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Monday, May 16, 2016

अहाँ के की बनबाक अछि / कुमार सौरभ

प्रस्तुत आलेख मैथिली मे बाल पत्रिकाक दीर्घकालिक अभावक उपरांत प्रकाशित भ’ रहल पत्रिका ‘नेना भुटकाक नियमित स्तम्भ ‘अपना सब किछु गप्प करी’ केर अप्रैल'2016 अंक मे प्रकाशित भेल अछि । एहि श्रृंखलाक ई तेसर किस्त थिकै । एहि श्रृंखलाक आलेख सब शैशवसँ किशोर होमय जा रहल पाठकवर्गकेँ ध्यानमे राखिकेँ लिखल जाइत छैक । 
ई अपेक्षा कएल जाइत अछि  जे बच्चाकेँ माय पिता वा अभिभावक, आलेख पढ़बा लेल प्रेरितो करता आ हुनका कतहु दिक्कत होइन तँ बुझेबा मे मदतो करता । अहाँ सबहक सुझाव आ कोनो त्रुटि दिस ध्यान दियायब लेखक केँ आर नीक लिखबा मे निश्चितरूपें मदति करत ।


अहाँ के की बनबाक अछि
कुमार सौरभ

लोक सब जतय ततय जखन तखन ई पूछि दैत हेता जे बौआ अहाँ की बनय चाहै छी ? अहाँ किछु उत्तरो दैत हेबनि । हमहुँ यैह पुछैत छी । अहाँ अपन उत्तर मने मन हमरा दिअ। की बजलहुँ डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर, कलक्टर, वकील, पुलिस अधिकारी, सेनाक अफसर वा एहने किछु आर ! कहू तहम ई कोना बुझलहुँ ? कोनो चमत्कार सँ नहि बल्कि एना बुझलहुँ जे मात्र अहीं टा नहि एहेने उत्तर एहि देशक लगभग सब नेना दैत अछि । मुदा हमरा किछु अलग उत्तर चाही छल रहय । एहि बात पर आगाँ चर्चा करब मुदा ताहि सँ पहिने अहँक विचार करबा लेल एकटा प्रश्न दैत छी । प्रश्न कने कठिन छै, मुदा एहि पर जतेक जल्दी विचार कए लेब ततबे नीक रहत । की डाक्टर, प्रोफेसर, अफसर आदि बनि गेनय सँ वा पैसा आ रुतबा आबि गेनय मात्र सँ जिनगी सफल  भजाइत छै ?
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एकटा छोट-छीन खिस्सा सुनबैत छी । एकटा गाम मे एकटा जमीनदार छलहि । नाम छलहि राय सुरगुन सिंह । ओ महले जोकाँ नीक घर बनौने छल आ अपन परिवार लेल सब सुख सुविधा जुटौने छल । ओकरा लग बहुत समपैत छलहि तेँ आगाँ पाछाँ करै बला सबहक सेहो कोनो कमी ने छलहि । कैक टा लठैत ओकर दुआर पर तैनात रहैत छलहि । इलाकाक लोक ओकर डर मानैय । समय समय पर धर्मक नाम पर कने दान पुण्य आ भोज भंडारा सेहो कदैत छलहि । एहि सँ खौकार सब ओकर जयकारा करै आ पंडित पुरोहित सब प्रसन्न रहैत छलहि । चापलूस सबकेँ आर कोनो काज तँ होइत नहि छैक, कहै- सरकार जे छी से अहीं छी । अहाँ के आगाँ ककरो कोन लखा । राय सुरगुन के होइ जे ओकर जिनगी एकटा सफल जिनगीक नीक उदाहरण अछि । मुदा दबल जुबाने लोक ओकर नींदो खूब करै । सबकेँ बूझल छलहि जे अपन फायदा आ मुनाफाक आगाँ ओकरा किछु आर ने देखैत छलहि । गरीब लोक के अन्न उधारी दैय तँ बाद मे दू के पाँच वसूल करय । मनमाना लगान वसूल करै । मनमाना पैसा नहि भेटला पर कोनो गरीबक एक मात्र आधार बरद खोलि आनय, गाय खोलि आनय । सूद पर पैसा बाँटय आ गरीब सबसँ तकरे एबज मे जिनगी भरिक मजूरी बेगारे खटबए । कियो ओकरा लग भरि मुह नहि बाजय । सौंसे गाम जेना ओकरा खुशामद मे जुटल रहैत छलहि । देश आजाद भेलहि तँ जमीनदारी जाइत रहलै, मुदा शान मे कोनो कमी नहि एलहि । ओकर धंधा जरूर बदलि गेलहि । गामे लग एकटा बड्ड सघन वन छलहि । जतय दुर्लभ सखुआ सबहक गाछ छलहि । गाछ काटबा पर रोक छलहि मुदा राय सुरगुन के रोकि सकैत छल ! सखुआक लकड़ीक तस्करीसँ नीक आमदनी होइत रहलै । एकटा इट्टाक चिमनी सेहो बैसा लेलके । माछ आ मखानक कारोबार सेहो शुरू केलकै, जे पसरैते गेलहि । राय सरगुन आ ओकर परिवारक जीवन नीक जोकाँ कटैत रहलै !
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एहि खिस्साक बाद अपना सब फेर सँ ओहि प्रश्नक दिस घुरि जाहि पर अहाँ सबसँ हम विचार करबाक आग्रह केनेय छलहुँ । प्रश्न छल- की डाक्टर, प्रोफेसर, अफसर आदि बनि गेनय सँ वा पैसा आ रुतबा आबि गेनय मात्र सँ जिनगी सफल भजाइत छै ? जँ एना होइत होइ तखन तँ राय सुरगुन सिंहक जीवन केँ सफल मानल जेबाक चाही ने ? मुदा हमर विचार सँ राय सुरगुनक जीवन एकटा असफल जीवन छलहि । हम एहि जीवन केँ असफल कियैक कहलहुँ से आगाँ फरिछा दैत छी ।
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हमरा सबहक जीवनक मुख्य आधार थिक प्रकृति । पानि,हवा,रौद,अन्न सब एहि प्रकृतिये सँ प्राप्त होइत अछि । दोसर आधार थिक मनुखक समुदाय जे अपन श्रम आ बुधिक बलेँ प्रकृति सँ उपयोगी आ आवश्यक वस्तु प्राप्त करैत अछि । सुविधा लेल एहि समुदाय केँ हम सब समाज सेहो कहि सकैत छियैक । अपना सब जखन भोजन करैत छियै तखन प्रकृत्ति सँ लके खेत मे काज करय बला किसान मजदूर केँ मोन नहि पाड़ैत छियैन्ह जिनकर मेहनति सँ अन्न उपजि केँ हमरा सबहक थारी धरि पहुँचैत अछि । हम जाहि घर मे रहैत छी तकरा बनेबामे कतेको गोटय केर मेहनत रहैछ । जाहि सड़क पर चलैत छी ताहि सड़कक निर्माण में देशक कतेको लोकक पैसा लागल रहैछ ।  हम सब जकरा सरकारी पैसा कहैत छियैक वास्तवमे ओ देशक जनताक पैसा होइत छैक । जनताक मेहनतक पैसा । कियो एकटा सलाइयो केर डिब्बा किनैत छैक तँ ओ सरकार धरि किछु ने किछु टैक्स पहुँचाबैत छैक । सरकारी खजाना एहिना लोकक योगदानसँ  भरैत छैक । सोचला पर बुझायत जे कोनो मनुखक विकास प्रकृति आ जनसमुदायक सहयोगक बिना संभवे नहि अछि । हम जखन कखनो कोनो सार्वजनिक सरकारी समपैत आ सुविधाक उपभोग करैत छियै तखन हमरा सबकेँ ई गप ध्यानमे राखबाक चाही जे ओ हमरा सब पर प्रकृति आ समाजक उपकार थिकै । 

