Showing posts with label टिप्पणी. Show all posts
Showing posts with label टिप्पणी. Show all posts

Wednesday, June 25, 2025

भाषाधार प्रान्त : डॉ. लक्ष्मण झा

भाषाक आधार पर प्रांतक गठन आधुनिक भारतक निर्माणक अभिन्न घटक रहल अछि। स्वतंत्रता सँ पूर्व कांग्रेस भाषावार प्रांत निर्माण पर सैद्धांतिक रूप सँ सहमत छल। स्वतंत्रताक बाद नेहरू जीक अगुआइ वाला कांग्रेस सरकार ओतने दुविधाग्रस्त रहल। ई सरकार नहि जानि कोन काल्पनिक आशंका सँ ग्रस्त भ’ के भाषावार प्रांतक गठन मे टालमटोलक नीति अपनेबा मे बेसी सुविधा देखैत छल। जनाकांक्षाकेँ ताक पर राखबाक एहि नीतिक गंभीर परिणाम रसे-रसे सोझां आबय लगलै। श्री पोट्टी श्रीरामुलुक आंध्रक निर्माण लेल मृत्यु धरि अन्नक त्याग होए वा किछु अन्य प्रांतक आकांक्षी जनता सबहक तीव्र आंदोलन, नेहरू जी केँ बैक-फुट पर आबय पड़लनि। भाषा आधारित प्रांतक आकांक्षी ‘मिथिला’ सेहो छल। जनताक चेतना आ इच्छा शक्तिक अभावक संगहि जनप्रतिनिधि लोकनिक घोर उदासीनता आ घोर-स्वार्थीवृत्ति कारणें, ई ओहि समय पृथक प्रांतक समस्त पात्रता राखितो एकटा अलग प्रांतक रूप मे प्रतिष्ठित नहि भ’ सकल।
    मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा मानल जाए वाला डॉ. लक्ष्मण झा दिसंबर 1952 ई. (पहिल अंक 15 दिसंबर 1952) सँ ‘मिथिला’ नामक एक साप्ताहिक पत्रक प्रकाशन शुरू केलनि। अपेक्षित जन-सहयोगक घोर अभाव आ अन्यान्य चुनौतीक सामना करैत अपन ईच्छाशक्ति, श्रम आ निजी साधनक बदौलते ओ अगस्त 1953 ई. (अंतिम अंक 10 अगस्त 1953) धरि एकर प्रकाशन कए संभव बना सकला। एहि पत्र मे भाषाधारित प्रांत, भाषा-अस्मिता, मिथिला आ देशक विभिन्न समस्या पर ओ टिप्पणी करैत रहैत छलाह। ‘मिथिला’ मे प्रकाशित हुनकर टिप्पणी आदिक संकलन श्री सुरेश्वर झाक संपादन मे 2002 मे
विचार-चिंतामणिक नाम सँ प्रकाशित भेल । भाषाधारित प्रांत पर हुनक टिप्पणी मे सँ तीन टा टिप्पणी उपरोक्त पुस्तक सँ साभार एतय प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। लक्ष्मण झाक विवेचना क्षमता अत्यंत प्रभावी छन्हि आ हुनकर वैचारिकी स्वतंत्र ‘मिथिला’ राज्यक आंकांक्षी-जन केँ एखनहु प्रेरित करैत अछि।  
   

भाषाधार प्रान्त
तेलगु-भाषाक आधार पर आन्ध्र प्रान्तक निर्माण करब नेहरू सरकार गछलक तँ परंच तते घिनायकय जे कमे लोक केँ धन्यवाद देबाक उत्साह भेलै। विरोध सेहो भइए गेल कारण आन्ध्र-निर्माणक ई नवीन योजना जे जवाहरलाल जी देशक समक्ष रखलनि अछि से अपूर्णे नहिं दुष्टतापूर्णो छनि।
    भाषाक आधार पर भारत मे प्रान्त सभक संगठन हो एकर आन्दोलन पचासहु वर्षसँ अधिक दिन सँ चलि रहल अछि। 1908 मे कांग्रेस एहि विचार केँ सिद्धांतरूपेँ ग्रहण कयलक। एही आधार पर 1911 मे बंगालक अबंगला भाषी क्षेत्रकेँ अलग कय बिहार बनाओल गेल ओ बंगलाभाषी पूर्व बंगाल तथा पश्चिम बंगाल केँ मिलाय एक प्रांत बनल।
    1916 मे तलगुभाषी लोकनि आन्ध्र प्रान्तक निर्माणक मांग पेश कयलनि ओ एक साल बाद कांग्रेस एकरा स्वीकार कयलक। 1920 मे नागपुर कांग्रेस मे निश्चित भेल जे समस्त देशक प्रांतीय संगठन भाषहिक अनुसार हो, ओ ताही हिसाबें आन्ध्र, तमिलनाड, केरल, कर्णाट, महाराष्ट्र, उत्कल, गुजरात आदिक प्रान्तीय कांग्रेस कमिटी बनल।  विचार भेलै जे अंगरेज सरकार एहि सिद्धांत केँ मानय वा नहिं देश एवं ओकर प्रतिनिधि संस्था कांग्रेस ओहि पर चलब शुरू कय दियय। सैह भेल। एहिसँ भिन्न-भिन्न प्रान्तक कांग्रेस कार्य-कर्त्ता लोकनि स्वभाषा-भाषी जनताकेँ संगठित करबामे वेश सुविधा पौलनि।
    एहि कार्य सँ कांग्रेसक सुविधे टा छलै, असुविधा छलै अंगरेज शासक केँ। से ओ तँ भेल शत्रुए। ओकर असुविधा तँ अभिष्टे छल। जा अंगरेज रहल ता धरि भाषाधार प्रान्तक बेश गीत कांग्रेसक अधबवाधव मे गाओल गेल। बेचारा सभ कै बेरि मानयक हेतु प्रयासो कयलक यथा आसाम, उड़ीसा ओ सिन्धक निर्माण कय, परंच भाषा सभक सीमा निर्धारण ओ शासन सम्बंधी झंझट देखि पराइत रहल।
    कांग्रेसी बाबू लोकनि जे राजा भेला तँ हिनकहु ऊपर अंगरेजक भूत सवार भेल। इहो झंझट सँ डेराय लगला ओ एहि सवाल केँ तारय-बटाड़य लगला। देशकेँ यदि आन तरहेँ ई लोकनि सुभ्यस्त कयने रहितथि तँ संभव भाषाधार प्रान्तक समस्या एतेक विकट रूपमे तत्काल प्रकट नहि होइत। सुख-सुविधामे लोक एकटा किछु काल बिसरि जाइत परन्तु से तँ भेल नहि। सुविधाक अर्थकोन, देश बनि गेल नरक। कोनो यातना, कोनो पीड़ा बाकी नहि रहल। सर्वत्र रोग-शोक-परितापें हाहाकार मचल अछि। जाही खन जे एकर त्रुटि बताय एकरा पर आक्रमण करबक संकेत करै छै ताही खन तकरा संग लोक आँखि मूनि दौड़ि परै अछि।
    एहि अशांति सँ जान बचयबाक रास्ता कांग्रेसी लोकनि एखन बनौने छथि जवाहरलाल जीकेँ, ई लोकनि हुनका रामलीलाक मुरूत बनाय अंगने-अंगने शांतिक बिलौकी मंगने फिरै छथि। परंतु एहि मुरूतक रूप कतेक दिन धरि उद्विग्न समाज केँ शान्त राखत? नेहरू बाबूक कुलशील ओ बाग्छटासँ भूखल, पियासल, रुग्न, बेहाल ई अपार जन समूह कते दिन धरि मुग्ध रहत?
    नवीन आन्ध्रमे हैदराबादक तेलगु-भाषी इलाका नहि मिलाओल जाएत, कारण ताहिसँ हैदराबाद राज्यक अंगभंग हेतैक! तखन ई भाषाधार प्रान्त नहिं भेल, ई भेल विद्रोही आन्ध्र लोकनिकेँ शान्त करबाक किछु उपाय। नवीन कांग्रेसी राजालोकनिकेँ राजकीय भोग-विलासमे कोनो उपद्रवसँ बाधा नहि होनु ई तकर विधान मात्र। एहि दुष्ट बुद्धि ओ निकृष्ट आचरणक कोन दण्ड हो? विधान तँ छै, दुइ रूपक-शास्त्रक ओ व्यवहारक। भोगविलोनमत्त राजा शास्त्रीय दण्ड नहि लै अछि। ओकरा हेतु होइछै व्यवहारक दण्ड, जे भेल छै मिश्रमे, चीनमे, रूसमे, फ्रांसमे, ईंगलैंडमे आदि। से केहन लागत? परन्तु दोसर उपाय?
(‘मिथिला, 29 दिसम्बर 1952)   
 

भाषाधार प्रान्त
भारतक प्रायः सबपार्टी कहै अछि भाषा, भूमि, अर्थनीति ओ परम्पराक आधार पर प्रान्त सभक निर्माण हो। परंच क्रियामे सब आगूपाछू करै अछि। कांग्रेस पार्टी राजा अछि। ओ नवीन व्यवस्था करबासँ डरय ई स्वाभाविक। राजपद पर पहुँचल व्यक्तिक सर्वोपरि इच्छा रहै छै ओकर भोग करयक। ओ कोनो झंझट नहिं चाहै अछि। नवीन कार्य मात्र ओकरा हेतु झंझट, कारण पक्ष-विपक्षमे किछु ने किछु आन्दोलन हयब अनिवार्य ओ से भेनहि आनन्द मे बाधा।
    प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ओ कम्युनिस्ट पार्टी सिद्धान्त में भाषाधार प्रान्त रखने अछि परन्तु एहि विषयक कोनो भारतव्यापी योजना प्रस्तुत करयसँ डरै अछि। प्रजासोशलिस्ट त मिथिला आन्दोलनक विरोध पर्यन्त कयलक अछि। कम्युनिस्ट पार्टी लोकक बाट तकै अछि। अधिक लोककें जतय जाइत देखत प्रायः सैह पथ पकड़त। भाषाधार प्रान्त विषयक सम्मिलन आदि में पार्टीक सदस्य कहैछथि हमर पार्टी एखन एहि विषयमे अपन निर्णय नहिं कयलक अछि तें हम एखन एकर पक्ष नहि करब। पार्टी जयत जोरगर आंदोलन देखे अछि ततय आगुये चलैक कोशिश करै अछि, जतय आन्दोलन मन्द छै ततय विरोधीहु बनि जाइ अछि। कम्युनिस्ट पार्टी सन क्रांतिक सिद्धांत वधारयवला दल एहि रूपें जीतलाक ढोलिया बनय ई सर्वथा निन्दनीय।
(‘मिथिला’, 20 अप्रिल 1953)
 

