Monday, May 29, 2017

एखन सहरसा सँ : महेन्द्र

महेन्द्र जीक रचना- एखन सहरसा सँकेँ बहुत महत्वक संस्मरणात्मक आलेखक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि । ओ सहरसा मे बैसि के सुपौलके मोन पाड़ि रहल छथि ,आ एहि बहाने एकर भूगोल, इतिहास, दशा आ संस्कृतिक उल्लेखे टा नहि समीक्षो करहल छथि । ऐतिहासिक रूपसँ महत्वक हकदार होइतो सुपौल उपेक्षित आ अल्पज्ञात जिला रहल अछि । एहि जिलाक सांस्कृतिक विशेषता, विवशता, अभाव आ इतिहासक कतेको पहलू सँ अवगत होइबामे ई आलेख नीक मदद कसकैत अछि । एहि आलेखमे महेन्द्र जीक नेनपनसँ लके एखन धरिक अवलोकन आ विश्लेषण आयल छै । एहि आलेख मे सुपौल जिला मुख्यालये टा नहि एहि जिलाक किछु सुदूर गाम-ठाम आ मुख्यतः जिला मुख्यालयक दक्षिण बसल गाम सबहक नीक परिचयात्मक उल्लेख भेल छै । एहि मे आर कतेको एकदम नवीन जानकारी भेट सकैये जेना,  सुपौल क विलियम्स हाइस्कूल : सहरसा, मधेपुरा आ सुपौल तीनू जिलाक पहिल हाइस्कूल छलहि । वा, सुपौल मुख्यालयसँ किछुए दूर दक्षिण स्थित कर्णपुर गाम मे अंग्रेज राजक दौरान नून बनाके सत्याग्रही लोकनि कानून तोड़ने छलाह आ अपन देह पर लाठी झेलने छलाह । वा, ई जे सहरसा फारविसगंज रेलखंड पर सहरसा-सुपौलक मध्य अवस्थित गढ़ बरूआरी स्टेशनक नाम कहियो परसरमा स्टेशन छलहि ।
एहि आलेखकेँ पढ़ैत बुझाइत अछि, महेन्द्र जीकेँ सुपौल जिलाक अंतःलोक पर बहुत गहींर पकड़ छन्हि । भारती मंडनक अंक-13 (नव क्रमांक-1) मे प्रकाशित भेल एहि आलेखक सहज भाषा आ रोचक शैलीतँ बहुत बेसी प्रभावशाली छहिये ।

एखन सहरसा सँ
महेन्द्र 
[पृष्ठ-127]
चारिम-पाँचम दशकमे भागलपुर जिलासँ फराक भेल एकटा स्वतंत्र जिला बनल-सहरसा । पहिने भागलपुरक ई उप-जिला, जकर थाना बनगाम रहै । बहुत पछाति सहरसाकें थाना आ सब-डिवीजन भेटलैक । माया बाबू कहैत रहथिन- सहरसाक जन्म उनटे भेलै-ए । एहि जिला कें पुरनका दू टा सब-डिवीजन छलै- सुपौल आ मधेपुरा । सहरसा एही दुनू सब-डिवीजन पर निर्भर छल । ने अपन थाना आ ने अपन सब-डिवीजन...।
सहरसा कें तहिया अंगरेजक बनाओल हाईलेट स्कूल छलै । यैह स्कूल कालान्तर मे मनोहर हाई स्कूल नामे परिचालित भेलै । बिहार सरकार पछाति एहि संस्थाकें राजकीय नहि राजकीयकृतक दर्जा देलकै । आब तँ एतय जिला गर्ल्स आ व्वायज स्कूल छै ।...मुदा एहिसँ बहुत पूर्वहि सुपौलमे विलियम्स स्कूल भरिसक 1889 ई॰ मे आएही लग-पास मे जेनरल हाई स्कूल मधेपुरामे खुजलै । ई दुनू एहि परोपट्टाक शिक्षा ओ विशिष्टताक दुआरें चर्चामे सबसँ ऊपर रहलै । कालान्तर मे ई दुनू संस्था अपन कार्य-संस्कृतिक कारणे नेतरहाटक शिक्षा, अनुशासन आ रीजल्ट मे समकक्ष भगेल ।
उच्च शिक्षामे सुपौल कने पछुआयल । ओहि सँ पूर्व 1952 ई॰ मे सहरसा कॉलेज, सहरसा आ 1953 ई॰ मे टी॰ पी॰ कॉलेज, मधेपुराक स्थापना भगेल छलै । ई दुनू कॉलेज भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रीमियर कॉलेज छल ।
सुपौलक भारत सेवक समाज कॉलेज 1959 ई॰क आस-पास बनलै । मुदा एतुक्का सभसँ खास विशेषता रहलै एकर निजत्व । सामाजिक स्नेहसँ सिक्त परिवारिक सम्बन्ध ।
[पृष्ठ-128]