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आब एकटा गप कहू जे अहाँ के बेगड़ता पर कियो किछु मददि करथि तँ सामर्थ्य भेला पर अहाँ हुनका घुरेबैन्हि की नहि ? यैह हिसाब प्रकृति आ समाजक संगे सेहो लागू हेतय ने ? मतलब ई जे प्रकृति आ समाज हमरा सबकेँ बहुत किछु दैत अछि ओकरा घुरायब हमर सबहक दायित्व भेलय की नहि जँ एना नहि होइ तखन एक दोसरक देखार-अनदेखार सहयोगक ई व्यवस्थे चरमरा जेतेक ने ! राय सुरगुन तेँ खाली एहि प्रकृति आ समाजक शोषण केलकै, एकरा किछु देलकै कहाँ? ओ तँ खाली अपने स्वार्थ मे बाझल रहलै तखन ओ नीक मनुख वा सफल मनुख कोना भेलै? नीक आ सफल मनुख हेबाक बहुत रास आधार भसकैत छै मुदा प्रकृति आ समाजक लेल जँ अहाँ उपयोगी नहि भसकलहुँ तँ सफल कहेबाक अधिकार तँ कतहु सँ नहि अछि ।
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प्रकृतिक रक्षा आ मनुखक प्रगति लेल ई आवश्यक अछि जे सब क्यो अलग अलग भूमिकाक निर्वाह करथि । कियो डाक्टर बनि बेमारकेँ ठीक करथि । कियो पुलिसक नौकरी करैत अपराध सँ समाजकेँ मुक्त करथि । कियो साफ सफाई केर जिम्मा अपना ऊपर लैथि । कियो शिक्षक बनैथि त कियो दोकानदार आ एहिना कतेको काज छै । कोनो काज जे प्रकृति आ समाज लेल उपयोगी होइ, छोट नहि होइत छै । जीवन जीबाक लेल पायक जोगाड़ आवश्यक छैक । ई जरूरी छैक जे अहाँ डाक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, रसोइया, कलाकार वा अपन पसंदक कोनो व्यवसाय केँ चुनी । मुदा जीवनक लक्ष्य यैह तँ नहि हेबाक चाही ने? हमरा विचारसँ लक्ष्य जँ होइ तँ ई होइ जे अहाँ नीक डाक्टर बनिकेँ बेमारक सेवा करी, एहेन प्रयास करी जे पायक अभाव मे कोनो बेमारक इलाज नहि रुकए । इंजीनियर वा वैज्ञानिक बनी तँ लक्ष्य मात्र ई नहि होय जे बेसी सँ बेसी पैसा जहिठाम भेटय ओतहि जाय । विचार एहेन रहबाक चाही जे अहाँक काज सँ प्रकृति आ मनुखकेँ लाभ पहुँचय ।
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हमरा सँ जँ पूछब तँ हम कहब जे सबसँ जरूरी अछि जे हम सब नीक मनुख बनबाक प्रयास करी । नीक मनुख मने ईमानदार मनुख भेनय । गलत आ अन्यायक विरोध करए बला मनुख भेनय । समाजक लेल अपन दयित्व केँ बुझय वला मनुख भेनय । अकारण ककरो कष्ट नहि देबय वाला मनुख भेनय । एहेन मनुख भेनए जे सामूहिक हित लेल अपन आ अपन परिवारक स्वार्थसँ ऊपर उठि सकय । जे अपन अधिकार आ अपन कर्तव्यकेँ नीक सँ बुझैत आ निमाहैत होइ । नीक मनुख हेबाक प्रयास जीवन भरि चलैत रहैत छैक ।
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जखन अहाँ ई बजैत छियै जे हम पैघ भअफसर की किसान वा किछु आर बनब तखन अहाँ अपन जीवनक लक्ष्य नहि कोनो व्यवसाय वा नौकरी लेल अपन रूचि वा अपन इच्छा व्यक्त करैत छियै । की अहाँके नहि लगैत अछि जे जीवनक लक्ष्य आ सफलता तँ नीक मनुख बनबामे होइत छैक ? जँ हमर गप बुझने होयब आ सही लागल होयत तँ आब पूछयबला केँ फरिछा केँ कहबैन्हि जे हम एकटा नीक मनुख बनए चाहैत छी । फेर कहबनि जे हमर रूचि अमुक व्यवसाय वा नौकरी मे अछि । मुदा किनको आनकेँ कहबा सँ पहिने ई बड्ड जरूरी छै जे अपना मन मे संकल्प ली जे अहाँके नीक मनुष्य बनबाक अछि । एहीमे जीवनक सार्थकता छैक । एहिमे जीवनक सफलता  छैक ।


