Sunday, May 28, 2017

जत देखल तत कहए न पारिअ : गोविन्द झा

हमर सभक सौभाग्य थिक जे पं. गोविन्द झा चौरानबे बरखक अवस्थो मे रचनात्मक रूपें सक्रिय छथि । ‘भारती मंडन’ क नव क्रमांक-1 (अंक-13) मे प्रकाशित हुनक संस्मरणविधाक टटका रचना - ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ एकर उदाहरण थिक । गोविन्द बाबू लगभग शताधिक पुस्तकक लेखन-संपादन आ अनुवादसँ सम्बद्ध रहल छथि । पैघ भाषाविज्ञ आ वैयाकरणतँ छथिए मैथिली आलोचना आ सृजनमे सेहो हिनक बड्ड योगदान छन्हि । हिनक व्यक्तित्वक एक टा रूप शब्दकोशकारक सेहो छन्हि । शब्दक उत्पत्ति रहस्य आ अर्थ करबाक हिनकर विलक्षण कौशल बड्ड उपयोगी आ प्रभावी होइछ। एतेक विद्वता आ एतेक सुदीर्घ अनुभवक रहितो हिनकर व्यक्तित्वक सहजता आ विनम्रता अनुकरणीय अछि ।
ई कहब बेसी उपयुक्त होयत जे ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ हुनकर मिथिला- मैथिलीसँ सम्बद्ध किछु संस्मरण सबहकक कोलाज थिक। एहिमे कतहु मैथिली आंदोलन आ मैथिलीक आंदोलनधर्मी संस्था सबहक इतिहास आ आलोचना छैक, कतहु मैथिलक आपसी मतभेद आ द्वेषक उल्लेख छैक, कतहु मैथिली मिथिला लेल अदम्य संघर्षक उल्लेख छैक, कतहु स्वार्थक उल्लेख छैक तँ कतहु वृहत सामजिक हित आ उद्देश्य केर । एहि मे समकालीन मैथिली साहित्यकार आ मैथिली आंदोनकारी लोकनिक आत्मीय चर्चो भेल छैक । जिज्ञासु पाठक आ शोधार्थी लोकनिक लेल ई संस्मरण एहि रूपें महत्वपूर्ण भ’ सकैछ जे एहिमे वैह लिखल छैक जे गोविन्द बाबू अपन आँखिसँ देखलथि आ अपन विवेकसँ बूझलन्हि । एकरा दुर्लभ विनम्रतेतँ कहबै जे जीवन भरि रचनाशील क्यो लेखक विद्यापतिक पदक माध्यमें ई कहथि जे- जतबा देखलहुँ, ततबा अभिव्यक्त नहि क’ पाबि रहल छी !!

