Tuesday, May 30, 2017

‘ललित समग्र’क भूमिका : विभूति आनंद

विभूति आनंद, मैथिलीक प्रतिष्ठित साहित्यकार ललित केर साहित्य आ जीवनक मर्मज्ञ मानल जाइत छथि । ललित पर हिनकर अकादमिक शोध कार्य छन्हि आ साहित्य अकादमीसँ एकटा मोनोग्राफ सेहो प्रकाशित छन्हि । मैथिली कथा साहित्यक परंपरा मे ललितक गिनती अग्रिम पंक्तिमे ठाढ़ रचनाकारक रूपमे कएल जाइछ । विभूति आनंद द्वारा संकलित-संपादित ‘ललित समग्र’क हुनके द्वारा लिखल भूमिका एतय एहि आशाक संग प्रस्तुत कएल जा रहल अछि जे ई जिज्ञासु पाठक आ शोधार्थी लोकनिकेँ ललित आ हुनकर साहित्यक कमसँ कम परिचयात्मक बोधतँ अवश्ये कराओत ।

‘ललित समग्र’क भूमिका
विभूति आनंद



कहल जाइछ जे ललित (जन्म : 6 अप्रैल 1932, मृत्यु : 14 अप्रैल 1983) सन लेखक के जतबा लिखबाक चाहैत छलनि, ओतबा ओ नहि लिखि सकलाह । अथवा इहो कहल जाइछ जे जाबत धरि ओ आर्थिक कटमटी रहलाह,ताधरि लिखलनि । मुदा जखने इच्छित स्थिति मे आबि गेलाह, लेखन-विमुख भ' गेलाह । अथवा इहो कहल जाइछ जे लेखनक स्तर पर हुनक स्पर्धी रहथिन राजकमल चौधरी, जिनका ओ हिन्दी सँ मैथिली मे अनने रहथि, जखन हुनका संग नहि ठठि सकलाह तँ जूआ पटकि देलनि । अथवा बदलैत समयक नाड़ीकेँ पकड़बामे पिछड़ि गेलाह अथवा पछड़' लगलाह तँ गुम्मी लादि लेलनि आ अन्ततः पाटि बदलि लेलनि । अर्थात हुनक रचनाकारकेँ तंत्र स्वतंत्र नहि रह' देलकनि आ ओ तकरे अधीन भ' ' रहब स्वीकारि लेलनि ।
हुनक जीवनक समस्त गतिविधिपर जँ ध्यान देल जाय तँ तमाम शंका अपन-अपन ढंगे सही प्रतीत होइत अछि । मुदा स्वयं ललित एहि मामिला मे अलग अलग विचार व्यक्त करैत छथि । एक दिस ओ अपन लेखन- अवधि ओ स्थिति सँ संतुष्ट बुझि पड़ैत छथि तँ दोसर दिस एहिपर तामस करैत देखल जाइत छथि । हुनके शब्द मे-'हम कम नइ लीखल । मगर आब एकटा वितृष्णा सँ मोन भरि गेल । हम अपना केँ मैथिलीक शोभा-यात्रामे आगाँ-आगाँ चलयवला हओदा कसल मकुना-पट्ठा कहियो ने बूझल, मुदा डाक्टर-परफेसर आदिक चोंगा ओढ़ि Trash लिखयवला सँ हीनो नइ बूझल । अद्यावधि हमरा कोनो स्थान नहि देल मैथिलीक दलबन्दी ।...तखन लिखबाक उद्देश्य हमर विफल...'फिर बेताल उसी दरख्त पर जा लटका ।' फेर अपन साहित्य घोंघा-बसन्ती अभिव्यक्तिक 'उम्रकैद मे दफ्न ।' ककर दनक बकरी, त ककर दनक पाठी आ फल्लाँ दाइक चिट्ठी, ' पथ हेरथि राधा! Pure and outright nonsense! किए लिखू? पायिक प्रयोजन नइ । जीविकाक साधन नइ । तखन Proper placement, ' ताहू सँ outcast! की एहेन दमघोंटू, बंध्या स्थितिमे अहाँ लिखनाइ जारी राखि सकैत छी ?'
अर्थात अपन एहि छोट सन तामस मे ललित लगैछ जेना मैथिलीक तमाम दूषित गतिविधिकेँ सरेआमक'' राखि देलनि अछि । मुदा एखन एहि तामसपर विमर्श कर' सँ अधिक उचित बुझैत छी जे हुनक अवदानक गप करी । हुनक लेखन अवधि अछि-13-14 वर्ष, अर्थात् 1950 सँ 1964 धरि । ओना एकर बादो किछु कथा उपलब्ध होइत अछि । लगैछ ओ सब ओही अवधिक रफ रहल होनि, जकरा फेयर क'' फरमाइसपर छपबा लेल देने होथि । अस्तु । एहि अवधि मे ओ लगभग 40 कथा-लघुकथा(जे हमरा उपलब्ध भ' सकल, प्रतिनिधि संग्रह सहित ), एकटा उपन्यास (पृथ्वीपुत्र) आ टिप्पणीत्यादि लिखलनि । एकर अतिरिक्त दू टा संस्मरण आ एकांकी सेहो उपलब्ध होइत अछि । वैदेही मे धर्मधकेलानन्दक नाम सँ 'गोनू झाक चौपाड़ि' स्तम्भक किछु अंशक लेखन सेहो कयलनि । दरभंगा प्रवास धरि 'वैदेही'क संपादन सँ सेहो जुड़ल रहलाह । ओही कालखंडमे मैथिली गद्यक प्रांजलता ओ वैचारिकता अछिंजली लोटा जकाँ चमकल छल । ओही कालखंडक उपलब्धि भेलाह-ललित, राजकमल चौधरी, मायानन्द मिश्र, उग्रानंद, बलराम, हंसराज, जयानंद...आदि, जनिका सभक कारणे आधुनिक मैथिली गद्य अपन एक अभिनव रूप मे प्रतिष्ठित अछि ।
