिखल गेल संस्मरण सबहक मध्य विशिष्ट स्थान रखैत अछि ।
एहि संस्मरण मे दुनू गोटक आत्मीयता, अंतरंगता आ आपसी तालमेलक अतिरिक्त व्यक्ति आ रचनाकार राजकमलसँ जुड़ल कतेको महत्वपूर्ण प्रसंग आ सूचनाक उल्लेख छैक । हमरा जानकारीमे एखन धरि कतेको दृष्टिकोणसँ महत्वपूर्ण ई संस्मरण इंटरनेट पर उपलब्ध नहि छलहि । मैथिली पाठक आ शोधार्थी धरि एकर सहज उपलब्धिक भावनासँ विभूति आनन्द द्वारा संपादित ललित समग्र’*  सँ एतय ई संस्मरण आभार सहित प्रस्तुत कएल जा रहल अछि । 

श्मशान-धथूर 
[राजकमल चौधरी पर केन्द्रित संस्मरण]
ललित

शाक्त मतेँ प्रतिष्ठापित दशहु महाविहारमे थिकीह एकटा भगवती छिन्नमस्ता । अनेक नामे अभिव्यंजित-प्रचण्ड-चण्डिका एवं बज्रवैरोचनी आदि । ई भगवती केहेन तँ शवासना, विहलित चिकुरा, दिगम्बरा, अपन वाम तरहत्थीपर अपन छिन्न मुण्ड रखने, काटल गरासँ निःसृत रक्तधारा अपने छिन्न-मुण्डसँ पिबैत । अपन रक्तक अपनहि पान करयवाली । अपनहि रक्तमे आचूड़-स्नात ।
आ एहि भगवतीकेँ प्रिय की? धथूर । श्मशान-धथूर । सामान्य धथूर नहि, श्मशान धथूर ।
मणीन्द्र, फूलराजा, मणीन्द्र राजकमल, राजकमल, जकर केलियोडो-स्कोपिक’ बहुरंगी व्यक्तित्व रहैक, एहि श्मशान-धथूरसँ बड़ साम्य रखैत छल । जे एकाकी निर्जन प्रान्तरमे जीबि सकल । जकर चतुर्दिक मसानक परम शान्ति रहलै । गंध रहैक आत्मदाहक । चिताक गंध । जीवनोक गंध रक्त-स्वेद-वीर्य मिश्रित । कोलाहल जे यत्र-तत्र रहैक से अर्थी ढोनिहारक । किन्तु, जीवनक नानाविध तमिस्रामे जे ज्योति-शिखा राजकमलकेँ भेटलैक से रहैक आत्माक प्रखर-ज्योति । गरल-कण्ठ सदाशिव जकाँ जीवनक ओही महाश्मशानमे पद्मासन लगा ओ परमतत्व ताकय लागल । जन्मान्तरक पिपासा ले’ लोकारण्यमे अमृत-कुम्भक अन्वेषी । राजकमल की ताकल, की भेटलैक । जीवन केर अन्तिम दिनमे ओ शाक्त भक्त भ’ गेल । तारा-उपासक । कोशीक छाड़नि मनुआ धार ताहिमे नहायवाली दुबरिया कांतिक गौरवर्णा ओ उग्रताराकेँ कोकिल कण्ठें स्तोत्र सुनवय वाली ओएह जानथि । अपन अबोध शिशुकेँ छोड़ि जे चलि गेलीह । जनिक ममताहीन राजकमल यत्र-तत्र-सर्वत्र भ्रमित रहल ।

1951-सौराठ-सभा

राजवंशी, हमर अभिन्न मित्र ओ बालसखा, आबि कहलक-काज ठीक भ’ गेल । चल कने लड़का देखि लही । महिषी, सहरसा । मूल छनि बुधवारे महिषी । आ देखल- गहुमा रंग, दोहरा काठी, धोती-कुर्त्तामे । सबसँ मार्मिक आँखि । तीव्र अन्तर्भेदी दृष्टिपात । नाम मणीन्द्र नारायण चौधरी ।
-बी.कॉममे छथि । हिन्दीमे लिखितहु छथि । कइक गोट कविता प्रकाशितो भेल छनि ।
आश्चर्य लागल । बी.कॉम, फेर साहित्यकार ! मणीन्द्र केर स्प्लिट परसोनेलिटी (Split personality) सँ प्रथम साक्षात्कार भेल ।