डीहवारक धरती हेबाक सभटा गुण सुपौलकें एखनहुँ उपलब्ध छैक । बाहरोसँ जे परिवार एतय आबि बसल, सभ भाइ-भैयारीक सरोकारमे रमैत सुपौलक खासम-खास भगेल मनसँ, तनसँ आ धनसँ...।
31, जनवरी 2009 ई॰ मे हम पी॰ जी॰ सेन्टर, सहरसासँ रिटायर भेलहुँ । एतधरि एबामे सुपौलक योगदान हमरा लेल अविस्मरणीय अछि । जन्म स्थान हेबाक गौरव आ व्यक्तित्वक निर्माणमे सुपौलक भूमिका जे हो, मुदा हमरा एखनहुँ ओतदुलार-मलार मे कोनो घट्टी अनुभव नहि होइत अछि । साँचे, जखन हम ओतजाइ छी तँ हमर वार्द्धक्य बिलाकनेनाक रूप ग्रहण कलैत अछि...।
सुपौल, नेपालक सीमासँ सटल अपन निजत्वक रक्षा करैत रहल अछि । बाढ़ि सँ बिलटल होइतो ई अपन सामाजिक, सांस्कृतिक ओ आर्थिक संस्कारकें जोगबैत रहल अछि । कहल जाइत अछि जे 1934 ई॰ सँ पहिने जखन रेलगाड़ीक परिचालन रहै- पूर्वांचल आ पश्चिमांचलक संबोधनो नहि छलै । मैथिलक संबंध-सरोकार, कुटुम आ कुटमैती, आबर-जातक उदाहरण लोक आन क्षेत्रकें दैत काल अपन विशाल क्षेत्र पर गर्वक अनुभव करैत छल । मुदा 1934-35क बाढ़ि आ भूकम्पक पछाति ई मधुर सरोकार...सब खतम...। दरभंगा जिलाक नजरिमे हम पूबा-डूबा भ गेलहुँ । मण्डी व्यवस्थापनमे जे सुपौल आगाँ छल, असुविधासँ भरल यातायातक दुआरें पिछड़लागल । एकहि सब-डिवीजनक निर्मली आ सुपौल धारक दुनू कात संवादहीनताक दंशसँ दुर्बल भगेल । तथापि दुनू स्थान व्यावसायिक ओ सामाजिक संस्कारमे भीजल असुविधहु मे जनचेतनाक हितचिंतक रहल । समयक चाँछ सँ आहत सुपौल आ निर्मली कहियो इस्सनहि कयलक ।
मरखाहि कोशीकें भोगैत शान्त-शीतल आ स्थिर स्थितप्रज्ञ सन सुपौल, चारूकात बसल भिन्न-भिन्न गामक बीचमे अपन सहिष्णु छवि बनौने हँसैत-मलरैत अपन विकासगाथा, अपनहि संस्कारक परिधिमे रहि कहैत रहल, बँटैत रहल । गाम-घर मे दुलारसँ लोक सुपौल कें सिपौले कहि संबोधित करैत अछि एखनो...।
सुपौलक चारूकातक गाम, गामे टा नहि आचरणे सरोकारी संस्कृतिक प्रतीक अछि । तें सुपौल बिना गाम आ गामक बिना सिपौल बुढ़ियाक फूसि...कनियो टा फराक नहि...एक दोसराक पूरक...। ओहिना जेना अस्पताल चौक । सभ दिस जाइत सड़क आ ओम्हरहु सँ अबैत सड़क एतहि आबि आत्ममिलन आ आत्ममंथन करैत अछि । समयक  संग ठाढ़ भेल एतुक्का सिरीशक गाछ अपन घेंच नमरा कसभ गामकें समाचार दैत अछि आ गामक सभ गतिविधिक सुधि-बुधि लैत एक दोसराक दुख-सुखक साक्षी बनैत अछि ।
अजुका तारीखमे जँ सहरसा सँ सुपौलक यात्रा करबाक हो तँ अहाँ दू टा बाटक उपयोग कसकैत छी । पहिल तँ रेलगाड़ी, जे एखनहुँ 29 कि॰ मी॰ डेढ़-दू घंटामे सुपौल पहुँचबैछ । उत्तर बिहारक ई क्षेत्र जे पूबा-डूबा नामे संबोध्य अछि, तकर अधिकांश क्षेत्र रेलक विकासक नाम पर रेलमंत्री लोकनिक आश्वासन पर संतोष करैत आयल अछि । भूकम्प आ बाढ़िसँ ध्वस्त स्वाधीनता पूर्व बनाओल मीटरगेजएखनहुँ ओही अवस्थामे उपयोग कैल –
[पृष्ठ-129]