जत देखल तत कहए न पारिअ
गोविन्द झा



(पृष्ठ-82)
प्रस्तावना
जीवनमे सभकें नाना प्रकारक अनुभव होइछै आ से मन पड़ैत रहै छै । हमरा  अधिक काल ओ बात सभ मन पड़ैए जे मिथिला आ मैथिलीक संबंधमे हमर आँखिक समक्ष होइत रहल । सम्प्रति तकरहि मन पाड़ि-पाड़ि लिपिबद्ध कए रहल छी ।
मन पड़ैछ 1935क आसपास बहिनिसँ नेओंत लेअए पचही डेओढ़ी गेल रही । एतए हमर भागिन बाबू उमापति सिंहक घनिष्ठ मित्र रसिआरीक लखनजी (डॉ. लक्ष्मण झा) आएल रहथि । गप चलल मिथिलाक दशा पर । हम तीन वर्षक नेपाल-प्रवासक बाद हालहिमे घर घुरल रही । हमरा मुँहसँ बहराएल, हम तँ मिथिलाक नहि, नेपालक निवासी । लखनजी साक्षात लक्ष्मण भए गेलाह, अएँ, की कहल? जनै छी मिथिलाक सीमा कतए?
आइ दू हजार सोलह इसबी मे चिरंजीवी केदार काननक आग्रहें जत देखल तत कहए न पारिअलिखए बैसलहुँ तँ मन पड़ल ओ सीमा सिमराओं अर्थात सीमरक जंगल बाला गढ़ । एतहि मिथिलाक राजा आ मिथिलाक भाषा सेहो नेपालमे शरण लेल । मिथिला मोगलान भए गेल । नव राजा तँ भेलाह विशुद्ध मैथिल, परन्तु जूति पूरा-पूरा आनक । मोगलानमे संस्कृतक छाती पर फारसी बैसल, मैथिलीक छाती पर क्रमशः उर्दू, कचहरिआ हिन्दुस्तानी आ हिन्दी । धर्म आ साहित्यक क्षेत्रमे भगवान कृष्णक प्रसादें मैथिलीक जगह ब्रजभाषा लेलक तँ रामजीक प्रतापें हिन्दी । हम रामलीला देखि-देखि हिन्दी सीखल आ विद्यापति ठाकुरक बदला भिखारी ठाकुरक गीतक संग बटोहिया नाच देखि-देखि भोजपुरी सीखल । एहने छल हमर बाल्यकालक मोगलानक रंग आ मैथिलीक स्थिति ।
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प्रसंग पर आउ । पचहीमे ओहि समय लखन जीक सिर पर एही मोगलानकें पुनः अखण्ड मिथिला बनएबाक धुन सबार छलनि । चेला मुड़लनि हमर उक्त भागिन बाबू उमापति सिंह आ डॉ. लक्ष्मीनारायण सिंहकें । लखनजी घर-घर चर्चित रहलाह, बाबू उमापति सिंह अचर्चिते रहि गेलाह । किएक से आगाँ कहब । लखनजी काशी प्रसाद जायसवाल रिसर्च इन्स्टिीच्यूट, पटनामे पदस्थापित भेलाह । निदेशक डॉ. अल्तेकर कहलथिन, झुमरी तिलैयाक उत्खनन स्थल पर गेल जाए । उत्तर भेटलनि, ओतए किछु नहि छैक, हम मिथिला जाएब, ओतए जतहि हमर कोदारि बजरत ततहि कुबेरक भंडार... । तुरन्त जवाब भेटि गेलनि, अवश्य गेल जाओ । बुझनुक छलाह, सोझे चलि देलनि ।
लखनजी नोकरी छोड़ि घर घुरलाह तँ पाया ढाहि गंगासँ हिमालय धरि अखंड मिथिला गणराज्य बनएबा मे लगलाह । ओहि समय बाबू उमापति सिंह आपूर्ति विभागमे सरकारी सेवामे छलाह तें प्रकट रूपें योग नहि दए गुप्त रूपें आर्थिक सहायता करैत रहलाह ।
लखनजी साप्ताहिक मिथिला चलबैत प्रेसक भारी कर्जदार भए गेलाह तँ इएह हिनक उद्धार कएल । हालमे जखन कि एहि पत्रिकाक अंक सभक खोज होअए लागल तँ समस्त अंक हिनके ओतए पाओल गेल ।
लखनजीक एहि जागरणसँ पहिनहिसँ मैथिल महासभा आदि नाना संगठन एहि क्षेत्र मे उतरि चुकल छल । हम एहन जाहि-जाहि संगठनक गतिविधि अपना आँखिएँ देखल तकर सुधि एकाएकी लेल जाए ।

मैथिल महासभा
पचहीसँ चलू मधुबनी मैथिल महासभाक अधिवेशनमे । आरम्भहिमे एतए एक विचित्र तमाशा भेल । महाराज अध्यक्षक आसन पर बैसलाह कि एक कोनमे नारा लागल--गद्दी छोड़ू, गद्दी छोड़ू ।महराजी लाठी उठल । सभ नाराबाज लंक लेलक । पाछाँ बूझल एकर सूत्रधार छलाह भुवनेश्वर सिंह भुवन । ओम्हर भुवनजी विभूति नामक मैथिली पत्रिका चलाओल । ओहिमे विज्ञापन बहराएल जे दू उपन्यास शीघ्र आबि रहल अछि । पहिल बूढ़ि गाइक लटकन आ दोसर रानी या बन्दिनी । स्पष्टतः दुनूक लक्ष्य छल महाराजक अन्तःपुरक रहस्योद्घाटन । महाराजक दिससँ चलल व्यंग्यचित्र आ व्यंग्यकाव्य-सिंहक कुलमे जन्म बिलाड़िक भेल भुवनमे हास, धुरखुर व्यर्थ हताश ।

मैथिली साहित्य परिषद
अगिला दिन प्रातःकाल मैथिली साहित्य परिषदक अधिवेशन भेल । एही ठाम बाबू भोलालाल दास मैथिली साहित्य परिषदक मन्त्रीक पद छोड़लनि आ ओहि पर अएलाह आचार्य रमानाथ झा ।
दरभंगामे परिषद्क विधिवत् स्थापना आ रजिस्ट्रेशन कएल । सदस्य भेलाह डॉ. सुभद्र झा, तन्त्रानाथ झा, ईशनाथ झा आदि । परिषद हमर पिताक लिखल मैथिलीक व्याकरण मिथिलाभाषाविद्योतनकेर हस्तलेख दू सए टाकामे किनलक । ई मैथिली पोथीक हस्तलेखक खरीदक प्रायः पहिल घटना भेल ।
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परिषदसँ उक्त विद्योतन आ किछु आओर पुस्तक प्रकाशित भेल । बीच-बीचमे कवि गोष्ठी    चलए । एक गोष्ठी दरभंगामे डॉ. अमरनाथ झाक सत्कारमे भेल । एहिमे प्रो. तन्त्रानाथ झाक कविता चललहुँ प्रियतमसँ मिलन काजतथा हमर कविता यौवनक हिलकोरमेप्रो. आनन्द मिश्र अपन कोकिलकंठसँ गाबि सुनाओल । एकर पहिल विशेषाधिवेशन मधुबनीमे भेल । पं॰ दीनबन्धु झाकें महावैयाकरणआ मुंशी रघुनन्दन दासकें साहित्य-रत्नाकरक उपाधि देल गेलनि । अगिला विशेषाधिवेशन मनीगाछीमे भेल । एहिमे पहिल बेर चन्द्रभानु सिंहक कुहकल कुररीकविता सुनल । परिषदक दलबन्दी देखल । डॉ. सुभद्र झाक ओजस्विता देखल । परिषद किछुए दिन चलल कि मैथिल ब्राह्मणक दू वर्गक द्वन्द्वयुद्धमे आहत भए सेज धएलक ।