भाषाधार प्रान्त
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हालहि कर्णाटक प्रान्तक बेलगाँव कांग्रेस सरकारक भाषावार प्रान्तनीतिक व्याख्या कयल। हुनक कथन अछि आन्ध्रप्रान्त निर्माणक बाद एकवर्ष धरि ओकर कार्य संचालन देखि सरकार भाषाधार प्रान्त कमीशन नियुक्त करत, ई कमीशन देशभरिक प्रान्त पुनर्गठनक समस्या पर विचार करत। भाषाधार प्रान्त सम्बन्धी निर्णय ककरो पर लादल नहिं जायत, मतैक्य भेलापर कार्य सम्पादन हयत। लोकक डरयला-धमकयलासँ सरकार भाषाधार प्रान्तक स्वीकृति नहिं देत आन्ध्रप्रान्तक घोषणा श्री रामुलुक देहान्तक कारण नहिं भेल, वल्कि हुनक अनशनक कारण आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी निर्णय मे विलम्ब भऽ गेल।
    प्रधानमंत्रीजीक ई घोषणा साम्राज्यवादी लोकनिक औपनिवेशिक स्वतंत्रता सम्बन्धी नीतिक अनुरूप अछि। प्रतिकूल स्थिति कैं टारबाक हेतु कमीशनक नियुक्ति, मतैक्य शर्त तथा जन आन्दोलन एवं बलप्रयोगक निन्दा-ई सभ अछि साम्राज्यवादक अस्त्र। भारतीय स्वतंत्रता संग्राममे देशक अंगरेज राजालोकनि एहि सभ अस्त्रक प्रयोग करैत छला। श्रीरामुलुक अनशनक प्रति जे तिरस्कारभाव प्रधानमंत्री जी देखौल अछि सैह तिरस्कार भाव अंगरेज लोकनि गाँधीजी क अनशनक प्रति देखबै छल जाहि पर जवाहरलालजी खौंझाय उठै छला। हाल तक अंगरेजलोकनि कहै छला 1942 क आन्दोलनक किछु फल नहिं भेल। 1947 मे भारतकेँ जे स्वतंत्रता देल गेल से अंगरेज लोकनिक उदारता छल। बलक अभावमे दलित वर्गक लोककें अपन बुद्धि ओ विवेकक प्रति ई तिरस्कार सहै पड़े अछि। उन्मत्त राजालोकनिक यैह तिरस्कार भाव दलित वर्ग मे चेतना अनै अछि ओ तत्पश्चात् संघशक्ति । राजोन्मादक एक औषध अछि बलप्रयोग। समस्त संसारक इतिहास एकर प्रमाण अछि।
    बेलगांवक सभामे नेहरूजी बड़ विचित्र स्थिति मे छला। सभामण्डप पर आगमन होइतहि प्रबल विरोध होबय लागल। 'अहाँ कर्नाटक प्रान्त नहिं देल तें वापस जाउ'क नारा सभ दिससँ लगे छल। पन्द्रह मिनट धरि नेहरू साहेब सभा मंच पर ठाढ़ रहला, हुनका बजबाक अवसर नहिं देल गेल। तखन बड़ अनुनय विनय कय हल्ला शान्त कयल। हुनका हेतु ई स्थिति बड़ कष्टकर छल। ओ अभ्यस्त छथि सभामण्डपमे पहुँचि लाख-लाख लोकक साष्टांग प्रणाम ग्रहण करबाक। जे जनता हुनका पैरक धूलि-कणक हेतु लालायित रहै छल से हुनका सभासैं वापस जाय कहय, बाजय नहिं देयय ई केतेक असह्य ! एहि स्थिति मे नेहरूजी जे धैर्य देखाओल ताहि हेतु हुनका धन्यवाद ।
    कर्नाटक प्रान्तक आन्दोलन गत दू मासमे बेस प्रबल भेल अछि। दूमास पूर्व धरि मिथिलाप्रान्तक आन्दोलन सैं कर्नाटक बेसी अगुआयल नहिं छल। आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी घोषणा ओ कांग्रेसक हैदराबाद सम्मिलनक वाद कर्नाटक प्रान्त आन्दोलनमे खूब प्रगति भेल अछि। तीन सय वर्षक इतिहासमे मिथिला जहिना पछुआयल छल तहिना फेर पछुआयत ।
(‘मिथिला’, 18 मई 1953)

संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डल, दरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- 27-31

Tuesday, May 31, 2016

बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान / रमानाथ झा + पं. भुवनेश्वर झा

________________________
रमानाथ झा रचनावलीक तेसर खंडक भूमिकामे संपादक मोहन भारद्वाज सूचना देनय छथि जे ‘बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान’ लेख असगरे रमानाथ झा नहि लिखने छथि अपितु ओ आ पंडित भुवनेश्वर झा मिलि के ई लेख तैयार केनय छलाह । 1929 मे प्रकाशित एहि लेखक कतेको कारणसँ ऐतिहासिक महत्व छै , ई लेख पढ़ैत स्पष्ट होएत जायत । स्वतंत्रतासँ करीब दूई-ढाई दशक पहिने मैथिली भाषाके हिन्दीक बोली सिद्ध करबाक संगहि मिथिलाक संस्कृति आ मैथिल अस्मिताकेँ नकारबाक प्रयास आ प्रचार जोर पकड़ि चुकल छल । प्रतिवाद स्वरूप जे लिखल जा रहल छल ई लेख तकरे प्रतिनिधित्व करैत अछि ।
एहि लेख केर किछु अंश आलोचनोक विषय अछि । मैथिल संस्कृतिकेँ शुद्ध सनातनी आचारसँ बान्हल समाजक व्यवहारक रूपमे रेखांकित कए एकर महिमामंडनक प्रयास मैथिल संस्कृति आ समाजक प्रति समग्रतामूलक दृष्टिकोणक अभावक परिचायक थिक । एहि लेख केर कोनो अंशक आलोचना करैत काल एहू बातक ध्यान राखैक चाही जे ई लेख एकटा लेख श्रृंखलाक प्रतिक्रियामे लिखल गेल छल आ दोसर ई जे एकर पृष्ठभूमिमे 1929क समाज छल । पंडित भुवनेश्वर झाक विषयमे जानकारीक अभाव अछि मुदा कमसँ कम रमानाथ झाक बादक लेख सबहक आधार पर कहल जा सकैछ जे समयक संग हुनक दृष्टिकोण बेस परिपक्व आ समग्रतामूलक होइत गेलेन्हि ।
कहल जा सकैछ जे मैथिली भाषा अस्मिताक संदर्भक कोनो स्तरीय अकादमिक बहस लेल एहि लेखक महत्व असंदिग्ध छैक । 
________________________

