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Wednesday, June 25, 2025

भाषाधार प्रान्त : डॉ. लक्ष्मण झा

भाषाक आधार पर प्रांतक गठन आधुनिक भारतक निर्माणक अभिन्न घटक रहल अछि। स्वतंत्रता सँ पूर्व कांग्रेस भाषावार प्रांत निर्माण पर सैद्धांतिक रूप सँ सहमत छल। स्वतंत्रताक बाद नेहरू जीक अगुआइ वाला कांग्रेस सरकार ओतने दुविधाग्रस्त रहल। ई सरकार नहि जानि कोन काल्पनिक आशंका सँ ग्रस्त भ’ के भाषावार प्रांतक गठन मे टालमटोलक नीति अपनेबा मे बेसी सुविधा देखैत छल। जनाकांक्षाकेँ ताक पर राखबाक एहि नीतिक गंभीर परिणाम रसे-रसे सोझां आबय लगलै। श्री पोट्टी श्रीरामुलुक आंध्रक निर्माण लेल मृत्यु धरि अन्नक त्याग होए वा किछु अन्य प्रांतक आकांक्षी जनता सबहक तीव्र आंदोलन, नेहरू जी केँ बैक-फुट पर आबय पड़लनि। भाषा आधारित प्रांतक आकांक्षी ‘मिथिला’ सेहो छल। जनताक चेतना आ इच्छा शक्तिक अभावक संगहि जनप्रतिनिधि लोकनिक घोर उदासीनता आ घोर-स्वार्थीवृत्ति कारणें, ई ओहि समय पृथक प्रांतक समस्त पात्रता राखितो एकटा अलग प्रांतक रूप मे प्रतिष्ठित नहि भ’ सकल।
    मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा मानल जाए वाला डॉ. लक्ष्मण झा दिसंबर 1952 ई. (पहिल अंक 15 दिसंबर 1952) सँ ‘मिथिला’ नामक एक साप्ताहिक पत्रक प्रकाशन शुरू केलनि। अपेक्षित जन-सहयोगक घोर अभाव आ अन्यान्य चुनौतीक सामना करैत अपन ईच्छाशक्ति, श्रम आ निजी साधनक बदौलते ओ अगस्त 1953 ई. (अंतिम अंक 10 अगस्त 1953) धरि एकर प्रकाशन कए संभव बना सकला। एहि पत्र मे भाषाधारित प्रांत, भाषा-अस्मिता, मिथिला आ देशक विभिन्न समस्या पर ओ टिप्पणी करैत रहैत छलाह। ‘मिथिला’ मे प्रकाशित हुनकर टिप्पणी आदिक संकलन श्री सुरेश्वर झाक संपादन मे 2002 मे
विचार-चिंतामणिक नाम सँ प्रकाशित भेल । भाषाधारित प्रांत पर हुनक टिप्पणी मे सँ तीन टा टिप्पणी उपरोक्त पुस्तक सँ साभार एतय प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। लक्ष्मण झाक विवेचना क्षमता अत्यंत प्रभावी छन्हि आ हुनकर वैचारिकी स्वतंत्र ‘मिथिला’ राज्यक आंकांक्षी-जन केँ एखनहु प्रेरित करैत अछि।  
   

भाषाधार प्रान्त
तेलगु-भाषाक आधार पर आन्ध्र प्रान्तक निर्माण करब नेहरू सरकार गछलक तँ परंच तते घिनायकय जे कमे लोक केँ धन्यवाद देबाक उत्साह भेलै। विरोध सेहो भइए गेल कारण आन्ध्र-निर्माणक ई नवीन योजना जे जवाहरलाल जी देशक समक्ष रखलनि अछि से अपूर्णे नहिं दुष्टतापूर्णो छनि।
    भाषाक आधार पर भारत मे प्रान्त सभक संगठन हो एकर आन्दोलन पचासहु वर्षसँ अधिक दिन सँ चलि रहल अछि। 1908 मे कांग्रेस एहि विचार केँ सिद्धांतरूपेँ ग्रहण कयलक। एही आधार पर 1911 मे बंगालक अबंगला भाषी क्षेत्रकेँ अलग कय बिहार बनाओल गेल ओ बंगलाभाषी पूर्व बंगाल तथा पश्चिम बंगाल केँ मिलाय एक प्रांत बनल।
    1916 मे तलगुभाषी लोकनि आन्ध्र प्रान्तक निर्माणक मांग पेश कयलनि ओ एक साल बाद कांग्रेस एकरा स्वीकार कयलक। 1920 मे नागपुर कांग्रेस मे निश्चित भेल जे समस्त देशक प्रांतीय संगठन भाषहिक अनुसार हो, ओ ताही हिसाबें आन्ध्र, तमिलनाड, केरल, कर्णाट, महाराष्ट्र, उत्कल, गुजरात आदिक प्रान्तीय कांग्रेस कमिटी बनल।  विचार भेलै जे अंगरेज सरकार एहि सिद्धांत केँ मानय वा नहिं देश एवं ओकर प्रतिनिधि संस्था कांग्रेस ओहि पर चलब शुरू कय दियय। सैह भेल। एहिसँ भिन्न-भिन्न प्रान्तक कांग्रेस कार्य-कर्त्ता लोकनि स्वभाषा-भाषी जनताकेँ संगठित करबामे वेश सुविधा पौलनि।
    एहि कार्य सँ कांग्रेसक सुविधे टा छलै, असुविधा छलै अंगरेज शासक केँ। से ओ तँ भेल शत्रुए। ओकर असुविधा तँ अभिष्टे छल। जा अंगरेज रहल ता धरि भाषाधार प्रान्तक बेश गीत कांग्रेसक अधबवाधव मे गाओल गेल। बेचारा सभ कै बेरि मानयक हेतु प्रयासो कयलक यथा आसाम, उड़ीसा ओ सिन्धक निर्माण कय, परंच भाषा सभक सीमा निर्धारण ओ शासन सम्बंधी झंझट देखि पराइत रहल।
    कांग्रेसी बाबू लोकनि जे राजा भेला तँ हिनकहु ऊपर अंगरेजक भूत सवार भेल। इहो झंझट सँ डेराय लगला ओ एहि सवाल केँ तारय-बटाड़य लगला। देशकेँ यदि आन तरहेँ ई लोकनि सुभ्यस्त कयने रहितथि तँ संभव भाषाधार प्रान्तक समस्या एतेक विकट रूपमे तत्काल प्रकट नहि होइत। सुख-सुविधामे लोक एकटा किछु काल बिसरि जाइत परन्तु से तँ भेल नहि। सुविधाक अर्थकोन, देश बनि गेल नरक। कोनो यातना, कोनो पीड़ा बाकी नहि रहल। सर्वत्र रोग-शोक-परितापें हाहाकार मचल अछि। जाही खन जे एकर त्रुटि बताय एकरा पर आक्रमण करबक संकेत करै छै ताही खन तकरा संग लोक आँखि मूनि दौड़ि परै अछि।
    एहि अशांति सँ जान बचयबाक रास्ता कांग्रेसी लोकनि एखन बनौने छथि जवाहरलाल जीकेँ, ई लोकनि हुनका रामलीलाक मुरूत बनाय अंगने-अंगने शांतिक बिलौकी मंगने फिरै छथि। परंतु एहि मुरूतक रूप कतेक दिन धरि उद्विग्न समाज केँ शान्त राखत? नेहरू बाबूक कुलशील ओ बाग्छटासँ भूखल, पियासल, रुग्न, बेहाल ई अपार जन समूह कते दिन धरि मुग्ध रहत?
    नवीन आन्ध्रमे हैदराबादक तेलगु-भाषी इलाका नहि मिलाओल जाएत, कारण ताहिसँ हैदराबाद राज्यक अंगभंग हेतैक! तखन ई भाषाधार प्रान्त नहिं भेल, ई भेल विद्रोही आन्ध्र लोकनिकेँ शान्त करबाक किछु उपाय। नवीन कांग्रेसी राजालोकनिकेँ राजकीय भोग-विलासमे कोनो उपद्रवसँ बाधा नहि होनु ई तकर विधान मात्र। एहि दुष्ट बुद्धि ओ निकृष्ट आचरणक कोन दण्ड हो? विधान तँ छै, दुइ रूपक-शास्त्रक ओ व्यवहारक। भोगविलोनमत्त राजा शास्त्रीय दण्ड नहि लै अछि। ओकरा हेतु होइछै व्यवहारक दण्ड, जे भेल छै मिश्रमे, चीनमे, रूसमे, फ्रांसमे, ईंगलैंडमे आदि। से केहन लागत? परन्तु दोसर उपाय?
(‘मिथिला, 29 दिसम्बर 1952)   
 

भाषाधार प्रान्त
भारतक प्रायः सबपार्टी कहै अछि भाषा, भूमि, अर्थनीति ओ परम्पराक आधार पर प्रान्त सभक निर्माण हो। परंच क्रियामे सब आगूपाछू करै अछि। कांग्रेस पार्टी राजा अछि। ओ नवीन व्यवस्था करबासँ डरय ई स्वाभाविक। राजपद पर पहुँचल व्यक्तिक सर्वोपरि इच्छा रहै छै ओकर भोग करयक। ओ कोनो झंझट नहिं चाहै अछि। नवीन कार्य मात्र ओकरा हेतु झंझट, कारण पक्ष-विपक्षमे किछु ने किछु आन्दोलन हयब अनिवार्य ओ से भेनहि आनन्द मे बाधा।
    प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ओ कम्युनिस्ट पार्टी सिद्धान्त में भाषाधार प्रान्त रखने अछि परन्तु एहि विषयक कोनो भारतव्यापी योजना प्रस्तुत करयसँ डरै अछि। प्रजासोशलिस्ट त मिथिला आन्दोलनक विरोध पर्यन्त कयलक अछि। कम्युनिस्ट पार्टी लोकक बाट तकै अछि। अधिक लोककें जतय जाइत देखत प्रायः सैह पथ पकड़त। भाषाधार प्रान्त विषयक सम्मिलन आदि में पार्टीक सदस्य कहैछथि हमर पार्टी एखन एहि विषयमे अपन निर्णय नहिं कयलक अछि तें हम एखन एकर पक्ष नहि करब। पार्टी जयत जोरगर आंदोलन देखे अछि ततय आगुये चलैक कोशिश करै अछि, जतय आन्दोलन मन्द छै ततय विरोधीहु बनि जाइ अछि। कम्युनिस्ट पार्टी सन क्रांतिक सिद्धांत वधारयवला दल एहि रूपें जीतलाक ढोलिया बनय ई सर्वथा निन्दनीय।
(‘मिथिला’, 20 अप्रिल 1953)
 