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Wednesday, March 16, 2016

मिथिला मैथिल मैथिली / कुमार सौरभ

ई आलेख दस-एगारह-बारह आ जेठ बयसक नेना सबकेँ ध्यान मे राखि के लिखल गेल अछि । मैथिली मे बाल पत्रिकाक दीर्घकालिक अभावक उपरांत प्रकाशित भ’ रहल पत्रिका ‘नेना भुटकाक नियमित स्तम्भ ‘अपना सब किछु गप्प करी’ मे ई दू खंड मे क्रमशः फरवरी आ मार्च'2016 अंक मे प्रकाशित भेल अछि । मिथिला मैथिल आ मैथिली सन जटिल पारिभाषिक पद केँ सुबोध बनाकेँ प्रस्तुत करबाक प्रयास एहि आलेख मे कएल गेल अछि ।
चूँकि बहुत प्रयासक बादो एहि आलेख केँ नितांत सरल सहज भाषा आ सामग्रीक रूप मे प्रस्तुत क’ सकबा मे सफलता नहि भेटल अछि, ई अपेक्षा कएल जाइत अछि  जे बच्चा केँ माता पिता वा अभिभावक ई आलेख पढ़बा लेल प्रेरितो करता आ हुनका कतहु दिक्कत होइन तँ बुझेबा मे मदतो करता । अहाँ सबहक सुझाव आ कोनो त्रुटि दिस ध्यान दियायब लेखक केँ आर नीक लिखबा मे निश्चितरूपें मदति करत ।