बिहार मे मिथिला भाषाक स्थान
रमानाथ झा + पं. भुवनेश्वर झा

[पृष्ठ संख्या-14 ]
अनारम्भो हि कार्याणां प्रथमं बुद्धिलक्षणम् ।
प्रारब्धस्यान्तगमनं द्वितीयं बुद्धिलक्षणम् ।।
मैथिलसमाज मे अकर्मण्यता तया अस्तव्यस्तताक जेहन प्राधान्य अछि तेहन आन समाज मे दृष्टिगोचर नहि होएत । प्राय: सामाजिक जीवनक महता केँ बुझनिहार बहुत थोड़ व्यक्ति भेटताह । वैयक्तिक स्वार्थक समक्ष सामाजिक कल्याणक अवहेलना जाहि रूपें हमरा लोकनि के रहल छी से सबकाँ विदित अछि । व्यक्ति तथा समाज मे अन्योन्याश्रय सम्बन्ध अछि । एकक अस्तित्व पर दोसरक जीवन निर्भर अछि । समाज एक प्रकारक अंग थिक । जेना स्थूल शरीरक एक अवयव पर आघात भेला सँ सम्पूर्ण शरीर मे पीड़ाक संचार होइत अछि, तहिना व्यक्ति क दुख सँ समष्टि दुःखित तथा पीड़ित होइत अछि । यावत् धरि शरीर मे चेतना क संचार अछि तावत्पर्यन्त शरीरक प्रत्येक अवयव समष्टि रूप सँ शरीरक रक्षा मे तत्पर रहैत अछि । जैखन शरीर चेतना-विहीन भै जाइत अछि तैखन कर्मशीलताक स्रोत सर्वदाक हेतु रुकि जाइत अछि । कार्यशीलताक दोसर नाम जीवन अछि । जाहि समाजक व्यक्ति सामूहिक सुख साधनार्थ थोड़बो त्याग नहिं करैत छथि ताहि समाजक नाश अवश्यम्भावी अछि । एहन समाज के मृतप्राय बुझक चाही । मैथिल-समाजक अवस्था एखन अत्यन्त दयनीय अछि । समाजक कल्याण-साधनार्थ अनेक चेष्टा कैल गेल परंच समाज क कुम्भकर्णी निद्रा एखन धरि भंग नहिं भेल । एकर की कारण भै सकैत अछि । प्रश्न क उत्तर अत्यन्त सरल अछि । हमरा लोकनि सामाजिक उन्नति के आत्मोन्नतिक साधन नहिं बुझैत छी । प्रयत्न मे सफलता नहिं भेटवाक दोसर कारण ई अछि जे हमरा लोकनि में समुचित अध्यवसाय नहिं अछि । नीतिकारक जे श्लोक हम ऊपर उद्घृत कैने छी ताहि श्लोक मे केहेन उपयोगी शिक्षा अछि । मैथिलसमाज मे कोनो वस्तुक कमी नहि । यदि कोनो वस्तुक अभाव अछि तँ ओ अछि सबल संगठन क हेतु दृढ संकल्प । समाज क शक्ति स्रोत विभिन्न मार्ग मे प्रवाहित भै रहल अछि । उद्योग एहन हैबाक चली जे समस्त स्रोत एक दिशा में प्रवाहित हो । मैंथिलसमाज कैं एकताक सूत्र में आबद्ध करबाक –
[15 ]
- अनेक साधन अछि । एहि क्षुद्र लेख मे हम मिथिला भाषाकक महत्ता पर प्रकाश देम चाहे छी । कारण जे भाषाक अस्तित्व पर समाज क जीवन निश्चित अछि ।
मिथिला-भाषा में केहन जीवनी शक्ति अछि एकरा व्यक्त करबाक ततेक प्रयोजन एहि लेख मे नहिं । मैथिल कोकिल विद्यापतिक अमर वाणी सँ जे भाषा लालित तथा वर्द्धित भेलि अछि तकरा गौरव तथा भाषा-सौष्ठव मे अविश्वास कैनिहार अवश्य दयाक पात्र छथि । विहार में यदि कोनो भाषा प्रमुख स्थान क अधिकारिणी अछि तँ ओ अछि मिथिला भाषा । परन्तु दुर्भाग्यक विषय अछि जे हमरा लोकनि क अकर्मण्यता क कारणे एखन धरि मिथिला भाषा अपन न्याय्य स्थान कैँ नहि ग्रहण कैलक । बिहार में मिथिला-भाषा-भाषीक की संख्या अछि एकरा प्रमाण में हम Census of India, 1921 (Vol. VII), Bihar and Orissa Part- I सँ किछु अंश उद्घृत करैत छी ।
"The most common language in the province is Hindi or Urdu which is spoken by two third of the population. In north and south Behar it is practically universal, in Orissa it is spoken by 3 and in Chota Nagpur Plateau by 30 persons out of every 100. The language spoken is not really Hindi in the eye of the Linguistic survey, but the Bihari a language of the eastern group of the outer subbranch of the Indo-Aryan language. It has three principal dialects :- Maithili, which is spoken in North Bihar, excluding Saran and Champaran, Magahi, which is spoken in south Bihar excluding Shahabad, and Bhojpuri, which is spoken in the line of districts that from western fringe of the province Champaran to Palamu.
According to calculation the number of Maithili speakers is 10,272,711 of Magahi speakers 5,327,55 and Bhojpuri speakers 6,826,900.
(page 210,211)
उपर्युक्त अवतरण क सारांश ई अछि जे बिहार प्रान्तक साधारण भाषा हिन्दी अथवा उर्दू थिक । जनसंख्याक दू-तेहाई मनुष्य हिन्दी-भाषा-भाषी छथि । उत्तरीय तया दक्षिणी बिहार में सब गोटे इयेह भाषा बजैत छथि । उडीसा तथा छोटा नागपुर मे हिन्दी-भाषा बजनिहारक संख्या प्रतिशत क्रमश: 3 तथा 30 अछि । परन्तु प्रान्तस्थित भाषासमूहक यथार्थ निरीक्षण सँ ई स्पष्ट अछि जे एहि भाषा कैँ 'हिन्दी' कहब ठीक नहिँ, प्रत्युत एकरा 'बिहारी' कहब अधिक उपयुक्त । एहि भाषाक उत्पति भारतीय आर्य भाषाक पूर्वीय उपशाखा सँ अछि । एहि भाषा में प्रधान तीन 'बोली’(dialects)अछि । सारन क्या चम्पारन जिलाक अतिरिक्त उत्तरी बिहारक आन सब जिला मे मैथिली बाजल जाइत अछि । दक्षिणी बिहार क भाषा 'मगही' थिक । दक्षिणी बिहार मे केवल 'शाहावाद' टा एहन जिला अछि जते 'मगही' क प्रचार नहि । प्रान्तक पश्चिमीय सीमा पर अवस्थित आन सब जिला में 'भोजपुरी' क प्रसार अछि । चम्पारन –
[16 ]
- सँ पलामू पर्यन्त भोजपुरीक विस्तार बुझ क चाही।
गणना क अनुसार मिथिला-भाषा-भाषीक संख्या 10272711,'मगही' बजनिहारक 5327553, एवं भोजपुरी-भाषा-भाषीक; 6826990 अछि ।
उपर्युक्त अवतरण सँ स्पष्टतः ज्ञात होएत जे बिहार मे मैथिली-भाषा-भाषी कतेक छथि । की जाहि भाषाक एतेक बजनिहार होथि से भाषा अग्रण्य कहा सकैत अछि ? मैथिली भाषा केँ एम.ए. मे स्थान दै कलकत्ता-युनिवरसिटी जेहन उदारता तथा कृतज्ञताक परिचय देलक अछि से सर्वथा श्लाघनीय तया अनुकरणीय अछि । मैथिली भाषाक पथ सर्वथा कण्टकाकीर्ण अछि । कारण जे शिक्षित समुदाय में बहुतो व्यक्ति एहन छथि जनिका मिथिला भाषाक नाम सुनैत कँपकपी भै जाइत छन्हि ।
किछु दिन भेल पटना सँ प्रकाशित 'देश' नामक समाचार पत्र मे 'बिहार मे मिथिलाभाषा' शीर्षक एक लेखमाला छपल छल । उक्त लेख मे मिथिला तथा मैथिल संस्कृति पर एहन निराधार तथा कुत्सित आक्षेप कैल गेल अछि जाहि सँ लेखक महोदयक विषयानभिज्ञता प्रकट होइत अछि। हुनक कथन छैन्हि जे मिथिलाभाषा क तँ चर्चा कोन मिथिला प्रान्तहु क अस्तित्व नहि अछि तथा जाहि संस्कृति वा आचार-विचार के हमरा लोकनि मैथिल विशेषण दैत छी से यथार्थत: प्राचीन मैथिल नहि थिक । हुनक दिचारदृष्टि मे मैथिल जाति यदि अति प्राचीन काल मै कतहु छलो तथापि ओकर शेष आब कतहु नहि अछि तथा मगधक आधिपत्य समय मे सबहु एक भय मागध भय गेलहुँ, अत: हमरा लोकनि सभ बिहारी थिकहुँ, हिन्दी हमरा लोकनिक मातृभाषा थिक तथा बिहार हमर देश थिक ।" संक्षेपतया है ओहि लेखमाला क प्रतिपाद्य विषय छैन्ह । हमरा पूर्ण विश्वास अछि जे केओ मैथिल एहन निर्मूल ओ भ्रमात्मक कथनक युक्तियुक्त खण्डन कय सकैत अछि । किन्तु खेदक विषय थिक जे एहि लेखहुक लिखनिहार अपना केँ मैथिल कहैत छथि । अतएव यदि अन्य मैथिल पर नहि तँ मैथिलेतर व्यक्ति पर हुनक लेखक प्रभाव पड़ि सकैतअछि। हम सम्प्रति हुनक लेखक खण्डन करय नहि चाहैत छी किन्तु पंजाब सँ बंगाल तथा नेपाल सेँ कुमारी अन्तरीप धरि के हिन्दू अपन प्राचीन सभ्यता जो हिन्दूघर्म के जनैत मैथिल ओ मिथिला सँ परिचित नहि छथि? राजर्षि जनकक राज्य मिथिला छलैन्ह । याज्ञवल्क्य मिथिला मे छलाह जनिके धर्म-शास्त्र प्राय: बंगाल छाड़ि समस्त भारतवर्ष मे प्रमाण मानल जाइत अछि। बौद्धधर्म के घोर प्रतिद्वंद्वी मंडन मिश्र, उदयनाचार्य, प्रभृति, षट्दर्शनपण्डित वाचस्पतिमिश्र, शङ्करमिश्र आदि अपन प्रकाण्ड विद्वता तथा अविचलित धर्मपरता सँ केवल मिथिला केँ नहिं समस्त हिन्दू जाति केँ उज्ज्वल –
[17 ]
- बनओने छथि । हिन्दू धर्मशास्त्र ओ हिन्दू दर्शनशास्त्रक एक मुख्य केन्द्र मिथिला आदि सँ अछि । न्यायदर्शन क प्रवर्त्तक गौतम मिथिला क छलाह । एखनहु मिथिला क भिन्न धर्मशास्त्र बृटिश गवर्नमेन्ट द्वारा स्वीकृत अछि तथापि यदि केओ कहथि जे मिथिला क अस्तित्व नहिँ अछि तै हुनका मूर्ख छाड़ि आओर की कहि सकैत   छियैन्ह ।
यदि मैथिल केँ एखनहुँ कोनहु वस्तुक अभिमान छैन्ह तँ अपन प्राचीन सभ्यता ओ धर्मपरताक यदि कोनो समाजक आचार जो विचार याज्ञवल्क्यादिस्मृति क अनुसरण एखनहु करैत अछि तँ जो समाज मैथिल थिक । हम प्रौढ़ता सँ कहैत छी जे हमरा लोकनि सम्प्रति अपन धर्मपरकताक हेतु अन्य समाज में असभ्य कहबैत छी तथापि समस्त उत्तर भारतवर्ष क कोन जाति हमरा संग एहि अंश मे स्पर्धा कय सकैत अछि? अति प्राचीनकाल सँ अनेको कष्ट सह्य करैत हमरा लोकनि अपन शुद्ध आर्यरक्त ओ श्रौतस्मार्त्त आचार-विचार मात्रहिक रक्षा करैत अयलहुँ अछि । हमरा समाज मे बौद्धधर्मक प्रभाव लक्षित होइत अछि । अहिंसाक प्राधान्य सदा सँ हमरा ओहि ठाम अछि । सभ समाज मे हमरा लोकनि सदा सँ एही हेतुक भिन्न रहि अयलहुं अछि तथा यथार्थ जे केओ व्यक्ति सनातनघर्माभिज्ञ होयताह से हमरा लोकनि क सत्कार करितहि छथि । भारत क अन्यान्य प्रान्त मे जतय प्राचीन संस्कृति क लेश छैक हमरा लोकनि सत्कृत होइतहिं छी । तखन दक्षिण भागलपुरीय मैथिल हमरा किछु कहथु ओहि सँ हुनक अपन क्षुद्रता, मूर्खता ओ विषयानभिज्ञता मात्र द्योतित होइत छैन्ह ।
उक्त लेखमाला क प्रकाशित होएवाक कारण ई भेल जे गत अगस्त मास मे पटना मे मैथिल छात्रक संख्या विशेष बढ़ि गेल तथा एक समिति के स्थापना करब सबहि कै आवश्यक बुझना गेल । समितिक स्थापना भेला सन्ता येनकेनोपायेन मैथिली केँ पटना-युनिवर्सिटी मे कलकत्ता-युनिवर्सिटी जकाँ स्थान भेटय एकर यत्न करब ओकर एक मुख्य अंश बुझना गेल तथा जखन एकर यत्न होमय लागल तखन उल्लिखित लेखमालाक लेखक प्रभृतिक दिशि सँ एका घोर विरोध होमय लागल ओ एही प्रसंग मे जनताक चित्त कलुषित करवा क हेतु 'देश' मे उक्त लेख छपल । मैथिलीक विरोध मे हुनका लोकनि के मुस्काया तीनिटा युक्ति छैन्ह । “प्रथमतः मैथिली हिन्दीक अंग थिक ओ एकर उन्नति भेला सँ हिन्दीक उन्नति मे बाधा  होएत । (2) मैथिलीक साहित्य दरिद्र अछि तथा भागलपुर, चम्पारन आदिक मैथिल केँ मैथिली सिखवा में ओतबे कष्ट होएतैन्ह जतबा हिन्दी सिखवा मे । (3) मैथिलीक स्वीकृति 'मेला सँ सम्भव जे भविष्य मे मिथिला बिहार सँ भाषाभिन्नत्ताक कारणे प्रान्त भिन्नताहुक चेष्टा करय तथा लिपिसाम्य सँ बंगाल में अन्तर्भुक्त कय लेल   जाय ।'' पटना-समिति, अपना मे विरोध नहि हो अतएव एक प्रश्नावली बनाय मुख्य मुख्य मैथिल विद्वान म. म. डाक्टर श्री गंगानाथ झा प्रभृति सात गोटाक ओतय पठओलक तथा सबहिक उत्तर मैथिलीक घोर पक्ष मे आएल ।
[18 ]
राष्ट्रभाषाक नाम पर मैथिल लोकनि यदि अपन मातृभाषाक तिरस्कार करथि तँ हुनका लोकनि क अस्तित्वहि क लोप भय जयतैन्ह । राष्ट्रभाषा हिन्दी तँ समस्त भारतवर्षक होएत परंच कोनो प्रान्त अपन मातृभाषाक त्याग नहि कय रहल अछि । हमर साहित्यक सबसँ उज्जवल रत्न विद्यापति छथि तया उमापति, हर्षनाथ प्रभृति कतेको आओर छथि । अतएव साहित्यहुक दृष्टि सँ नितान्त दरिद्र मैथिली नहि कहल जाय सकैत अछि । शुद्ध मैथिली सिखवा मे प्राय: सभक उत्तर पहिने अछि जे दक्षिण भागलपुरीय व्यक्ति केँ छाड़ि आन सभ कें सुगमते होएतैक । प्रान्त विच्छेदक हेतुक जे विरोध अछि तकर सभ तिरस्कारपूर्ण उत्तर देलैन्ह अछि ओ हमरा लोकनि के अपना में ततबा भेद बुद्धि अछिए जे एक भाषाक स्वीकृति भेलहु सन्ता, ओहि मे विशेष वृद्धि क सम्भव नहिं । अतएव आब समय प्राप्त भेल अछि जे हमरा लोकनि कटिबद्ध भय तत्पर होइ जाहि सँ मैथिली आबहु स्वीकृत हो । हमरा तँ विश्वास अछि जे यदि पचीस वर्ष पूर्व मैथिलीक स्वीकृतिक हेतु यत्न कयल जाइत तँ आइ बिहार क भाषा हिन्दी नहि किन्तु मैथिली कहबैत । 1925 ई. मे पटना-युनिवर्सिटी मे मैथिली स्वीकृतक हेतु एक प्रस्तावो कयल गेल छल परंच मैथिलक पक्ष में बंगाली छाड़ि आओर केओ नहि भेल । मैथिलीक उन्नति भेनहि सन्ताँ मैथिल जातिहुक उन्नतिक आशा अछि ओ बिहारक सभ समाज के भय छैक जे जखन मैथिल अग्रसर भेल, ओ सभ सब केँ हरा कय अगुआ जाएत । अतएव अपन प्रान्त में हमरा लोकनि केँ चारूदिशि शत्रुए देखना जाइत   अछि । एतेक दिन तँ कोनो अपन पत्र नहि छल जाहि द्वारा एहि विषय क कोनो प्रचार कयल जाइत । जाब आशा अछि जे मिथिला अपन नामक मर्यादाक रक्षा करैत अपन भाषाक पूर्ण प्रचार करत । सम्प्रति निम्नलिखित प्रस्ताव हम समस्त समाजक समक्ष उपस्थित करैत छी ओ पूर्ण विश्वास अछि जे आबहु हमरा लोकनि यत्नपर भय जाएब जाहि सँ मैथिलीक उन्नति हो तैखन हमरहु लोकनि क उन्नति होएत ।
प्रस्ताव-
(1.)             दरभंगा मे एक मैथिली-साहित्य-परिषदक स्थापना हो जाहि सँ मैथिल विद्वान लोकनि सँ प्रार्थना कयल जाइन्ह जे ओ लोकनि मैथिली मे ग्रन्थ लीखि परिषद कैँ देथि ।
(2.)             मैथिल महासभा मे प्रस्ताव हो जे गवर्नमेन्ट सँ अनुरोध कयल जाइत अछि जे मैथिली के पटना युनिवर्सिटी मे स्थान हो । कारण मैथिल महासभा हमरा लोकनिक एकमात्र बृहत संघ अछि ।
(3.)             प्रत्येक स्थान मे एहि हेतु क सभा हो तथा सभठाम सँ गवर्नमेन्टक ओतय प्रार्थना कयल जाय तथा दरभंगा डि. बोर्ड में सबहि चेष्टा करथि जे प्राथमिक शिक्षा मैथिली मे अन्तत: एकोठाम प्रारम्द्रभ हो जाहि सँ ओकर –
[19 ]
-           फलाफल बुझना जाइक ।
(4.)             यदि आवश्यक बुझना जाय तँ मैथिल महासभाक दिशि सँ Minister of Education तथा Vice-Chancellor Patna University क ओतय एक Deputation मैथिलीक स्वीकृति हेतु आबय ।
(5.)             प्रत्येक शहर मे मैथिल समितिक स्थापना हो ओ सभ क्यो एहि यत्न मे तत्पर भय जाइ अन्यथा आब दिनानुदिन सफलता कठिन भेल जाइत अधि जो सबहि हास्यास्पद भेल जाइत छी ।

