महेन्द्र जीक रचना- ‘एखन सहरसा सँ’ केँ बहुत महत्वक संस्मरणात्मक आलेखक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि । ओ सहरसा मे बैसि के सुपौलके मोन पाड़ि रहल छथि ,आ एहि बहाने एकर भूगोल, इतिहास, दशा आ संस्कृतिक उल्लेखे टा नहि समीक्षो क’ रहल छथि । ऐतिहासिक रूपसँ महत्वक हकदार होइतो सुपौल उपेक्षित आ अल्पज्ञात जिला रहल अछि । एहि जिलाक सांस्कृतिक विशेषता, विवशता, अभाव आ इतिहासक कतेको पहलू सँ अवगत होइबामे ई आलेख नीक मदद क’ सकैत अछि । एहि आलेखमे महेन्द्र जीक नेनपनसँ ल’ के एखन धरिक अवलोकन आ विश्लेषण आयल छै । एहि आलेख मे सुपौल जिला मुख्यालये टा नहि एहि जिलाक किछु सुदूर गाम-ठाम आ मुख्यतः जिला मुख्यालयक दक्षिण बसल गाम सबहक नीक परिचयात्मक उल्लेख भेल छै । एहि मे आर कतेको एकदम नवीन जानकारी भेट सकैये – जेना, सुपौल क विलियम्स हाइस्कूल : सहरसा, मधेपुरा आ सुपौल तीनू जिलाक पहिल हाइस्कूल छलहि । वा, सुपौल मुख्यालयसँ किछुए दूर दक्षिण स्थित कर्णपुर गाम मे अंग्रेज राजक दौरान नून बनाके सत्याग्रही लोकनि कानून तोड़ने छलाह आ अपन देह पर लाठी झेलने छलाह । वा, ई जे सहरसा फारविसगंज रेलखंड पर सहरसा-सुपौलक मध्य अवस्थित गढ़ बरूआरी स्टेशनक नाम कहियो परसरमा स्टेशन छलहि ।एहि आलेखकेँ पढ़ैत बुझाइत अछि, महेन्द्र जीकेँ सुपौल जिलाक अंतःलोक पर बहुत गहींर पकड़ छन्हि । ‘भारती मंडन’क अंक-13 (नव क्रमांक-1) मे प्रकाशित भेल एहि आलेखक सहज भाषा आ रोचक शैलीतँ बहुत बेसी प्रभावशाली छहिये ।
एखन सहरसा सँ
महेन्द्र
[पृष्ठ-127]
चारिम-पाँचम
दशकमे भागलपुर जिलासँ फराक भेल एकटा स्वतंत्र जिला बनल-सहरसा । पहिने भागलपुरक ई
उप-जिला,
जकर थाना बनगाम रहै । बहुत पछाति सहरसाकें थाना आ सब-डिवीजन भेटलैक ।
माया बाबू कहैत रहथिन- ‘सहरसाक जन्म उनटे भेलै-ए । एहि जिला कें
पुरनका दू टा सब-डिवीजन छलै- सुपौल आ मधेपुरा । सहरसा एही दुनू सब-डिवीजन पर
निर्भर छल । ने अपन थाना आ ने अपन सब-डिवीजन...।
सहरसा
कें तहिया अंगरेजक बनाओल हाईलेट स्कूल छलै । यैह स्कूल कालान्तर मे मनोहर हाई
स्कूल नामे परिचालित भेलै । बिहार सरकार पछाति एहि संस्थाकें राजकीय नहि
राजकीयकृतक दर्जा देलकै । आब तँ एतय जिला गर्ल्स आ व्वायज स्कूल छै ।...मुदा एहिसँ
बहुत पूर्वहि सुपौलमे विलियम्स स्कूल भरिसक 1889 ई॰ मे आ’ एही
लग-पास मे जेनरल हाई स्कूल मधेपुरामे खुजलै । ई दुनू एहि परोपट्टाक शिक्षा ओ
विशिष्टताक दुआरें चर्चामे सबसँ ऊपर रहलै । कालान्तर मे ई दुनू संस्था अपन
कार्य-संस्कृतिक कारणे नेतरहाटक शिक्षा, अनुशासन आ रीजल्ट मे
समकक्ष भ’ गेल ।
उच्च
शिक्षामे सुपौल कने पछुआयल । ओहि सँ पूर्व 1952 ई॰ मे सहरसा कॉलेज, सहरसा
आ 1953 ई॰ मे टी॰ पी॰ कॉलेज, मधेपुराक स्थापना भ’ गेल छलै । ई दुनू कॉलेज भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रीमियर कॉलेज छल ।
सुपौलक
भारत सेवक समाज कॉलेज 1959 ई॰क आस-पास बनलै । मुदा एतुक्का सभसँ खास विशेषता रहलै
एकर निजत्व । सामाजिक स्नेहसँ सिक्त परिवारिक सम्बन्ध ।
[पृष्ठ-128]
डीहवारक धरती
हेबाक सभटा गुण सुपौलकें एखनहुँ उपलब्ध छैक । बाहरोसँ जे परिवार एतय आबि बसल, सभ