- जाइत अछि । यैह बाढ़ि आ भूकम्प सुपौल आ निर्मलीकें फराक कदेलक । फारबिसगंजो सुपौलसँ भीन भगेल । ओ तआभारी रहबनि ललित बाबूक जे अपना कार्यकालमे सुपौल आ फारबिसगंजकें जोड़लनि । मुदा कपार मे जे लिखा कआयल अछि तकरा के मेटा सकैत अछि । 2008 ई॰क बाढ़ि फेर एहि खण्डकें चाटि गेल । जन-धनक नोकसानक संग-संग सौंसे कोशी आ पूर्णियाक रेल-रोड सम्पर्क खण्ड-खण्ड भगेल । देश एहि क्षेत्रक दुर्दशा पर द्रवित भराष्ट्रीय आपदा घोषित कदेलक । विश्वक अधिकांश देश आ देशक अधिकांश राज्य आगाँ बढ़िकएहि क्षेत्रक मुँह पोछलक । आब सुनै छी जे आठ बर्खक बाद कहाँदन सहरसा सँ पूर्णिया एकबेर फेर बड़ी रेल लाइन सँ जुटत । रोड तँ किछु दिन पूर्व जुटि गेल छल । मुदा सुपौल...ओहिना...।
...ओना सुपौल जेबाक लेल सुविधाजनक सड़के छैक । रेलसँ ओतपहुँचबामे जतेक समय लगैछ ताहिसँ बेसी प्रतीक्षामे काटपड़ैत छै । ओतबा कालमे सुपौल गेल जा सकैछ...अन्तर भाड़ाक छै...रेलसँ 10 टाका आ रोडसँ 40 टाका । मुदा बस आनत धरि  सुविधा सँ...ने हर-हर, ने खट-खट...। स्टैण्ड पर स्टार बस डिक लागल रहै छै । अहाँक मोन पर अछि...सड़क आब खूब विश्वसनीय भगेल छैक । सुपौल, सहरसा, मधेपुरा बिहारक प्रायः सभ पैघ शहरसँ जुटि गेल अछि । सुपौल कें एकटा लाभ भेटलैक एन॰ एच॰ 57क जे आसामक सिलचर, गुजरातक पोरबन्दरसँ जुटि गेल । ई एहि क्षेत्रक लाइफ लाइनबनि गेल छैक । एतबे नहि कोशी महासेतु तँ दरभंगा आ सुपौलकें मुट्ठीमे अँटा नेने अछि । भपटियाहीसँ दस कि॰ मी॰ पश्चिम ई महासेतु कोशी पर बनाओल अत्यंत दर्शनीय ओ आकर्षक सेतु अछि...।
मुदा दुखद कथा ई अछि जे साहित्यकार मायानन्द मिश्रक गाम बनैनियाँ कोशीमे विलीन भगेल । एही गाम बाटे जाइत रेलक रहड़िया स्टेशनक सिरखार आब बहुत गिद्ध दृष्टि देला पर कतहु झलकि सकैत अछि । नजरि जँ निर्बल हैत तँ नहियो देखि सकै छी । सूचना इहो अछि जे ओतुक्का हाई स्कूल भपटियाहीमे चलाओल जाइछ । बर्ख भरि पर फेरल जाइत अपना गामक बीटसँ काटल हनुमानी धूजाक बेगरता आब बनैनियाँकें नहि पड़ैछ । नारदी, पराती, नचारी-महेशवाणी आदि पारंपरिक गीत कोशी छीनि लेलक । आब तँ धीरे-धीरे बनैनियाँक सभ अच्छर बिला रहल अछि...अख्यासहुसँ उतरि रहल अछि...। मुदा सर्वेक पुरनका नक्शा मे बनैनियाँ एखनो जीबैत अछि ।
माया बाबू सदिखन चर्च करैत रहथि जे बनैनियाँमे तीन टा नन्दयोगानन्द, गुणानन्द आ मायानन्द । योगानन्द अपन कोनो कारणे नाम बदलि सीतारामरखलनि आ इन्कम टैक्स विभागक सर्वोच्च पद सँ रिटायर भेलाह । गुणानन्द, सुपौल लोकसभाक प्रतिनिधित्व कयलनि आ हमगामसँ मातृक, फेर दरभंगा, तखन पटना आ निर्णायक रूपमे सहरसा कॉलेजक मैथिली विभागमे व्याख्याता भेलहुँ आ सहरसे सुपौलक भरहि गेलहुँ । अर्थात दुनू नन्दक अपेक्षा हम. ..जकर सीमा सहरसे धरि सीमित रहल...एकदम कमजोर कड़ी...।
[पृष्ठ-130]
तखन हमरा हँसी लगैत छल । मुदा हम ई जनैत चुप भजाइत छलहुँ जे अपना सँ बेसी अपन अग्रज मित्रकें महिमामंडित करब हुनक आदति छलनि । निर्विकार-निश्छल अभिव्यक्ति । अपना सँ छोटक रचना पढ़लाक उपरान्त सभकें कहथि- तोहर रचना पढ़लिय’...ईर्ष्या भेल...हम एतेक नीक नै लीखि सकै छी । ...ई तहुनक व्यक्तित्वक महानता छलनि...तें मायाबाबूकें बनैनियाँ  मे नहि हुनक रचनामे ताकू...चैपालमे अभिव्यक्त घूटर भाइक स्वरसँ चीन्हू आ चीन्हू हुनक क्लासरूमक व्याख्यान आ मंचक मधुर उद्घोषणासँ...बनैनियाँ तँ आइ नव-नव गामक रूपमे विकास करहल अछि से विद्या आ वैभव, दूनू दृष्टियें ।