(मिथिला, वर्ष- 1, अंक-.1, 1929)


साभार
आचार्य रमानाथ झा रचनावली -3
[प्रथम संस्करण-2010]
संकलन-सम्पादन: मोहन भारद्वाज
वाणी प्रकाशन, दिल्ली-11002

Sunday, May 29, 2016

मिथिला / मार्कण्डेय काटजू

भारतक सर्वोच्च न्यायालयक सेवानिवृत न्यायाधीश आ प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडियाक पूर्व अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू बेबाकीसँ अपन विचार राखबा लेल जानल जाइत छथि । हुनक विचारसँ कएक बेर असहमत होइतो हुनक स्पष्ट नजरिया आ तात्कालिक मुद्दा सभपर प्रतिक्रियाशील रहबा लेल प्रशंसा कएल जाइत छनि । ई आलेख मूलतः हुनक एकटा ब्लॉग-पोस्टक थिकै, जे हुनक ब्लॉग - सत्यम् ब्रुयात' पर 27 दिसम्बर 2014केँ पोस्ट कएल गेल  छलैक । एहि ब्लॉग-पोस्टकेँ बहुत महत्त्वक सामग्री नहि कहल जा सकैत अछि, मुदा ई पोस्ट मिथिलाकेँ एकटा एहन अमैथिल व्यक्तिक नजरियासँ देखबाक अवसर प्रदान करैत अछि, जिनक प्रतिक्रियाकेँ पर्याप्त महत्त्व भेटैत रहलैक अछि । ध्यान देबा योग्य बात ई अछि जे ओ मिथिलाक भूमिकेँ महान दार्शनिक आ न्यायविद् लोकनिक जन्मभूमिक रूपमे चिन्हैत छथि आ तेँ ई भूमिक लेल हुनका मनमे अगाध श्रद्धा छनि । एहि ब्लॉग-पोस्टक अनुवाद लेखकक अनुमति प्राप्त केलाक उपरान्त कयल गेल अछि । अनुवाद करैत काल नीक अभिव्यक्तिक उद्देश्यसँ कएक ठाम किछु छूट अवश्य लेल गेल अछि ।