भाइ-भैयारीक सरोकारमे रमैत सुपौलक खासम-खास भ’ गेल मनसँ,
तनसँ आ धनसँ...।
31, जनवरी
2009 ई॰ मे हम पी॰ जी॰ सेन्टर, सहरसासँ रिटायर भेलहुँ । एत’
धरि एबामे सुपौलक योगदान हमरा लेल अविस्मरणीय अछि । जन्म स्थान
हेबाक गौरव आ व्यक्तित्वक निर्माणमे सुपौलक भूमिका जे हो, मुदा
हमरा एखनहुँ ओत’ दुलार-मलार मे कोनो घट्टी अनुभव नहि होइत
अछि । साँचे, जखन हम ओत’ जाइ छी तँ हमर
वार्द्धक्य बिलाक’ नेनाक रूप ग्रहण क’ लैत
अछि...।
सुपौल, नेपालक
सीमासँ सटल अपन निजत्वक रक्षा करैत रहल अछि । बाढ़ि सँ बिलटल होइतो ई अपन सामाजिक,
सांस्कृतिक ओ आर्थिक संस्कारकें जोगबैत रहल अछि । कहल जाइत अछि जे
1934 ई॰ सँ पहिने जखन रेलगाड़ीक परिचालन रहै- पूर्वांचल आ पश्चिमांचलक संबोधनो नहि
छलै । मैथिलक संबंध-सरोकार, कुटुम आ कुटमैती, आबर-जातक उदाहरण लोक आन क्षेत्रकें दैत काल अपन विशाल क्षेत्र पर गर्वक
अनुभव करैत छल । मुदा 1934-35क बाढ़ि आ भूकम्पक पछाति ई मधुर सरोकार...सब खतम...।
दरभंगा जिलाक नजरिमे हम पूबा-डूबा भ’ गेलहुँ । मण्डी व्यवस्थापनमे जे सुपौल आगाँ छल,
असुविधासँ भरल यातायातक दुआरें पिछड़’ लागल ।
एकहि सब-डिवीजनक निर्मली आ सुपौल धारक दुनू कात संवादहीनताक दंशसँ दुर्बल भ’
गेल । तथापि दुनू स्थान व्यावसायिक ओ सामाजिक संस्कारमे भीजल
असुविधहु मे जनचेतनाक हितचिंतक रहल । समयक चाँछ सँ आहत सुपौल आ निर्मली कहियो ‘इस्स’ नहि कयलक ।
मरखाहि
कोशीकें भोगैत शान्त-शीतल आ स्थिर स्थितप्रज्ञ सन सुपौल, चारूकात
बसल भिन्न-भिन्न गामक बीचमे अपन सहिष्णु छवि बनौने हँसैत-मलरैत अपन विकासगाथा,
अपनहि संस्कारक परिधिमे रहि कहैत रहल, बँटैत
रहल । गाम-घर मे दुलारसँ लोक सुपौल कें सिपौले कहि संबोधित करैत अछि एखनो...।
सुपौलक
चारूकातक गाम,
गामे टा नहि आचरणे सरोकारी संस्कृतिक प्रतीक अछि । तें सुपौल बिना
गाम आ गामक बिना सिपौल बुढ़ियाक फूसि...कनियो टा फराक नहि...एक दोसराक पूरक...।
ओहिना जेना अस्पताल चौक । सभ दिस जाइत सड़क आ ओम्हरहु सँ अबैत सड़क एतहि आबि
आत्ममिलन आ आत्ममंथन करैत अछि । समयक संग
ठाढ़ भेल एतुक्का सिरीशक गाछ अपन घेंच नमरा क’ सभ गामकें
समाचार दैत अछि आ गामक सभ गतिविधिक सुधि-बुधि लैत एक दोसराक दुख-सुखक साक्षी बनैत
अछि ।
अजुका
तारीखमे जँ सहरसा सँ सुपौलक यात्रा करबाक हो तँ अहाँ दू टा बाटक उपयोग क’ सकैत
छी । पहिल तँ रेलगाड़ी, जे एखनहुँ 29 कि॰ मी॰ डेढ़-दू घंटामे
सुपौल पहुँचबैछ । उत्तर बिहारक ई क्षेत्र जे पूबा-डूबा नामे संबोध्य अछि, तकर अधिकांश क्षेत्र रेलक विकासक नाम पर रेलमंत्री लोकनिक आश्वासन पर
संतोष करैत आयल अछि । भूकम्प आ बाढ़िसँ ध्वस्त स्वाधीनता पूर्व बनाओल ‘मीटरगेज’ एखनहुँ ओही अवस्थामे उपयोग कैल –
[पृष्ठ-129]
- जाइत अछि ।
यैह बाढ़ि आ भूकम्प सुपौल आ निर्मलीकें फराक क’ देलक । फारबिसगंजो सुपौलसँ
भीन भ’ गेल । ओ त’ आभारी रहबनि ललित
बाबूक जे अपना कार्यकालमे सुपौल आ फारबिसगंजकें जोड़लनि । मुदा कपार मे जे लिखा क’
आयल अछि तकरा के मेटा सकैत अछि । 2008 ई॰क बाढ़ि फेर एहि खण्डकें
चाटि गेल । जन-धनक नोकसानक संग-संग सौंसे कोशी आ पूर्णियाक रेल-रोड सम्पर्क