मिथिला मैथिल मैथिली
कुमार सौरभ

एखन अहाँ सबहक हाथ मे एकटा मैथिली पत्रिका अछि । आशा अछि पत्रिका पढ़ने होयब आ नीको लागल होयत । एकटा मैथिली पत्रिका हाथ मे आबतहि किछु-किछु प्रश्नो मन मे उठल होयत । जेना मैथिली कतय-कतय बाजल जाइत छैक?  मैथिली बजनिहार लोक सब के छथि, कतेक छथि? मैथिली भाषाक विशेष परिचय की? आदि-आदि । एकटा आरो जिज्ञासा रहल होयत । एहि पत्रिका मे जे किछु अहाँ के मैथिली मे पढ़य लेल भेटल अछि ओ हिन्दी मे वा अंगेरेजियो मे तँ रहि सकैत छलहि? मैथिली पढ़बाक जरूरति की? एहेन जिज्ञासा जँ मन मे नहि उठल हुअए, तखनो कोनो दिक्कत नहि । अहाँ एहि जिज्ञासा आ प्रश्न सबकेँ अपनो जिज्ञासा आ प्रश्न मानि ली । एहि सब पर हमरा सबहक विचार करब बहुत जरूरी अछि ।
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जाहिठाम मैथिली बहुत पैघ जनसमुदायक आपसी बात व्यवहारक भाषा थिक ओहि भूमिक नाम थिक मिथिला। एहि भूमिक विस्तार बिहारक उत्तरी छोर सँ नेपालक तराई क्षेत्र धरि अछि । तराई माने पहाड़ सँ नीचाक हिस्सा ।  मिथिला, वर्तमान भारतक कोनो राज्यक नाम नहि थिक । मुदा कहियो ई एकटा स्वतंत्र राज्य छलहि ।
इतिहासक लेखन उपलब्ध कएल गेल सबूतक आधार पर तर्कक संग कएल जाएत अछि । एखन धरि अत्यंत प्राचीन कालक इतिहासक मात्र अनुमाने लगाओल जाइत छैक । प्राचीन धर्मग्रंथ आ साहित्य सब सँ भेटल संकेतक आधार पर सेहो इतिहास केँ बूझवाक प्रयास कएल जाइत छैक । वेद, पुराण, स्मृति, आरण्यक, ब्राह्मण आदि धर्म ग्रंथक अतिरिक्त रामायण आ महाभारत आदि एहने धार्मिक ग्रंथ थिक ।  एहि ग्रंथ सबहक उत्पत्ति कहिया भेल ताहि केर सटीक अनुमान लगायब संभव नहि भेल अछि । मुदा ई ग्रंथ सब बहुत पुरान अछि एहि सँ अधिकांश विद्वान लोकनि सहमत छथि । ध्यान राखी जे एहि ग्रंथ सबकेँ  सोझे इतिहास नहि मानल जाइत अछि । एहि मे लिखल गेल गपक कोनो ठोस प्रमाण ताकबा मे एखन धरि अपना सब सफल नहि भेल छी । एहि कारणे एहि ग्रंथ सबकेँ मिथक ग्रंथक संज्ञा सेहो देल जाइत छैक। मिथक माने एहन कथा जे लोकक बीच सत्यकथा जोकाँ प्रचलित होइ मुदा जकर सत्य हेबाक प्रमाण उपलब्ध नहि होइत अछि  । मिथिला क उल्लेख आ वर्णन स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, वाल्मीकि रामायण जेहेन कतेको ग्रंथ मे कएक बेर भेल अछि । विषय सँ हटि केँ केतेक रास गप करबाक उद्देश्य यैह छल जे मिथिला क वर्णन जाहि ग्रंथ सब मे अछि ओहि ग्रंथ सबहक मादे अहाँ सबकेँ कोनो भ्रम नहि रहय ।
राजा जनक केर नाम अवस्से सुनने होयब । मिथक कथाक अनुसार ओ मिथिलाक परम प्रतापी राजा छलाह । हुनक पुरखाक रूप मे निमी आ मिथि केर उल्लेख भेटैत अछि ।  निमि द्वारा स्थापित मिथिलाक पहिल राजवंश केँ विदेह राजवंश कहल जाइत अछि । एहि कारणे मिथिला केँ विदेह सेहो कहल जाइत छैक । मिथिलाक एकटा नाम तीरभुक्ति  सेहो अछि । लोक व्यवहार मे तीरभुक्ति  केँ तिरहुत कहल जाइत छैक । अनुमान कएल जाइत छैक जे, जेँ  मिथिला क सम्पूर्ण भूभाग कोसी, कमला, बलान, गंडक, गंगा आदि धारक तट(तीर) पर अवस्थित छल , तेँ एकर नाम तिरहुत भेल ।