1954

दरभंगा राजक श्मशान । माधवेश्वर । संध्याकाल ओतहि हमरा लोकनिक चौखड़ी जुटय । हम, मायानन्द, उग्रानन्द, दिवानाथ (सम्प्रति डिप्टी कलक्टर) एवं रामू (प्रो. रमाकान्त, अंग्रेजी विभाग, च. मि. कॉलेज) । हम विकट दरिद्राक मारल सरस्वती स्कूल, लेहरिया सरायमे मास्टरी करैत रही । मायानन्द श्री अमरजीक देखरेखमे मैथिलीमे गीत लिखथि ।
ओहि दिन दिवानाथ जाहि जीनियस सँ बहुत उत्कण्ठापूर्वक भेंट करौलक से रहथि ‘फूलराजा’ । मणीन्द्रक नाम ओहि दिनुक । माधवेश्वरक पक्का घाट, पीपरक निहुरल डारि तर राजकमलक कविता-पाठ । ओजस्वी स्वरेँ । हिन्दी कविता सभ । ‘हंस ओ समन्दर का नाच’ इत्यादि । विलक्षण शब्द-व्यंजना । बहुत प्रतीकसँ भरल । दिवानाथ ओ रामू अपन स्वभावक अनुसार चुटकी लेबासँ बाज नहि आबय । कविताक पंक्ति छल-
‘जिन्दगी नहीं पेराम्बुलेटर,
कि घूम आओ आया के साथ,
मौत की बढ़ती हुयी साया के साथ ।’
रामू हँसल, बाजल-फूल, ई मात्र तुकबन्दी छैक ! श्रोताकेँ अर्थहीन वाकजालसँ अभिभूत करबाक प्रयास । एकर की अर्थ ?
जीवनमे अनवरत जेना कटु-तिक्त प्रहार सहबाक ई व्यक्ति अभ्यस्त हो, बिहुँसि बाजल- एखन नहि बुझबही । कविताक अन्तिम पंक्ति अउकन स्मरण अछि :
‘ये निराला को, नजरूल इस्लाम को
पागल करार देते हैं, और गाते हैं- वीणावादिनी वर दे ।’
54'क भयानक बाढ़ि । हम एवं राजकमल संगहि गाम जाइत रही । हम ओकरा मैथिली मे लिखबाक बड़ आग्रह कयल । हमर उद्देश्य रहय जे मैथिली केँ एकटा प्रतिभाशाली लेखक प्राप्त हो । राजकमल कहल-भाइ ललित, हमरा मैथिली लिखबामे नहि ओराइत अछि !
अंत मे निर्णय भेल जे आरम्भमे किछु कथाक हम हिन्दीसँ अनुवाद कय देबैक ओ बादमे राजकमल स्वयं लीखत । अपना वादाक अनुसार राजकमल अपन कथा 'अपराजिता' पठाओल जकर मैथिली अनुवाद कय 'वैदेही' मे छापल । तकरा बाद 'फुलपरासवाली' तक केर जे कथा रहैक से मूल हिन्दी, तकर भाषानुवाद हमरे कयल रहय ।

1955-56-57

एहि समयमे राजकमलसँ आओर अधिक घनिष्ठता प्राप्त भेल । ओ महाविलक्षण व्यक्तित्वक लोक रहय । ओ पटना सेक्रेटेरियेटमे शिक्षा विभागमे रहय तथा डेरा रहैक रामकृष्ण मिशन लेनमे । दरभंगा मे ओ अधिक काल हमरे ओतय रहय अथवा फेर दिवानाथ किम्बा रामू ओतय । हम कमीशनक परीक्षामे बैसबाक तैयारीमे रही ओ पटनामे राजकमले ओतय ठहरी ।
ओहि समयक किछु घटना आवश्यक अछि जे प्रकाशमे आबय । राजकमल केर पत्राचार ओइ दिन चलैत रहैक मसूरी, हैपीवेली स्थित सावित्री शर्मासँ । दरभंगाक पतासँ हमरा केयरमे राजकमलकेँ पत्र अबैक मसूरीसँ । हम एहि सम्बन्धक घोर विरोधी रही । विशेष कय राजकमलक विवाह हमरे गॉव एवं ओकर सार श्रीराजवंशी हमर अभिन्न बालसखा अछि । किन्तु राजकमल एवं सावित्रीक ई पत्राचार बादमे पावन-परिणयमे बदलि गेल ।
राजकमल अद्भुत मित्र ओ बड़ आवेशी लोक रहय । पटना मे ओकरा ओतय जखन टिकी तँ अधिक काल हमरा पाइ घचि जाय; ओ राजकमल अन्तर्यामी जकाँ जेना बूझि जाय । ओ टिकट, रिक्शा खर्च एवं पाथेय बिनु मँगनहि जुटा दैत छल ।
’56मे राजकमल जखन दरभंगा आयल तँ संगमे नव वस्तु-जात रहैक, विशेष क’ अंगुरमे ‘प्लेटिनम’ केर अंगूठी । विदाइक वस्तु-जात । कोडक केर फोल्डिंग कैमरा ।
1957मे जखन ई नोकरी कयल तँ लिखनाइसँ सम्बंध छूटि गेल । राजकमलो पटना छोड़ि देलक । पता लागल , किछु दिन मसूरीमे रहय, फेर कलकत्ता गेल, तत्पश्चात फेर पटनामे आबि फ्री लान्सिंग लेखक भ’ गेल ।
1963मे विभागीय परीक्षा देबा लेल पटना गेल रही तं हँसराज रहय मिथिला मिहिरमे । ओकरे सहयोगें बड़ श्रमसँ ताकल राजकमलकेँ, जे ओइ समय चीना-कोठीमे रहैत छल । जूनक संध्या । राजसँ भेंट भेल बहुतो दिनुक बाद । सेकेण्ड शो सिनेमा देखलाक बाद दुहू गोटा गप्फ करय बैसलहुँ तँ गप्पमे भोर भ’ गेल । हम श्रोता रही । 