अर्थात सम्पूर्णतामे देखल जाय तँ ललित वास्तवमे आधुनिक मैथिली गद्यकेँ संस्कारित कयनिहार शिखर पुरुष भेलाह । ओ ढाकीक ढाकी नहि लिखलनि । जे लिखलनि, सुविचारित लिखलनि, जे कयलनि मैथिली गद्य साहित्यकेँ विश्व साहित्यक समकक्ष अनबा लेल कयलनि । अर्थात अपन भाषा-साहित्य लेल जे सपना विश्व साहित्य पढ़ैत काल देखलनि, तकरा रूप देलनि । हुनक कथा हो, आकि उपन्यास, आकि आने लेखन, कतहु रिपिटेशन नहि अछि । सब ठाम एक नव जभीनक दर्शन होइत अछि । तेँ कहि सकैत छी जे ओ तँ एक माला तैयार कयलनि, जे आइयो ओहिना टटका अछि, मौलायब नहि सोचलक एखनो धरि । आ ताहि दृष्टि सँ मैथिली भाषा-साहित्यक प्रति कयल गेल ललितक काजकेँ कमक' ' नहि आँकल जा सकैछ ।
तखन ललितकेँ जेना पढ़ल जयबाक चाही, तेना नहि पढ़ल गेल । आ तकरो कारण अछि-हुनक प्रकाशित लेखनक अनुपलब्धता । ओ अपना लग किछु नहि रखलनि । तेहेन कोनो पुस्ताकालय नहि, जतय ओ उपलब्ध होइतथि । अस्तु ।
कोनो संकलन जँ प्रकाशित होइछ तँ ओकर एक नाम राखल जाइछ । हम तेँ एहि संकलनक नाम राखल- 'ललित समग्र' । मुदा सही अर्थ मे ई 'समग्र' नहि थीक । हमरा ललितक रचना मादे जतबा जे बूझल छल, तकरो उपलब्ध कर' मे सक्षम नहि भ' सकलहुँ । 'वैदेही' हो आकि 'पल्लव' आकि 'मिथिला दर्शन' आकि दरभंगावला 'मिथिला मिहिर'- ककरो सम्पूर्ण फाइल नहि उपलब्ध भ' सकल, जाहि सँ आर-आर सामग्री उपर होइतय, अथवा बहुतो झोल-झाल साफ होइतय । तखन एतबा जरूर जे ललित जाहि उपन्यास (कर्मण्येवाधिकारस्ते...)क तथा प्रेमकथा सभक लिखल होयबाक बात कहने छथि, से सबटा हुनक इच्छा मात्र छलनि, लिखल किछु टा नहि । जे लिखल छनि आ जकर सूचना छल तथा हमरा उपलब्ध नहि भ' सकल ओ सभ कथा अछि- 'स्पर्धा', 'समाजक सहयोग', 'बोलबम','कुलटा','प्रतिशोध' 'दीक्षा'  ।
हम एतय ललित-साहित्यपर विमर्श करवा सँ परहेज करैत छी । हमरा जे किछु हुनका मादे कहबाक छल से 'श्री ललित आ हुनक कथा यात्रा' नामक पोथी (डिसर्टेशनक पुस्तकक रूप )मे एक विद्यार्थीक बुद्धि सँ कहि चुकल छी । पश्चात एक लेखक रूपमे, ओकरे आधार मानि 'ललित' नामक मोनोग्राफ (साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित)मे फड़िछौने छी । तेँ ललितकेँ जनबाक लेल 'ललित समग्र'क संग-संग 'ललित' नामक मोनोग्राफकेँ पढ़बाक हम विनम्र आग्रह सेहो करैत छी ।
तखन एतबा एत' जरूर कह' चाहब जे ललित जीवन ओ जगतक लेखक छथि । हुनक लेखन प्रगतिशील सोच पर विश्वास करैत अछि, जत' ओ एक दिस परम्परागत रूढ़िक घोर विरोध करैत छथि, ओतहि एक नब बाट दिस चलबाक संकेत सेहो दैत छथि । जाहि-जाहि स्थिति-परिस्थितिकेँ आन-आन लेखकगण अबडेरैत रहलाह, ग्राम्य बूझि ताहि सँ कतिआइत रहलाह, ओहन सभटा अछूतकेँ ललित प्रतिष्ठा देलनि, सरज-सरल ठेठ ग्रामीणक ठोंठमे स्वर देलनि तथा ताहि सभक प्रतियें अपन सहमति सेहो व्यक्त कयलनि । ओ समयक महत्व केँ बुझलनि, ओकर हुंकारकेँ अकानलनि, आ तेँ भविष्यक प्रति अपन लेखनीमे साकांक्ष भेलाह ।
ताहि समय-शक्तिक पुजारी, परम्परित व्यवस्थाक विरोधी तथा नवीन पीढ़ीक आबेसी रचनाकार ललितक समग्र लेखन केँ एकठाम देखबाक इच्छा समस्त मैथिली पाठककेँ रहलनि । ई संकलन ताही अभावक पूर्ति दिस एक प्रयास थिक ।
*****