कहल जाइत अछि जे प्राचीन काल मे मिथिला धार्मिक कर्मकांड, संस्कृत अध्ययन आ दर्शनशास्त्रक अनेको विद्वान लोकनिक कारणें विख्यात छल । दर्शनशास्त्र ज्ञानक एकटा शाखा थिक । इतिहास मे कएक टा आरो राजवंशक मिथिला मे शासन करबाक उल्लेख भेटैत अछि । एतय एक समय मे बौद्ध धर्म खूब फूलल फलल छल । समयक संग मिथिलाक इतिहासक अध्ययन केर सुयोग अहाँ सबकेँ अबस्से भेटत । इतिहासक कतेको कालखंड केँ पार करैत मिथिला एखन धरि बनल अछि । एकर संस्कृति बचल अछि । भाषा बचल अछि ।
मिथिलाक अतीत जे होए मुदा वर्तमान मे एतय बाढ़ि, सुखारि, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा आ बेमारीक सम्राज्य छै । शासक वर्ग सब दिन एहि क्षेत्रक उपेक्षा करैत रहल अछि । हमर सबहक अपन राज होए । हमर सबहक उपेक्षा नहि कएल जाए ताहि लेल जरूरी अछि जे राजनीतिक अधिकार अपना सबहक हाथ मे होइ । एहि कारणें भारतक स्वतंत्रता क बादे सँ मे स्वतंत्र मिथिला राज्यक मांग चलि रहल छै। नेपालो मे एहने स्थिति रहल छैक । ओतहु तराई क्षेत्र मे एहने मांग भारतक अपेक्षा बेसी मजगूती सँ उठैत रहल छैक ।
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आपस मे मैथिली भाषाक व्यवहार करय वाला पैघ जन समुदायक भूमि मिथिला थिक । एकर परिभाषा सोझ अछि । मुदा मैथिल क पहचान एतनय सोझ तरहें नहि कएल जेबाक चाही । हमरा विचारे मैथिलक सबसँ उचित पहचान जे भ सकैत अछि से अहाँ लोकनि केँ बता रहल छी । मिथिला मे केएक पीढ़ी सँ बसनिहार वा एहि ठामक समाज आ संस्कृति मे रचि बसि गेनिहार वा जे एखन मिथिला मे नहि छथि मुदा जिनकर पुरखा-पुरखइन मिथिलाक छथि से मैथिल भेला चाहे हुनका मैथिली बजय अबैत होइन्ह वा नहि ।
शुरूए सँ अपन सबहक समाज धर्म आ जाति-पाति मे बँटल अछि । जाति आ धर्मक आधार पर भेद-भाव आ अन्याय होइत रहल अछि । जखन कि मनुखक बीच कोनो आधार पर भेद भाव केनय अपराध थिक । मिथिला मे सेहो जाति आ धर्मक आधार पर भेद भाव आ अन्याय होइत रहल अछि । हमरा सबहक दायित्व अछि जे कोनो तरहक भेद-भावक विरोध करी । एहि भेद-भाव सँ मिथिला आ एहि देश केँ मुक्त करी । सबकेँ बुझाबी जे हम सब बराबर छी आ हमरा सबहक बीच कोनो भेदभाव नहि हेबाक चाही ।
दुर्भाग्य सँ मैथिल केर पहिचान किछु गोटय उच्च वर्णक मानल जाए वला जाति केर रूप मे करैत छथि । ई पहिचान गलत अछि । मिथिला मे बसनिहार लोकक अतिरिक्त जे पहचान ऊपर बताओल अछि चाहे कोनो जाति धर्मक होइथ सब मैथिल थिकाह । एहि बात केँ बुझेबा लेल अहाँ लोकनि केँ यात्री जी केर किछु पाँति सुना रहल छी । यात्री जीक पूरा नाम छलन्हि वैद्यनाथ मिश्र यात्री । हिन्दी मे ई नागार्जुनक नाम सँ लिखैत छलाह । हिनका मैथिली आ हिन्दी दुनू भाषाक श्रेष्ठ साहित्यकार मानल जाइत छन्हि । हुनक एहि पाँति सबकेँ गेंठ बान्हि ली । एहो बातक ध्यान राखी जे मिथिला मे बसनिहारे टा पर नहि ऊपर बताओल मैथिलक सब पहचान पर ई लागू होइत छैक ।
बाभन छत्री औभुमिहार/ कायस्थ सूँड़ि औरोनियार/ कोइरी कुर्मी औगोंढि-गोआर/ धानुक अमात केओट मलाह/ खतबे ततमा पासी चमार/ बरही सोनार धोबि कमार/ सैअद पठान मोमिन मीयाँ/ जोलहा धुनियाँ कुजरा तुरुक/ मुसहड़ दुसाध ओ डोम-नट्ट.../ भले हो हिन्नू भले मुसलमान/ मिथिलाक माटिपर बसनिहार/ मिथिलाक अन्नसँ पुष्ट देह/ मिथिलाक पानिसँ स्निग्ध कान्ति/ सरिपहुँ सभ केओ मैथिले थीक/ दुविधा कथिक संशय कथीक?”