प्रबुद्ध मैथिल समाज
मन पड़ैत छथि दूरक समधि प्रो॰ उमानाथ झा । मिथिलाक सन्दर्भमे हिनका क्रान्तिक अग्रदूत कहि सकैत छी । ई मित्रमंडली जुटाए प्रबुद्ध मैथिल समाज स्थापित कएल । प्रमुख सदस्य भेलाह वैज्ञानिक शचीनाथ झा (आचार्य रमानाथ झाक अनुज), प्रो॰ अनिरुद्ध झा, अधिवक्ता परमानन्द झा, प्रो॰ हरिमोहन झा आदि । एकर तीन लक्ष्य छल--जातिप्रथा भगाएब, वैज्ञानिक दृष्टि जगाएब तथा मैथिली भाषा आ साहित्यकें सजाएब । सदस्य लोकनि अपन-अपन जनेउ तोड़लनि । नवीन मैथिली साहित्य नामसँ एक पुस्तक (वा जर्नल कही) प्रकाशित कएलनि । एहिमे शचीनाथ झाक लेख छल सूर्य मंडलक उत्पत्ति । तात्पार्य ई जे प्रकृति स्वयं अपन सृष्टि आ संहार करैत रहैत अछि, एहि लेल ईश्वरक कल्पना व्यर्थ । किछुए दिनमे ई पोआरक धधरा भए गेल । केवल प्रो॰ हरिमोहन झा आ उमानाथ झा मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धि करैत रहलाह । मन पड़ैत अछि, 1945क आसपास हिनक पहिल कथा आध घंटामिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल । एक पाठक एकरा निरर्थक प्रलाप कहलनि । हम उत्तर देलिअनि, ई थिक मैथिलीमे पहिल उत्तम मनोवैज्ञानिक कथा, तें अपनेकें प्रलाप बुझाएल । एहि तरहें प्रबुद्ध मैथिल समाज मैथिली साहित्यहुकें प्रबुद्ध करबाक दिस डेग देलक । एहि प्रबुद्ध लोकनिक कुचेष्टा बहुत दिन धरि होइत रहल । प्रायः एकमात्र हम एकर शिकार भए मनहि मन अपन जाति-धरम गमाओल ।
मन पड़ैत छथि पंडित वैद्यनाथ मिश्र यात्री । ई हमर पिताक शिष्यक शिष्य । ताहि सम्बन्धें यदा-कदा हमरा ओतए आबथि । एहि क्रममे ई हमरा लगसँ चिन्हलनि । 1950 ई॰ मे हिनक पोस्टकार्ड पहुँचल- हमरा हिन्दी शब्दकोश लिखबाक काज भेटल अछि, एहिमे अहीं सन चौचख सहकर्मी चाही । दौड़ले पटना पहुँचलहुँ । ओ काज तँ नहि भेटल, मुदा दोसर काज भेटि गेल । एहि बीच यात्रीजी नया टोलाक कंचन भवनमे भोजन करथि । साँझ कए ओकर छत पर गोष्ठी जमए । कहिओ काल हमहूँ पहुँचि जाइ । गोष्ठी बढ़ैत आ जमैत गेल । विचार भेल जे एकरा एक नाम आ रूप देल जाए । एहि उद्देश्यसँ अमरुदी मोहल्लामे आचार्य परमानन्द शास्त्रीक आवास पर बैसक भेल । यात्रीजी, बाबू लक्ष्मीपति सिंह, आचार्य परमानन्द शास्त्री, अधिवक्ता सत्यानन्द कुमर, अधिवक्ता अवधबिहारी झा, सुरेश्वर झा आदि उपस्थित
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-रहथि । यात्रीजी नाम देलनि चेतना । करीब एक वर्ष ई चेतना चलैत रहल । यात्रीजी आन नगरक यात्री भेलाह कि चेतना पर दमगर आ मुहगर लोक आसन जमबैत गेलाह । दोबारा स्थापना भेल । यात्रीजीक नाम उपेखि नव नाम देल गेल चेतना-समिति । चेतना तर पड़ल, समिति ऊपर । नव नामहिसँ एकर आधुनिकता, साहित्यिकता आ सादगी समाप्त भए गेल । क्रमशः मिथिला-मैथिल-मैथिली तर गेल, विद्यापति ऊपर अएलाह । अन्ततः विद्यापतिओ आराध्यमात्र रहि गेलाह, साध्य भेल केवल सम्पदा । रवीन्द्रनाथक शब्दमे ईंटेर उपर ईंट, माझारे मानव कीट । मुहथरि पर बैसल मुहपुरुख लोकनि पवित्र पर्वकें महामहोत्सव बनबैत गेलाह । एक समय उत्सवस्थल भेल मोइनुल हक स्टेडियम । देशक नामी नर्तकी, गबैया आ बजनिया पाहुन । बाड़ीक पटुआ तीत । समस्त मैथिल समाज आनन्द-विभोर । दोसर दृष्टिएँ देखी तँ चेतना समिति दू फाँक भए गेल- चेतना आ समिति । समिति समाजकें जगएबा-रिझएबामे लागल । चेतना साहित्यकें समृद्ध करबाक उद्देश्यसँ विद्यापति पर्वक अवसर पर कवि सम्मेलन आ विचारगोष्ठी चलबैत रहल आ हम एही दुनूमे रमैत रहलहुँ । मैथिलीक मंच पर साहित्य आ संगीतक बीच एक अभुत संगम चलल । एकर शिलान्यास कएल मैथिलीक कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर । संग देलथिन सुगायक महेन्द्र झा । विद्यापति-पर्वक समारोहमे दर्शकक एक विशाल वर्ग एही दुनूक गीत सुनए दूर-दूरसँ आबए । ई छल बिनु वाद्यक संगीत आ बिनु कवित्वक कविता । एहि परम्पराक अन्तिम कवि-कलाकार भेलाह सियाराम झा सरस ।
एम्हर चेतना समिति लक्ष्मी आ सरस्वतीक पूजामे लागल रहल, ओम्हर मैथिली पर, विशेष कए युवावर्ग पर, नव-नव संकट आबए लागल । सहसा युवावर्ग सड़क पर उतरि आएल ।