परसरमासँ दक्षिण बहैत खरिदाहा पुलक उतरबरिया पायासँ सुपौल जिला शुरु होइत  अछि । ओतसँ हरियरी देखार होमलगैछ । सड़कक दुनू कात आम-लुच्चीक बगान, बाँसक बीट आ बहुत रास गाछ सभ आँखिकें संतोष दैत छैक ।
परसरमाचर्चित गाम अछि । यैह गाम बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईंक जन्मस्थली थिकनि । ओतय हुनक नेनपन आ किशोरावस्थाक चांचल्य छनि । गोचारण आ पठन-पाठनक संग संगी सभक बीच हँसी-चैल छनि...मुदा बाबाजीक परसरमा खाली जन्मस्थलीए टा रहलनि...बाकी भक्त आ आश्रमक संख्या आने ठाम बेसी रहलनि...एहि मे बनगाम सभसँ ऊपर अछि...।
एखन परसरमामे गोसाईं जीक पुस्तैनी भू-खण्ड पर बनाओल हुनक मंडप आ बैसिकीक लेल दलान अछि जाहिमे पुजेगरीक संग किछु भजनी भजन गाबि हुनक स्मरण करैत छनि ।
हिनक रचित भजन सधुक्करी मैथिली भाखामे रचित जीवन ओ जगतक मानवीय संवेदनाक प्रति भक्ति ओ आध्यात्मिक संदेश अछि जे मनुष्यकें अपनासँ साक्षात्कार करबैत   अछि । मैथिली संत साहित्यक अन्तर्गत हिनक अवदान विस्तारसँ रेखांकित भेल अछि । हिनक भजनावली मिथिला ओ आनहु ठाम अत्यन्त आदरक संग राखल ओ पढ़ल जाइत अछि । गोसाईंजी जीवनक कथा आ मनुष्यकें जीबाक कलाक ज्ञान करबैत अहंकारसँ दूर रहि लोक सेवाक पाठ पढ़ौने छथि । ओ नरकें भक्तिक मार्ग पर चलैत अपन रचनाकें सार्वजनीन कयने छथि जे मानव-सदुपयोगक संदेशसँ भरल अछि...। मिथिलाक लोक संगीतक भास पर आधारित हिनक भजन खूब गाओल जाइछ ।
...सहरसासँ सुपौल धरि जाहि रेलक उपयोग अदौसँ करैत आयल अछि तकर तेसर स्टेशनक नाम परसरमाथिकै । एहि ठामसँ ई गाम चारि वा पाँच कि॰ मी॰ पश्चिम स्थित छैक । भसकैत अछि अंग्रेजी सरकार आध्यात्मिक साधक लक्ष्मीनाथक नाम पर ई नाम रखने हो । ओना ई हमर व्यक्तिगत विचार थिक जकरा नहियो मानल जा सकैत अछि ।
परसरमाकें रेलसँ बेसी सड़केक सुविधा छैक। स्टेशन जेबाक लेल परसौनी, बरैल आ तखन बरुआरी अबैत छैक जतगाड़ीक ठहराव छैक । बरुआरियो दू टा आ बीचमे धार...स्टेशन लग यैह सभ गाम छैक । ...तखन परसरमाक नाम किएक...? मोन मे बहुत रास प्रश्न उठल...प्रश्नो स्वाभाविके रहय...। बरुआरीमे तत्कालीन जमींदार लाल साहेबक घर...
[पृष्ठ-131]
- अपने खूब प्रतिभाशाली ओ प्रभावशाली अंगरेजी सरकारक पसिन्नक राजा आ क्षमतामे अशेष व्यक्तित्व...।
हम जखन एहि स्टेशनकें क्रॉस करैत रही तँ बेर-बेर ई प्रश्न हमर उत्तर ताकबाक लेल प्रेरित करैत रहय । घूमि-फिरि कलाल साहेब सोझाँमे चमकि जाथि...हिनक अछैत परसरमानाम अंकित भजायब...ई रहस्य के खोलत...? एकरा तँ छीनब कहल जा सकैत अछि । गामक लोक परसरमानामक टिकट जखन कटबैत हैत तँ ओकर केहन मनोभाव हेतैक से सद्यः अनुमानित छल...मानसिक आ मनोवैज्ञानिक रूपें ओ लोकनि निश्चित प्रताड़ित अनुभव करैत रहल हैत से सोचब कठिन नहि छैक । की बितैत हेतै ग्राम्य देवता आ गौंआकें...अपराध बोधकें मोन मरमोसि कोना एक ग्लास पानि पीबि शांत भजाइत हैत...आदि-आदि प्रश्न हमरा एखनो अख्यासमे अबैत अछि...।
अख्यासल तँ ईहो अछि जे बाढ़ि, परसरमाकें सुपौलक सम्पर्कमे कहियो चैन सँ रहनहि देलकै । 51-52 ई॰ मे वैद्यनाथधाम जेबाक लेल ट्रेन परसरमे मे पकड़ने रही । फेर बख्तियारपुरसँ नाहे-नाह धमारा आ तकर बाद आगाँ बढ़ी...