खण्ड-खण्ड भ’ गेल । देश एहि क्षेत्रक दुर्दशा पर द्रवित भ’
राष्ट्रीय आपदा घोषित क’ देलक । विश्वक
अधिकांश देश आ देशक अधिकांश राज्य आगाँ बढ़िक’ एहि क्षेत्रक
मुँह पोछलक । आब सुनै छी जे आठ बर्खक बाद कहाँदन सहरसा सँ पूर्णिया एकबेर फेर बड़ी
रेल लाइन सँ जुटत । रोड तँ किछु दिन पूर्व जुटि गेल छल । मुदा सुपौल...ओहिना...।
...ओना
सुपौल जेबाक लेल सुविधाजनक सड़के छैक । रेलसँ ओत’ पहुँचबामे जतेक समय
लगैछ ताहिसँ बेसी प्रतीक्षामे काट’ पड़ैत छै । ओतबा कालमे
सुपौल गेल जा सकैछ...अन्तर भाड़ाक छै...रेलसँ 10 टाका आ रोडसँ 40 टाका । मुदा बस
आनत धरि सुविधा सँ...ने हर-हर, ने खट-खट...। स्टैण्ड पर स्टार बस डिक लागल रहै छै । अहाँक मोन पर
अछि...सड़क आब खूब विश्वसनीय भ’ गेल छैक । सुपौल, सहरसा, मधेपुरा बिहारक प्रायः सभ पैघ शहरसँ जुटि गेल
अछि । सुपौल कें एकटा लाभ भेटलैक एन॰ एच॰ 57क जे आसामक सिलचर, गुजरातक पोरबन्दरसँ जुटि गेल । ई एहि क्षेत्रक ‘लाइफ
लाइन’ बनि गेल छैक । एतबे नहि कोशी महासेतु तँ दरभंगा आ
सुपौलकें मुट्ठीमे अँटा नेने अछि । भपटियाहीसँ दस कि॰ मी॰ पश्चिम ई महासेतु कोशी
पर बनाओल अत्यंत दर्शनीय ओ आकर्षक सेतु अछि...।
मुदा
दुखद कथा ई अछि जे साहित्यकार मायानन्द मिश्रक गाम बनैनियाँ कोशीमे विलीन भ’ गेल ।
एही गाम बाटे जाइत रेलक रहड़िया स्टेशनक सिरखार आब बहुत गिद्ध दृष्टि देला पर कतहु
झलकि सकैत अछि । नजरि जँ निर्बल हैत तँ नहियो देखि सकै छी । सूचना इहो अछि जे ओतुक्का
हाई स्कूल भपटियाहीमे चलाओल जाइछ । बर्ख भरि पर फेरल जाइत अपना गामक बीटसँ काटल
हनुमानी ‘धूजा’क बेगरता आब बनैनियाँकें
नहि पड़ैछ । नारदी, पराती, नचारी-महेशवाणी
आदि पारंपरिक गीत कोशी छीनि लेलक । आब तँ धीरे-धीरे बनैनियाँक सभ अच्छर बिला रहल
अछि...अख्यासहुसँ उतरि रहल अछि...। मुदा सर्वेक पुरनका नक्शा मे बनैनियाँ एखनो
जीबैत अछि ।
माया
बाबू सदिखन चर्च करैत रहथि जे बनैनियाँमे तीन टा ‘नन्द’ योगानन्द, गुणानन्द आ मायानन्द । योगानन्द अपन कोनो
कारणे नाम बदलि ‘सीताराम’ रखलनि आ
इन्कम टैक्स विभागक सर्वोच्च पद सँ रिटायर भेलाह । गुणानन्द, सुपौल लोकसभाक प्रतिनिधित्व कयलनि आ ‘हम’ गामसँ मातृक, फेर दरभंगा, तखन
पटना आ निर्णायक रूपमे सहरसा कॉलेजक मैथिली विभागमे व्याख्याता भेलहुँ आ सहरसे
सुपौलक भ’ क’ रहि गेलहुँ । अर्थात दुनू
नन्दक अपेक्षा हम. ..जकर सीमा सहरसे धरि सीमित रहल...एकदम कमजोर कड़ी...।’
[पृष्ठ-130]
तखन
हमरा हँसी लगैत छल । मुदा हम ई जनैत चुप भ’ जाइत छलहुँ जे अपना सँ बेसी
अपन अग्रज मित्रकें महिमामंडित करब हुनक आदति छलनि । निर्विकार-निश्छल अभिव्यक्ति ।
अपना सँ छोटक रचना पढ़लाक उपरान्त सभकें कहथि- तोहर रचना पढ़लिय’...ईर्ष्या भेल...हम एतेक नीक नै लीखि सकै छी । ...ई त’ हुनक व्यक्तित्वक महानता छलनि...तें मायाबाबूकें बनैनियाँ मे नहि हुनक रचनामे ताकू...चैपालमे अभिव्यक्त
घूटर भाइक स्वरसँ चीन्हू आ चीन्हू हुनक क्लासरूमक व्याख्यान आ मंचक मधुर
उद्घोषणासँ...बनैनियाँ तँ आइ नव-नव गामक रूपमे विकास क’ रहल
अछि से विद्या आ वैभव, दूनू दृष्टियें ।
परसरमासँ