मिथिला
श्री मार्कण्डेय काटजू

अपन पछिला पोस्टमे हम महान न्यायिक दार्शनिक उदयनाचार्यक चर्चा केने छलहुँ । उदयनाचार्य प्रसिद्ध टीका न्याय कुसमांजलिक लेखक छथि । ओ मिथिलाक छलाह ।
          मिथिला, भारतक उत्तर बिहारमे (अंशतः नेपालोमे) अवस्थित एकटा क्षेत्र अछि, जतय हम कहियो नहि गेल छी, मुदा मरबासँ पहिने कमसँ कम एक बेर ओतए जेबाक सेहन्ता अछि । एकर कारण ई अछि जे एहिठाम बहुत पैघ संख्यामे असाधारण दार्शनिक, विद्वान आ कवि लोकनिक जन्म भेल छनि । गौतम, बुद्ध आ महावीर एतय रहलाह । उदयनाचार्य, जिनकर हम उल्लेख केने छी, हुनका अतिरिक्त कएकटा श्रेष्ठ विद्वान जाहिमे कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, वाचस्पति मिश्र, डॉ. गंगा नाथ झा आदि छथि, केँ यैह भूमि जनम देनए अछि । महान कवि विद्यापति (1352-1448) सेहो मिथिलेक छलाह ।
एहन कहल जाइत अछि जे जखन आदि शंकराचार्य अपन गृह-राज्य केरलसँ उत्तर भारतक प्रसिद्ध मीमांसाविद् मंडन मिश्र (प्रख्यात मीमांसाविद् कुमारिल भट्टक शिष्य) सँ शास्त्रार्थक लेल आयल छलाह, आ ओ मंडन मिश्रक घरक रस्ता पूछलनि तँ हुनका कहल गेलनि जे मंडन मिश्रक घर एकटा गाछक तरमे छनि, जकर ठारिपर बैसल सुग्गा सभ बजैत रहै छै जे सत्य की थिक आ असत्य की थिक? मोक्ष कोना प्राप्त कएल जाइत छैक? इत्यादि । दोसर शब्दमे कही तँ ई जे मिथिला भरिमे कएकटा श्रेष्ठ विद्वान लोकनि छलाह, जिनका लोकनिक बीच वाद-प्रतिवाद चलैत रहैत छलनि ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालयमे, जतय हम 1963 सँ 1967 धरि पढ़ने छलहुँ, ओतय मिथिलासँ आएल कएकटा श्रेष्ठ विद्वान कुलपति रहि चुकल छथि । डॉ0 गंगानाथ झा, मीमांसा शास्त्रक (जकर हमहुँ दीर्घकाल धरि अध्येता रहि चुकल छी), पैघ विद्वान छलाह । कुमारिल भट्टक तन्त्र वर्तिका’, ‘श्लोक वर्तिकाशाबर भाष्यआदि केर संस्कृतसँ अंग्रेजी अनुवादक माध्यमे ओ एकटा पैघ योगदान देलनि, जाहिसँ हम व्यक्तिगत रूपेँ लाभान्वित रहलहुँ । इलाहाबाद उच्च न्यायालयक न्यायाधीशक बतौर हम नियमित रूपसँ एहि किताब सबहक अध्ययन करबा लेल इलाहाबादक अल्फ्रेड पार्क स्थित डॉ. गंगानाथ झा पुस्तकालय जाएल करैत रही, जाहिसँ हमरा वैधानिक पाठ सबहक व्याख्या करबामे बड्ड मदति भेटल ।
हम पूर्व मीमांसाक अध्येता रहल छी, कियै कि ई शास्त्र व्याख्याक सिद्धान्त उपलब्ध करबैत अछि, जे वैधानिक नियम सबहक व्याख्या करबामे उपयोगी होइत अछि । एहि शास्त्रकेँ विकसित करएबला किछु श्रेष्ठ विद्वान लोकनि मिथिलेक छलाह । जखन हम इलाहाबाद उच्च न्यायालयक न्यायाधीश छलहुँ, हम एकटा पोथी व्याख्याक मीमांसा पद्धति (The Mimansa Rules of Interpretation)क पांडुलिपि तैयार केने छलहुँ । ई अंग्रेजीमे एहि विषयपर एकमात्र पोथी थिक (बाँकी सब पोथी संस्कृतमे छैक) । एकरा लेल एकटा प्रकाशकक जरूरति छलैक । इलाहाबादमे एकटा समारोहमे हमरा मिथिला विश्वविद्यालयक एकटा प्रोफेसर भेट भेलाह, हुनका पोथीक विषयमे बतौलियनि । हम हुनका कहलियनि - सर, अपने मिथिलाक छी, जे राजा जनक आ भारतक कतेको महानतम मीमांसाविद लोकनिक भूमि रहल अछि; कृपया एहि पोथीकेँ प्रकाशित कराबी ।ओ सकारात्मक प्रतिक्रिया देलनि, मुदा बादमे किछु केलथि नहि ।
मिथिलाक भाषा मैथिली, हमर सुनल मधुरतम भाषामेसँ एक अछि, हालाँकि हम एकरा बूझि नहि पबैत छियैक ।
जखन हम मद्रास उच्च न्यायालयमे मुख्य न्यायाधीश छलहुँ, मैथिली नामक एकटा तमिल वकील हमरा समक्ष प्रस्तुत भेली । हम हुनकासँ पूछलियनि जे कि ओ अपन नामक अर्थ जानैत छथि? ओ कहलियनि - नहि । तखन हम हुनका बतौलियनि जे एकर अर्थ होइछ - ओ जे मिथिलासँ सम्बद्ध अछि । मिथिला, उत्तर बिहारमे स्थित श्रेष्ठ दार्शनिक राजा जनकक आ भारतक किछु महानतम विद्वान लोकनिक भूमि थिक । राजा जनक सीताजीक पिता छलाह । सीताजीक विवाह भगवान राम संगे भेल छलनि ।
किछु दिन पहिने हमरा मिथिला अएबाक निमंत्रण भेटल छल । किछु पहिनहिसँ निर्धारित काजक कारणें हम एकर लाभ नहि उठा सकलहुँ, मुदा जँ ई निमन्त्रण आब भेटय तँ हम एकर लाभ उठेबा लेल तत्पर रहब ।

_________________

मूल आलेखक लिंक : Mithila (Saturday, 27 December 2014)

[अंग्रेजीसँ अनुवाद : कुमार सौरभ]


स्पष्टीकरण :
गुगल सर्चसँ ज्ञात भेल जे मार्कण्डेय काटजूक एहि लेखक मैथिली अनुवाद प्रवीण नारायण चौधरी बहुत पहिने कए चुकल छथि । ई जानकारी रहितय तँ अनुवाद कार्यक श्रमसँ बचितहुँ । हमरा विचारें प्रवीण जीक अनुवाद हमर एहि अनुवादसँ बेसी नीक आ स्तरीय अछि । कृपया हुनक कयल अनुवाद अवश्य पढ़ी । हुनक कयल अनुवादक लिंक एतय देल जा रहल अछि : प्रवीण नारायण चौधरीक कयल मैथिली अनुवाद

         [कुमार सौरभ / 30.05.2016, 11:45 AM]

Tuesday, May 17, 2016

‘भारती मंडन’क पुनर्प्रकाशनक सन्दर्भ मे / तारानन्द झा ‘तरुण’

एकटा नीक खबरि अछि जे ‘भारती मंडन’क पुनर्प्रकाशनक योजना पर काज शुरू भ’ चुकल अछि । मैथिलीक बहुआयामी लेखनक एहि पत्रिकाकेँ एकर प्रकाशन अवधि आ तकर बादहु धरि खूब सराहल गेलैक । स्तरीय आ महत्वक सामग्रीकेँ प्रकाशित करबाक संगहि एहि पत्रिकामे नवागंतुक लेल राखल गेल जगहकेँ एहि पत्रिकाक प्रतिष्ठाक मूल कारण मानल जा सकैछ । पुनर्प्रकाशनक घोषणाक स्वागतक संगहि भारती मंडन परिवारकेँ शुभकामना दैत पत्रिकाक संस्थापक-सह-प्रबंधकक एहि आशय केर कथ्य प्रस्तुत कयल जा रहल अछि ।
________________________

"पछिला दस बरखमे कोनो एहन दिन नहि रहल होयत जहिया हमरा मनमे पत्रिकाकेँ पुनर्प्रकाशित करबाक विचार नहि आयल हुअए । मुदा पुनर्प्रकाशनक निर्णय धरि पहुँचि सकबा लेल जेहन परिस्थिति हेबाक चाही रहए से एहि वर्ष 2016क शुरूआतमे बनि  सकल । एहि निर्णयसँ अहाँ सबकेँ अवगत काराबैत बहुत प्रसन्नता भ’ रहल अछि ।"

________________________

भारती मंडनक पुनर्प्रकाशनक सन्दर्भ मे
 तारानन्द झा तरुण

परिस्थिति किछु तेहन बनि गेल छलैक जे दस बरख पहिने हमरा सबकेँ मैथिलीक बहुआयामी लेखनक पत्रिका भारती मंडनक प्रकाशन स्थगित करबाक निर्णय लेबए पड़ल छल । ताबत धरि एहि पत्रिकाक बारहटा अंक प्रकाशित भेल छलैक । पत्रिकाक बारहोटा अंक पाठकरचनाकार आ विद्वान लोकनिक बीच पर्याप्त सराहल गेल छल । पत्रिकाक बन्न भेलाक बाद जे बेचैनी हमरा सब महसूस करैत छलहुँताहूसँ बेसी बेचैनी मैथिली-प्रेमी पाठकरचनाकार आ विद्वान लोकनिकेँ भेल छलन्हि । चिट्ठीफोन आ व्यक्तिगत संवादक माध्यमे एहि आशय केर अनेको प्रतिक्रिया भेटैत रहल जे पत्रिकाक प्रकाशन बन्न होयबाक सूचनासँ कतेको मैथिली-प्रेमी आहत छथि । पछिला दस बरखमे कोनो एहन दिन नहि रहल होयत जहिया हमरा मनमे पत्रिकाकेँ पुनर्प्रकाशित करबाक विचार नहि आयल हुअए । मुदा पुनर्प्रकाशनक निर्णय धरि पहुँचि सकबा लेल जेहन परिस्थिति हेबाक चाही रहए से एहि वर्ष 2016क शुरूआतमे बनि सकल । एहि निर्णयसँ अहाँ सबकेँ अवगत काराबैत बहुत प्रसन्नता भ’ रहल अछि ।