भाषाधार प्रान्त
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हालहि कर्णाटक प्रान्तक बेलगाँव कांग्रेस सरकारक भाषावार प्रान्तनीतिक व्याख्या कयल। हुनक कथन अछि आन्ध्रप्रान्त निर्माणक बाद एकवर्ष धरि ओकर कार्य संचालन देखि सरकार भाषाधार प्रान्त कमीशन नियुक्त करत, ई कमीशन देशभरिक प्रान्त पुनर्गठनक समस्या पर विचार करत। भाषाधार प्रान्त सम्बन्धी निर्णय ककरो पर लादल नहिं जायत, मतैक्य भेलापर कार्य सम्पादन हयत। लोकक डरयला-धमकयलासँ सरकार भाषाधार प्रान्तक स्वीकृति नहिं देत आन्ध्रप्रान्तक घोषणा श्री रामुलुक देहान्तक कारण नहिं भेल, वल्कि हुनक अनशनक कारण आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी निर्णय मे विलम्ब भऽ गेल।
    प्रधानमंत्रीजीक ई घोषणा साम्राज्यवादी लोकनिक औपनिवेशिक स्वतंत्रता सम्बन्धी नीतिक अनुरूप अछि। प्रतिकूल स्थिति कैं टारबाक हेतु कमीशनक नियुक्ति, मतैक्य शर्त तथा जन आन्दोलन एवं बलप्रयोगक निन्दा-ई सभ अछि साम्राज्यवादक अस्त्र। भारतीय स्वतंत्रता संग्राममे देशक अंगरेज राजालोकनि एहि सभ अस्त्रक प्रयोग करैत छला। श्रीरामुलुक अनशनक प्रति जे तिरस्कारभाव प्रधानमंत्री जी देखौल अछि सैह तिरस्कार भाव अंगरेज लोकनि गाँधीजी क अनशनक प्रति देखबै छल जाहि पर जवाहरलालजी खौंझाय उठै छला। हाल तक अंगरेजलोकनि कहै छला 1942 क आन्दोलनक किछु फल नहिं भेल। 1947 मे भारतकेँ जे स्वतंत्रता देल गेल से अंगरेज लोकनिक उदारता छल। बलक अभावमे दलित वर्गक लोककें अपन बुद्धि ओ विवेकक प्रति ई तिरस्कार सहै पड़े अछि। उन्मत्त राजालोकनिक यैह तिरस्कार भाव दलित वर्ग मे चेतना अनै अछि ओ तत्पश्चात् संघशक्ति । राजोन्मादक एक औषध अछि बलप्रयोग। समस्त संसारक इतिहास एकर प्रमाण अछि।
    बेलगांवक सभामे नेहरूजी बड़ विचित्र स्थिति मे छला। सभामण्डप पर आगमन होइतहि प्रबल विरोध होबय लागल। 'अहाँ कर्नाटक प्रान्त नहिं देल तें वापस जाउ'क नारा सभ दिससँ लगे छल। पन्द्रह मिनट धरि नेहरू साहेब सभा मंच पर ठाढ़ रहला, हुनका बजबाक अवसर नहिं देल गेल। तखन बड़ अनुनय विनय कय हल्ला शान्त कयल। हुनका हेतु ई स्थिति बड़ कष्टकर छल। ओ अभ्यस्त छथि सभामण्डपमे पहुँचि लाख-लाख लोकक साष्टांग प्रणाम ग्रहण करबाक। जे जनता हुनका पैरक धूलि-कणक हेतु लालायित रहै छल से हुनका सभासैं वापस जाय कहय, बाजय नहिं देयय ई केतेक असह्य ! एहि स्थिति मे नेहरूजी जे धैर्य देखाओल ताहि हेतु हुनका धन्यवाद ।
    कर्नाटक प्रान्तक आन्दोलन गत दू मासमे बेस प्रबल भेल अछि। दूमास पूर्व धरि मिथिलाप्रान्तक आन्दोलन सैं कर्नाटक बेसी अगुआयल नहिं छल। आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी घोषणा ओ कांग्रेसक हैदराबाद सम्मिलनक वाद कर्नाटक प्रान्त आन्दोलनमे खूब प्रगति भेल अछि। तीन सय वर्षक इतिहासमे मिथिला जहिना पछुआयल छल तहिना फेर पछुआयत ।
(‘मिथिला’, 18 मई 1953)

संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डल, दरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- 27-31

Saturday, June 21, 2025

डा० लक्ष्मण झा एक प्रखर व्यक्तित्व : मदनेश्वर मिश्र

डॉ. लक्ष्मण झाक जीवन आ कृतित्व सँ परिचित करेबाक उद्देश्य सँ श्री जयमंत मिश्रक एकटा लेख, एहि ब्लॉग पर अहि पोस्ट सँ पूर्व प्रकाशित कएल गेल छल। हुनकर लेख डॉ. सुरेश्वर झा क संपादन मे 2002 मे प्रकाशित डॉ. लक्ष्मण झाक किछु लेखटिप्पणी आदिक संकलन 'विचार-चिंतामणीमे प्ररोचनाक रूप मे प्रकाशित भेल छल। एहि क्रम मे पुस्तक मे मे सम्मिलित श्री मदनेश्वर मिश्रक लिखल एक टा महत्वपूर्ण संस्मरण प्रधान लेख उपरोक्त पुस्तकक संपादकक प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करैत प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।