निखिल भारतीय मैथिल छात्रसंघ
एक समय देशमे त्रिभाषा फर्मूला लागू भेल तँ मैथिलीभाषी प्रबुद्ध युवावर्ग मनसुबाएल जे आब राज्य लोक सेवा आयोगक प्रतियोगिता परीक्षामे मैथिलीक कृपासँ नैया पार लागि जाएत । परन्तु सिलेबसमे मैथिलीकें नहि देखितहि मैथिल छात्रक बीच आक्रोशक लहरि उठल । 1978क गणतन्त्र दिवस दिन भोरे पटनाक डाक बंगला चैराहा पर उत्तेजित मैथिलीभाषी छात्रसभक भीड़ लागि गेल । नारा लागल । अनशन चलल । सभ वर्ग, स्तर आ बएसक लोक आबि-आबि पीठ ठोकैत रहलाह । मैथिल छात्र पहिल बेर मैदानमे उतरल आ आश्वासन पाबि तत्काल शांत भेल । आन्दोलन तँ विफल भेल । तैओ सरकार हवाक रुखि देखैत तत्काल मैथिलीकें माध्यमिक शिक्षामे स्थान दए उत्तेजना शांत कएलक ।
एही बीच बिहार सरकार मैथिलीकें उपेखि उर्दूकें द्वितीय राजभाषा बनओलक । आक्रोश तीव्र होइत गेल । संघ 4 नवम्बर 1979 कें देश भरिक मैथिलीक संस्था सभकें हकारि विशाल जुलूसक संग राजभवन दिस बढ़ल । पुलिस रोकि देलक । संघ अपन मांग शिष्टमंडल द्वारा राज्यपालकें निवेदित कएलक । उक्त दुनू छात्र आन्दोलनकें देखैत सरकार कनेक नरम भए मैथिलीकें राज्य लोक सेवा आयोगक परीक्षामे स्थान दए देलक । करीब
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- सात वर्ष धरि मैथिल छात्र मातृभाषाक प्रसादें नीक-नीक पद आ प्रतिष्ठा पबैत गेल । राजनीतिमे एक प्रचंड बिहाड़ि उठल कि मैथिली फेर निष्कासित भए गेलीह । फेर निखिल भारतीय मैथिली छात्रसंघ 4 नवम्बर, 1989 कें तेसर बेर शंखनाद कएलक । मिथिलाक गाम-गामसँ आ देशक नगर-नगरसँ मैथिलीसेवी संस्था सभ अपन-अपन नेता आ कार्यकर्ताक संग जुटैत गेलाह । उत्तेजित जुलूस राजभवन दिस बढ़ल । लाठी चलल । किछु रक्तपातो भेल । किछु मान्य गुरुजन धरहेरिआ भए प्राणपात रोकल ।
उपर्युक्त तीनू आन्दोलन हम कातहिसँ देखैत आ कखनहुँ जोसमे आबि नारा सेहो लगबैत रहलहुँ । आशा जागल, आ लगले बिलाइओ गेल । किएक? आन्दोलनक तीनू तोड़मे लोक तँ बहुत देखल, जन एको गोट नहि । ईहो देखल जे दू वर्गक लोक एहिसँ दूरे रहलाह, सरकारक सेवक आ तथाकथित जनसेवक । हमहूँ सरकारक सेवक, तैओ चोरा-नुका देखैत आ किछु करैत सेहो रहलहुँ ।