          ‘मिथिला मिहिरक प्रकाशन बन्न भेलाक बादसँ मैथिली पत्र-पत्रिकाक क्षेत्रमे एकटा पैघ रिक्तता आबि गेल छलैक । एहि रिक्तताकेँ भरबाक उद्देश्यसँ वर्ष 1995क पूर्वार्धमे हमरा सब भारती मंडनक प्रकाशनक संकल्प लेने छलहुँ । पत्रिकाक प्रवेशांक सितम्बर’1995मे बहरायल छल । पत्रिकाक प्रस्तावना त्रैमासिकक रूपमे कएल गेल छलैकमुदा प्रकाशनक क्रममे ई कहियो सावधिक नहि रहि सकलैक । सुपौल सनक छोट जगहसँसाधन आ अर्थक अभावमे पत्रिकाक प्रकाशनक काज सुगम नहि छलैक । तखनहुँ हमरा सबहक प्रयास रहैत छल जे बरख भरिमे पत्रिकाक कमसँ कम दुओटा अंक प्रकाशित क’ सकी । लेटर प्रेससँ कम्प्यूटर प्रेस धरि यात्रा करैत ‘भारती मंडनक बारह अंकक अलावा यात्रीजीपर केन्द्रित संस्मरण पुस्तिका ‘तुमि चिर सारथी’ आ प्रभाष चैधरीपर केन्द्रित पुस्तिकाक प्रकाशन अतिरिक्तांकक रूपमे सेहो भेल छलैक । पत्रिकाकेँ रजिस्टर्ड करेबाक प्रयासक क्रममे पत्रिकाक एकटा अंक ‘मंडन निकेतक नामसँ सेहो बहरायल छल । हम सब प्रतिबद्ध छलहुँ जे पत्रिकामे सामग्रीक गुणवत्तासँ कोनो समझौता नहि करबाक अछि । विभिन्न स्तम्भ मे बाँटल गेल पत्रिकामे मुदा नवागत रचनाकारो लेल पर्याप्त जगह राखल गेल छलैक । साधनक अभाव आ विक्रयक खराब स्थितिक अछैतो पत्रिकाक वितरणक स्थिति तेहन छलैक जे आइ पत्रिकाक पुरान अंक सब प्रायः अनुपलब्ध अछि ।

भारती मंडनक पाछाँ प्रबंधनक कोनो टीम वा पूँजी नहि छलैक । नीक विज्ञापनक जोगाड़ आ सरकारी संस्था सबसँ वित्तीय सहयोगक आस नहि लगायल जा सकैत छल । एहन परिस्थितिमे मैथिली-प्रेमी बन्धु लोकनिसँ भेटल आर्थिक सहयोगे एहि पत्रिकाक प्रकाशनक आधार छल । सदस्यताक योजनाकेँ व्यक्तिगत विज्ञापनसँ जोड़बाक विचार एहने परिस्थितिमे हमरा मनमे आयल छल । लोकक सहयोग जुटायब बड्ड कठिन काज होइत छैमुदा ततबहु नहि जे निराश भ’ जेबाक चाही । कतेको लोक एहनो भेटलाह जे अपनहि अन्तःप्रेरणासँ पत्रिकाकेँ आर्थिक सम्बल देबा लेल आगाँ एलाह । प्रकाशनक क्रममे प्रत्येक अंक लेल प्रायः मात्र जनसहयोगेक बलेँ उपलब्ध होयबला आर्थिक आधारक मादे हम कमसँ कम ई कहि सकबाक स्थितिमे छी जे पत्रिकाक प्रकाशनकेँ स्थगित करबाक निर्णयक पाछाँ आर्थिक अभाव कतहुसँ मुख्य कारण नहि छलैक ।

छौमाही पत्रिकाक रूपमे भारती मंडनक पुनर्प्रकाशनक निर्णय लेबाक हिम्मतिहमरा सब जनसहयोगेकेँ वित्तीय आधारक रूपमे ध्यानमे राखैत लेल अछि । एतए ई फरिछा देब आवश्यक बुझना जाइछ जे पत्रिकाक पुरान सदस्यता सहित सदस्यताक पूर्वक सब योजना निरस्त क’ देल गेल अछि । ई निर्णय एहि सद्भावनाक संग कएल गेल अछि जे रचनात्मक सामग्रीमे कटौती आ विज्ञापन सामग्री केर बहुत बेसी भारसँ पत्रिका के बचाओल जा सकए । सदस्य लोकनिकेँ सदस्यताक रसीद देबाक क्रममे ई बता देल जाइत छलन्हि जे हुनक सहयोग राशिक एवजमे व्यक्तिगत विज्ञापन देल जेतन्हि आ शेष कोनो सुविधाकेँ भारती-मंडन’ परिवारक सप्रेम भेंट बूझल जाए । आशा अछि जे एहि निर्णयकेँ जरूरी बूझि अपने सब सहयोग करब ।

एहि बेर पत्रिकाक सुचारु प्रकाशन लेल दू तरहक सहयोगक योजनाक प्रस्ताव राखल गेल अछि । पहिल योजना थिक वित्त सम्पोषक रूपमे सहयोगक जाहिमे एक अंक लेल एक मुश्त 5000/- टाकाक सहयोग राशि निर्धारित कएल गेल अछि । सक्षम लोक वित्त सम्पोषकक रूपमे आगाँ एताह से आशा अछि । एहि योजनाक अन्तर्गत वित्त सम्पोषकक फोटो आ विस्तृत परिचय पत्रिकाक एक पूरा पृष्ठमे देल जाओत । वित्त सम्पोषककेँ ओहि अंक केर दू प्रति भेंट कएल जेतन्हि जाहि अंकमे ओ सहयोग करताह आ एकर अतिरिक्त पत्रिकाक आगामी नौ अंकक एक-एक प्रति हुनका नियमित रूपें भेटैत रहतैन्ह ।

दोसर योजना वित्तीय सहभागीक रूपमे सहयोगक अछि । सहयोगक एहि योजनामे एक अंक लेल कमसँ कम 500/- टाकाक सहयोगक अपेक्षा कएल जाइत अछि । एहि योजनाक अन्तर्गत वित्तीय सहयोगीक सूचीमे नाम आ संक्षिप्त परिचय प्रकाशित कएल जेतन्हि । वित्तीय सहभागीकेँ ओहि अंकक दू प्रति भेंट कएल जेतन्हि जाहिमे ओ सहयोग करताह आ एकर अतिरिक्त पत्रिकाक आगामी एक अंकक एक प्रति हुनका सेहो भेटतन्हि ।

जँ एहि तरहक सहयोग प्रत्येक अंक लेल नियमित रूपेँ भेटि सकय तँ पत्रिकाक नियमित प्रकाशन लेल ई एकटा पैघ स्थायी आधार होयत । मुदा जँ ई सहयोग लगातार नहि रहितो बेर-बेरएकाधिक बेर वा एकहि अंक धरि भेटय तखनो ई कम महत्वक नहि होयत । आशा अछि जे अपने सबहक सहयोग पूर्ववत भेटैत रहत ।

लागत मूल्य अपेक्षाकृत बेसी रहबाक अनुमान बादो हमरा सब ई निर्णय कयल अछि जे एखन एक प्रतिक मूल्य 50/- टाकासँ बेसी नहि राखल जाय । सामन्य पाठकक लेल एक मात्र सदस्यता योजनाक रूपमे वार्षिक (दू अंकीय) सदस्यताक प्रावधान सेहो राखल गेल अछि । एहि निमित्त्त 150/- टाका (डाक खर्च सहित) निर्धारित कयल गेल अछि ।

पत्रिकाक प्रकाशनक संकल्पक संगहि कल्पना केने छलहुँ जे मसिजीवी रचनाकार लोकनिकेँ मानदेय देबाक स्थितिमे आबि सकी । पत्रिकाक बारह अंक धरि ई संभव नहि भ’ सकल छल । हमरा उमेद अछि जे सक्षम लोकक सहयोगक बलें हम सब शीघ्रे एहू स्थितिमे आबि सकब ।

पत्रिकाक पुनर्प्रकाशनक उद्देश्य बहुत स्पष्ट अछि आ ओ अछि मैथिली भाषा आ साहित्यक उन्नयन आ प्रसारमे महत्वपूर्ण योगदान देब । केदार काननक सम्पादनमे ई पत्रिका एहने भूमिकाक निर्वाह करत से हमरा आशा अछि । एहने भूमिकाक खगतो छैक । हमरा विश्वास अछि जे मैथिलीमे रचनाशीलता आ पठनीयताक संकटकेँ कम करबामे ई पत्रिका महत्वपूर्ण योगदान द’ सकत । जँ कोनो तरहक बाधा उपस्थित नहि होए तँ पुनर्प्रकाशनक निर्णयक बादक पहिल अंक जून-जुलाई-2016 धरि अहाँ सबहक हाथमे होयत ।

आशा अछि अपने सबहक रचनात्मक आ आर्थिक सहयोग नियमित रूपें भेटैत रहत । वित्तीय सहयोग प्रबन्धकीय पतापर आ रचनात्मक सहयोग सम्पादकीय पतापर पठाओल जा सकैत अछि । सुविधा लेल क्रमशः दुनू पता नीचा उपलब्ध कराओल जा रहल अछि । जय मैथिली ।                           

प्रबंधकीय सम्पर्क : तारानन्द झा तरुण’, संस्थापक-सह-प्रबंधक भारती मंडन’, तरुण निकेतन मलाढ़ग्राम + पत्रालय - मलाढ़, वाया - थरबिट्टा, जिला- सुपौल, बिहार- 852138,मो.- 0900629262709507633641

सम्पादकीय सम्पर्क : केदार कानन, सम्पादक भारती मंडन’, किसुन कुटीर, सुपौल, बिहार- 852131मो.- 09471062706, 07542043991


________________________
(मलाढ़ / 31.04.2016)

Wednesday, March 16, 2016

मिथिला मैथिल मैथिली / कुमार सौरभ

ई आलेख दस-एगारह-बारह आ जेठ बयसक नेना सबकेँ ध्यान मे राखि के लिखल गेल अछि । मैथिली मे बाल पत्रिकाक दीर्घकालिक अभावक उपरांत प्रकाशित भ’ रहल पत्रिका ‘नेना भुटकाक नियमित स्तम्भ ‘अपना सब किछु गप्प करी’ मे ई दू खंड मे क्रमशः फरवरी आ मार्च'2016 अंक मे प्रकाशित भेल अछि । मिथिला मैथिल आ मैथिली सन जटिल पारिभाषिक पद केँ सुबोध बनाकेँ प्रस्तुत करबाक प्रयास एहि आलेख मे कएल गेल अछि ।
चूँकि बहुत प्रयासक बादो एहि आलेख केँ नितांत सरल सहज भाषा आ सामग्रीक रूप मे प्रस्तुत क’ सकबा मे सफलता नहि भेटल अछि, ई अपेक्षा कएल जाइत अछि  जे बच्चा केँ माता पिता वा अभिभावक ई आलेख पढ़बा लेल प्रेरितो करता आ हुनका कतहु दिक्कत होइन तँ बुझेबा मे मदतो करता । अहाँ सबहक सुझाव आ कोनो त्रुटि दिस ध्यान दियायब लेखक केँ आर नीक लिखबा मे निश्चितरूपें मदति करत ।