डा० लक्ष्मण झा : एक प्रखर व्यक्तित्व


मदनेश्वर मिश्र

डॉ० लक्ष्मण झा एक प्रखर आ उच्चकोटिक विद्वान छलाह। ओ मैथिली भाषासाहित्यइतिहास आ अर्थशास्त्रक विशेष रूप अध्ययन कयने छलाह। मैथिली ओ मिथिलाक्षरक लेल हुनका अत्यन्त प्रेम छलनि। ओ पुरातत्वविद सेहो छलाह। भारत-छोड़ू” आन्दोलन मे जेल गेलाह आ ओतयसँ मुक्त भेलाक बाद बिहार सरकारक स्कॉलरशिप पर लन्दन विश्वविद्यालयसँ एम०ए० आ पी०एच०डी० करबालेल ओ इंगलैंड चलि गेलाह। 1947 ई० मे ओ एम०ए० आ 1949 ई० मे मिथिला एण्ड मगधविषय पर पी०एच०डी० लंदन विश्वविद्यालय सँ कयलनि। तकर बाद ओ स्वदेश वापस भ' गेलाह। एलाक किछु दिनक बाद ओ पटना विश्वविद्यालयमे अध्यापनक काज कयलनि। 1949 ई० सँ 1952 ई० धरि ओ जायसवाल शोध संस्थानपटनामे उपनिदेशकक पद पर काज कयलनि। तखन निदेशक छलाह स्वनामधन्य स्व० अल्तेकर। मुदा हुनका सँ डॉ० लक्ष्मण झा के पटरी नहि बैसलनि। 1952 ई० क प्रथम आम चुनाव मे सोशलिस्ट पार्टीक टिकट पर संसदक लेल चुनाव मे भागलेबाक कारणसँ डा० लक्ष्मण झाकें सरकारी सेवा छोड़य पड़लनि। दरभंगा संसदीय क्षेत्रसँ ओ चुनाव हारि गेलाह। तत्पश्चात्‌ किछु दिन ई सी०एम० कॉलेजमे इतिहासक व्याख्याता रहलाह। ओहि अवधिमे ओ मिथिला'” नामक मैथिली साप्ताहिकक प्रकाशन प्रारंभ कयलनि। किछु अंकक प्रकाशन भेलाक बाद ई बन्द भ’ गेल।
          ई प्रशंसनीय अछि जे लखन जी स्कूलक छात्रक समयसँ साइमन कमीशनक विरोध सँ 1942 धरि स्वतंत्रता आन्दोलनमे पूर्ण सक्रिय रहि भागलेलनि। लखनजी पहिने काँग्रेसमे छलाह आ बादमे सोशलिस्ट पार्टीमे सम्मिलित भगेलाह।
          बिहारमे कर्पूरी ठाकुरक नेतृत्व मे जखन सरकार बनल तँ 1977 ई० मे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक नामसँ ललित बाबूक नाम सरकार द्वारा हटा देल गेलैक। ओहि समयमे हम एहि विश्वविद्यालयक कुलपति छलहुँ। हम कुलाधिपतिसँ भेटकए कहलियनिजे ई काज सरकार द्वारा उचित नहि भेल छैक। अपने जँ ललित बाबहूक नाम सरकार द्वारा पुनः जोड़बा सकी तँ ठीक छैक अन्यथा हम सरकारक एहि निर्णयक विरोधमे इस्तीफा दैत छी। अपने एकरा स्वीकार कएल जाओ। राज्यपाल डॉ० जगन्नाथ कौशल सेहो सरकारक एहि फैसलासँ दुखी छलाह। मुदा एक शालीन पदाधिकारी जकाँ सरकारक विरोधमे किछु बाजथि नहिं। हम तीन दिन निरन्तर राजभवन मे हुनकासँ अपन इस्तीफाक मंजूरीक हेतु निवेदन करैत रहलियनि। एहि बीच ओ सरकारहुँसँ विचार-विमर्श करैत रहलाह। मुदा हमरा सतत कहैत रहलाह जे भावनामे नहि बहू। अन्ततोगत्वा ओ हमरा जिद्द पर हमर इस्तीफा स्वीकार काएलनि आ हमरे आग्रह पर नव नियुक्त कुलपतिक नियुक्ति-पत्र सेहो हमरहि द' देलनि। डॉ० लक्ष्मण झाक नियुक्ति-पत्र ल' क' हम पटनासँ राति मे दरभंगा पहुँचलहुँ। डॉ० लक्ष्मण झाक नियुक्ति-पत्र हम अपन बधाईक संग तत्कालीन रजिस्ट्रार डॉ० शालिकनाथ मिश्रक हाथें हुनका पठा देलियनि आ हम भिनसरे दरभंगासँ पुर्णिया कॉलेजमे अपन प्रधानाचार्यक पद पर योगदान करबालेल विदा भ' गेलहुँ।
          जखन हम दरभंगामे कुलपति छलहुँ तँ डॉ० लक्ष्मण झासँ हमरा सम्पर्क बनल रहैत छल। कखनहुँ-कखनहुँ ओ हमरा किछु-किछु काजो करयलेल कहथि। एक दिन ओ हमरा टेलिफोन कयलनि जे एकटा डोम श्रीमल्लिक मिथिले विश्वविद्यालय सँ मैथिली मे एम०ए० पास कयने छथि। ई सामान्य बात नहि थिकैक। ओ हमरा कहलनि जे यदि संभव होइतँ विश्वविद्यालयमे हिनकर योग्यता देखि के कोनो पद पर नियुक्त कएलेल जाए। हम हुनका आश्वासन देलियनि जेँ अवसर अयला पर ओहि डोम विद्यार्थीक संग समुचित व्यवस्था कयल जेतैक। समय ऐलापर हुनक नियुक्ति विश्वविद्यालयमे तृतीय वर्गीय कर्मचारीक रूपमे कए लेल गेलनि आ ओ एखन मिल्लत कॉलेज मे प्राध्यापक पद पर नियुक्त छथि। एहि सँ ओ बड़ प्रसन्न भेल छलाह। प्रसन्न एहि कारणे जे समाजक निम्नतम वर्गक लोकक प्रति हमरहु ओहने सहानुभूति छल जेना हुनका छलनि।
          किछु दिनक बाद ओ पुनः टेलिफोन कयलनि आ कहलनि जे हुनका पता लागल छनि जे पंचोभ गाम मे हथिया नक्षत्र मे बिहाड़िक कारणें बहुत घर खसि पडल छैक। विश्वविद्यालयक काज हेबाक चाही जे एहेन विपत्तिक समयमे समाजक लोककेँ सहायता करय। हम हुनका कहलियनि जे हम हुनक विचार सँ सहमत छी। मुदा पहिने हम ओहि क्षेत्रक एहि समस्या सँ अवगत भए जाइ तखन हम अपने सँ विचार-विमर्श कए विश्वविद्यालय दिससँ समुचित कार्य करबाकलेल प्रवृत्ति होएब। हम ओही दिन कंसी-सिमरी आ पंचोभ दिस विदा भेलहुँ। हमरा धानक खेतमे किछ काज करैत गृहस्थ आ मजदूर सभसँ भेट भेल। ओ लोकनि हथियाक वर्षा सँ बड़ प्रसन्न छलाह। हम हुनका लोकनिसँ पुछलियनि जे घर सभ जे खसल छैक तकरासँ तँ बर्बादी भेल छैकओलोकनि कहलनि जे नहि एहन कोनो नोकसान नहि भेल छैक आ हमहूँ देखलियैक जे एक आधटा लटपटायल घर कतहु-कतडु झटक मे खसि पडल छलैक। ओलोकनि ईहो कहलनि जे हथियाक पहिने जे घर लटपटा जाइत छेक ओकर मरम्मत नहि क' खसबाक हेतु छोड़ि दैत छियैक जे खसलाक बाद ओकरा सांगोपांग उठायब। कहबाक अर्थ ई जे कोनो रिलीफक आवश्यकता नहि छलैक। डॉ० लक्ष्मण झा हमर रिपोर्ट! सँ अत्यन्त प्रसन्न भेलाह। हुनका दोसरो सूत्रसँ पता लागि गेल छलनि जे हथियाक वर्षा सँ कृषकसभ प्रसन्न छलाह। डॉ० लक्ष्मण झा पीड़ित वर्गक दुःख के देखि पसीज जाइत छलाह।
          यद्यपि ओ हमरा सँ उमेरमे जेठ छलाह मुदा अहू कारणेँ आदर दैत छलाह जे हम हुनका सँ पहिनहि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक कुलपति भगेल छलहुँ। अनुशासनक सतत पावन्द!
          हमर पुत्र डॉ० रलेश्वर मिश्रमिथिला विश्वविद्यालयक स्नात्कोत्तर इतिहास विभागक अध्यक्ष हुनका बहुत प्रिय छलथिन। जखन हम विश्वविद्यालयमे छलहुँ तेँ श्रीरलेश्वर हमरे संग रहैत छलाह। मुदा हमरा गेलापर हुनका डेराक समस्या भगेलनि। हम डॉ० झाकेँ एहि सम्बन्धमे संवाद देलियनि तँ अत्यन्त आत्मीयतासँ ओहि समयमे उपलब्ध एक नीके डेरा हुनका आबंटित कयलथिन। आत्मीयताक निर्वाह मे हुनका कहियो कमी नहि रहलनि।
          कुलपति भेलाक किछु दिनक बाद ओ पुर्णिया कॉलेजक निरीक्षण करबाक लेल पुर्णिया गेलाह। हुनका कॉलेजमे पता चललनि जे अस्वस्थताक कारण सँ हम अवकाश पर छी। ई सुनतहिं ओ नवरत्नहातामे अवस्थित हमर आवास पर हमरा देखबाक लेल तुरन्त आबि गेलाह। प्रचंड रौद आ गर्मा छलैक। सुस्तयलाक किछुए कालक बाद कहलनि-''हमरा खीरा खाइक इच्छा होइत अछि। हम भीतरसँ बहुत गर्मीक अनुभव क' रहल छी।'' हम कहलियनि जे खीरा तँ हमरा बाड़िये मे अछि आ तुरन्त खीरा काटिकहुनका देल गेलनि। बहुत प्रेम पूर्वक ओ खीरा खयलनि आ किछु देरक बाद कहलनिजे हुनक मोन बिल्कुल शान्त भगेलनि अछि। केहन आत्मीयता! किछु ठहरिक' भोजन कयलनि आ भोजनक सामग्री हुनका एहि कारण बहुत उत्तम लगलनि जे सामग्री सादा आ ताजा छलैक तथा मसालाक कमसँ कम व्यवहार भेल छलैक। ई ओ बेर-बेर बहजलाह। मिथिला विश्वविद्यालयक गणित विभागक अध्यक्ष डॉ० बी०एन० झा सेहो हुनक संग छलथिन। संध्याकाल ओ हमर आग्रह कएलहुँ पर नहि रुकलाह। अपन कार्य-क्रमक अनुसार ओ दर्शनशाह कॉलेजक निरीक्षण करबाक हेतु कटिहार चल गेलाह। हुनक पोशाक छल अत्यन्त साफ धोती आ उज्जर चादरि। एहि सादगीक सोझाँ मे के नहि नतमस्तक भजाएतएही भेषमे ओ विश्वविद्यालय कार्यालय जाथि, दूर-दराजक कॉलेज-निरीक्षण मे जाथि। हुनक सोच-विचार सेहो सीधा आ स्वच्छ। एहि विलक्षण कुलपति केँ देखि लोकक मोनमे स्वतः श्रद्धा उत्पन्न भजाइक।
          किछुए समय बाद विश्वविद्यालयक कुलपति पद सँ ओ हटि गेलाह। मुदा रहन-सहनबात-चीतमे कोनो अन्तर नहि। तकर बाद ओ पूर्व विधायक प्रेमचन्द्र शास्त्रीक सारामोहनपुरक निवासमे रहय लगलाह। हम जखन दरभंगा आबी ते हुनक भेट करबालेल ओतय जाइ। ओ बड़ प्रसन्न होथि आ देरतक बैसाकगप्प करथि। पुस्तकसँ हुनका बड़ अनुराग छलनि आ हुनकर निजी पुस्तकालयमे मूल्यवान पुस्तकक संग्रह छलनि। हमरा स्मरण अछि जे मिथिला साप्ताहिक पत्रकजकर ओ सम्पादक तथा प्रकाशक छलाहसब प्रकाशित अंक के एकठाम जिल्द बन्हाकएहमरा देने छलाह। ओहि पत्रिकाक सामग्री आ विशेष रूपें सम्पादकीय लेख सभसँ ई स्पष्ट अछि जे ओ मिथिला आ मैथिलीक प्रचार ओ प्रसारक लेल कोनो त्याग कसकैत छलाह। मैथिल संस्कृति हुनका रगरगमे भीजल छल।
          समाज सेवापर हुनका बहुत ध्यान रहनि। ओतँ हमरहुँसँ समाज-सेवा करबाबय चाहैत छलाहजाहिमे हमरा आपत्ति नहि छल। दरभंगामे हम जखन कुलपति छलहुँ तँ डॉ० अरुण कुमार मिश्रकेँजे सी० एम० कॉलेज मे प्राध्यापक छलाहओ एहि कारणें मानैत छलथिन जे समाज-सेवा सम्बन्धी जे काज ओ हुनका करय कहथिन से ओ सहर्ष आ रुचिपूर्वक करथिन।
          हम डॉ० सुरेश्वर झा केँ हृदयसँ धन्यवाद दैत छियनि जे ओ एहेन ऋषितुल्य व्यक्तिक जीवनक प्रमुख घटना आ विचारक संकलन तैयार कयलनि। हिनकर अध्यवसायिकता आ डॉ० लक्ष्मणझाक मिथिला ओ मैथिलीक प्रेमक लेल हिनकर आदर आ निष्ठा स्तुत्य अछि। 'विचार चिन्तामणिक संग्रहक लेल हम हुनका पुनः पुनः धन्यवाद दैत छियनि। डॉ० लक्ष्मण झाक स्मृति मे ओ ई एक गोट अनुपम काज कयलनि अछि।

[कलशस्थापन/28-9-2000]
 
संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डलदरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- XV-XVIII

Friday, June 20, 2025

कीर्तिर्यस्य स जीवति (लक्ष्मण झा प्रसंग) : जयमन्त मिश्र

मैथिली भाषा-अस्मिताक अलख जगौनिहार मे डॉ. लक्ष्मण झा क विशिष्ट स्थान छन्हि। हुनका मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा कहल जाइत छन्हि। ओ असमानांतर प्रतिभा आ योग्यता सँ संपन्न व्यक्ति छलाह। सुविधा आ भौतिक उन्नतिक सहज  उपलब्ध अनेक रास अवसर केँ अस्वीकार कए ओ अपन जीवन मैथिली आ मिथिलाक लेल समर्पित कदेलन्हि। मिथिला सन ऊसर-चेतनाक क्षेत्र मे जाहि जीबटता आ जुनूनक संगहि ओ काज केलनिओ सबदिन अनुकरणीय रहत। ओ दृढ़ नैतिक मूल्य सँ अनुशासित एक कठोर तपस्वी जीवन जीबैत रहलाह। मिथिलाक नव पीढ़ी हुनका विषय मे जानि कृतज्ञ आ प्रेरित होए ई आवश्यक अछि। हुनकर बहुत रास महत्वपूर्ण काज एखन धरि असंकलित अछि। एहि दिसा मे हमरा लोकनिक ध्यान जायब अत्यंत आवश्यक अछि।

    डॉ. सुरेश्वर झा क संपादन मे हुनक किछु लेख आ टिप्पणी आदिक संकलन 'विचार-चिंतामणीक नाम सँ 2002 मे प्रकाशित भेल छल।किताब मे सम्मिलित कएल गेल किछु अन्य सामग्री डॉ. लक्ष्मण झाक जीवन आ कृतित्व सँ परिचित होएबाक उद्देश्य सँ उपयोगी अछि। श्री जयमंत मिश्रक ई लेख पुस्तक मे प्ररोरचना क रूप मे प्रकाशित अछि। लेख उपरोक्त पुस्तक सँ संपादकक प्रति आभार व्यक्त करैत प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। 

लगभग साढे सात बरख सँ ‘मैथिली मंडन’ ब्लॉग पर कोनो सामग्री पोस्ट नहि क’ सकल छलहुँ। एहि लेल हार्दिक खेद अछि। आशा करैत छी जे आगां एहेन दीर्घ विरामक स्थिति नहि बनय।