विद्यापति-पर्व
उपर्युक्त उपलब्धि सभमे विद्यापति-पर्वक बड़ विशिष्ट भूमिका रहल । एकर शुभारम्भ के, कहिआ, कतए कएल से कहि नहि । हम ई पर्व सभसँ पहिने 1942क आसपास दरभंगामे देखल । मिथिला कॉलेज मे मैथिलीक प्रोफेसर जयदेव मिश्रक अध्यक्षतामे कातिक धवल त्रयोदशी दिन विद्यापतिक स्मृति दिवस मनाओल गेल । हम कविता पढ़ल -
आइ विद्यापतिक संस्मृति रूप धए नव पर्व आएल
आइ नोरक संग-संगहि एक नूतन गर्व आएल
ज्ञातव्य जे विद्यापतिक आयु अवसान कार्तिक शुक्ल त्रयोदशीकें भेल बात लोक तखन जनलक जखन 1940 ई॰ मे म॰ म॰ परमेश्वर झाक मिथिलातत्त्वविमर्शप्रकाशित भेल । सभसँ पहिने आ एकमात्र एहीमे ई कातिक धवल भेटल । एहि पर लगले मधुप जीक नजरि पड़ल होएतनि किएक तँ ई राघोपुर डेओढ़ीक हरिनन्दन सिंह मेमोरिअल ट्रस्टक निधिसँ प्रकाशित भेल जतए मधुपजी सतत आदर पबैत रहलाह । चेतना समिति एहि पर्वकें आकर्षक बनाए देलक जे ई घरसँ बाहर धरि पसरैत मैथिली आ मैथिल समाज पर धाख जमबैत गेल ।

साहित्य अकादेमी मे
फेर आउ चेतना समिति दिस । भाषा आ साहित्यक विकास हेतु बनल साहित्य अकादेमीमे ओएह भाषा लेल गेल जे संविधानक आठम अनुसूचीमे परिगणित भेल । आन भाषा सभक पहिल लक्ष्य भेल एहिमे प्रवेश । एहि हेतु चेतना समिति निर्णय कएलक जे अकोदमीक सदस्य लोकनिओकें मैथिलीसँ परिचित करएबाक हेतु एक पुस्तिका लिखल जाए । भार हमरा भेटल । झटपट दू पुस्तिका तैयार भेल- ‘Maithili : What it is and What it claims’ तथा ‘मैथिलीक समस्या’ । एहि काल मे मणिपुरी, नेपाली, डोगरी, कोंकणी आ राजस्थानी ईहो पाँच भाषा मैथिलीकें संग देलक । जेना-तेना छबो सफल भेल ।
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आठम अनुसूची मे
उक्त छबो भाषाक अगिला लक्ष्य भेल संविधानक आठम अनुसूचीमे प्रवेश । अप्रासंगिक होइतहुँ एतए स्पष्ट कए दी जे ई आठम अनुसूची की थिक । संविधान-सभामे निर्णय भेल जे सरकारक राजकाजक भाषा हिन्दी हो आ तकर स्वरूपक निर्धारण भारतक प्रमुख भाषा सभक प्रतिनिधि लोकनि करथि । कोन-कोन भाषा प्रमुख तकर तालिका थिक आठम अनुसूची । पछाति संघ लोकसेवा आयोग निर्णय कएलक जे प्रतियोगिता परीक्षामे केवल आठम अनुसूचीक भाषा रहत । फलतः कोनहु भाषाक हेतु एहि अनुसूचीमे प्रवेश जीवन-मरणक प्रश्न भए गेल ।