दक्षिण बहैत खरिदाहा पुलक उतरबरिया पायासँ सुपौल जिला शुरु होइत अछि । ओत’ सँ हरियरी देखार होम’ लगैछ । सड़कक दुनू कात आम-लुच्चीक बगान, बाँसक बीट आ
बहुत रास गाछ सभ आँखिकें संतोष दैत छैक ।
‘परसरमा’ चर्चित गाम अछि । यैह गाम बाबा लक्ष्मीनाथ
गोसाईंक जन्मस्थली थिकनि । ओतय हुनक नेनपन आ किशोरावस्थाक चांचल्य छनि । गोचारण आ
पठन-पाठनक संग संगी सभक बीच हँसी-चैल छनि...मुदा बाबाजीक परसरमा खाली जन्मस्थलीए
टा रहलनि...बाकी भक्त आ आश्रमक संख्या आने ठाम बेसी रहलनि...एहि मे बनगाम सभसँ ऊपर
अछि...।
एखन
परसरमामे गोसाईं जीक पुस्तैनी भू-खण्ड पर बनाओल हुनक मंडप आ बैसिकीक लेल दलान अछि
जाहिमे पुजेगरीक संग किछु भजनी भजन गाबि हुनक स्मरण करैत छनि ।
हिनक
रचित भजन सधुक्करी मैथिली भाखामे रचित जीवन ओ जगतक मानवीय संवेदनाक प्रति भक्ति ओ
आध्यात्मिक संदेश अछि जे मनुष्यकें अपनासँ साक्षात्कार करबैत अछि । मैथिली संत साहित्यक अन्तर्गत हिनक अवदान
विस्तारसँ रेखांकित भेल अछि । हिनक भजनावली मिथिला ओ आनहु ठाम अत्यन्त आदरक संग
राखल ओ पढ़ल जाइत अछि । गोसाईंजी जीवनक कथा आ मनुष्यकें जीबाक कलाक ज्ञान करबैत
अहंकारसँ दूर रहि लोक सेवाक पाठ पढ़ौने छथि । ओ नरकें भक्तिक मार्ग पर चलैत अपन
रचनाकें सार्वजनीन कयने छथि जे मानव-सदुपयोगक संदेशसँ भरल अछि...। मिथिलाक लोक
संगीतक भास पर आधारित हिनक भजन खूब गाओल जाइछ ।
...सहरसासँ
सुपौल धरि जाहि रेलक उपयोग अदौसँ करैत आयल अछि तकर तेसर स्टेशनक नाम ‘परसरमा’
थिकै । एहि ठामसँ ई गाम चारि वा पाँच कि॰ मी॰ पश्चिम स्थित छैक । भ’
सकैत अछि अंग्रेजी सरकार आध्यात्मिक साधक लक्ष्मीनाथक नाम पर ई नाम
रखने हो । ओना ई हमर व्यक्तिगत विचार थिक जकरा नहियो मानल जा सकैत अछि ।
परसरमाकें
रेलसँ बेसी सड़केक सुविधा छैक। स्टेशन जेबाक लेल परसौनी, बरैल
आ तखन बरुआरी अबैत छैक जत’ गाड़ीक ठहराव छैक । बरुआरियो दू टा
आ बीचमे धार...स्टेशन लग यैह सभ गाम छैक । ...तखन परसरमाक नाम किएक...? मोन मे बहुत रास प्रश्न उठल...प्रश्नो स्वाभाविके रहय...। बरुआरीमे
तत्कालीन जमींदार लाल साहेबक घर...
[पृष्ठ-131]
- अपने खूब
प्रतिभाशाली ओ प्रभावशाली अंगरेजी सरकारक पसिन्नक राजा आ क्षमतामे अशेष
व्यक्तित्व...।
हम
जखन एहि स्टेशनकें क्रॉस करैत रही तँ बेर-बेर ई प्रश्न हमर उत्तर ताकबाक लेल
प्रेरित करैत रहय । घूमि-फिरि क’ लाल साहेब सोझाँमे चमकि जाथि...हिनक अछैत ‘परसरमा’ नाम अंकित भ’ जायब...ई
रहस्य के खोलत...? एकरा तँ छीनब कहल जा सकैत अछि । गामक लोक ‘परसरमा’ नामक टिकट जखन कटबैत हैत तँ ओकर केहन मनोभाव
हेतैक से सद्यः अनुमानित छल...मानसिक आ मनोवैज्ञानिक रूपें ओ लोकनि निश्चित
प्रताड़ित अनुभव करैत रहल हैत से सोचब कठिन नहि छैक । की बितैत हेतै ग्राम्य देवता
आ गौंआकें...अपराध बोधकें मोन मरमोसि कोना एक ग्लास पानि पीबि शांत भ’ जाइत हैत...आदि-आदि प्रश्न हमरा एखनो अख्यासमे अबैत अछि...।
अख्यासल
तँ ईहो अछि जे बाढ़ि,
परसरमाकें सुपौलक सम्पर्कमे कहियो चैन सँ रह’ नहि
देलकै । 51-52 ई॰ मे वैद्यनाथधाम जेबाक लेल ट्रेन परसरमे मे पकड़ने रही । फेर
बख्तियारपुरसँ नाहे-नाह धमारा आ तकर बाद आगाँ बढ़ी...