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मैथिली ओही भाषा क नाम थिक जाहि मे हम, अहाँ सबहक संगे गप्प क रहल छी । एहि भाषा क कोनो एक रूप नहि अछि । ठाम ठाम पर एकर रूप बदलल भेटत । दरभंगा आ मधुवनी जिलाक  मैथिली आ सहरसा आ सुपौल जिला क मैथिली में वा मुजफ्फरपुरक मैथिली मे जे फर्क भेटत ओकरा शैलीक फर्क कहल जाइत छै । एतय शैली मने बजबाक तरीका । एहि तरहक फर्क दूई भिन्न जातिक मैथिली मे सेहो देखार पड़त । मुदा शैलीक किछु-किछु फरकक रहितौ ई सब मैथिली थिक । कतय जाई छी? , कोने जाइ छें?, किधर जा रहले हेँ?’- एहि उदाहरण मे एकहि टा वाक्य केँ मैथिलीक तीन टा शैली मे लिखल गेल अछि । अलग अलग शैली मे मैथिलीक बाजल जाएब, मैथिलीक विशेषता थिक । मैथिलीक प्रत्येक शैलीक सम्मान करब हमरा सबहक कर्तव्य थिक ।
बाजबा अथवा लिखबा मे शैलीक जे फरक अछि ताहि पर अलग सँ अपना सब एक बेर गप्प करए बैसब । ताबत एतबै कहब जे अहाँ मैथिली बुझि जे बजै छी, ओकरा जेहिना सपरै यै तहिना लिखू । अहाँ जे बाजी जे लिखी सैह मैथिली । एकदम शुरू मे शुद्द-अशुद्धक परिवाही नहि करवाक चाही । निधोख भ के बाजैत, सुनैत, पढ़ैत आ लिखैत रहबाक चाही । एहि मे कोनो संदेह नहि जे धीरे-धीरे अहाँक मैथिली ज्ञान बढ़ैत जायत ।
एखन धरि उपलब्ध जानकारीक अनुसार अपन सबहक भाषा लेल मैथिली शब्दक पहिल प्रयोग अंग्रेज विद्वान कॉलब्रुक 1801 मे लिखल गेल अपन एकटा लेख मे केनय छलाह । ताहि सँ पहिने एकरा लेल देस भाषा, अवहट्ट, देसिल बयना जेहेन शब्द प्रचलित छलहि । मैथिली, जनकक पुत्री जानकी केँ सेहो कहल जाइत छन्हि । रामायण कथाक अनुसार जानकी जिनक नाम सीता सेहो छन्हि, रामक कनिया छलीह ।
2001 केर जनगणनाक अनुसार भारत मे मैथिली बजनिहार लोक सबहक संख्या एक करोड़ बाइस लाख सँ बेसी अछि । अनुमान कएल जाइत अछि जे मैथिली बजनिहारक संख्या एहि सरकारी आँकड़ा सँ बहुत बेसी छैक । जनगणना मे मिथिलाक कतेको गोटय चेतनाक अभाव मे अपन मातृभाषाक नाम मैथिली नहि लिखबैत छथि । कतेक गोटय केर मातृभाषा जानि बूझि के हिन्दी लिखि देल जाइत अछि । 2015 मे मैथिली भाषी सबहक संख्या कम सँ कम साढ़े तीन करोड़ रहबाक अनुमान अछि । नेपालक लगभग तीस लाखक मैथिली भाषी आवादी केँ सेहो एहि मे जोड़ि दी तँ मैथिली बजनिहारक संख्या कम सँ कम पोने चारि करोड़ होइत अछि । मैथिली बजनिहारक वास्तविक संख्या एहि अनुमान सँ बेसियो भसकैत अछि । ई बात अहूँ सबहक जानकारी मे रहबाक चाही जे मैथिली बजनिहारक एतेक संख्याक रहितौ नेना सबकेँ मैथिली मे पढ़ेबाक कोनो व्यवस्था बिहार सरकार नहि केनय अछि ।
कोनो भाषा जाहि अक्षरक व्यवस्था मे लिखल जाइत अछि ओ लिपि कहबैत छैक । मैथिली जाहि लिपि मे लिखल जाइत छलहि तकर नाम तिरहुता वा मिथिलाक्षर छैक । ई पुरान लिपि मानल जाइत छैक । 1900 ई. सँ पहिने एकर प्रयोग कम हुअए लागल छल । एकर पाछाँ दरभंगा राजक द्वारा एहि लिपिक उपेक्षा, मैथिली मे छपाई केर असुविधा आ राष्ट्रीयताक भावना जेहेन अनेको कारण अछि जाहि मादे अहाँ सब बाद मे विस्तार सँ अबस्से पढ़ब । एहि लिपि मे अपना सबहक पुरान ग्रंथ सब लिखल अछि । ओहि ग्रंथ सबकेँ अपना पढ़ि आ बूझि सकी ताहु लेल आवश्यक अछि हमरा सब प्रयत्न सँ एहि लिपि केँ जरूर सीखी । एखन मैथिली जाहि लिपि में लिखैत आ छपैत अछि ओ देवनागरी लिपि थिक । संस्कृत, हिन्दी, नेपाली आ मराठी जेहेन कतेको आर भाषा एही लिपि मे लिखल जाइत छैक । मैथिली मे बहुत रास पोथी आ पत्रिका बहराइत छैक मुदा सरकारी उपेक्षाक कारणें एहि भाषाक कोनो दैनिक अखबार, रेडियो स्टेशन अथवा टीवी चैनल नहि अछि । एहेन कोनो गैरसरकारी प्रयासो भेलहि तँ बहुत दिन धरि चलि नहि सकलहि । नेपाल मे किछु मैथिली एफ.एम. स्टेशन अवस्स छैक ।