विचार-गोष्ठी
एहि स्थितिमे चेतना समिति 1989 ई॰ मे निर्णय कएलक जे अकादेमी धरि पहुँचल उपर्युक्त छबो भाषाक प्रतिनिधि लोकनि एकत्र भए एहि प्रसंग विचार-विमर्श करथि । हम एकर संयोजक बनाओल गेलहुँ । कोनो तेहन निष्कर्ष नहि बहराएल । समस्याक विभिन्न पार्श्व पर आलेख पढ़ल गेल । आलेख सहित समस्त कार्यविवरण हम भाषा आ समाज नामसँ 1989 ई॰ मे सम्पादित कएल जे 14 वर्षक बाद 2003 मे प्रकाशित भेल । ई विलम्ब सूचित करैत अछि जे एहि बीच चेतना समिति अपन मूल उद्देश्य सँ कतेक दूर होइत गेल । एहि बीच नेपाली, मणिपुरी आ कोंकणी अपन जनबल आ पराक्रमसँ 1993 मे आठम अनुसूचीमे स्थान पाबि गेल । चेतना समिति ईंटेर उपर ईंट जोड़ैत नाच-गान आ भोज-भातक संग सलौनी पाबनि करैत रहल ।
एक दिन सब को दाता राम जपैत अचानक एक नेता मैथिलीकें कलबल उठाए भारतक प्रमुख भाषा सभक पांक्तिमे बैसाए देलनि । हमरा जनैत एहि नेताजीक योगदान ओहने छल जेहन गोवर्धन पर्वत उठएबामे भगवान श्रीकृष्णक । उठओलक सभ गोपगण मिलिकें, गिरिधर गोपाल भेलाह एकसरे द्वारकाधीश ।
आब एहि गोपगणक भूमिका देखल जाए । चेतना-समितिसँ चलल विद्यापति-पर्व गामसँ महानगर धरि पसरैत गोष्ठीसँ महा-सम्मेलन आ महान-उत्सव होइत गेल । से देखि-देखि घर आ बाहरक सभ वर्गक असंख्य लोक मैथिलीक आ मैथिल समाजक जागरूकतासँ प्रभावित होइत गेल । सांसदो लोकनिकें एकर भान होइत गेलनि । हस्ताक्षर अभियान द्वारा बोराक बोरा माङपत्र संसद पहुँचैत रहल । एही सभक सम्मिलित सुपरिणाम थिक आठम अनुसूचीमे मैथिलीक प्रवेश । एतए यात्री जीक एक आखर मन पड़ैत अछि – किदन कहाँदन भेल, विआह भगेल ।

कलकत्ता विश्वविद्यालय मे
आब शिक्षा दिस चलू । एहिमे मैथिलीक प्रवेश सभसँ पहिने 1915 ई॰ मे कलकत्ता विश्वविद्यालयमे भेल । एतए एक कहबी मन पड़ैछ-जकरा माए नै झुलाबै तकरा मौसी झुलाबै । कहल जाइछ जे धन्य आशुतोष बाबू जे मैथिली 1917 ई॰ मे एकहि संग मैट्रिकसँ एम॰ए॰ धरि पहुँचि गेल । विवाद चलैत रहल जे मैथिलीकें आशुतोष बाबू लगके पहुँचाओल ।
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संयोगवश कलकत्ता विश्वविद्यालयक पोस्ट ग्रेजुएट कौन्सिलक भूतपूर्व सदस्य पंडित श्री ब्रजमोहन ठाकुर, एम॰ए॰बी॰एल॰ केर हाथक लिखल किछु पन्ना उपलब्ध भेल । चेतना-समिति तकरा हमरासँ सम्पादित कराए विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेशनामक एक पुस्तिकामे प्रकाशित कएलक । एहिसँ स्पष्ट भए गेल जे प्रवेश आशुतोष बाबूक कृपासँ नहि, मैथिल श्रीमन्त आ विद्यावन्त महानुभाव लोकनिक मातृभाषानुरागसँ भेल । कलकत्ता विश्वविद्यालय मैथलीक मदमे एको कौड़ी खर्च नहि कएलक । आनक देल टाका सधितहि मैथिलीक पढ़ाइ बन्द होअए लागल तँ ज्योतिर्विद बबुआजी मिश्र 1942 धरि निःशुल्क मैथिली पढ़बैत रहलाह ।

हिन्दू विश्वविद्यालय मे
पछाति 1933 ई॰ मे कांजीनाथ झा किरणक सत्प्रयास आ महामना मदनमोहन मालवीयजीक सद्विवेक सँ बनारस मैथिली हिन्दू विश्वविद्यालयमे सेहो प्रविष्ट भेल । परन्तु मन पड़ैछ बर बुड़िबक तँ जैतुक के लेत । सभ सुविधा उपलब्ध रहितहुँ छात्रक कतहु पता नहि । अपन मूड़ अपनहि हम चाँछल दोख देब गए काही ।

पटना विश्वविद्यालय मे
एतए मैथिलीक प्रवेश कोना भेल से चेतना समितिसँ प्रकशित विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेश केर द्वितीय अध्यायमे देखल जाए । ई अध्याय हम डॉ. सुधाकर झासँ डिक्टेशन लए-लएकें लिखल । एतए मैथिलीक प्रवेश नीचाँसँ उपर दिस कच्छप गतिएँ प्रबल विरोधक अछैत होइत गेल । एकर श्रेय मिथिलाक माटिकें छैक जाहिमे केवल विद्याक खेती होइत रहल आ मुहगर मैथिल विद्वान सभ शिक्षाक क्षेत्रमे अबैत गेलाह । पूर्णाहूति देलनि दरभंगा-नरेश ओहिना जेना कलकत्ता विश्वविद्यालयमे पुरैनिया-नरेश ।