दुर्दशा
छलै...। मुदा 52-53 ई॰ मे ई रेलपथ आपसमे जुड़ैल । एही पथसँ देशक प्रथम राष्ट्रपति
राजेन्द्र बाबू स्पेशल ट्रेनसँ श्रमदानसँ बनल विश्वक प्रथम कोशी बान्हक उद्घाटनक
लेल आयल रहथि सुपौल-बैरिया...। ओहू समयमे ट्रेन सुपौले धरि । ...हमरा इहो मोन पड़ैत
अछि जे भरिसक 58-59 ई॰ मे तत्कालीन रेलमंत्री, राम सुभग सिंह सुपौल सँ आगाँक
रेल विस्तारक लेल मालगोदाम परिसर मे आयोजित सभामे कोनो शिलान्यास कयने रहथि...ओकर
बाद की भेलैक से मोन नहि पड़ैत अछि...।
मुदा
गढ़-बरुआरी के निसाफक प्रतीक्षा छलै । कवि रघुनाथ मुखिया कहलनि जे ओ 1962 ई॰ धरिक
टिकट पर ‘परसरमा’ स्टेशन छपल देखने अछि । बरैलक डॉ॰ धीरेन्द्र
कहलनि जे ओ 1963 ई॰क आरंभहिमे आयोजनपूर्वक परसरमाक स्थान पर गढ़-बरुआरीक नामपट्ट
लगबाक साक्षी छथि ।
एहि
परिवर्त्तनक नेपथ्यकथा बहुत संवेदनशील अछि । हम जे अपना सर्वेक आधार पर बुझलियै
तकर निष्पत्ति छलै वर्चस्वक लड़ाइ आ यैह वर्चस्व दुनू गामकें तनावग्रस्त कयने रहय ।
भीतरक कथा जे रहल हो मुदा स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक झगड़ा मोछ-मोछक झगड़ा कहल जा सकैत
अछि । एहि तथ्यकें बरैलक तेरासी वर्षीय कवि ‘अमर’ सेहो
गछलनि...लाल साहेब मोकदमा कयलनि...भूप बाबू ओकील रहथि । गढ़-बरुआरीकें निसाफ भेटलै- से लालसाहेबक मुइलाक
बाद । बरुआरी जे गढ़ी छल से ‘गढ़’ भ’
गेल...हमरा जनैत ओहि कालखण्डमे कोनो रेलवे स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक
प्रायः ई पहिल घटना रहल हेतैक...।
मुदा
परिवर्त्तनक एहि दृश्यकें लाल साहेब नहि देखि सकलाह । बरुआरीक संग हुनका जे निसाफ
भेटलनि से हुनक आत्माकें निश्चिते जुड़ौने हेतनि । 25 दिसम्बर 1961 ई॰ कें हुनक
निधन सभकें अप्रत्याशित घटना लगलैक । निधन आ निधन सँ सम्बन्धित कतेको कथा-उपकथा
सुपौल स्टेशनसँ पूब बनाओल लाल साहेबक लाल कोठीसँ उड़लै जे -
[पृष्ठ-132]
- निर्णये
नहि क’ पौलक जे असल मे बात की भेलै । समाचार तँ समाचार थिकै प्रत्यक्ष वा
अप्रत्यक्ष पसरबे करतै...। मुदा सत्य वैह जे लाल साहेबक निधन भ’ गेलनि आ हुनक स्मृति मात्रहि आब शेष रहत...।
गोर
वर्ण, आकर्षक भरल-पूरल देह-यष्टि, कारी सूट आ कारीए
हैट...आमक फाड़ा सन पैघ-पैघ एक जोड़ी आँखि पर ब्लैक गॉगुल्स...। डेरासँ एही ड्रेसमे
बहराइत रहथि राजा साहेब । आगू-आगू दस मीटर पर मस्त चालिमे चलैत कारी भौर विदेशी
नस्लक भयभीत कर’वला, मुँहमे साहेबक
गोल्डेन मूठबला छड़ी लेने पोसा कुकूर आ सड़कक दुनू कात एहि मनोरम दृश्यकें देख’
लेल ठाढ़ आवाल-वृद्ध-वनिता 25 दिसम्बर 61क बाद कहियो नहि देखि
सकल...।
ई
दृश्य हमरा वृत्त-चित्र जकाँ ओहिना सोझाँमे पसरि जाइत अछि । तहिया चकला निर्मलीसँ
सतमा पास क’
विलियम्स स्कूलमे नाम लिखौने रही । ओही बर्ख बच्चा भैयाकें पशुपालन
विभागमे नोकरी भेटल रहनि । वीरपुरसँ ओ अपन काज आरंभ कयने रहथि । दरमाहा छलनि पचास
टका पचास पैसा । देहातक भिजिटमे किछु आर उपार्जन क’ लैत रहथि
। तकरे जोड़ि-जोड़ि एकटा सेकेण्ड हैण्ड साइकिल कीनने रहथि गाम अबरजात करबा लेल । ओ
सभ शनिकें आबथि आ सोमकें भोरहरियेमे विदा भ’ जाथि । भेलाहीमे
जे दुइ तीन टा साइकिलक चर्चा छलै ताहिमे इहो ‘एड’ भ’ गेलै ।
एहिसँ
पूर्व हम परसरमाक नरेसर बाबू, कर्णपुरक मुक्तिनाथ बाबू आ वकील ज्ञानदत्त