दुर्दशा छलै...। मुदा 52-53 ई॰ मे ई रेलपथ आपसमे जुड़ैल । एही पथसँ देशक प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू स्पेशल ट्रेनसँ श्रमदानसँ बनल विश्वक प्रथम कोशी बान्हक उद्घाटनक लेल आयल रहथि सुपौल-बैरिया...। ओहू समयमे ट्रेन सुपौले धरि । ...हमरा इहो मोन पड़ैत अछि जे भरिसक 58-59 ई॰ मे तत्कालीन रेलमंत्री, राम सुभग सिंह सुपौल सँ आगाँक रेल विस्तारक लेल मालगोदाम परिसर मे आयोजित सभामे कोनो शिलान्यास कयने रहथि...ओकर बाद की भेलैक से मोन नहि पड़ैत अछि...।
मुदा गढ़-बरुआरी के निसाफक प्रतीक्षा छलै । कवि रघुनाथ मुखिया कहलनि जे ओ 1962 ई॰ धरिक टिकट पर परसरमास्टेशन छपल देखने अछि । बरैलक डॉ॰ धीरेन्द्र कहलनि जे ओ 1963 ई॰क आरंभहिमे आयोजनपूर्वक परसरमाक स्थान पर गढ़-बरुआरीक नामपट्ट लगबाक साक्षी छथि ।
एहि परिवर्त्तनक नेपथ्यकथा बहुत संवेदनशील अछि । हम जे अपना सर्वेक आधार पर बुझलियै तकर निष्पत्ति छलै वर्चस्वक लड़ाइ आ यैह वर्चस्व दुनू गामकें तनावग्रस्त कयने रहय । भीतरक कथा जे रहल हो मुदा स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक झगड़ा मोछ-मोछक झगड़ा कहल जा सकैत अछि । एहि तथ्यकें बरैलक तेरासी वर्षीय कवि अमरसेहो गछलनि...लाल साहेब मोकदमा कयलनि...भूप बाबू ओकील रहथि ।  गढ़-बरुआरीकें निसाफ भेटलै- से लालसाहेबक मुइलाक बाद । बरुआरी जे गढ़ी छल से गढ़गेल...हमरा जनैत ओहि कालखण्डमे कोनो रेलवे स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक प्रायः ई पहिल घटना रहल हेतैक...।
मुदा परिवर्त्तनक एहि दृश्यकें लाल साहेब नहि देखि सकलाह । बरुआरीक संग हुनका जे निसाफ भेटलनि से हुनक आत्माकें निश्चिते जुड़ौने हेतनि । 25 दिसम्बर 1961 ई॰ कें हुनक निधन सभकें अप्रत्याशित घटना लगलैक । निधन आ निधन सँ सम्बन्धित कतेको कथा-उपकथा सुपौल स्टेशनसँ पूब बनाओल लाल साहेबक लाल कोठीसँ उड़लै जे  -
[पृष्ठ-132]
- निर्णये नहि कपौलक जे असल मे बात की भेलै । समाचार तँ समाचार थिकै प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष पसरबे करतै...। मुदा सत्य वैह जे लाल साहेबक निधन भगेलनि आ हुनक स्मृति मात्रहि आब शेष रहत...।
गोर वर्ण, आकर्षक भरल-पूरल देह-यष्टि, कारी सूट आ कारीए हैट...आमक फाड़ा सन पैघ-पैघ एक जोड़ी आँखि पर ब्लैक गॉगुल्स...। डेरासँ एही ड्रेसमे बहराइत रहथि राजा साहेब । आगू-आगू दस मीटर पर मस्त चालिमे चलैत कारी भौर विदेशी नस्लक भयभीत करवला, मुँहमे साहेबक गोल्डेन मूठबला छड़ी लेने पोसा कुकूर आ सड़कक दुनू कात एहि मनोरम दृश्यकें देखलेल ठाढ़ आवाल-वृद्ध-वनिता 25 दिसम्बर 61क बाद कहियो नहि देखि सकल...।
ई दृश्य हमरा वृत्त-चित्र जकाँ ओहिना सोझाँमे पसरि जाइत अछि । तहिया चकला निर्मलीसँ सतमा पास कविलियम्स स्कूलमे नाम लिखौने रही । ओही बर्ख बच्चा भैयाकें पशुपालन विभागमे नोकरी भेटल रहनि । वीरपुरसँ ओ अपन काज आरंभ कयने रहथि । दरमाहा छलनि पचास टका पचास पैसा । देहातक भिजिटमे किछु आर उपार्जन कलैत रहथि । तकरे जोड़ि-जोड़ि एकटा सेकेण्ड हैण्ड साइकिल कीनने रहथि गाम अबरजात करबा लेल । ओ सभ शनिकें आबथि आ सोमकें भोरहरियेमे विदा भजाथि । भेलाहीमे जे दुइ तीन टा साइकिलक चर्चा छलै ताहिमे इहो एडगेलै ।