प्राथमिक शिक्षा मे
          मन पड़ैत छथि मित्रवर डॉ. जयकान्त मिश्र जे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो ताहि हेतु चेतना समितिकें संग कए सुप्रीम कोर्ट धरि लड़ैत अन्तिम निर्णय मैथिलीक पक्षमे प्राप्त कएल । बिहार सरकार तकरो अवहेलना करैत रहल । मिथिलाक केओ सपूत अवमाननाक केस नहि कएल । हँ, सुप्रीम कोर्टक निर्णय पर उत्सव अवश्य मनाओल गेल ।
एक समय मैथिली प्राथमिक आ माध्यमिक दुनू शिक्षाक माध्यम घोषित भेल । सभ पाठ्यपुस्तक प्रकाशित भेल । केओ किननिहार नहि । एहि दुखद स्थिति पर पाठ्यपुस्तक निगमक एक अधिकारी हमरा समक्ष मित्रवर जयकान्त मिश्र पर अशोभन कटाक्ष कएल । प्रतिक्रियामे ओ तुरन्त दू मोन पोथी कीनि हमरा संग कए मिथिला चललाह । सकुरीमे टमटम पर लादि दुनू जन किरणजीक सोतिपुरा दिस चललहुँ । बाटमे एकटा कुकुरक बच्चा टमटम तर पिचाए गेल कि पाँच लठिधर बाट छेकि पाँच सय हरजाना ठोकि देलक । हम मैथिलीक नाम पर माफी मङलहुँ तँ मुहतोड़ उत्तर भेटल, हम मैथिली-तैथिली नहि जानी । जेना-तेना आगु बढ़लहुँ । भरि दिन झुझुरकोना खेलाए जहिना जतबे लदने गेलहुँ तहिना ततबे लदने साँझ खन सकुरी घुरि अएलहुँ । मैट्रिक परीक्षामे मैथिली प्रश्नपत्रो छपल । परन्तु छात्र एको
(पृष्ठ-89)
- नहि । ककरा लेल एतेक बेहाल भेलहुँ, हम पुछलिअनि तँ जयकान्त बाबू कनेक गम्भीर भए कहलनि, धैर्य धरू । हुनक ई धैर्य अंतिम श्वास धरि अटल रहल । जे हाल भेल पाठ्यपुस्तक निगमक सैह हाल भेल हमरो चारि पोथीक । एक समय देशमे त्रिभाषा फरमूला चलल । बिहार सरकारक निर्णय भेल जे प्राथमिक शिक्षा मे निजी प्रकाशकक मैथिली पुस्तक लए तत्काल काज चलाओल जाए । तुरन्त पटनाक एक प्रतिष्ठित प्रकाशक भारती भवन हमरासँ तीन पुस्तक लिखओलक- अपन लोक, अपन पाठशाला आ अपन समाज । मैथिली जगत एही तीनू पुस्तकमे पहिल बेर आ प्रायः अन्तिम बेर मोटगर आर्ट पेपर पर बहुरंगी चित्रसँ भरल ऑफसेट प्रिंट देखलक । हम टाका गनबाक सपना देखए लगलहुँ । किछुए दिनमे सरकार स्पष्ट कए देलक जे मैथिली संविधानक आठम अनुसूचीमे नहि अछि तें तीनमे एकर गणना नहि । प्रकाशक, लेखक आ मैथिली-प्रेमी तीनूक सपना समाप्त । ओहि तीनू पोथीकें तँ कबाड़खानामे शरण भेटलैक, मैथिलीक भेटलो शरण छिनाए गेलैक ।

मिथिला राज्य
मैथिली महासभासँ सँ जागल चेतना तीन लक्ष्य लए चलल- पहिल मिथिला राज्य, दोसर मैथिलीक मान्यता आ तेसर मैथिलीक विकास । मिथिला राज्य माङए चललाह मधेपुरक बाबू जानकी नन्दन सिंह तँ पहिल देशद्रोही घोषित भेलाह । दोसर अपराधी भेलाह डॉ. लक्ष्मण झा जे जनताक अदालतमे दंडित आ लज्जित भए संत भए गेलाह । तैओ किछु उन्मादी मैथिल लोकनि राजनीतिक रणमे उतरैत आ चित्ते खसैत रहलाह । जे कहिओ देह मे माटि नहि लगओलनि से जँ गामक अखाढ़ा पर उतरथि तँ इएह हाल हो । हम कातहिसँ देखि-देखि हँसैत रहलहुँ । मैथिलीकें जूति थोड़, मनोरथ बड़ गोट । राज्यक माङ तँ उठल, मुदा नागालैण्ड आ गोरखालैण्ड जकाँ कोनहु विषयमे स्वायत्तताक माङ प्रायः कहिओ नहि उठल ।

उपसंहार
दीर्घ जीवनमे बहुत किछु देखल । सभ कातहिसँ । मन पड़ैत अछि अपने लिखल एक पाँती-
बाट-घाट मे नमस्कार कए कृपया हमरा लजाउ नहि
हम चुप्पे ससरए चाहै छी कृपया हमरा बजाउ नहि
हमरा ई संकोची स्वभाव एकान्तसेवी बनाए देलक तैओ कनिष्ठ-वरिष्ठ बहुत विद्वान आ साहित्यकार के लगसँ चीन्हल । बहुतोक संस्मरण यत्र-तत्र लिखल । केवल दू जन बेर-बेर मन पड़ैत रहलाह तैओ संस्मरण नहि कए सकलहुँ । अस्तु, आइ जतबे-ततबे स्मरण कए ओहि त्रुटिक पूर्ति कए रहल छी  । पहिल थिकाह रामकृष्ण झा किसुनआ दोसर थिकाह राजकमल चैधरी ।