मिश्रकें नित्तह साइकिल हाँकैत देखने रहियनि । तहिया एकटा आरो साइकिल देखलियै- हुसुन
बाबूक...। लोक बजैत रहै जे हुसुन बाबूक ‘वाइ-साइकिल’ सनरेले थिकै मेड इन इण्डिया । जहिना अपने छिपगर तहिना साइकिल
खड़गर-नमगर...अपना कद काठीक हिसाबसँ ओ कसबौने रहथि ।
से
बच्चा भैयाक साइकिल देखि आ छूबि पहिल बेर अपार आनन्द भेल रहय । भोर-साँझ पोछब, तेल
देब हमरे ड्यूटी छल । भैया सोमकें जखन वीरपुर जेबाक लेल चलथि तँ हम झुनकू ठाकुरक
घर धरि दौड़ल जाइते रही आ जखन भैया आ साइकिल मवेशी अस्पताल लग अ’ढ़ भ’ जाइ त’ हमहूँ निरुत्साहित
घूमि आबी ।
ओना
हम चोरा-नुका क’
साइकिल सीखियो नेने रही।
हमर
पिताजीक निधन 17 दिसम्बर 61 कें भ’ गेलनि सुपौल अस्पतालमे इलाजक
क्रममे । ई निधन हमरा लेल बहुत पीड़ादायक छल । घूर तपैत काल बच्चा भैया हुनक
मृत्युक सूचना देने रहथि । तकर बाद जे होइ छै ओ मोन पाड़ि एखनो डेरा जाइ छी ।
कहाँदन बुच्चू बाबा आ नेपाल मरड़ जिज्ञासामे सान्त्वना देने रहथि । गामक लोक सभ एहि
दुखमे सहभागी भेल रहथि ।
कक्काकें
फरकी पर अस्पतालहि सँ आनल गेलनि आ बम्मा लग हुनक संस्कार भेल रहनि । कक्काकें तखन
आगिसँ एकोरत्ती डेराइत नहि देखने छलियनि । पेटक पीड़ाक छटपटाहटि ओहो अनुभव नहि
कयलनि...हमरा लागल छल डॉ. रामक दबाइ असरि क’ रहल छनि आब ।
[पृष्ठ-133]
समय
बीत’ लगलैक...।
चारिम
दिन बच्चा भैया,
एकटा अपरिचितक संग पाँच-सात गोटा मिलि गाछी गेलहुँ । अपरिचितक मादे
पुछला पर कहल गेल जे ‘ओ पूज्य (पात्र) रहथि । कक्काक सारा मे
एखनो आगि शेष रहय, मुदा कक्का नहि छलाह । पूज्यक कथनानुसार पूजा-पाठ भेलै आ तकर
बाद बच्चा भैया किछु-किछु बीछि नवका मटकुरीमे रखलनि आ कोनो साफ कपड़ा सँ मुँहकें
बान्हि घुरि अयलहुँ । घूरन भैया एहि कर्मकें अस्थि-संचय कहलनि...। ...दलान पर सभा
बैसल आ ओहीमे अगिला कार्यक्रमक योजना बनल । पढ़ुआ कक्का तकरा ‘अरसट्ठा’ कहलनि । निर्णयानुसार वृषोत्सर्ग श्राद्ध
सौंसे पाली ल’ क’...तदनुसार निर्धारित
योजनानुसार काजमे गति आब’ लगलैक। ई तारीख भरिसक 22 दिसम्बर
छलैक ।
ओहि
समयमे घरक सभसँ छोट नेना हमहीं रही आ काज लेबाक दुआरें हमरे बुधियार-होसियारक पदक
पहिरा देने रहथि से हम बुझियै, मुदा साइकिलक लोभ हमरा आर ऊर्जावान बना
दैत छल ।
भेलाहीसँ
पाँच-छओ किलोमीटर पूब बभनगामा पड़ैत छैक। ई दाम्मपत्य गाम थिकै- ‘वीणा-बभनगामा’...। आब अन्दौली सेहो फेंटम-फेंट भ’ गेलैक । बभनगामामे
तहिया बहिन, दीदीक सासुर आ पिताक मातृक रहनि । ओझाजी,
पीसा आ राजो कक्का दूधक व्यवस्था ओत्तहि करबाक भार नेने रहथि ।
संवादवारीक लेल हमहीं जाइत रही ।
बभनगामा
जेबाक दू टा बाट हम टेबने रही । कीर्त्तन भवनसँ सोझे पूब रेलवे लाइन पार करैत
पहिने वीणा,
तखन बभनगामा । दोसर बाट हमरा मोन पर छल...। बजार घुमबाक, स्टेशन देखबाक मोन होइत छल त’ ओही बाटे ।
26, दिसम्बरकें
गाममे घोल भेलै जे बरुआरीक लाल साहेब मरि गेला । गामक तहसीलदार रामजी मल्लिक एकर
पुष्टि कयलनि । हमर जिज्ञासा बढ़ल...बभनगामा जेबाक क्रममे साइकिल स्टेशनक बाट
धेलक...।
लाल
साहेबक कोठीक कैम्पसमे लोकक करमान मृत्युक सत्यताकें पुष्ट क’ देलक
। पूबरिया बरण्डाक पलंग पर दुनियाँ भरिक निन्नमे मातल लाल साहेबक सौम्य आ शान्त
देहयष्टि एखनो बहुत विलक्षण लागल रहय...सुनलियै, कहाँदन
रातिमे जे सुतला से सुतले रहि गेला ।