मिथिला मैथिल मैथिली
कुमार सौरभ

एखन अहाँ सबहक हाथ मे एकटा मैथिली पत्रिका अछि । आशा अछि पत्रिका पढ़ने होयब आ नीको लागल होयत । एकटा मैथिली पत्रिका हाथ मे आबतहि किछु-किछु प्रश्नो मन मे उठल होयत । जेना मैथिली कतय-कतय बाजल जाइत छैक?  मैथिली बजनिहार लोक सब के छथि, कतेक छथि? मैथिली भाषाक विशेष परिचय की? आदि-आदि । एकटा आरो जिज्ञासा रहल होयत । एहि पत्रिका मे जे किछु अहाँ के मैथिली मे पढ़य लेल भेटल अछि ओ हिन्दी मे वा अंगेरेजियो मे तँ रहि सकैत छलहि? मैथिली पढ़बाक जरूरति की? एहेन जिज्ञासा जँ मन मे नहि उठल हुअए, तखनो कोनो दिक्कत नहि । अहाँ एहि जिज्ञासा आ प्रश्न सबकेँ अपनो जिज्ञासा आ प्रश्न मानि ली । एहि सब पर हमरा सबहक विचार करब बहुत जरूरी अछि ।
_______________________
जाहिठाम मैथिली बहुत पैघ जनसमुदायक आपसी बात व्यवहारक भाषा थिक ओहि भूमिक नाम थिक मिथिला। एहि भूमिक विस्तार बिहारक उत्तरी छोर सँ नेपालक तराई क्षेत्र धरि अछि । तराई माने पहाड़ सँ नीचाक हिस्सा ।  मिथिला, वर्तमान भारतक कोनो राज्यक नाम नहि थिक । मुदा कहियो ई एकटा स्वतंत्र राज्य छलहि ।
इतिहासक लेखन उपलब्ध कएल गेल सबूतक आधार पर तर्कक संग कएल जाएत अछि । एखन धरि अत्यंत प्राचीन कालक इतिहासक मात्र अनुमाने लगाओल जाइत छैक । प्राचीन धर्मग्रंथ आ साहित्य सब सँ भेटल संकेतक आधार पर सेहो इतिहास केँ बूझवाक प्रयास कएल जाइत छैक । वेद, पुराण, स्मृति, आरण्यक, ब्राह्मण आदि धर्म ग्रंथक अतिरिक्त रामायण आ महाभारत आदि एहने धार्मिक ग्रंथ थिक ।  एहि ग्रंथ सबहक उत्पत्ति कहिया भेल ताहि केर सटीक अनुमान लगायब संभव नहि भेल अछि । मुदा ई ग्रंथ सब बहुत पुरान अछि एहि सँ अधिकांश विद्वान लोकनि सहमत छथि । ध्यान राखी जे एहि ग्रंथ सबकेँ  सोझे इतिहास नहि मानल जाइत अछि । एहि मे लिखल गेल गपक कोनो ठोस प्रमाण ताकबा मे एखन धरि अपना सब सफल नहि भेल छी । एहि कारणे एहि ग्रंथ सबकेँ मिथक ग्रंथक संज्ञा सेहो देल जाइत छैक। मिथक माने एहन कथा जे लोकक बीच सत्यकथा जोकाँ प्रचलित होइ मुदा जकर सत्य हेबाक प्रमाण उपलब्ध नहि होइत अछि  । मिथिला क उल्लेख आ वर्णन स्कन्द पुराण, विष्णु पुराण, वाल्मीकि रामायण जेहेन कतेको ग्रंथ मे कएक बेर भेल अछि । विषय सँ हटि केँ केतेक रास गप करबाक उद्देश्य यैह छल जे मिथिला क वर्णन जाहि ग्रंथ सब मे अछि ओहि ग्रंथ सबहक मादे अहाँ सबकेँ कोनो भ्रम नहि रहय ।
राजा जनक केर नाम अवस्से सुनने होयब । मिथक कथाक अनुसार ओ मिथिलाक परम प्रतापी राजा छलाह । हुनक पुरखाक रूप मे निमी आ मिथि केर उल्लेख भेटैत अछि ।  निमि द्वारा स्थापित मिथिलाक पहिल राजवंश केँ विदेह राजवंश कहल जाइत अछि । एहि कारणे मिथिला केँ विदेह सेहो कहल जाइत छैक । मिथिलाक एकटा नाम तीरभुक्ति  सेहो अछि । लोक व्यवहार मे तीरभुक्ति  केँ तिरहुत कहल जाइत छैक । अनुमान कएल जाइत छैक जे, जेँ  मिथिला क सम्पूर्ण भूभाग कोसी, कमला, बलान, गंडक, गंगा आदि धारक तट(तीर) पर अवस्थित छल , तेँ एकर नाम तिरहुत भेल ।
कहल जाइत अछि जे प्राचीन काल मे मिथिला धार्मिक कर्मकांड, संस्कृत अध्ययन आ दर्शनशास्त्रक अनेको विद्वान लोकनिक कारणें विख्यात छल । दर्शनशास्त्र ज्ञानक एकटा शाखा थिक । इतिहास मे कएक टा आरो राजवंशक मिथिला मे शासन करबाक उल्लेख भेटैत अछि । एतय एक समय मे बौद्ध धर्म खूब फूलल फलल छल । समयक संग मिथिलाक इतिहासक अध्ययन केर सुयोग अहाँ सबकेँ अबस्से भेटत । इतिहासक कतेको कालखंड केँ पार करैत मिथिला एखन धरि बनल अछि । एकर संस्कृति बचल अछि । भाषा बचल अछि ।
मिथिलाक अतीत जे होए मुदा वर्तमान मे एतय बाढ़ि, सुखारि, गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा आ बेमारीक सम्राज्य छै । शासक वर्ग सब दिन एहि क्षेत्रक उपेक्षा करैत रहल अछि । हमर सबहक अपन राज होए । हमर सबहक उपेक्षा नहि कएल जाए ताहि लेल जरूरी अछि जे राजनीतिक अधिकार अपना सबहक हाथ मे होइ । एहि कारणें भारतक स्वतंत्रता क बादे सँ मे स्वतंत्र मिथिला राज्यक मांग चलि रहल छै। नेपालो मे एहने स्थिति रहल छैक । ओतहु तराई क्षेत्र मे एहने मांग भारतक अपेक्षा बेसी मजगूती सँ उठैत रहल छैक ।
_______________________

आपस मे मैथिली भाषाक व्यवहार करय वाला पैघ जन समुदायक भूमि मिथिला थिक । एकर परिभाषा सोझ अछि । मुदा मैथिल क पहचान एतनय सोझ तरहें नहि कएल जेबाक चाही । हमरा विचारे मैथिलक सबसँ उचित पहचान जे भ सकैत अछि से अहाँ लोकनि केँ बता रहल छी । मिथिला मे केएक पीढ़ी सँ बसनिहार वा एहि ठामक समाज आ संस्कृति मे रचि बसि गेनिहार वा जे एखन मिथिला मे नहि छथि मुदा जिनकर पुरखा-पुरखइन मिथिलाक छथि से मैथिल भेला चाहे हुनका मैथिली बजय अबैत होइन्ह वा नहि ।
शुरूए सँ अपन सबहक समाज धर्म आ जाति-पाति मे बँटल अछि । जाति आ धर्मक आधार पर भेद-भाव आ अन्याय होइत रहल अछि । जखन कि मनुखक बीच कोनो आधार पर भेद भाव केनय अपराध थिक । मिथिला मे सेहो जाति आ धर्मक आधार पर भेद भाव आ अन्याय होइत रहल अछि । हमरा सबहक दायित्व अछि जे कोनो तरहक भेद-भावक विरोध करी । एहि भेद-भाव सँ मिथिला आ एहि देश केँ मुक्त करी । सबकेँ बुझाबी जे हम सब बराबर छी आ हमरा सबहक बीच कोनो भेदभाव नहि हेबाक चाही ।
दुर्भाग्य सँ मैथिल केर पहिचान किछु गोटय उच्च वर्णक मानल जाए वला जाति केर रूप मे करैत छथि । ई पहिचान गलत अछि । मिथिला मे बसनिहार लोकक अतिरिक्त जे पहचान ऊपर बताओल अछि चाहे कोनो जाति धर्मक होइथ सब मैथिल थिकाह । एहि बात केँ बुझेबा लेल अहाँ लोकनि केँ यात्री जी केर किछु पाँति सुना रहल छी । यात्री जीक पूरा नाम छलन्हि वैद्यनाथ मिश्र यात्री । हिन्दी मे ई नागार्जुनक नाम सँ लिखैत छलाह । हिनका मैथिली आ हिन्दी दुनू भाषाक श्रेष्ठ साहित्यकार मानल जाइत छन्हि । हुनक एहि पाँति सबकेँ गेंठ बान्हि ली । एहो बातक ध्यान राखी जे मिथिला मे बसनिहारे टा पर नहि ऊपर बताओल मैथिलक सब पहचान पर ई लागू होइत छैक ।
बाभन छत्री औभुमिहार/ कायस्थ सूँड़ि औरोनियार/ कोइरी कुर्मी औगोंढि-गोआर/ धानुक अमात केओट मलाह/ खतबे ततमा पासी चमार/ बरही सोनार धोबि कमार/ सैअद पठान मोमिन मीयाँ/ जोलहा धुनियाँ कुजरा तुरुक/ मुसहड़ दुसाध ओ डोम-नट्ट.../ भले हो हिन्नू भले मुसलमान/ मिथिलाक माटिपर बसनिहार/ मिथिलाक अन्नसँ पुष्ट देह/ मिथिलाक पानिसँ स्निग्ध कान्ति/ सरिपहुँ सभ केओ मैथिले थीक/ दुविधा कथिक संशय कथीक?”
_______________________