एहिसँ पूर्व हम परसरमाक नरेसर बाबू, कर्णपुरक मुक्तिनाथ बाबू आ वकील ज्ञानदत्त मिश्रकें नित्तह साइकिल हाँकैत देखने रहियनि । तहिया एकटा आरो साइकिल देखलियै- हुसुन बाबूक...। लोक बजैत रहै जे हुसुन बाबूक वाइ-साइकिलसनरेले थिकै मेड इन इण्डिया । जहिना अपने छिपगर तहिना साइकिल खड़गर-नमगर...अपना कद काठीक हिसाबसँ ओ कसबौने   रहथि ।
से बच्चा भैयाक साइकिल देखि आ छूबि पहिल बेर अपार आनन्द भेल रहय । भोर-साँझ पोछब, तेल देब हमरे ड्यूटी छल । भैया सोमकें जखन वीरपुर जेबाक लेल चलथि तँ हम झुनकू ठाकुरक घर धरि दौड़ल जाइते रही आ जखन भैया आ साइकिल मवेशी अस्पताल लग अढ़ भजाइ तहमहूँ निरुत्साहित घूमि आबी ।
ओना हम चोरा-नुका कसाइकिल सीखियो नेने रही।
हमर पिताजीक निधन 17 दिसम्बर 61 कें भगेलनि सुपौल अस्पतालमे इलाजक क्रममे । ई निधन हमरा लेल बहुत पीड़ादायक छल । घूर तपैत काल बच्चा भैया हुनक मृत्युक सूचना देने रहथि । तकर बाद जे होइ छै ओ मोन पाड़ि एखनो डेरा जाइ छी । कहाँदन बुच्चू बाबा आ नेपाल मरड़ जिज्ञासामे सान्त्वना देने रहथि । गामक लोक सभ एहि दुखमे सहभागी भेल रहथि ।
कक्काकें फरकी पर अस्पतालहि सँ आनल गेलनि आ बम्मा लग हुनक संस्कार भेल रहनि । कक्काकें तखन आगिसँ एकोरत्ती डेराइत नहि देखने छलियनि । पेटक पीड़ाक छटपटाहटि ओहो अनुभव नहि कयलनि...हमरा लागल छल डॉ. रामक दबाइ असरि करहल छनि आब ।
[पृष्ठ-133]
समय बीतलगलैक...।
चारिम दिन बच्चा भैया, एकटा अपरिचितक संग पाँच-सात गोटा मिलि गाछी गेलहुँ । अपरिचितक मादे पुछला पर कहल गेल जे ओ पूज्य (पात्र) रहथि । कक्काक सारा मे एखनो आगि शेष रहय, मुदा कक्का नहि छलाह । पूज्यक कथनानुसार पूजा-पाठ भेलै आ तकर बाद बच्चा भैया किछु-किछु बीछि नवका मटकुरीमे रखलनि आ कोनो साफ कपड़ा सँ मुँहकें बान्हि घुरि अयलहुँ । घूरन भैया एहि कर्मकें अस्थि-संचय कहलनि...। ...दलान पर सभा बैसल आ ओहीमे अगिला कार्यक्रमक योजना बनल । पढ़ुआ कक्का तकरा अरसट्ठाकहलनि । निर्णयानुसार वृषोत्सर्ग श्राद्ध सौंसे पाली ल’...तदनुसार निर्धारित योजनानुसार काजमे गति आबलगलैक। ई तारीख भरिसक 22 दिसम्बर छलैक ।
ओहि समयमे घरक सभसँ छोट नेना हमहीं रही आ काज लेबाक दुआरें हमरे बुधियार-होसियारक पदक पहिरा देने रहथि से हम बुझियै, मुदा साइकिलक लोभ हमरा आर ऊर्जावान बना दैत छल ।
भेलाहीसँ पाँच-छओ किलोमीटर पूब बभनगामा पड़ैत छैक। ई दाम्मपत्य गाम थिकै- वीणा-बभनगामा’...। आब अन्दौली सेहो फेंटम-फेंट भगेलैक । बभनगामामे तहिया बहिन, दीदीक सासुर आ पिताक मातृक रहनि । ओझाजी, पीसा आ राजो कक्का दूधक व्यवस्था ओत्तहि करबाक भार नेने रहथि । संवादवारीक लेल हमहीं जाइत रही ।
बभनगामा जेबाक दू टा बाट हम टेबने रही । कीर्त्तन भवनसँ सोझे पूब रेलवे लाइन पार करैत पहिने वीणा, तखन बभनगामा । दोसर बाट हमरा मोन पर छल...। बजार घुमबाक, स्टेशन देखबाक मोन होइत छल तओही बाटे ।
26, दिसम्बरकें गाममे घोल भेलै जे बरुआरीक लाल साहेब मरि गेला । गामक तहसीलदार रामजी मल्लिक एकर पुष्टि कयलनि । हमर जिज्ञासा बढ़ल...बभनगामा जेबाक क्रममे साइकिल स्टेशनक बाट धेलक...।
लाल साहेबक कोठीक कैम्पसमे लोकक करमान मृत्युक सत्यताकें पुष्ट कदेलक । पूबरिया बरण्डाक पलंग पर दुनियाँ भरिक निन्नमे मातल लाल साहेबक सौम्य आ शान्त देहयष्टि एखनो बहुत विलक्षण लागल रहय...सुनलियै, कहाँदन रातिमे जे सुतला से सुतले रहि गेला ।