मुदा
परसरमा स्टेशनक नाम बदलबाक लेल जे ओ मोकदमा कयने रहथि, तकर
निसाफ सूतल नहि रहल आ अन्ततः 1963 ई॰ मे परसरमाक स्थान पर ‘गढ़-बरुआरी’क नामपट्ट लगबाक ऐतिहासिक फैसला भेलै...लाल साहेबकें एहि निर्णयसँ
निश्चिते शान्ति भेटल हेतनि...।
परसरमामे
पचमुहानक प्रमुखता अछि । आब त’ ओ जगह बहुत विकसित भ’ गेल छैक । एही प्वाइन्टसँ लोक पूब बरुआरी, जगतपुर,
एकमा-बभनगामा-वीणा-अन्दौली होइत सुपौल चल जाइत अछि । पच्छिम जाइत
सड़क बलहा, सोल्हनी, सीहे, बकौर आ बान्हक –
[पृष्ठ-134]
- भीतर चनैल
चल जाइत अछि । उत्तर सुपौल,
दच्छिन सहरसा आ बलहा सड़कक पाँजरे-पाँजर जाइत सड़क गाम चल जाइत अछि ।
सुपौल
दिस नमरैत सड़क मल्हनीक बाद कर्णपुरक तीनमुहान छुबैत अछि । ऐ तीनमुहान पर बहुत
पुरान एकटा इनार छै । आब त’
ओत’ एकटा भव्य मंदिरो बनि गेल छैक । इनार त’
एखनो चालू छै ।
ऐ
तीनमुहानसँ पच्छिम एकटा टोल छै ‘खरैल’ जे एहि
परोपट्टाक छलै आ परगन्ना छलै मल्हनी गोपाल । ‘गोपाल’ किए जुटलै से हमरा एखनो धरि नहि बूझल भेल अछि । भेलाहीक डाकघर खरैले
छै...।
कर्णपुर
तीनमुहान पर अवस्थित मंदिरक पाँजरे-पाँजर दक्षिण सड़क जे नवहट्टा कें छूबैत छै, कर्णपुर
एही पथक पहिल गाम थिकै । एकर शुरूहे मे सड़कक पच्छिम स्कूल, पूबमे
कतिका कुमरक मंदिर आ तकरा आगाँमे कृष्ण मंदिर जतय भोर-साँझ गौंआक गेट-टूगेदर होइत
रहै छै । एहि गामक कृष्णाष्टमीमे मधुरक नाम पुरुकिया (गुझिया) बनैत छै जे खूब
स्वादिष्ट सनेस बनैत छै । कर्णपुरक कृष्ण-पूजाक उत्साह एहि गामक संस्कृति थिकै ।
स्वाधीनता
संग्राममे बढ़ि-चढ़ि क’
भाग लेनिहार कर्णपुर विचारें-व्यवहारें आ संस्कारें अदौसँ उन्नत ओ
व्यवस्थित गाम मानल जाइत अछि । स्वनामधन्य लहटन चौधरी आ लाल बाबा अंग्रेजी सरकारसँ
मारि खेनिहार आन्दोलनीक पहिल लोक रहथि जे ‘भारत माताक जय’क नारा लगेबाक कारणे लाठीसँ ओधबाध कैल जाइत रहला...ई दुनू विभूति आइयो
आन्दोलनक प्रतीक मानल जाइत छथि । स्वतंत्र भारतमे चैधरी जी कतेको बेर विधानसभा आ
लोक सभाक प्रतिनिधित्व कयलनि । लाल बाबाक लाल वस्त्रक एक-एक सूत जा ओ जीलाह भारत
माताक असली प्रतिनिधि बनि जीलाह ।
कर्णपुरक
दच्छिन सीमान पर एक टिहुली अछि उन्नतोदर, गजपीठ ऊसर भूखण्ड...। यैह ओ
जगह थिक जतय अंग्रेजक निर्णयक विरुद्ध नोन बनाओल गेल छल । सत्याग्रहीकें पुलिसक
बर्बरता सह’ पड़ल छलै...।
एही
भू-खण्डक बीच बाटे एकटा एकपेड़िया बनल अछि पच्छिम दिस । एहि एकपेड़ियासँ
आवाल-वृद्ध-वनिताक मधुर स्वरमे बान्हल नचारी, महेशवाणी अनुगुंजित होइत बाबा
तिलहेश्वर नाथ महादेवक दरबार पहुँचैत अछि नितः । विशेष क’ क’
रवि कें...।
एकर
सटले दच्छिन अछि सुखपुर । विलियम्स हाइस्कूलक बाद निर्मित हाइस्कूल सुखपुरक
प्रतिष्ठा अछि । हमर बालसंगी दिलीपक गाम आ बच्चा भैयाक सासुर । आम आर लुच्चीक
औद्योगिक नगरी । ‘सुखपुर है सुखधाम, जहाँ बिराजे लुच्ची आम’ । एतुक्का दुर्गापूजा आ दुर्गाक भसाओन अत्यंत आकर्षक आ औत्सुक्यसँ भरल
होइत अछि ।
मुदा
कर्णपुर शीर्ष गाम होइतहुँ आइधरि हाइ स्कूलक स्थापनामे पछुआयले रहल ।
...हँ, त’
हम तीनमुहान पर ठाम अपन गाम भेलाहीकें अखियासै छी...। ओत’ सड़कक स्वरूप तीरे सन छै । नोक भेलाही, सुपौलकें
छूबैत छैक । सुपौलसँ पहिने हमर पोस्टल एड्रेस अछि- मौजा-खरैल, टोला-भेलाही...हमर ई टोल, टोल नहि रहल- गाम भ’