मैथिली ओही भाषा क नाम थिक जाहि मे हम, अहाँ सबहक संगे गप्प क रहल छी । एहि भाषा क कोनो एक रूप नहि अछि । ठाम ठाम पर एकर रूप बदलल भेटत । दरभंगा आ मधुवनी जिलाक  मैथिली आ सहरसा आ सुपौल जिला क मैथिली में वा मुजफ्फरपुरक मैथिली मे जे फर्क भेटत ओकरा शैलीक फर्क कहल जाइत छै । एतय शैली मने बजबाक तरीका । एहि तरहक फर्क दूई भिन्न जातिक मैथिली मे सेहो देखार पड़त । मुदा शैलीक किछु-किछु फरकक रहितौ ई सब मैथिली थिक । कतय जाई छी? , कोने जाइ छें?, किधर जा रहले हेँ?’- एहि उदाहरण मे एकहि टा वाक्य केँ मैथिलीक तीन टा शैली मे लिखल गेल अछि । अलग अलग शैली मे मैथिलीक बाजल जाएब, मैथिलीक विशेषता थिक । मैथिलीक प्रत्येक शैलीक सम्मान करब हमरा सबहक कर्तव्य थिक ।
बाजबा अथवा लिखबा मे शैलीक जे फरक अछि ताहि पर अलग सँ अपना सब एक बेर गप्प करए बैसब । ताबत एतबै कहब जे अहाँ मैथिली बुझि जे बजै छी, ओकरा जेहिना सपरै यै तहिना लिखू । अहाँ जे बाजी जे लिखी सैह मैथिली । एकदम शुरू मे शुद्द-अशुद्धक परिवाही नहि करवाक चाही । निधोख भ के बाजैत, सुनैत, पढ़ैत आ लिखैत रहबाक चाही । एहि मे कोनो संदेह नहि जे धीरे-धीरे अहाँक मैथिली ज्ञान बढ़ैत जायत ।
एखन धरि उपलब्ध जानकारीक अनुसार अपन सबहक भाषा लेल मैथिली शब्दक पहिल प्रयोग अंग्रेज विद्वान कॉलब्रुक 1801 मे लिखल गेल अपन एकटा लेख मे केनय छलाह । ताहि सँ पहिने एकरा लेल देस भाषा, अवहट्ट, देसिल बयना जेहेन शब्द प्रचलित छलहि । मैथिली, जनकक पुत्री जानकी केँ सेहो कहल जाइत छन्हि । रामायण कथाक अनुसार जानकी जिनक नाम सीता सेहो छन्हि, रामक कनिया छलीह ।
2001 केर जनगणनाक अनुसार भारत मे मैथिली बजनिहार लोक सबहक संख्या एक करोड़ बाइस लाख सँ बेसी अछि । अनुमान कएल जाइत अछि जे मैथिली बजनिहारक संख्या एहि सरकारी आँकड़ा सँ बहुत बेसी छैक । जनगणना मे मिथिलाक कतेको गोटय चेतनाक अभाव मे अपन मातृभाषाक नाम मैथिली नहि लिखबैत छथि । कतेक गोटय केर मातृभाषा जानि बूझि के हिन्दी लिखि देल जाइत अछि । 2015 मे मैथिली भाषी सबहक संख्या कम सँ कम साढ़े तीन करोड़ रहबाक अनुमान अछि । नेपालक लगभग तीस लाखक मैथिली भाषी आवादी केँ सेहो एहि मे जोड़ि दी तँ मैथिली बजनिहारक संख्या कम सँ कम पोने चारि करोड़ होइत अछि । मैथिली बजनिहारक वास्तविक संख्या एहि अनुमान सँ बेसियो भसकैत अछि । ई बात अहूँ सबहक जानकारी मे रहबाक चाही जे मैथिली बजनिहारक एतेक संख्याक रहितौ नेना सबकेँ मैथिली मे पढ़ेबाक कोनो व्यवस्था बिहार सरकार नहि केनय अछि ।
कोनो भाषा जाहि अक्षरक व्यवस्था मे लिखल जाइत अछि ओ लिपि कहबैत छैक । मैथिली जाहि लिपि मे लिखल जाइत छलहि तकर नाम तिरहुता वा मिथिलाक्षर छैक । ई पुरान लिपि मानल जाइत छैक । 1900 ई. सँ पहिने एकर प्रयोग कम हुअए लागल छल । एकर पाछाँ दरभंगा राजक द्वारा एहि लिपिक उपेक्षा, मैथिली मे छपाई केर असुविधा आ राष्ट्रीयताक भावना जेहेन अनेको कारण अछि जाहि मादे अहाँ सब बाद मे विस्तार सँ अबस्से पढ़ब । एहि लिपि मे अपना सबहक पुरान ग्रंथ सब लिखल अछि । ओहि ग्रंथ सबकेँ अपना पढ़ि आ बूझि सकी ताहु लेल आवश्यक अछि हमरा सब प्रयत्न सँ एहि लिपि केँ जरूर सीखी । एखन मैथिली जाहि लिपि में लिखैत आ छपैत अछि ओ देवनागरी लिपि थिक । संस्कृत, हिन्दी, नेपाली आ मराठी जेहेन कतेको आर भाषा एही लिपि मे लिखल जाइत छैक । मैथिली मे बहुत रास पोथी आ पत्रिका बहराइत छैक मुदा सरकारी उपेक्षाक कारणें एहि भाषाक कोनो दैनिक अखबार, रेडियो स्टेशन अथवा टीवी चैनल नहि अछि । एहेन कोनो गैरसरकारी प्रयासो भेलहि तँ बहुत दिन धरि चलि नहि सकलहि । नेपाल मे किछु मैथिली एफ.एम. स्टेशन अवस्स छैक ।
बहुत दिन धरि चलल आंदोलनक बाद 2003 मे मैथिली केँ भारतक संविधानक आठम अनुसूची मे सम्मिलित कएल गेलहि । एहि सँ ई भाषा संविधान सँ मान्यता प्राप्त भाषा भ गेलहि । एहि अनुसूची मे सम्मिलित हेबाक लेल भारतक प्रत्येक समर्थ मातृभाषा योग्यता रखैत अछि । एहेन सब भाषा केँ ई सम्मान भेटबाक चाही । मुदा अहाँ सबकेँ ई गप नीक सँ बूझल रहबाक चाही जे संविधानक मान्यताक बावजूद मैथिली एखन धरि उपेक्षित अछि । एहि भाषा मे ऑफिस, सकूल, कचहरी कतहु काज नहि होइत छैक । जखन कि हेबाक चाही रहय ।
_______________________

आब अपना सब सबसँ महत्वपूर्ण जिज्ञासा पर विचार करैत छी । मैथिली कियै पढ़ी, कियै बाजी, कियै लिखी ? सबसँ पहिने ई स्पष्ट कदी जे कोनो भाषा सीखब बेजाय ने । अहाँ हिन्दी सीखू, अंग्रेजी सीखू, तमिल सीखू, फ्रेंच सीखू जतेक भाषा सीखबाक इच्छा हुअए सब सीखू । जतेक भाषा बूझब ओतबे बेसी लाभ होयत । नेनपन मे बेसी सँ बेसी भाषा सीखबा मे दिक्कतो कम होइत छैक । हमर निवेदन एतबहि टा जे मैथिली अबस्से सीखी । ई अहँक पुरखा-पुरखइन लोकनिक भाषा थिक । जेना गाछ कतनहु पैघ आ झमटगर भजाए ओकर जड़ि माटिये मे रहैत अछि तहिना अपना सब कतहु चलि जाइ अपन सबक जड़ि मिथिले मे रहत । ई जड़ि सँ जुड़ल रहबाक लेल जरूरी अछि जे हम अपन भाषा केँ बूझी । भाषा नहि बूझब तँ अपन गीत नाद, अपन साहित्य, अपन लोकक सुख-दुख कोना बूझि सकब ? अपन संस्कृति कोना बूझब ? अपन संस्कृति ने बूझब तँ अपन सबहक पहिचाने हेड़ा जायत ।
अपना सब कतहु रही, कतनहु प्रयास करी तैयो की मैथिल हेबाक पहिचान छूटत ? मानि लिअ अहाँ मिथिला सँ दूर कोनो नगर मे रहैत छी ।  कियौ पूछत बौआ एतय रहैत छी से तँ ठीक मुदा अहाँ छी कतैक? तखन बाजहि पड़त जे हम मिथिलाक छी । कियो पूछत जे बौआ ओहि ठामक भाषा मे किछु बाजि के सुनाउ । जँ मैथिली नहि अबैत रहत तँ कतेक लाजक गप होयत जे अपन भाषाक ज्ञान नहि छन्हि । हमरा सबकेँ अपन मैथिल होयबा पर गर्व हेबाक चाही । ओहि भूमिक लेल हमरा सबकेँ कृतज्ञ हेबाक चाही जकर माटि पानि अन्न सँ हमर पुरखा पुरखइन सब पोसल गेलाह । जाहि कारणे आई हमरा सब छी ।
जँ अपन भाषा नहि बूझब तँ अपन मिथिलाक बूढ़-पुरानक अनुभव कोना बूझि सकब ? गरीब, दुखित, किसान, मजूरक कष्ट कोना बूझि सकब? जँ ई सब नहि बूझि सकब तखन अपन पुरखा-पुरखएइनक एहि भूमि सँ दुख, अन्याय, गरीबी, असमानता, अशिक्षा आ एहेन कतेको समस्या केँ दूर कोना कसकब । अपन मिथिला जतेक उन्नति करत अपना सबहक मान ओतनहि बढ़त । अपना सब केँ मिथिलाक उन्नति मे अपन सहयोग देबाक अछि ।
अहाँके बूझल अछि मैथिली दुनिया केर सबसँ मिठगर भाषा मे सँ एक मानल जाइत छैक ? कहू तअपन एहि मिठगर भाषा केँ अपन ठोर पर नहि बसा लेबाक चाही? एकरा बाजय मे आत्मविश्वासक अनुभव करू । एहि भाषा मे किछु किछु पढ़ितो लिखतहु रहू ।
जँ मैथिली नहि सीखब तँ अपन मिथिला सँ दूर होइत जाएब । मिथिला सँ दूर होइत जेबाक अर्थ भेल अपन लोक आ अपनहि सँ दूर भेनय । मैथिली नहि सीखब तँ अपनहि इतिहास, अपनहि पहिचान सँ दूर भजाएब । हमरा विश्वास अछि जे अहाँ सब मिथिला, मैथिली आ अपन मैथिल पहिचान सँ दूर नहि हुअए चाहब ।


____________________
__________________
____________