मुदा परसरमा स्टेशनक नाम बदलबाक लेल जे ओ मोकदमा कयने रहथि, तकर निसाफ सूतल नहि रहल आ अन्ततः 1963 ई॰ मे परसरमाक स्थान पर गढ़-बरुआरीक नामपट्ट लगबाक ऐतिहासिक फैसला भेलै...लाल साहेबकें एहि निर्णयसँ निश्चिते शान्ति भेटल हेतनि...।
परसरमामे पचमुहानक प्रमुखता अछि । आब तओ जगह बहुत विकसित भगेल छैक । एही प्वाइन्टसँ लोक पूब बरुआरी, जगतपुर, एकमा-बभनगामा-वीणा-अन्दौली होइत सुपौल चल जाइत अछि । पच्छिम जाइत सड़क बलहा, सोल्हनी, सीहे, बकौर आ बान्हक –
[पृष्ठ-134]
- भीतर चनैल चल जाइत अछि । उत्तर सुपौल, दच्छिन सहरसा आ बलहा सड़कक पाँजरे-पाँजर जाइत सड़क गाम चल जाइत अछि ।
सुपौल दिस नमरैत सड़क मल्हनीक बाद कर्णपुरक तीनमुहान छुबैत अछि । ऐ तीनमुहान पर बहुत पुरान एकटा इनार छै । आब तओतएकटा भव्य मंदिरो बनि गेल छैक । इनार तएखनो चालू छै ।
ऐ तीनमुहानसँ पच्छिम एकटा टोल छै खरैलजे एहि परोपट्टाक छलै आ परगन्ना छलै मल्हनी गोपाल । गोपालकिए जुटलै से हमरा एखनो धरि नहि बूझल भेल अछि । भेलाहीक डाकघर खरैले छै...।
कर्णपुर तीनमुहान पर अवस्थित मंदिरक पाँजरे-पाँजर दक्षिण सड़क जे नवहट्टा कें छूबैत छै, कर्णपुर एही पथक पहिल गाम थिकै । एकर शुरूहे मे सड़कक पच्छिम स्कूल, पूबमे कतिका कुमरक मंदिर आ तकरा आगाँमे कृष्ण मंदिर जतय भोर-साँझ गौंआक गेट-टूगेदर होइत रहै छै । एहि गामक कृष्णाष्टमीमे मधुरक नाम पुरुकिया (गुझिया) बनैत छै जे खूब स्वादिष्ट सनेस बनैत छै । कर्णपुरक कृष्ण-पूजाक उत्साह एहि गामक संस्कृति थिकै ।
स्वाधीनता संग्राममे बढ़ि-चढ़ि कभाग लेनिहार कर्णपुर विचारें-व्यवहारें आ संस्कारें अदौसँ उन्नत ओ व्यवस्थित गाम मानल जाइत अछि । स्वनामधन्य लहटन चौधरी आ लाल बाबा अंग्रेजी सरकारसँ मारि खेनिहार आन्दोलनीक पहिल लोक रहथि जे भारत माताक जयक नारा लगेबाक कारणे लाठीसँ ओधबाध कैल जाइत रहला...ई दुनू विभूति आइयो आन्दोलनक प्रतीक मानल जाइत छथि । स्वतंत्र भारतमे चैधरी जी कतेको बेर विधानसभा आ लोक सभाक प्रतिनिधित्व कयलनि । लाल बाबाक लाल वस्त्रक एक-एक सूत जा ओ जीलाह भारत माताक असली प्रतिनिधि बनि जीलाह ।
कर्णपुरक दच्छिन सीमान पर एक टिहुली अछि उन्नतोदर, गजपीठ ऊसर भूखण्ड...। यैह ओ जगह थिक जतय अंग्रेजक निर्णयक विरुद्ध नोन बनाओल गेल छल । सत्याग्रहीकें पुलिसक बर्बरता सहपड़ल छलै...।
एही भू-खण्डक बीच बाटे एकटा एकपेड़िया बनल अछि पच्छिम दिस । एहि एकपेड़ियासँ आवाल-वृद्ध-वनिताक मधुर स्वरमे बान्हल नचारी, महेशवाणी अनुगुंजित होइत बाबा तिलहेश्वर नाथ महादेवक दरबार पहुँचैत अछि नितः । विशेष करवि कें...।
एकर सटले दच्छिन अछि सुखपुर । विलियम्स हाइस्कूलक बाद निर्मित हाइस्कूल सुखपुरक प्रतिष्ठा अछि । हमर बालसंगी दिलीपक गाम आ बच्चा भैयाक सासुर । आम आर लुच्चीक औद्योगिक नगरी । सुखपुर है सुखधाम, जहाँ बिराजे लुच्ची आम । एतुक्का दुर्गापूजा आ दुर्गाक भसाओन अत्यंत आकर्षक आ औत्सुक्यसँ भरल होइत अछि ।
मुदा कर्णपुर शीर्ष गाम होइतहुँ आइधरि हाइ स्कूलक स्थापनामे पछुआयले रहल ।
...हँ, हम तीनमुहान पर ठाम अपन गाम भेलाहीकें अखियासै छी...। ओतसड़कक स्वरूप तीरे सन छै । नोक भेलाही, सुपौलकें छूबैत छैक । सुपौलसँ पहिने हमर पोस्टल एड्रेस अछि- मौजा-खरैल, टोला-भेलाही...हमर ई टोल, टोल नहि रहल- गाम भगेल । टोलाक कन्सेप्टआब बदलि गेलै...। टोलक व्यवहार आब नवतूरक लोक नहि –