बहुत दिन धरि चलल आंदोलनक बाद 2003 मे मैथिली केँ भारतक संविधानक आठम अनुसूची मे सम्मिलित कएल गेलहि । एहि सँ ई भाषा संविधान सँ मान्यता प्राप्त भाषा भ गेलहि । एहि अनुसूची मे सम्मिलित हेबाक लेल भारतक प्रत्येक समर्थ मातृभाषा योग्यता रखैत अछि । एहेन सब भाषा केँ ई सम्मान भेटबाक चाही । मुदा अहाँ सबकेँ ई गप नीक सँ बूझल रहबाक चाही जे संविधानक मान्यताक बावजूद मैथिली एखन धरि उपेक्षित अछि । एहि भाषा मे ऑफिस, सकूल, कचहरी कतहु काज नहि होइत छैक । जखन कि हेबाक चाही रहय ।
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आब अपना सब सबसँ महत्वपूर्ण जिज्ञासा पर विचार करैत छी । मैथिली कियै पढ़ी, कियै बाजी, कियै लिखी ? सबसँ पहिने ई स्पष्ट कदी जे कोनो भाषा सीखब बेजाय ने । अहाँ हिन्दी सीखू, अंग्रेजी सीखू, तमिल सीखू, फ्रेंच सीखू जतेक भाषा सीखबाक इच्छा हुअए सब सीखू । जतेक भाषा बूझब ओतबे बेसी लाभ होयत । नेनपन मे बेसी सँ बेसी भाषा सीखबा मे दिक्कतो कम होइत छैक । हमर निवेदन एतबहि टा जे मैथिली अबस्से सीखी । ई अहँक पुरखा-पुरखइन लोकनिक भाषा थिक । जेना गाछ कतनहु पैघ आ झमटगर भजाए ओकर जड़ि माटिये मे रहैत अछि तहिना अपना सब कतहु चलि जाइ अपन सबक जड़ि मिथिले मे रहत । ई जड़ि सँ जुड़ल रहबाक लेल जरूरी अछि जे हम अपन भाषा केँ बूझी । भाषा नहि बूझब तँ अपन गीत नाद, अपन साहित्य, अपन लोकक सुख-दुख कोना बूझि सकब ? अपन संस्कृति कोना बूझब ? अपन संस्कृति ने बूझब तँ अपन सबहक पहिचाने हेड़ा जायत ।
अपना सब कतहु रही, कतनहु प्रयास करी तैयो की मैथिल हेबाक पहिचान छूटत ? मानि लिअ अहाँ मिथिला सँ दूर कोनो नगर मे रहैत छी ।  कियौ पूछत बौआ एतय रहैत छी से तँ ठीक मुदा अहाँ छी कतैक? तखन बाजहि पड़त जे हम मिथिलाक छी । कियो पूछत जे बौआ ओहि ठामक भाषा मे किछु बाजि के सुनाउ । जँ मैथिली नहि अबैत रहत तँ कतेक लाजक गप होयत जे अपन भाषाक ज्ञान नहि छन्हि । हमरा सबकेँ अपन मैथिल होयबा पर गर्व हेबाक चाही । ओहि भूमिक लेल हमरा सबकेँ कृतज्ञ हेबाक चाही जकर माटि पानि अन्न सँ हमर पुरखा पुरखइन सब पोसल गेलाह । जाहि कारणे आई हमरा सब छी ।
जँ अपन भाषा नहि बूझब तँ अपन मिथिलाक बूढ़-पुरानक अनुभव कोना बूझि सकब ? गरीब, दुखित, किसान, मजूरक कष्ट कोना बूझि सकब? जँ ई सब नहि बूझि सकब तखन अपन पुरखा-पुरखएइनक एहि भूमि सँ दुख, अन्याय, गरीबी, असमानता, अशिक्षा आ एहेन कतेको समस्या केँ दूर कोना कसकब । अपन मिथिला जतेक उन्नति करत अपना सबहक मान ओतनहि बढ़त । अपना सब केँ मिथिलाक उन्नति मे अपन सहयोग देबाक अछि ।
अहाँके बूझल अछि मैथिली दुनिया केर सबसँ मिठगर भाषा मे सँ एक मानल जाइत छैक ? कहू तअपन एहि मिठगर भाषा केँ अपन ठोर पर नहि बसा लेबाक चाही? एकरा बाजय मे आत्मविश्वासक अनुभव करू । एहि भाषा मे किछु किछु पढ़ितो लिखतहु रहू ।
जँ मैथिली नहि सीखब तँ अपन मिथिला सँ दूर होइत जाएब । मिथिला सँ दूर होइत जेबाक अर्थ भेल अपन लोक आ अपनहि सँ दूर भेनय । मैथिली नहि सीखब तँ अपनहि इतिहास, अपनहि पहिचान सँ दूर भजाएब । हमरा विश्वास अछि जे अहाँ सब मिथिला, मैथिली आ अपन मैथिल पहिचान सँ दूर नहि हुअए चाहब ।