कीर्तिर्यस्य स जीवति  (लक्ष्मण झा प्रसंग

जयमन्त मिश्र

डॉ० लक्ष्मणझा,  आदरणीय लखन जीमिथिलाक ओ विभूतिभारतक ओ सपूत छलाह जकरा पर मिथिले नहि सम्पूर्ण भारतके गौरव छैक। ओ सात्त्विक गुणक साकार रूप ओ सात्त्विक विचारक मूर्तिमान स्वरूप लाह। हुनक आहार-व्यवहार तथा वेश-भूषा सर्वथा सात्विक छलनि। साफ च्छ धोती आ उज्जर दपदप तौनी हुनक मुख्य परिधान छलनिजे भव्य भालक अभाग छरहर देह मे बहुतनीक लगैत छलनि।
स्वच्छ विचारक अनुरूप व्यवहार हुनक जीवन-पद्धतिक विशिष्ट अंश छलनि। अपन सिद्धान्तक विपरीत दोसर विचार सँ समझौता नहि करब हुनक अभ्यास छलनि।
    हमर अग्रज प्रख्यात अभियन्ता प्रो० राजेन्द्रमिश्र आ डा० झा समवयस्क छलाह। दूनू व्यक्ति 1949-50 ई० मे उच्च शिक्षा-प्राप्तिक हेतुसंगहि लन्दनमे रहैत छलाह। डा० झा पी-एच०डी० डिग्री लए लन्दन से अपन देश वापस आबिरहल छलाह। हम ओहि समय पटना विश्वविद्यालयमे छात्र छलहुँ।
    भैया पत्र सँ सूचित कएलनि जे लखन जी पटना पहुँचि रहल छथि। कंचन भवनमे डा० सुभद्रझाक संग ठहरताह। हुनकासँ सविस्तार समाचार ज्ञात होएत।
    प्रायः 50 ई० क जनवरी छलैक। बारह बजे दिन मे हम डा० झा सँ भेटकरबाक हेतु कंचन भवन गेलहुँ। डा. झा बाहर रौदमे पटिया पर बैसलभीतर पाकक्रिया मे संलग्न डा. सुभद्रझासँ , गप्प कए. रहल छलाह। हम पैर छूबि प्रणाम करैत अपन नाम कहलियनि। आउ-आउ कहि स्नेहसँ अपने लगमे बैसौलनि। ई अपन पी.एच.डी.क प्रसंग लन्दन मे अपन गाइडक संग सैद्धान्तिक मतभेद पर बात कए रहल छलाह। एही प्रसंग ई डा. सुभद्रझासँ कहलथिन जे हम अपन गाइड केँ 'हरदीबजाइएक छोड़लियनि। ओहिना मन अछिडा. सुभद्रझा कड़छु मे देल कड़ू तेलसरिसौमिरचाइ के चुलहा पर पटकिभीतरसँ दौड़ि 'लखनजी अओ लखन जीबहुत दिनुक बाद हरदी बजएबाक बात अहाँ मुहें सुनल अछिई कहैत हुनका भरि पाँज पकड़ि पटियापर बैस गेलाह। किछुकालक बाद कहलथिन जे आलूक साना तैयार अछिभात भइए गेल अछि। आब चलू बिनु छौंकले दालिक संग भोजनकए पटना मार्केट चली आ ओतहि अहाँ केँ तौनी कीनि दी। भोजनकए जाबत सुभद्र बाबू गंजीकुर्ता पहिरि बाहर आअएलाहओही बीच डा. झा संक्षेपमे लन्दनक समाचार आ भैयाक कुशलादि कहलनि। हुनक उक्तिमे अग्रजक स्नेहक अनुभूति भए रहल छल।
    दूनू डाक्टर लगले पटना-मार्केट चललाह। हमहूँ पाछाँ लागल मार्केट धरि अएलहुँ। ओतए एक दोकान पर ''यहाँ सभी प्रकारके वस्त्र मिलते हैं" एहन साइन बोर्ड देखि ओकरा सँ तौनी मंगलखिन। प्रायः तौनीक अर्थ नहि बूझि ओ कहलकैन 'नहीं है'। एहिपर दूनू गोटे एकस्वर सँ कहलथिन जे यातँ तौनी आनू या अपन साइन बोर्ड के उठाक फेकू। ई लोकनि तौनी क बदला चादरि मांगलए तैयार नहि। दोकानदार तौनी बुझैत नहि। अन्ततः ओ अनुनय विनय पूर्वक कलजोड़ि हिनका लोकनिकेँ विदा कएलक।
    डा. झाक जीवन-यात्रामे विपरीत परिस्थितिक संग समझौता नहिकरबाक हुनक अटल सिद्धान्त हुनका कतहु विशिष्टपद पर स्थिर नहि रहए देलकनि एहि बातक सविस्तार चर्चा डा. सुरेश्वर झा हुनक परिचयक प्रसंग कएने छथि।
    हम बिहार विश्वविद्यालयमुजफ्फरपुर मे जखन संस्कृत छात्र संघ तथा मैथिली छात्र संघ दूनूक अध्यक्ष छलहुँ तखन दूनू संघक संयुक्‍त वार्षिक अधिवेशनमे संस्कृत मैथिली दुहुक ज्ञाता विद्वान केँ अध्यक्षता करबाक हेतु आमन्त्रित करतै लियनि। ओहिक्रममे एक बेर डा. लक्ष्मणझा अध्यक्षताक हेतु आएल छलाह। विहार विश्वविद्यालयक विद्वन्मण्डलीमे डा. झाक अध्यक्षीय भाषण बहुत विशिष्ट भेल छलनि। मैथिलीक प्रसंग हुनक बहुत उपादेय सुझाव सब भेल छलनि। ओहि अवसर पर मैथिली-कविसम्मेलनमे अनेक मैथिलीक कवि आएल छलाह। हुनक सुझावक बादो कविलोकनि मार्ग-व्ययक रूपमे विदाई नेने छलाह से डा. झा देखैत छलथिन।
    सबके गेलाक बाद जखन हुनका मार्ग-व्यय मात्र लेबाक आग्रह कएलियनितँ कने रुष्ट भए ओ कहलनि-''हमरो कविए बूझि लेलहुँ कीहम मौन भए सब सूनि प्रणाम कएलियनि। रिक्शा पर संगमे बैसि बस-स्टेण्डधरि आबिबसपर चढ़ाए पुनः प्रणाम कए वापस भेलहुँ।
    1978 ई. मे जखन ओ “मिथिलाविश्वविद्यालयक कुलपति छलाहतखन 8 मार्च, 78 के हम हुनक बेलाक पुरना डेरामे भेट करए गेल छलियनि। 11 बजे दिनक समय छलैक। ओ आंगनक चापाकलमे चाउर धो रहल छलाह। चुलहापर अदहन खौलाइत छलनि। कहलनि-अहाँ बैसू। हम चाउर लगाक ओहिमे आलूदए देत छियैक तखने अहाँ सँ गप्प करब।
    हमर जिज्ञासा भरल आँखि देखि ओ कहए लगलाह-विश्व विद्यालयक नोकरभनसिया के अपन काज नहि करए दैत छियैक। हम कतेक दिन कुलपति रहब तकर कोनो ठेकान नहि। कर्पूरी के कहि देने छियेक जे कखनहु हम छोड़ि देब। एही कारणें कुलपति-निवासमे नहि रहैत छी। मदनेश्वरजी ओहिमे रहि बहुत राहड़ि लगौने छलाह। तैयार होयबासँ पहिने छोडिकचल गेलाह। हम तैयार कराएसबटाके उचित मूल्यपर बेचि विश्वविद्यालयक कोशमे जमा करवा देलियैक अछि। हम कहलियनि-अपने जखन वेतनो मे केवल एकेटा रूपया लैत छियैकतखन और वस्तुक कोन बात।
    'हैँहमर इहोशर्त मानिएकए कर्पूरी हमर नियुक्ति कएने अछि'। जनैछीआइ कालिजे मध्यम मार्गी लोक अछि सैहटा कुलपतिक पदपर बनल रहि सकैत अछि। हम जनैत छी जे हम एकभगाह लोकछी। कतेक काल धरि कतए रहब तकर कोनो ठेकान नहि। मन पड़ैत अछिराजेन्द्र बाबूक संग लन्दनक ओ जीवन दूनूगोटे ओतए बड़ प्रसन्न रही।
    ताधरि चाउर सिद्ध भएगेल छलनि। आलूक साना बनौलनि। हमरो पुछलनि। ओहि दिन दालि नहि बनौने छलाह। आलूक सानाक संग प्रेमपूर्वक भात खएलनि। किछु काल गप्प कए विश्वविद्यालय विदा भेलाह। प्रायः साल भरि रहिपुष्कर पलाश वन्निलिप्तिओ कुलपति पदकेँ त्यागि देलनि।
    हम जखन संस्कृत विश्वविद्यालयमे कुलपति छलहुँप्राय: 84 ई.क बातथिकडाक्टर साहेब अस्वस्थ भए दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पतालक पेयिंग वार्ड मे छलाह। भेट करए जाइत छलियनि। जखन स्वस्थ भए ओतए सँ अएबाक दिन निश्चित भेलनि तँ हम निवेदन कएलियनि जे एतएसँ जएबाकाल हम गाड़ी नेने आएब आ डेरापर पहुँचादेब।
    ओ कहलनि-गाड़ी अहाँक अपन ते नहि थिक। विश्व विद्यालयक गाड़ी सँ ओना जाएब ठीक नहि। कोनो व्यवस्था भए जएतैक। अहाँ केँ एहि हेतु बहुत-बहुत साधुवाद।
    अन्तिम भागमे डा. झा मोहनपुरमे एक इष्ट व्यक्तिक डेरामे रहेत छलाह। एकदिन ओतए भेट करए गेल छलियनि। कहलनि जे  आइकालि एकमास एतएएकमास गाममे रहैत छी। गाम गेल छलहुँ। हमर भौजीजनिका हमरा प्रति बहुत स्नेह रहैत छनि आ पूर्वमे हमर कुलपति रहबाक भावनो रहैतछनिकहलनि जे एहिवेर अपना खेतये धान बहुत कम भेल। खेसाड़ी बढ़ियाँ भेल अछि। खेसाड़ी बेचिकएथोड़ेक चाउर लए लैत छी। हम कहलियनि अपना खेतमे जे उपजल अछि हम सैहटा खाएब। खेसाड़ीक रोटी हमरा नीक लगैत अछि। हमर बात मानि ओ खेसाड़ीक रोटी बनबैत रहलीह।
    डाक्टर साहेबक एक अन्तरंग मित्रसँ एकदिन हम पुछलियनि-डा. साहेब वैवाहिक जीवनसँ एना विरक्‍त कियैकरहलाह। ओकहलनि-जखन लखनजीक ओ अवस्था छलनि ते हुनकासँ ई जिज्ञासा कएने छलियनि। ओ कोनो संस्कृतज्ञक मुहेँ सुनल एक श्लोक सुनौलनि-
जनितो मनुजो द्विपदस्तु सदाप्रियया सहितश्चतुरंग्रिरभूत्‌ पशुवत्‌,
जनितेन सुतेन च षट्चरणो भ्रमतीह पुनर्भुवि षटपदवत्।
तनयात्‌ तनयः प्रभवेच्च यदा अरूणद्धि स्वयं मकरीकृमिवत्‌
अधुनापि मनुष्य तनुं विदधत्‌किमु संभज नन्‍दसुतं मुनिवत्‌।।'
विवाह सँ पूर्व लोक 'द्विपद मनुष्यरहैत अछि। पाणि ग्रहणक बाद और दू पैर क संग 'चतुष्पदपशु-तुल्य भए जाइत अछि। जखन सन्तति होइत छैक तखन और दू चरण जोड़ि 'षट्पद भ्रमरक समान बनि जाइत अछि। सन्तति सँ जखन सन्‍तति होइत छैक तखन मकड़ाक जालमे फँसि जाइत अछि। जाधरि मनुष्य-शरीर धारण कएने रहैछ तावतेधरि मुनिजन जकाँ ईश्वरक ध्यान कए सकैत अछि। तपस्वी मुनि जौं नहियो बनि सकी तँ मनुष्यधरि बनल रहीई अभिलाषा अछि।एहिसौं डा. झाक मनोभाव केँ जानल जा सकैछ।
    'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ताजकाँ डॉ. लक्ष्मणझाक जीवन-कथा अनन्त अछि। हुनक जीवन-यात्रामे सबसँ पैघ विशेषता ई देखल गेल अछि जे ओ जाहि सिद्धान्त के मानैत छलाह ओकर अक्षरशः अपन जीवन मे अनुपालन करैत छलाह। ' त्यागात्‌ शान्तिः'' एहि तथ्यकेँ मानि आजीवन त्यागीबनि निष्काम कर्म करैत रहलाह। ''ज्ञानं भारः क्रियांविना'' एकरा बुझैत अपन ज्ञानकेँ व्यवहारमे चरितार्थ करैत रहलाह। कामपर विजय प्राप्त कए क्रोध ओ लोभकेँ निरस्त करैत रहलाह।
     यस्तु क्रियावान्‌पुरुषः स विद्वान!" एहि सदुक्तिक ओ ज्वलन्त उदाहरण छलाह। एहन त्यागीतपस्वीमनस्वीमनीषीक पुण्य-स्मृतिमे “विचार चिन्तामणिक प्रकाशन अत्यन्त श्लाध्य प्रयास थिक। एहिमे डा. झाक मिथिलामैथिलमैथिली क उत्थानक दिशा मे सुचिन्तित विचार संकलित अछि। देशक राजनीतिशिक्षादीक्षाक प्रसंग हुनक भावना संगृहीत अछि। हुनक प्रकाशितअप्रकाशित कृतिक विषयपर सूचना देलगेल अछि। हुनक जीवन-यात्राक सविस्तार प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत कएल गेल अछि। एहिमे हुनक अपन कटु-मधु अनुभवक दिग्ददर्शन भेटैत अछि।
    एतदर्श डा. सुरेश्वर झाजीकेँ शतशः साधुबाद दैतछियनि जे ओ बहुत परिश्रम आ पूर्ण मनोयोग सँ सब सामग्री केँ संकलित कए पुस्तकाकारमे एकरा प्रस्तुत कएने छथि।
विश्वासअछिवर्तमान संघर्षमय जीवनमे लोक एहि “'चिन्तामणि'' क प्रकाशमे चिन्ता सँ दूर रहबाक प्रयास करत। इतिशम्‌।
[अनन्त चतुर्दशी/12-9-2000]

संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ. लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ. सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डलदरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- IX-XIII

Sunday, May 28, 2017

जत देखल तत कहए न पारिअ : गोविन्द झा

हमर सभक सौभाग्य थिक जे पं. गोविन्द झा चौरानबे बरखक अवस्थो मे रचनात्मक रूपें सक्रिय छथि । ‘भारती मंडन’ क नव क्रमांक-1 (अंक-13) मे प्रकाशित हुनक संस्मरणविधाक टटका रचना - ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ एकर उदाहरण थिक । गोविन्द बाबू लगभग शताधिक पुस्तकक लेखन-संपादन आ अनुवादसँ सम्बद्ध रहल छथि । पैघ भाषाविज्ञ आ वैयाकरणतँ छथिए मैथिली आलोचना आ सृजनमे सेहो हिनक बड्ड योगदान छन्हि । हिनक व्यक्तित्वक एक टा रूप शब्दकोशकारक सेहो छन्हि । शब्दक उत्पत्ति रहस्य आ अर्थ करबाक हिनकर विलक्षण कौशल बड्ड उपयोगी आ प्रभावी होइछ। एतेक विद्वता आ एतेक सुदीर्घ अनुभवक रहितो हिनकर व्यक्तित्वक सहजता आ विनम्रता अनुकरणीय अछि ।
ई कहब बेसी उपयुक्त होयत जे ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ हुनकर मिथिला- मैथिलीसँ सम्बद्ध किछु संस्मरण सबहकक कोलाज थिक। एहिमे कतहु मैथिली आंदोलन आ मैथिलीक आंदोलनधर्मी संस्था सबहक इतिहास आ आलोचना छैक, कतहु मैथिलक आपसी मतभेद आ द्वेषक उल्लेख छैक, कतहु मैथिली मिथिला लेल अदम्य संघर्षक उल्लेख छैक, कतहु स्वार्थक उल्लेख छैक तँ कतहु वृहत सामजिक हित आ उद्देश्य केर । एहि मे समकालीन मैथिली साहित्यकार आ मैथिली आंदोनकारी लोकनिक आत्मीय चर्चो भेल छैक । जिज्ञासु पाठक आ शोधार्थी लोकनिक लेल ई संस्मरण एहि रूपें महत्वपूर्ण भ’ सकैछ जे एहिमे वैह लिखल छैक जे गोविन्द बाबू अपन आँखिसँ देखलथि आ अपन विवेकसँ बूझलन्हि । एकरा दुर्लभ विनम्रतेतँ कहबै जे जीवन भरि रचनाशील क्यो लेखक विद्यापतिक पदक माध्यमें ई कहथि जे- जतबा देखलहुँ, ततबा अभिव्यक्त नहि क’ पाबि रहल छी !!

जत देखल तत कहए न पारिअ
गोविन्द झा



(पृष्ठ-82)
प्रस्तावना
जीवनमे सभकें नाना प्रकारक अनुभव होइछै आ से मन पड़ैत रहै छै । हमरा  अधिक काल ओ बात सभ मन पड़ैए जे मिथिला आ मैथिलीक संबंधमे हमर आँखिक समक्ष होइत रहल । सम्प्रति तकरहि मन पाड़ि-पाड़ि लिपिबद्ध कए रहल छी ।
मन पड़ैछ 1935क आसपास बहिनिसँ नेओंत लेअए पचही डेओढ़ी गेल रही । एतए हमर भागिन बाबू उमापति सिंहक घनिष्ठ मित्र रसिआरीक लखनजी (डॉ. लक्ष्मण झा) आएल रहथि । गप चलल मिथिलाक दशा पर । हम तीन वर्षक नेपाल-प्रवासक बाद हालहिमे घर घुरल रही । हमरा मुँहसँ बहराएल, हम तँ मिथिलाक नहि, नेपालक निवासी । लखनजी साक्षात लक्ष्मण भए गेलाह, अएँ, की कहल? जनै छी मिथिलाक सीमा कतए?
आइ दू हजार सोलह इसबी मे चिरंजीवी केदार काननक आग्रहें जत देखल तत कहए न पारिअलिखए बैसलहुँ तँ मन पड़ल ओ सीमा सिमराओं अर्थात सीमरक जंगल बाला गढ़ । एतहि मिथिलाक राजा आ मिथिलाक भाषा सेहो नेपालमे शरण लेल । मिथिला मोगलान भए गेल । नव राजा तँ भेलाह विशुद्ध मैथिल, परन्तु जूति पूरा-पूरा आनक । मोगलानमे संस्कृतक छाती पर फारसी बैसल, मैथिलीक छाती पर क्रमशः उर्दू, कचहरिआ हिन्दुस्तानी आ हिन्दी । धर्म आ साहित्यक क्षेत्रमे भगवान कृष्णक प्रसादें मैथिलीक जगह ब्रजभाषा लेलक तँ रामजीक प्रतापें हिन्दी । हम रामलीला देखि-देखि हिन्दी सीखल आ विद्यापति ठाकुरक बदला भिखारी ठाकुरक गीतक संग बटोहिया नाच देखि-देखि भोजपुरी सीखल । एहने छल हमर बाल्यकालक मोगलानक रंग आ मैथिलीक स्थिति ।
(पृष्ठ-83)
प्रसंग पर आउ । पचहीमे ओहि समय लखन जीक सिर पर एही मोगलानकें पुनः अखण्ड मिथिला बनएबाक धुन सबार छलनि । चेला मुड़लनि हमर उक्त भागिन बाबू उमापति सिंह आ डॉ. लक्ष्मीनारायण सिंहकें । लखनजी घर-घर चर्चित रहलाह, बाबू उमापति सिंह अचर्चिते रहि गेलाह । किएक से आगाँ कहब । लखनजी काशी प्रसाद जायसवाल रिसर्च इन्स्टिीच्यूट, पटनामे पदस्थापित भेलाह । निदेशक डॉ. अल्तेकर कहलथिन, झुमरी तिलैयाक उत्खनन स्थल पर गेल जाए । उत्तर भेटलनि, ओतए किछु नहि छैक, हम मिथिला जाएब, ओतए जतहि हमर कोदारि बजरत ततहि कुबेरक भंडार... । तुरन्त जवाब भेटि गेलनि, अवश्य गेल जाओ । बुझनुक छलाह, सोझे चलि देलनि ।
लखनजी नोकरी छोड़ि घर घुरलाह तँ पाया ढाहि गंगासँ हिमालय धरि अखंड मिथिला गणराज्य बनएबा मे लगलाह । ओहि समय बाबू उमापति सिंह आपूर्ति विभागमे सरकारी सेवामे छलाह तें प्रकट रूपें योग नहि दए गुप्त रूपें आर्थिक सहायता करैत रहलाह ।
लखनजी साप्ताहिक मिथिला चलबैत प्रेसक भारी कर्जदार भए गेलाह तँ इएह हिनक उद्धार कएल । हालमे जखन कि एहि पत्रिकाक अंक सभक खोज होअए लागल तँ समस्त अंक हिनके ओतए पाओल गेल ।
लखनजीक एहि जागरणसँ पहिनहिसँ मैथिल महासभा आदि नाना संगठन एहि क्षेत्र मे उतरि चुकल छल । हम एहन जाहि-जाहि संगठनक गतिविधि अपना आँखिएँ देखल तकर सुधि एकाएकी लेल जाए ।