राजकमलक मसूरी प्रवास-

मसूरीक प्राण भ’ गेल राजकमल । आइ ब्यूटी-शो । आइ मिस-मसूरीक चुनाव, आइ ई फंक्शन, काल्हि ओ । मगर सावित्रीसँ भेद बढ़य लगलइ । मसूरीक राति । धुनल तूर जकाँ बर्फ खसि रहल छलैक । मध्य-निशासँ बेसी भ’ रहल छैक, ओ मोट ओवरकोट, कनझप्पा टोपी पहिरने एक क्लबसँ बाहर भेल । पयर डगमगाइत । चारूकातसँ अनभिज्ञ । बहुत मुश्किलसँ ओ हैपीवेलीक एकटा बंगलाक गेट तक पहुँचल । ओतय सीढ़ीपर बैसि गेल ।  फेर सीढ़िये पर नहुँए टगि आरामसँ पड़ि रहल । बड्ड पीने रहय । पास-आउट क’ गेल । बंगलाक एकटा खिड़कीक शीशासँ इजोत अबैत रहय । प्रायः एकर प्रतीक्षा करैत रहैक । फेर दरबाजा खूजल । शाल ओढ़ने एकटा शुभ्रवसना नारी-मूर्ति चुपचाप एहि बेहोश व्यक्ति लग आयल । पहिने एकरा उठयबाक प्रयत्न कयल; असफल रहि चुपचाप एकरा आंगुरसँ प्लेटिनमक अंगूठी निकाल आपस बँगलामे चलि गेल ।
प्रात डिनर टेबुलपर राज पुछलकै- वह प्लेटिनम की अंगूठी वापस कर दो !
- नहीं उसके लिए शायद आपकी कहीं जान न चली जाय !
क्षण भरि मौन रहि राज बाजल- मैं आज चला जाऊँगा ।
परिवारमे मौन रहैक । मसूरीमे राजक अन्तिम दिन संत्रासमय रहैक । एकर डेराक वातावरण बोझिल । ककरोसँ केओ गप्प नहि कयनिहार ।
ओवरकोट पहिरने कान्हपर बड़का टा चमड़ाक एटेची लदने राज बस-स्टैण्ड दिस जाइत रहय । एकाकी, मित्रहीन, साधनहीन । सैकड़ो मसूरीक मित्रमे केओ अपन नहि रहैक । देहरादूनवला बसपर बैसि रहल । दूर पहाड़पर बर्फ जमल रहैक, देवदारू आ चीड़क गाछ पहाड़ी हवामे डोलि रहल छल । बस देहरादून दिस पहाड़ त्यागि नीचा दिस विदा भेल । श्मशान धथूर, मसूरीक ऐश्वर्यमय ड्राइँगरूमक गमलासँ सम्बंध तोड़ि फेर विदा भेल जीवनक महाश्मशानमे अपन इष्टदेवी-छिन्नमस्ताकेँ ताकय । पाथेय ओतबे रहैक जे पटना कहुनाके पहुँचि जाय ।
एकर बाद दुइ बेर आओर भेंट भेल जखन ओ राजेन्द्र सर्जिकल वार्डमे इलाजमे छल । हम ट्रेनिंगमे राँची जा रहल छलहुँ । ओहि समय ओकरामे अजीब परिवर्त्तन देखल । साधना-उपासना दिस बड़ अभिरूचि ओ जिज्ञासा । संगहि रीगल होटलमे चाय-नाश्ता कयल । ओ राजकमलसँ आखिरी भेंट रहय ।
राजकमलक कृतित्वपर ओकर व्यक्तित्वक छाप सहजहिं भेटत ।  ओ बड़ पढ़ल लोक छल । विश्वसाहित्य केर प्रायः कोनहुटा प्रसिद्ध उपन्यास किंवा काव्य-ग्रन्थ नहि छल जे ओकर पढ़ल नहि हो । परन्तु जीवनक आरम्भ कालमे ओ शरतबाबूसँ बड़ प्रभावित रहय आ ओ प्रभाव अन्त तक बनल रहलैक । जीवनमे मातृहीन रहय ओ अपन कहयबला कम चीज रहैक, तेँ ओकर कथामे एकटा आत्मदाह, आत्मध्वंसक तत्त्व यत्र-तत्र भेटत, विशेष रूपेँ ओकर हिन्दी काव्य-संग्रह ‘कंकावती’मे, जे आधुनिक हिन्दी काव्यमे अन्तिम शब्द अछि । ओकर बड़ कम प्रति छपल रहय ।