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Tuesday, March 15, 2016

अक्षर परिचय/ उपेन्द्रनाथ झा 'व्यास'

हमर प्रायः सब भाइ बहिनक वर्णमाला ज्ञानक आधार यैह गीति काव्य अछि । बाबूजी आ माँ हमरा सब केँ गाबि गाबि केँ ई सुनाबथि आ ई हमरा सबहक जेना मन स्मृति मे अंकित होइत चलि जाए । कियो परिचित पाहुन लोकनि आबथि तँ हमरा यैह कविता सुनेबाक लेल कहल जाइत छल । हम उत्साहपूर्वक ई पूरा कविता सुना दैत छलियै ।
मातृभाषा शिक्षाक सबसँ सहज माध्यम होइत छैक । नेना सब केँ एहि मैथिली गीति काव्यक माध्यम सँ अक्षर-ज्ञान करायब बड्ड हल्लुक भजाइत छैक । शिशु केँ ज्ञानक पहिल पौदान पर चढ़ेबाक प्रसंगे ई कविता एकटा अनमोल निधि थिक ।
एहि सरस रचनाक रचियता छथि- उपेन्द्रनाथ झा व्यासनेना भुटका पत्रिकाक दोसर अंक मे एकर प्रस्तुति करैत दमन कुमार झा लिखने छथि- “ ‘व्यासगंभीर काव्य लिखबाक लेल ख्यात छथि, किन्तु शिशुलोकनिक हेतु सेहो केहेन सुबोध काव्य लिखी सकैत छथि, से एहि पोथीसँ सिद्ध अछि ।” “कवि सँ ज्ञअक्षर धरि प्रायः प्रत्येक वर्णपर बड़ सुबोध कविताक रचना कय कोमलमति बालककेँ अक्षरज्ञानक संग मातृभाषाक प्रति प्रेम सेहो जगौने छथि । मैथिली मे एहि प्रकारक वस्तुक नितान्त अल्पता छलैक । वर्णानुसार कविता मिथिला मिहिर (साप्ताहिक)क 14,21,28 अक्टूबर आ 4,11,18 नवम्बर 1979 केँ अंकमे प्रकाशितो भेल रहनि । [संदर्भ- नेना भुटका, मार्च, 2016, पृष्ठ सं.-24]
नेना भुटका मे प्रकाशित एहि रचना मे हम अपन स्मृतिक आधार पर किछुए टा तर्कसंगत परिवर्तन केनय छी । मूल कृति उपलब्ध भगेला पर एकरा तदनरूप करबाक प्रयास कएल जायत । एहि बातक ध्यान राखल जाए जे एहि मे किछु वर्णक लोप कएल गेल अछि जेना कि- वर्गक अंतिम वर्णक सेहो लोप छै । एहि वर्ण केँ शुरूमे राखि कोनो शब्दक गठन प्रायः नहि होइत छैक । किछु वर्णक तँ प्रायः प्रयोगो बन्न भगेल छैक । कोनो तरहक सुधारक लेल सुझावक स्वागत अछि ।  


अक्षर परिचय

टकन-मटकन खेल खेलाउ
म बीछि गाछीसँ लाउ
चना माछक साना होइछ
टासँ घर महल बनैछ
चकुनकेँ चुलहा पर देखू
सर खेतमे गोबर फेकू
षिमुनि सबहक फूट समाज
लृ लृकेर कोनो ने काज
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क पहिल गिनतीकेँ मानू
ना एक कतहुसँ आनू
ल बहुत कबकब अछि भाइ
टल पानि परम सुखदाइ
अंगा हमर छोट भ गेल
अः धन हमर चोर लगेल
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कबासँ अहाँ सीटू केस
टरलालकेँ लगलनि ठेस
दहा होइछ पशुमे बूड़ि
ड़ी अधिक छूनहिसँ दूरि
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लू चली मिली देखी नाच
ओ पैसामे किनलहुँ साँच
लमे बहुतो जीव रहैछ
ट दय करब नीक नहि होइछ
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टका जल सँ खूब नहाउ
कक संगमे पड़ी ने बाउ
मरू डिमडिम बजबी आनि
कर ढकर नहि पीबी पानि
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रबामे नहि होइछ केश
रथर काँपथि डरे धनेश
ही चुड़ामे गारू आम
न धन छला भरत ओ राम
रक जायब जँ करबे पाप
ड़ा-पड़ा कटतौ ओ साप
टक लगा कयबाहर भेल
ड़द केँ चरबय लय गेल
रत नामपर अछि ई देश
हाराज कहबथि मिथिलेश
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श भगवानक अपरमपार
मा संग जे करथि बिहार
लका धोती पहिरू बाउ
नमे एकसर अहाँ ने जाउ
ठ रावणकेँ मारल राम
ड्मुख सुर सेनापति नाम
बसँ पैघ थिका भगवान
म सब करी हुनक गुनगान
क्ष त्रिय ऊपर रक्षा भार

त्र ज्ञ पढ़िके अक्षर पार

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