रामकृष्ण झा किसुन
मिथिला मिहिर 1965क आसपास चरम उत्कर्ष पर रहए । हम अधिक काल शेखरजीक आवास पर जाइ । ओतहि एक दिन संयोगवश रामकृष्ण झा किसुनसँ पहिल भेंट भेल ।
(पृष्ठ-90)
दुनूक जन्म एक्के वर्ष 1923 ई॰ । हमर जन्मतिथि 10 अक्टूबर, हुनक 1 जनवरी । दुनूक पहिल पाठ लघुकौमुदी आ अमरकोष । बगए-बानि आ पहिरन (खादीक पएजामा-कुरता) सेहो समान । देहक रंगमे ओ राम, हम गोविन्द । गप एहने हल्लुक बात सभसँ आरम्भ भए मैथिलीक आ मिहिरक दशा-दिशा पर चलैत रहल । हम कोसीक पछबारि पार, ओ पुबारि पार । ओ कोसी टपि कहिओ-काल पटना आबथि तँ साहित्यकार सभक बीच तेना घेराए जाथि जे हमरा दर्शनो दुर्लभ । भेंट नहि होएबाक एक आओर कारण छल । हम 1965 सँ 1977 धरि सरकारी काजमे तेना पेराइत रहलहुँ जे आन किछु नहि सूझए । जखन एहि सँ मुक्त भए मैथिली अकादमी अएलहुँ ता ओ दर्शनीयसँ स्मरणीय भए गेल छलाह । एतए प्रकाशनक प्रभारी भेलहुँ आ पहिल काज भेटल किसुन रचनावलीक प्रकाशन । एक पंथ दू काज, कर्तव्यक पालन आ किसुन साहित्यक पारायण । संयोजक भेलाह मोहन भारद्वाज आ सामग्री बटोरलनि किसुन जीक आत्मा वै जायते पुत्रः आयुष्मान केदार कानन । सम्पादन कएल प्रो॰ मायानन्द मिश्र । हमर योगदान भेल केवल प्रूफ देखब जाहिमे जस कम अजस बेसी भेटैत रहल । एही क्रममे पहिल बेर जानल जे मैथिली कविताक जराजीर्ण धाराकें नव बाट धरओनिहार भगीरथ इएह थिकाह । सीताराम झा, यात्रीजी, किसुनजी आ राजकमलजी ई तीनू मानू मैथिली तारसप्तकक तीन प्रमुख स्वर भेलाह ।

राजकमल चैधरी
एतएसँ चलू राजभाषा-विभाग । एहि सरकारी दफ्तरक उसठ काज आ उदास वातावरणमे किछु दिन रंग अनलनि राजकमल चैधरी । ओ बौआइत-ढहनाइत पटना पहुँचलाह आ सचिवालयमे असिस्टेंट भेलाह । अधिक समय राजभाषा विभागमे हमरे लग बिताबथि । हुनक इसकुलिआ भजार आ हमर सहकर्मी सुशील झा सेहो पहुँचि जाथि । काव्य-शास्त्रा-विनोद तीनू एक संग । एक कवि, दोसर पंडित, तेसर विनोदी । एही क्रममे हम उदीयमान राजकमलकें चीन्हल आ ओ नूतन पंडित गोविन्द झाकें । एक दिन हमरा मुँहसँ बहराएल, अहाँक गुरु रामकृष्ण झा किसुन’..., कि ओ मुखर भए उठलाह, गलत बूझल अहाँ । हुनका तँ चिन्हलिअनि, राजकमलकें नहि चिन्हलिअनि । एतए ई रमन-चमन किछुए दिन चलल । ओ कलकत्ताकें गहलनि, हम पटनामे खुटेसल रहलहुँ । कलकत्ता हुनका खूब धारलक । ओ क्रमशः आवारासँ मसीहा भए गेलाह । किछु दिनक बाद हुनक पत्र आएल- कवितासंग्रह स्वरगन्धा छपि रहल अछि, अहाँ भूमिका लिखि दिअ । राजभाषा विभागमे गप करैत हुनका हमरामे किछु आधुनिकताक बोध लक्षित भेलनि, तें ई अनुरोध । हमरा साहस नहि भेल । लिखि देलिअनि, हमरा आधुनिक कविता बुझबामे नहि अबैत अछि, यात्री जीसँ लिखाउ । चट उत्तर आएल, तखन हम अपनहि लिखब । हुनकासँ हमरा एतबे सम्पर्क । इएह बेर-बेर मन पड़ैत रहैत अछि ।

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साभार संदर्भ

भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून, 2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल

[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। गोविन्द बाबूक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]

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