ओकर मैथिली कथा सभमे जे तत्त्व सभसँ अधिक स्फुट अछि से थिक शॉक (Shock)  एवं सरप्राइज (Surprise) केर । एकटा आघात एवं चकित करबाक तत्त्व । संगहि आत्मबलिदानक तत्त्व भेटत ओ फेर जेना राजकमल केर ‘स्पिल्ट’ व्यक्तित्व रहैक तहिना वस्तुवादक तत्त्व सेहो भेटत, अपनाकेँ जीवैत रखबाक घोर संघर्ष । ‘फुलपरासवाली’ जँ रूग्ण पतिक देख-रेखमे जी-जान लगा दैत छथि तँ ‘साँझक गाछ’मे भौजी दोसर पुरुष ध’ बैसैत छथि । ‘ललका पाग’मे कुलीन मैथिल महिलाक आत्म-बलिदान परिलक्षित होयत ।
राजकमल केर कथामे मोपाँसाक शिल्प-विन्यास भेटत । अपन प्रखर व्यक्तित्व जकाँ ओकर कथामे बेसी आहे-माहे नहि भेटत; सोझे कथ्यपर प्रहार । कथ्य ओ कहबाक लूरि, जकरा ‘फॉर्म’ कहबैक, राजकमल केर कृतित्वमे दुनू छैक ।
सर्वोपरि जे भेटत राजकमल केर लेखनमे से थिक ‘गोपन तत्त्व’ । एकटा कुहेलिका । एकटा कुहेस । जतय द्रष्टाकेँ अपन कल्पनानुसार ‘इमेज’ गढ़बाक स्वतन्त्रता रहि जाइ छैक । तहिना राजकमल केर कृतित्वमे Unexplained events भेटत । छोट-छोट कड़ीकेँ धाँगि क’ आगू बढ़बाक प्रवृत्ति । प्रायः लेखक द्वारा ‘भोगल यथार्थ’ एतेक भयावह थिक जकर पूर्ण अभिव्यक्ति करबाक साहस किंवा औचित्य ओ नहि बुझैत अछि । अन्हार सीढ़ीपर चढ़’ लय ओ पाठककेँ छोड़ि दैत अछि । ओकर निर्वाणोन्मुख दीप-शिखाक अभिव्यक्ति ‘मुक्ति प्रसंग’ एकर साक्षी थिक । समस्त ‘इमेजरी’सँ भरल-पड़ल ।
किन्तु, सभ किछु रहितहुँ राजकमल केर लेखनमे मिथिलाक माटि-पानि अछि । मनुआ धारक कल-कल निनाद अछि । बट-वृक्षक सहस्रबाहु सांध्य तमिस्रामे लीन ।
गंगा तरंग चुम्बित चरणा, हिमगिरि शोभित निर्झरणाक भू-भाग केर हास-अश्रुमय आनन गढ़यबला अप्रतिम शिल्पी छल राजकमल ।
किन्तु नहि, ओकर पात्र, ओकर चरित्रक हास-अश्रु, ओकर कथा केर सहज-सरल परिणति एवं अकृत्रिम शिल्प-विन्यास केँ काल-पात्र-स्थानसँ आबद्ध नहि कयल जा सकैछ । ओकर कृतित्व, ‘कंकावती’, ‘मुक्ति प्रसंग’, ‘मछली मरी हुई’ ‘एक बीमार सौ अनार’ देश-काल-पात्रसँ ऊपर थिक । विशेष क’ ओकर ‘कंकावती’क मूल्यांकन कहियो केओ क सकत से भरोस अछि, कारण-
निरवधि च कालो,
विपुला च पृथ्वी ।

(स्मृतिसंध्या, भाग-एक, मैथिली अकादमी, पटना, 1980)
·   
    
[*ललित समग्र (पृष्ठ 300-306) : प्रथम संस्करण -2012 : मैथिली अकादमी. 740/800 लालबहादुर शास्त्री नगर, पटना-23]

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