[पृष्ठ-135]
- करैए...। बुझलो नहि छै...गाम-घरमे टोलआब दिशासूचक छैक...पूबरिया, पछबरिया, उतरबरिया आ दछिनबरिया । अर्थात गामक विभाजन टोलमे आ शहरक विभाजन मोहल्लामे...छोट शहर वार्ड आ पैघ शहर सेक्टरमे बँटा गेल अछि । आजुक तिथिमे हमर गाम सुपौलमे अन्तर्लीन भगेल अछि आ एकटा स्वतंत्र वार्ड-19 बनल अछि ।
टोलसँ गाम, गामसँ वार्ड बनल भेलाहीअपन सीमामे अपनाकें विकासशील बनेबामे प्रयत्नशील अछि । एहि क्रियामे सुपौल पर निर्भरता बढ़ि गेल छैक जे स्वाभाविको अछि ।
मेन रोड एहि गामकें बीचो-बीच चीड़ैत सुपौल छूबैत अछि । ई हम अपना जहियासँ ज्ञान-प्राण भेल, तहियेसँ देखैत आयल छी । सड़कक दुनू कात बसल एहि गामक लम्बाइ बेसी आ चैड़ाइ कम अछि...। बाँस-काठ आ खढ़क कमी नहि रहबाक कारणे प्रायः सभ टोलक घर खढ़ेक बनैत रहलै । खाली उतरबरिया सीमा पर बुद्धू ठाकुरक घर पक्काक छलै...। गामक निम्न मध्यवित्त आ मध्यवित्त बहुल परिवार अपन-अपन हिस्साक श्रम पर भरोस राखि निर्वाह करैत छल । कदन्न आ सुअन्न एतसभ दिन उपजैत रहल...हर-बड़द पर निर्भर ई गाम पशुक सेवामे सदैव अग्रणी रहल...गौपालन आ महिसपालन एतआमदनीक माध्यम रहलै...। बकरी-छकरी पोसब सेहो सौखसँ बेसी आमदनीकें बढ़बैत छल । यैह कारण छल जे बूढ़ा सभक लगाओल सड़कक कातक गाछ कहियो छिपगर नहि भसकलै...
हमरा गाममे अदौसँ बाढ़ि अबैत रहलै...माटि परिवर्त्तनसँ उपजा नीके-ना होइत रहलै...। श्रमशील लोक अपना नीने सूतय आ अपना नीने उठै...। जे एहिसँ अलग किसिमक लोक छल ओकर लेल रिनं कृत्वा घृतं पीबैतसिद्धान्तक आश्रयी छल । पारंपरिक खेतीक संग-संग ठाकुरजीक ट्रैक्टर-थ्रेसर बेसी काज करै...हमरा गाममे सुकरातीक पखेब आ सीरपंचमीमे हर ठाढ़ हैब एखनो आकर्षक लगैत छैक...।
गामक पछबरिया टोलमे बसल ब्राह्मण अपन धर्मक रक्षा करैत पुबरिया आ दछिनबरिया टोल पर निर्भर रहल...अपन शालीनता आ सद्व्यवहार हिनका लोकनिकें कहियो उठल्लू नहि होमदेलकनि...मर्यादा ग्राम्य संस्कृतिक अनुरूप एखनो अछि ।
...हमर जन्म 6 जनवरी 1947 ई॰क माघ-फागुनमे भेल । इहो तखन बुझलियै जखन हाइर सेकेण्ड्री उतीर्णक सर्टिफिकेट पर अपन जन्मतिथि अंकित देखलियै।
तहिया गार्जियन अपन जेठ संतान मात्रक टिप्पणि बनबैत रहथि । शेष संतानक जन्मकुण्डली गामक मास्टर साहेबक हाथमे रहनि । बही पर लिखल तिथि जन्म भरिक लेल स्थायी...। हम अपना माता-पिताक चारिम पुत्र आ सभ भाइ-बहिनमे छठम स्थान प्राप्त कयने रही...।
हम सभ भाइ-बहिन मिला कमाता-पिताक सात संतान..। दू बहिन आ पाँच भाइ । एहिमे हमरासँ पैघ तीन अग्रज आ दुइ अग्रजा...। एहन स्थितिमे पैघ भ्राता कें छोड़ि शेष हमरा लोकनिकें बिना टिप्पणिक अपन-अपन जीवनपथ पर चल पड़ल । ज्ञात-अज्ञातक झंझटिसँ एकदम मुक्त...भगवती जे करथि....


**********
साभार संदर्भ

भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून, 2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल

[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। महेन्द्र जीक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]

No comments:

Post a Comment

अपनेक प्रतिक्रियाक स्वागत अछि !