मैथिल महासभा
पचहीसँ चलू मधुबनी मैथिल महासभाक अधिवेशनमे । आरम्भहिमे एतए एक विचित्र तमाशा भेल । महाराज अध्यक्षक आसन पर बैसलाह कि एक कोनमे नारा लागल--गद्दी छोड़ू, गद्दी छोड़ू ।महराजी लाठी उठल । सभ नाराबाज लंक लेलक । पाछाँ बूझल एकर सूत्रधार छलाह भुवनेश्वर सिंह भुवन । ओम्हर भुवनजी विभूति नामक मैथिली पत्रिका चलाओल । ओहिमे विज्ञापन बहराएल जे दू उपन्यास शीघ्र आबि रहल अछि । पहिल बूढ़ि गाइक लटकन आ दोसर रानी या बन्दिनी । स्पष्टतः दुनूक लक्ष्य छल महाराजक अन्तःपुरक रहस्योद्घाटन । महाराजक दिससँ चलल व्यंग्यचित्र आ व्यंग्यकाव्य-सिंहक कुलमे जन्म बिलाड़िक भेल भुवनमे हास, धुरखुर व्यर्थ हताश ।

मैथिली साहित्य परिषद
अगिला दिन प्रातःकाल मैथिली साहित्य परिषदक अधिवेशन भेल । एही ठाम बाबू भोलालाल दास मैथिली साहित्य परिषदक मन्त्रीक पद छोड़लनि आ ओहि पर अएलाह आचार्य रमानाथ झा ।
दरभंगामे परिषद्क विधिवत् स्थापना आ रजिस्ट्रेशन कएल । सदस्य भेलाह डॉ. सुभद्र झा, तन्त्रानाथ झा, ईशनाथ झा आदि । परिषद हमर पिताक लिखल मैथिलीक व्याकरण मिथिलाभाषाविद्योतनकेर हस्तलेख दू सए टाकामे किनलक । ई मैथिली पोथीक हस्तलेखक खरीदक प्रायः पहिल घटना भेल ।
(पृष्ठ-84)
परिषदसँ उक्त विद्योतन आ किछु आओर पुस्तक प्रकाशित भेल । बीच-बीचमे कवि गोष्ठी    चलए । एक गोष्ठी दरभंगामे डॉ. अमरनाथ झाक सत्कारमे भेल । एहिमे प्रो. तन्त्रानाथ झाक कविता चललहुँ प्रियतमसँ मिलन काजतथा हमर कविता यौवनक हिलकोरमेप्रो. आनन्द मिश्र अपन कोकिलकंठसँ गाबि सुनाओल । एकर पहिल विशेषाधिवेशन मधुबनीमे भेल । पं॰ दीनबन्धु झाकें महावैयाकरणआ मुंशी रघुनन्दन दासकें साहित्य-रत्नाकरक उपाधि देल गेलनि । अगिला विशेषाधिवेशन मनीगाछीमे भेल । एहिमे पहिल बेर चन्द्रभानु सिंहक कुहकल कुररीकविता सुनल । परिषदक दलबन्दी देखल । डॉ. सुभद्र झाक ओजस्विता देखल । परिषद किछुए दिन चलल कि मैथिल ब्राह्मणक दू वर्गक द्वन्द्वयुद्धमे आहत भए सेज धएलक ।

प्रबुद्ध मैथिल समाज
मन पड़ैत छथि दूरक समधि प्रो॰ उमानाथ झा । मिथिलाक सन्दर्भमे हिनका क्रान्तिक अग्रदूत कहि सकैत छी । ई मित्रमंडली जुटाए प्रबुद्ध मैथिल समाज स्थापित कएल । प्रमुख सदस्य भेलाह वैज्ञानिक शचीनाथ झा (आचार्य रमानाथ झाक अनुज), प्रो॰ अनिरुद्ध झा, अधिवक्ता परमानन्द झा, प्रो॰ हरिमोहन झा आदि । एकर तीन लक्ष्य छल--जातिप्रथा भगाएब, वैज्ञानिक दृष्टि जगाएब तथा मैथिली भाषा आ साहित्यकें सजाएब । सदस्य लोकनि अपन-अपन जनेउ तोड़लनि । नवीन मैथिली साहित्य नामसँ एक पुस्तक (वा जर्नल कही) प्रकाशित कएलनि । एहिमे शचीनाथ झाक लेख छल सूर्य मंडलक उत्पत्ति । तात्पार्य ई जे प्रकृति स्वयं अपन सृष्टि आ संहार करैत रहैत अछि, एहि लेल ईश्वरक कल्पना व्यर्थ । किछुए दिनमे ई पोआरक धधरा भए गेल । केवल प्रो॰ हरिमोहन झा आ उमानाथ झा मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धि करैत रहलाह । मन पड़ैत अछि, 1945क आसपास हिनक पहिल कथा आध घंटामिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल । एक पाठक एकरा निरर्थक प्रलाप कहलनि । हम उत्तर देलिअनि, ई थिक मैथिलीमे पहिल उत्तम मनोवैज्ञानिक कथा, तें अपनेकें प्रलाप बुझाएल । एहि तरहें प्रबुद्ध मैथिल समाज मैथिली साहित्यहुकें प्रबुद्ध करबाक दिस डेग देलक । एहि प्रबुद्ध लोकनिक कुचेष्टा बहुत दिन धरि होइत रहल । प्रायः एकमात्र हम एकर शिकार भए मनहि मन अपन जाति-धरम गमाओल ।
मन पड़ैत छथि पंडित वैद्यनाथ मिश्र यात्री । ई हमर पिताक शिष्यक शिष्य । ताहि सम्बन्धें यदा-कदा हमरा ओतए आबथि । एहि क्रममे ई हमरा लगसँ चिन्हलनि । 1950 ई॰ मे हिनक पोस्टकार्ड पहुँचल- हमरा हिन्दी शब्दकोश लिखबाक काज भेटल अछि, एहिमे अहीं सन चौचख सहकर्मी चाही । दौड़ले पटना पहुँचलहुँ । ओ काज तँ नहि भेटल, मुदा दोसर काज भेटि गेल । एहि बीच यात्रीजी नया टोलाक कंचन भवनमे भोजन करथि । साँझ कए ओकर छत पर गोष्ठी जमए । कहिओ काल हमहूँ पहुँचि जाइ । गोष्ठी बढ़ैत आ जमैत गेल । विचार भेल जे एकरा एक नाम आ रूप देल जाए । एहि उद्देश्यसँ अमरुदी मोहल्लामे आचार्य परमानन्द शास्त्रीक आवास पर बैसक भेल । यात्रीजी, बाबू लक्ष्मीपति सिंह, आचार्य परमानन्द शास्त्री, अधिवक्ता सत्यानन्द कुमर, अधिवक्ता अवधबिहारी झा, सुरेश्वर झा आदि उपस्थित
(पृष्ठ-85)
-रहथि । यात्रीजी नाम देलनि चेतना । करीब एक वर्ष ई चेतना चलैत रहल । यात्रीजी आन नगरक यात्री भेलाह कि चेतना पर दमगर आ मुहगर लोक आसन जमबैत गेलाह । दोबारा स्थापना भेल । यात्रीजीक नाम उपेखि नव नाम देल गेल चेतना-समिति । चेतना तर पड़ल, समिति ऊपर । नव नामहिसँ एकर आधुनिकता, साहित्यिकता आ सादगी समाप्त भए गेल । क्रमशः मिथिला-मैथिल-मैथिली तर गेल, विद्यापति ऊपर अएलाह । अन्ततः विद्यापतिओ आराध्यमात्र रहि गेलाह, साध्य भेल केवल सम्पदा । रवीन्द्रनाथक शब्दमे ईंटेर उपर ईंट, माझारे मानव कीट । मुहथरि पर बैसल मुहपुरुख लोकनि पवित्र पर्वकें महामहोत्सव बनबैत गेलाह । एक समय उत्सवस्थल भेल मोइनुल हक स्टेडियम । देशक नामी नर्तकी, गबैया आ बजनिया पाहुन । बाड़ीक पटुआ तीत । समस्त मैथिल समाज आनन्द-विभोर । दोसर दृष्टिएँ देखी तँ चेतना समिति दू फाँक भए गेल- चेतना आ समिति । समिति समाजकें जगएबा-रिझएबामे लागल । चेतना साहित्यकें समृद्ध करबाक उद्देश्यसँ विद्यापति पर्वक अवसर पर कवि सम्मेलन आ विचारगोष्ठी चलबैत रहल आ हम एही दुनूमे रमैत रहलहुँ । मैथिलीक मंच पर साहित्य आ संगीतक बीच एक अभुत संगम चलल । एकर शिलान्यास कएल मैथिलीक कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर । संग देलथिन सुगायक महेन्द्र झा । विद्यापति-पर्वक समारोहमे दर्शकक एक विशाल वर्ग एही दुनूक गीत सुनए दूर-दूरसँ आबए । ई छल बिनु वाद्यक संगीत आ बिनु कवित्वक कविता । एहि परम्पराक अन्तिम कवि-कलाकार भेलाह सियाराम झा सरस ।
एम्हर चेतना समिति लक्ष्मी आ सरस्वतीक पूजामे लागल रहल, ओम्हर मैथिली पर, विशेष कए युवावर्ग पर, नव-नव संकट आबए लागल । सहसा युवावर्ग सड़क पर उतरि आएल ।