गेल । टोलाक ‘कन्सेप्ट’ आब
बदलि गेलै...। टोलक व्यवहार आब नवतूरक लोक नहि –
[पृष्ठ-135]
- करैए...।
बुझलो नहि छै...गाम-घरमे ‘टोल’ आब दिशासूचक छैक...पूबरिया, पछबरिया, उतरबरिया आ दछिनबरिया । अर्थात गामक विभाजन
टोलमे आ शहरक विभाजन मोहल्लामे...छोट शहर वार्ड आ पैघ शहर सेक्टरमे बँटा गेल अछि ।
आजुक तिथिमे हमर गाम सुपौलमे अन्तर्लीन भ’ गेल अछि आ एकटा
स्वतंत्र वार्ड-19 बनल अछि ।
टोलसँ
गाम, गामसँ वार्ड बनल ‘भेलाही’ अपन
सीमामे अपनाकें विकासशील बनेबामे प्रयत्नशील अछि । एहि क्रियामे सुपौल पर निर्भरता
बढ़ि गेल छैक जे स्वाभाविको अछि ।
मेन
रोड एहि गामकें बीचो-बीच चीड़ैत सुपौल छूबैत अछि । ई हम अपना जहियासँ ज्ञान-प्राण
भेल, तहियेसँ देखैत आयल छी । सड़कक दुनू कात बसल एहि गामक लम्बाइ बेसी आ चैड़ाइ
कम अछि...। बाँस-काठ आ खढ़क कमी नहि रहबाक कारणे प्रायः सभ टोलक घर खढ़ेक बनैत रहलै ।
खाली उतरबरिया सीमा पर बुद्धू ठाकुरक घर पक्काक छलै...। गामक निम्न मध्यवित्त आ
मध्यवित्त बहुल परिवार अपन-अपन हिस्साक श्रम पर भरोस राखि निर्वाह करैत छल । कदन्न
आ सुअन्न एत’ सभ दिन उपजैत रहल...हर-बड़द पर निर्भर ई गाम
पशुक सेवामे सदैव अग्रणी रहल...गौपालन आ महिसपालन एत’ आमदनीक
माध्यम रहलै...। बकरी-छकरी पोसब सेहो सौखसँ बेसी आमदनीकें बढ़बैत छल । यैह कारण छल
जे बूढ़ा सभक लगाओल सड़कक कातक गाछ कहियो छिपगर नहि भ’ सकलै...
हमरा
गाममे अदौसँ बाढ़ि अबैत रहलै...माटि परिवर्त्तनसँ उपजा नीके-ना होइत रहलै...।
श्रमशील लोक अपना नीने सूतय आ अपना नीने उठै...। जे एहिसँ अलग किसिमक लोक छल ओकर
लेल रिनं कृत्वा घृतं पीबैत’ सिद्धान्तक आश्रयी छल । पारंपरिक खेतीक
संग-संग ठाकुरजीक ट्रैक्टर-थ्रेसर बेसी काज करै...हमरा गाममे सुकरातीक पखेब आ
सीरपंचमीमे हर ठाढ़ हैब एखनो आकर्षक लगैत छैक...।
गामक
पछबरिया टोलमे बसल ब्राह्मण अपन धर्मक रक्षा करैत पुबरिया आ दछिनबरिया टोल पर
निर्भर रहल...अपन शालीनता आ सद्व्यवहार हिनका लोकनिकें कहियो उठल्लू नहि होम’ देलकनि...मर्यादा
ग्राम्य संस्कृतिक अनुरूप एखनो अछि ।
...हमर
जन्म 6 जनवरी 1947 ई॰क माघ-फागुनमे भेल । इहो तखन बुझलियै जखन हाइर सेकेण्ड्री
उतीर्णक सर्टिफिकेट पर अपन जन्मतिथि अंकित देखलियै।
तहिया
गार्जियन अपन जेठ संतान मात्रक टिप्पणि बनबैत रहथि । शेष संतानक जन्मकुण्डली गामक
मास्टर साहेबक हाथमे रहनि । बही पर लिखल तिथि जन्म भरिक लेल स्थायी...। हम अपना
माता-पिताक चारिम पुत्र आ सभ भाइ-बहिनमे छठम स्थान प्राप्त कयने रही...।
हम
सभ भाइ-बहिन मिला क’
माता-पिताक सात संतान..। दू बहिन आ पाँच भाइ । एहिमे हमरासँ पैघ तीन
अग्रज आ दुइ अग्रजा...। एहन स्थितिमे पैघ भ्राता कें छोड़ि शेष हमरा लोकनिकें बिना
टिप्पणिक अपन-अपन जीवनपथ पर चल’ पड़ल । ज्ञात-अज्ञातक झंझटिसँ
एकदम मुक्त...भगवती जे करथि....
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साभार संदर्भ
भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून,
2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल
[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। महेन्द्र जीक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]
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