साभार स्रोत* 
संकलन संपादन - विभूति आनंद : ललित समग्र : प्रथम संस्करण -2012 : मैथिली अकादमी. 740/800 लालबहादुर शास्त्री नगर, पटना-23


[*स्पष्टिकरण : मैथिली मंडनपर एहि तरहक कोनो सामग्री मैथिली पाठक आ शोधार्थी धरि प्रयोजनीय सामग्री केँ पहुँचेवाक उद्देश्य सँ प्रस्तुत कयल जाइत अछि । एकर पाछू किनको व्यवसायिक अहित करवाक भावना नहि होइत अछि । संभव भेला पर सम्बंधित पक्ष सँ अनुमति लेवाक अथवा सम्बंधित पक्ष केँ सूचना देवाक चेष्टा कयल जाइत छैक । कैक बेर एकर जरूरति नहि बुझेला पर अथवा सम्पर्क सम्भव नहि भेलाक बावज़ूदो संदर्भ स्रोत केर साभार उल्लेख कयल जाइत छैक । मैथिली-मंडनक अपन सम्पूर्ण प्रस्तुति केँ दुर्भावनारहित राखवा लेल कृतसंकल्प अछि । तथापि सम्बद्ध पक्ष केँ जँ कोनो तरहक आपत्ति होइन तब्लॉग पोस्ट पर अपन प्रतिक्रिया मे अथवा जी-मेल पता maithilimandan@gmail.com पर अपन आपत्ति दर्ज करा सकैत छथि । यथाशीघ्र हुनक  आपत्तिक निपटारा मैथिली मंडनकप्राथमिकता होयत ।]

No comments:

Post a Comment

अपनेक प्रतिक्रियाक स्वागत अछि !