निखिल भारतीय मैथिल छात्रसंघ
एक समय देशमे त्रिभाषा फर्मूला लागू भेल तँ मैथिलीभाषी प्रबुद्ध युवावर्ग मनसुबाएल जे आब राज्य लोक सेवा आयोगक प्रतियोगिता परीक्षामे मैथिलीक कृपासँ नैया पार लागि जाएत । परन्तु सिलेबसमे मैथिलीकें नहि देखितहि मैथिल छात्रक बीच आक्रोशक लहरि उठल । 1978क गणतन्त्र दिवस दिन भोरे पटनाक डाक बंगला चैराहा पर उत्तेजित मैथिलीभाषी छात्रसभक भीड़ लागि गेल । नारा लागल । अनशन चलल । सभ वर्ग, स्तर आ बएसक लोक आबि-आबि पीठ ठोकैत रहलाह । मैथिल छात्र पहिल बेर मैदानमे उतरल आ आश्वासन पाबि तत्काल शांत भेल । आन्दोलन तँ विफल भेल । तैओ सरकार हवाक रुखि देखैत तत्काल मैथिलीकें माध्यमिक शिक्षामे स्थान दए उत्तेजना शांत कएलक ।
एही बीच बिहार सरकार मैथिलीकें उपेखि उर्दूकें द्वितीय राजभाषा बनओलक । आक्रोश तीव्र होइत गेल । संघ 4 नवम्बर 1979 कें देश भरिक मैथिलीक संस्था सभकें हकारि विशाल जुलूसक संग राजभवन दिस बढ़ल । पुलिस रोकि देलक । संघ अपन मांग शिष्टमंडल द्वारा राज्यपालकें निवेदित कएलक । उक्त दुनू छात्र आन्दोलनकें देखैत सरकार कनेक नरम भए मैथिलीकें राज्य लोक सेवा आयोगक परीक्षामे स्थान दए देलक । करीब
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- सात वर्ष धरि मैथिल छात्र मातृभाषाक प्रसादें नीक-नीक पद आ प्रतिष्ठा पबैत गेल । राजनीतिमे एक प्रचंड बिहाड़ि उठल कि मैथिली फेर निष्कासित भए गेलीह । फेर निखिल भारतीय मैथिली छात्रसंघ 4 नवम्बर, 1989 कें तेसर बेर शंखनाद कएलक । मिथिलाक गाम-गामसँ आ देशक नगर-नगरसँ मैथिलीसेवी संस्था सभ अपन-अपन नेता आ कार्यकर्ताक संग जुटैत गेलाह । उत्तेजित जुलूस राजभवन दिस बढ़ल । लाठी चलल । किछु रक्तपातो भेल । किछु मान्य गुरुजन धरहेरिआ भए प्राणपात रोकल ।
उपर्युक्त तीनू आन्दोलन हम कातहिसँ देखैत आ कखनहुँ जोसमे आबि नारा सेहो लगबैत रहलहुँ । आशा जागल, आ लगले बिलाइओ गेल । किएक? आन्दोलनक तीनू तोड़मे लोक तँ बहुत देखल, जन एको गोट नहि । ईहो देखल जे दू वर्गक लोक एहिसँ दूरे रहलाह, सरकारक सेवक आ तथाकथित जनसेवक । हमहूँ सरकारक सेवक, तैओ चोरा-नुका देखैत आ किछु करैत सेहो रहलहुँ ।

विद्यापति-पर्व
उपर्युक्त उपलब्धि सभमे विद्यापति-पर्वक बड़ विशिष्ट भूमिका रहल । एकर शुभारम्भ के, कहिआ, कतए कएल से कहि नहि । हम ई पर्व सभसँ पहिने 1942क आसपास दरभंगामे देखल । मिथिला कॉलेज मे मैथिलीक प्रोफेसर जयदेव मिश्रक अध्यक्षतामे कातिक धवल त्रयोदशी दिन विद्यापतिक स्मृति दिवस मनाओल गेल । हम कविता पढ़ल -
आइ विद्यापतिक संस्मृति रूप धए नव पर्व आएल
आइ नोरक संग-संगहि एक नूतन गर्व आएल
ज्ञातव्य जे विद्यापतिक आयु अवसान कार्तिक शुक्ल त्रयोदशीकें भेल बात लोक तखन जनलक जखन 1940 ई॰ मे म॰ म॰ परमेश्वर झाक मिथिलातत्त्वविमर्शप्रकाशित भेल । सभसँ पहिने आ एकमात्र एहीमे ई कातिक धवल भेटल । एहि पर लगले मधुप जीक नजरि पड़ल होएतनि किएक तँ ई राघोपुर डेओढ़ीक हरिनन्दन सिंह मेमोरिअल ट्रस्टक निधिसँ प्रकाशित भेल जतए मधुपजी सतत आदर पबैत रहलाह । चेतना समिति एहि पर्वकें आकर्षक बनाए देलक जे ई घरसँ बाहर धरि पसरैत मैथिली आ मैथिल समाज पर धाख जमबैत गेल ।

साहित्य अकादेमी मे
फेर आउ चेतना समिति दिस । भाषा आ साहित्यक विकास हेतु बनल साहित्य अकादेमीमे ओएह भाषा लेल गेल जे संविधानक आठम अनुसूचीमे परिगणित भेल । आन भाषा सभक पहिल लक्ष्य भेल एहिमे प्रवेश । एहि हेतु चेतना समिति निर्णय कएलक जे अकोदमीक सदस्य लोकनिओकें मैथिलीसँ परिचित करएबाक हेतु एक पुस्तिका लिखल जाए । भार हमरा भेटल । झटपट दू पुस्तिका तैयार भेल- ‘Maithili : What it is and What it claims’ तथा ‘मैथिलीक समस्या’ । एहि काल मे मणिपुरी, नेपाली, डोगरी, कोंकणी आ राजस्थानी ईहो पाँच भाषा मैथिलीकें संग देलक । जेना-तेना छबो सफल भेल ।
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आठम अनुसूची मे
उक्त छबो भाषाक अगिला लक्ष्य भेल संविधानक आठम अनुसूचीमे प्रवेश । अप्रासंगिक होइतहुँ एतए स्पष्ट कए दी जे ई आठम अनुसूची की थिक । संविधान-सभामे निर्णय भेल जे सरकारक राजकाजक भाषा हिन्दी हो आ तकर स्वरूपक निर्धारण भारतक प्रमुख भाषा सभक प्रतिनिधि लोकनि करथि । कोन-कोन भाषा प्रमुख तकर तालिका थिक आठम अनुसूची । पछाति संघ लोकसेवा आयोग निर्णय कएलक जे प्रतियोगिता परीक्षामे केवल आठम अनुसूचीक भाषा रहत । फलतः कोनहु भाषाक हेतु एहि अनुसूचीमे प्रवेश जीवन-मरणक प्रश्न भए गेल ।

विचार-गोष्ठी
एहि स्थितिमे चेतना समिति 1989 ई॰ मे निर्णय कएलक जे अकादेमी धरि पहुँचल उपर्युक्त छबो भाषाक प्रतिनिधि लोकनि एकत्र भए एहि प्रसंग विचार-विमर्श करथि । हम एकर संयोजक बनाओल गेलहुँ । कोनो तेहन निष्कर्ष नहि बहराएल । समस्याक विभिन्न पार्श्व पर आलेख पढ़ल गेल । आलेख सहित समस्त कार्यविवरण हम भाषा आ समाज नामसँ 1989 ई॰ मे सम्पादित कएल जे 14 वर्षक बाद 2003 मे प्रकाशित भेल । ई विलम्ब सूचित करैत अछि जे एहि बीच चेतना समिति अपन मूल उद्देश्य सँ कतेक दूर होइत गेल । एहि बीच नेपाली, मणिपुरी आ कोंकणी अपन जनबल आ पराक्रमसँ 1993 मे आठम अनुसूचीमे स्थान पाबि गेल । चेतना समिति ईंटेर उपर ईंट जोड़ैत नाच-गान आ भोज-भातक संग सलौनी पाबनि करैत रहल ।
एक दिन सब को दाता राम जपैत अचानक एक नेता मैथिलीकें कलबल उठाए भारतक प्रमुख भाषा सभक पांक्तिमे बैसाए देलनि । हमरा जनैत एहि नेताजीक योगदान ओहने छल जेहन गोवर्धन पर्वत उठएबामे भगवान श्रीकृष्णक । उठओलक सभ गोपगण मिलिकें, गिरिधर गोपाल भेलाह एकसरे द्वारकाधीश ।
आब एहि गोपगणक भूमिका देखल जाए । चेतना-समितिसँ चलल विद्यापति-पर्व गामसँ महानगर धरि पसरैत गोष्ठीसँ महा-सम्मेलन आ महान-उत्सव होइत गेल । से देखि-देखि घर आ बाहरक सभ वर्गक असंख्य लोक मैथिलीक आ मैथिल समाजक जागरूकतासँ प्रभावित होइत गेल । सांसदो लोकनिकें एकर भान होइत गेलनि । हस्ताक्षर अभियान द्वारा बोराक बोरा माङपत्र संसद पहुँचैत रहल । एही सभक सम्मिलित सुपरिणाम थिक आठम अनुसूचीमे मैथिलीक प्रवेश । एतए यात्री जीक एक आखर मन पड़ैत अछि – किदन कहाँदन भेल, विआह भगेल ।

कलकत्ता विश्वविद्यालय मे
आब शिक्षा दिस चलू । एहिमे मैथिलीक प्रवेश सभसँ पहिने 1915 ई॰ मे कलकत्ता विश्वविद्यालयमे भेल । एतए एक कहबी मन पड़ैछ-जकरा माए नै झुलाबै तकरा मौसी झुलाबै । कहल जाइछ जे धन्य आशुतोष बाबू जे मैथिली 1917 ई॰ मे एकहि संग मैट्रिकसँ एम॰ए॰ धरि पहुँचि गेल । विवाद चलैत रहल जे मैथिलीकें आशुतोष बाबू लगके पहुँचाओल ।
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संयोगवश कलकत्ता विश्वविद्यालयक पोस्ट ग्रेजुएट कौन्सिलक भूतपूर्व सदस्य पंडित श्री ब्रजमोहन ठाकुर, एम॰ए॰बी॰एल॰ केर हाथक लिखल किछु पन्ना उपलब्ध भेल । चेतना-समिति तकरा हमरासँ सम्पादित कराए विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेशनामक एक पुस्तिकामे प्रकाशित कएलक । एहिसँ स्पष्ट भए गेल जे प्रवेश आशुतोष बाबूक कृपासँ नहि, मैथिल श्रीमन्त आ विद्यावन्त महानुभाव लोकनिक मातृभाषानुरागसँ भेल । कलकत्ता विश्वविद्यालय मैथलीक मदमे एको कौड़ी खर्च नहि कएलक । आनक देल टाका सधितहि मैथिलीक पढ़ाइ बन्द होअए लागल तँ ज्योतिर्विद बबुआजी मिश्र 1942 धरि निःशुल्क मैथिली पढ़बैत रहलाह ।

हिन्दू विश्वविद्यालय मे
पछाति 1933 ई॰ मे कांजीनाथ झा किरणक सत्प्रयास आ महामना मदनमोहन मालवीयजीक सद्विवेक सँ बनारस मैथिली हिन्दू विश्वविद्यालयमे सेहो प्रविष्ट भेल । परन्तु मन पड़ैछ बर बुड़िबक तँ जैतुक के लेत । सभ सुविधा उपलब्ध रहितहुँ छात्रक कतहु पता नहि । अपन मूड़ अपनहि हम चाँछल दोख देब गए काही ।

पटना विश्वविद्यालय मे
एतए मैथिलीक प्रवेश कोना भेल से चेतना समितिसँ प्रकशित विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेश केर द्वितीय अध्यायमे देखल जाए । ई अध्याय हम डॉ. सुधाकर झासँ डिक्टेशन लए-लएकें लिखल । एतए मैथिलीक प्रवेश नीचाँसँ उपर दिस कच्छप गतिएँ प्रबल विरोधक अछैत होइत गेल । एकर श्रेय मिथिलाक माटिकें छैक जाहिमे केवल विद्याक खेती होइत रहल आ मुहगर मैथिल विद्वान सभ शिक्षाक क्षेत्रमे अबैत गेलाह । पूर्णाहूति देलनि दरभंगा-नरेश ओहिना जेना कलकत्ता विश्वविद्यालयमे पुरैनिया-नरेश ।

प्राथमिक शिक्षा मे
          मन पड़ैत छथि मित्रवर डॉ. जयकान्त मिश्र जे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो ताहि हेतु चेतना समितिकें संग कए सुप्रीम कोर्ट धरि लड़ैत अन्तिम निर्णय मैथिलीक पक्षमे प्राप्त कएल । बिहार सरकार तकरो अवहेलना करैत रहल । मिथिलाक केओ सपूत अवमाननाक केस नहि कएल । हँ, सुप्रीम कोर्टक निर्णय पर उत्सव अवश्य मनाओल गेल ।
एक समय मैथिली प्राथमिक आ माध्यमिक दुनू शिक्षाक माध्यम घोषित भेल । सभ पाठ्यपुस्तक प्रकाशित भेल । केओ किननिहार नहि । एहि दुखद स्थिति पर पाठ्यपुस्तक निगमक एक अधिकारी हमरा समक्ष मित्रवर जयकान्त मिश्र पर अशोभन कटाक्ष कएल । प्रतिक्रियामे ओ तुरन्त दू मोन पोथी कीनि हमरा संग कए मिथिला चललाह । सकुरीमे टमटम पर लादि दुनू जन किरणजीक सोतिपुरा दिस चललहुँ । बाटमे एकटा कुकुरक बच्चा टमटम तर पिचाए गेल कि पाँच लठिधर बाट छेकि पाँच सय हरजाना ठोकि देलक । हम मैथिलीक नाम पर माफी मङलहुँ तँ मुहतोड़ उत्तर भेटल, हम मैथिली-तैथिली नहि जानी । जेना-तेना आगु बढ़लहुँ । भरि दिन झुझुरकोना खेलाए जहिना जतबे लदने गेलहुँ तहिना ततबे लदने साँझ खन सकुरी घुरि अएलहुँ । मैट्रिक परीक्षामे मैथिली प्रश्नपत्रो छपल । परन्तु छात्र एको
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- नहि । ककरा लेल एतेक बेहाल भेलहुँ, हम पुछलिअनि तँ जयकान्त बाबू कनेक गम्भीर भए कहलनि, धैर्य धरू । हुनक ई धैर्य अंतिम श्वास धरि अटल रहल । जे हाल भेल पाठ्यपुस्तक निगमक सैह हाल भेल हमरो चारि पोथीक । एक समय देशमे त्रिभाषा फरमूला चलल । बिहार सरकारक निर्णय भेल जे प्राथमिक शिक्षा मे निजी प्रकाशकक मैथिली पुस्तक लए तत्काल काज चलाओल जाए । तुरन्त पटनाक एक प्रतिष्ठित प्रकाशक भारती भवन हमरासँ तीन पुस्तक लिखओलक- अपन लोक, अपन पाठशाला आ अपन समाज । मैथिली जगत एही तीनू पुस्तकमे पहिल बेर आ प्रायः अन्तिम बेर मोटगर आर्ट पेपर पर बहुरंगी चित्रसँ भरल ऑफसेट प्रिंट देखलक । हम टाका गनबाक सपना देखए लगलहुँ । किछुए दिनमे सरकार स्पष्ट कए देलक जे मैथिली संविधानक आठम अनुसूचीमे नहि अछि तें तीनमे एकर गणना नहि । प्रकाशक, लेखक आ मैथिली-प्रेमी तीनूक सपना समाप्त । ओहि तीनू पोथीकें तँ कबाड़खानामे शरण भेटलैक, मैथिलीक भेटलो शरण छिनाए गेलैक ।

मिथिला राज्य
मैथिली महासभासँ सँ जागल चेतना तीन लक्ष्य लए चलल- पहिल मिथिला राज्य, दोसर मैथिलीक मान्यता आ तेसर मैथिलीक विकास । मिथिला राज्य माङए चललाह मधेपुरक बाबू जानकी नन्दन सिंह तँ पहिल देशद्रोही घोषित भेलाह । दोसर अपराधी भेलाह डॉ. लक्ष्मण झा जे जनताक अदालतमे दंडित आ लज्जित भए संत भए गेलाह । तैओ किछु उन्मादी मैथिल लोकनि राजनीतिक रणमे उतरैत आ चित्ते खसैत रहलाह । जे कहिओ देह मे माटि नहि लगओलनि से जँ गामक अखाढ़ा पर उतरथि तँ इएह हाल हो । हम कातहिसँ देखि-देखि हँसैत रहलहुँ । मैथिलीकें जूति थोड़, मनोरथ बड़ गोट । राज्यक माङ तँ उठल, मुदा नागालैण्ड आ गोरखालैण्ड जकाँ कोनहु विषयमे स्वायत्तताक माङ प्रायः कहिओ नहि उठल ।

उपसंहार
दीर्घ जीवनमे बहुत किछु देखल । सभ कातहिसँ । मन पड़ैत अछि अपने लिखल एक पाँती-
बाट-घाट मे नमस्कार कए कृपया हमरा लजाउ नहि
हम चुप्पे ससरए चाहै छी कृपया हमरा बजाउ नहि
हमरा ई संकोची स्वभाव एकान्तसेवी बनाए देलक तैओ कनिष्ठ-वरिष्ठ बहुत विद्वान आ साहित्यकार के लगसँ चीन्हल । बहुतोक संस्मरण यत्र-तत्र लिखल । केवल दू जन बेर-बेर मन पड़ैत रहलाह तैओ संस्मरण नहि कए सकलहुँ । अस्तु, आइ जतबे-ततबे स्मरण कए ओहि त्रुटिक पूर्ति कए रहल छी  । पहिल थिकाह रामकृष्ण झा किसुनआ दोसर थिकाह राजकमल चैधरी ।

रामकृष्ण झा किसुन
मिथिला मिहिर 1965क आसपास चरम उत्कर्ष पर रहए । हम अधिक काल शेखरजीक आवास पर जाइ । ओतहि एक दिन संयोगवश रामकृष्ण झा किसुनसँ पहिल भेंट भेल ।
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दुनूक जन्म एक्के वर्ष 1923 ई॰ । हमर जन्मतिथि 10 अक्टूबर, हुनक 1 जनवरी । दुनूक पहिल पाठ लघुकौमुदी आ अमरकोष । बगए-बानि आ पहिरन (खादीक पएजामा-कुरता) सेहो समान । देहक रंगमे ओ राम, हम गोविन्द । गप एहने हल्लुक बात सभसँ आरम्भ भए मैथिलीक आ मिहिरक दशा-दिशा पर चलैत रहल । हम कोसीक पछबारि पार, ओ पुबारि पार । ओ कोसी टपि कहिओ-काल पटना आबथि तँ साहित्यकार सभक बीच तेना घेराए जाथि जे हमरा दर्शनो दुर्लभ । भेंट नहि होएबाक एक आओर कारण छल । हम 1965 सँ 1977 धरि सरकारी काजमे तेना पेराइत रहलहुँ जे आन किछु नहि सूझए । जखन एहि सँ मुक्त भए मैथिली अकादमी अएलहुँ ता ओ दर्शनीयसँ स्मरणीय भए गेल छलाह । एतए प्रकाशनक प्रभारी भेलहुँ आ पहिल काज भेटल किसुन रचनावलीक प्रकाशन । एक पंथ दू काज, कर्तव्यक पालन आ किसुन साहित्यक पारायण । संयोजक भेलाह मोहन भारद्वाज आ सामग्री बटोरलनि किसुन जीक आत्मा वै जायते पुत्रः आयुष्मान केदार कानन । सम्पादन कएल प्रो॰ मायानन्द मिश्र । हमर योगदान भेल केवल प्रूफ देखब जाहिमे जस कम अजस बेसी भेटैत रहल । एही क्रममे पहिल बेर जानल जे मैथिली कविताक जराजीर्ण धाराकें नव बाट धरओनिहार भगीरथ इएह थिकाह । सीताराम झा, यात्रीजी, किसुनजी आ राजकमलजी ई तीनू मानू मैथिली तारसप्तकक तीन प्रमुख स्वर भेलाह ।

राजकमल चैधरी
एतएसँ चलू राजभाषा-विभाग । एहि सरकारी दफ्तरक उसठ काज आ उदास वातावरणमे किछु दिन रंग अनलनि राजकमल चैधरी । ओ बौआइत-ढहनाइत पटना पहुँचलाह आ सचिवालयमे असिस्टेंट भेलाह । अधिक समय राजभाषा विभागमे हमरे लग बिताबथि । हुनक इसकुलिआ भजार आ हमर सहकर्मी सुशील झा सेहो पहुँचि जाथि । काव्य-शास्त्रा-विनोद तीनू एक संग । एक कवि, दोसर पंडित, तेसर विनोदी । एही क्रममे हम उदीयमान राजकमलकें चीन्हल आ ओ नूतन पंडित गोविन्द झाकें । एक दिन हमरा मुँहसँ बहराएल, अहाँक गुरु रामकृष्ण झा किसुन’..., कि ओ मुखर भए उठलाह, गलत बूझल अहाँ । हुनका तँ चिन्हलिअनि, राजकमलकें नहि चिन्हलिअनि । एतए ई रमन-चमन किछुए दिन चलल । ओ कलकत्ताकें गहलनि, हम पटनामे खुटेसल रहलहुँ । कलकत्ता हुनका खूब धारलक । ओ क्रमशः आवारासँ मसीहा भए गेलाह । किछु दिनक बाद हुनक पत्र आएल- कवितासंग्रह स्वरगन्धा छपि रहल अछि, अहाँ भूमिका लिखि दिअ । राजभाषा विभागमे गप करैत हुनका हमरामे किछु आधुनिकताक बोध लक्षित भेलनि, तें ई अनुरोध । हमरा साहस नहि भेल । लिखि देलिअनि, हमरा आधुनिक कविता बुझबामे नहि अबैत अछि, यात्री जीसँ लिखाउ । चट उत्तर आएल, तखन हम अपनहि लिखब । हुनकासँ हमरा एतबे सम्पर्क । इएह बेर-बेर मन पड़ैत रहैत अछि ।

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साभार संदर्भ

भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून, 2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल

[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। गोविन्द बाबूक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]