Tuesday, May 30, 2017

‘ललित समग्र’क भूमिका : विभूति आनंद

विभूति आनंद, मैथिलीक प्रतिष्ठित साहित्यकार ललित केर साहित्य आ जीवनक मर्मज्ञ मानल जाइत छथि । ललित पर हिनकर अकादमिक शोध कार्य छन्हि आ साहित्य अकादमीसँ एकटा मोनोग्राफ सेहो प्रकाशित छन्हि । मैथिली कथा साहित्यक परंपरा मे ललितक गिनती अग्रिम पंक्तिमे ठाढ़ रचनाकारक रूपमे कएल जाइछ । विभूति आनंद द्वारा संकलित-संपादित ‘ललित समग्र’क हुनके द्वारा लिखल भूमिका एतय एहि आशाक संग प्रस्तुत कएल जा रहल अछि जे ई जिज्ञासु पाठक आ शोधार्थी लोकनिकेँ ललित आ हुनकर साहित्यक कमसँ कम परिचयात्मक बोधतँ अवश्ये कराओत ।

‘ललित समग्र’क भूमिका
विभूति आनंद



कहल जाइछ जे ललित (जन्म : 6 अप्रैल 1932, मृत्यु : 14 अप्रैल 1983) सन लेखक के जतबा लिखबाक चाहैत छलनि, ओतबा ओ नहि लिखि सकलाह । अथवा इहो कहल जाइछ जे जाबत धरि ओ आर्थिक कटमटी रहलाह,ताधरि लिखलनि । मुदा जखने इच्छित स्थिति मे आबि गेलाह, लेखन-विमुख भ' गेलाह । अथवा इहो कहल जाइछ जे लेखनक स्तर पर हुनक स्पर्धी रहथिन राजकमल चौधरी, जिनका ओ हिन्दी सँ मैथिली मे अनने रहथि, जखन हुनका संग नहि ठठि सकलाह तँ जूआ पटकि देलनि । अथवा बदलैत समयक नाड़ीकेँ पकड़बामे पिछड़ि गेलाह अथवा पछड़' लगलाह तँ गुम्मी लादि लेलनि आ अन्ततः पाटि बदलि लेलनि । अर्थात हुनक रचनाकारकेँ तंत्र स्वतंत्र नहि रह' देलकनि आ ओ तकरे अधीन भ' ' रहब स्वीकारि लेलनि ।
हुनक जीवनक समस्त गतिविधिपर जँ ध्यान देल जाय तँ तमाम शंका अपन-अपन ढंगे सही प्रतीत होइत अछि । मुदा स्वयं ललित एहि मामिला मे अलग अलग विचार व्यक्त करैत छथि । एक दिस ओ अपन लेखन- अवधि ओ स्थिति सँ संतुष्ट बुझि पड़ैत छथि तँ दोसर दिस एहिपर तामस करैत देखल जाइत छथि । हुनके शब्द मे-'हम कम नइ लीखल । मगर आब एकटा वितृष्णा सँ मोन भरि गेल । हम अपना केँ मैथिलीक शोभा-यात्रामे आगाँ-आगाँ चलयवला हओदा कसल मकुना-पट्ठा कहियो ने बूझल, मुदा डाक्टर-परफेसर आदिक चोंगा ओढ़ि Trash लिखयवला सँ हीनो नइ बूझल । अद्यावधि हमरा कोनो स्थान नहि देल मैथिलीक दलबन्दी ।...तखन लिखबाक उद्देश्य हमर विफल...'फिर बेताल उसी दरख्त पर जा लटका ।' फेर अपन साहित्य घोंघा-बसन्ती अभिव्यक्तिक 'उम्रकैद मे दफ्न ।' ककर दनक बकरी, त ककर दनक पाठी आ फल्लाँ दाइक चिट्ठी, ' पथ हेरथि राधा! Pure and outright nonsense! किए लिखू? पायिक प्रयोजन नइ । जीविकाक साधन नइ । तखन Proper placement, ' ताहू सँ outcast! की एहेन दमघोंटू, बंध्या स्थितिमे अहाँ लिखनाइ जारी राखि सकैत छी ?'
अर्थात अपन एहि छोट सन तामस मे ललित लगैछ जेना मैथिलीक तमाम दूषित गतिविधिकेँ सरेआमक'' राखि देलनि अछि । मुदा एखन एहि तामसपर विमर्श कर' सँ अधिक उचित बुझैत छी जे हुनक अवदानक गप करी । हुनक लेखन अवधि अछि-13-14 वर्ष, अर्थात् 1950 सँ 1964 धरि । ओना एकर बादो किछु कथा उपलब्ध होइत अछि । लगैछ ओ सब ओही अवधिक रफ रहल होनि, जकरा फेयर क'' फरमाइसपर छपबा लेल देने होथि । अस्तु । एहि अवधि मे ओ लगभग 40 कथा-लघुकथा(जे हमरा उपलब्ध भ' सकल, प्रतिनिधि संग्रह सहित ), एकटा उपन्यास (पृथ्वीपुत्र) आ टिप्पणीत्यादि लिखलनि । एकर अतिरिक्त दू टा संस्मरण आ एकांकी सेहो उपलब्ध होइत अछि । वैदेही मे धर्मधकेलानन्दक नाम सँ 'गोनू झाक चौपाड़ि' स्तम्भक किछु अंशक लेखन सेहो कयलनि । दरभंगा प्रवास धरि 'वैदेही'क संपादन सँ सेहो जुड़ल रहलाह । ओही कालखंडमे मैथिली गद्यक प्रांजलता ओ वैचारिकता अछिंजली लोटा जकाँ चमकल छल । ओही कालखंडक उपलब्धि भेलाह-ललित, राजकमल चौधरी, मायानन्द मिश्र, उग्रानंद, बलराम, हंसराज, जयानंद...आदि, जनिका सभक कारणे आधुनिक मैथिली गद्य अपन एक अभिनव रूप मे प्रतिष्ठित अछि ।
अर्थात सम्पूर्णतामे देखल जाय तँ ललित वास्तवमे आधुनिक मैथिली गद्यकेँ संस्कारित कयनिहार शिखर पुरुष भेलाह । ओ ढाकीक ढाकी नहि लिखलनि । जे लिखलनि, सुविचारित लिखलनि, जे कयलनि मैथिली गद्य साहित्यकेँ विश्व साहित्यक समकक्ष अनबा लेल कयलनि । अर्थात अपन भाषा-साहित्य लेल जे सपना विश्व साहित्य पढ़ैत काल देखलनि, तकरा रूप देलनि । हुनक कथा हो, आकि उपन्यास, आकि आने लेखन, कतहु रिपिटेशन नहि अछि । सब ठाम एक नव जभीनक दर्शन होइत अछि । तेँ कहि सकैत छी जे ओ तँ एक माला तैयार कयलनि, जे आइयो ओहिना टटका अछि, मौलायब नहि सोचलक एखनो धरि । आ ताहि दृष्टि सँ मैथिली भाषा-साहित्यक प्रति कयल गेल ललितक काजकेँ कमक' ' नहि आँकल जा सकैछ ।
तखन ललितकेँ जेना पढ़ल जयबाक चाही, तेना नहि पढ़ल गेल । आ तकरो कारण अछि-हुनक प्रकाशित लेखनक अनुपलब्धता । ओ अपना लग किछु नहि रखलनि । तेहेन कोनो पुस्ताकालय नहि, जतय ओ उपलब्ध होइतथि । अस्तु ।
कोनो संकलन जँ प्रकाशित होइछ तँ ओकर एक नाम राखल जाइछ । हम तेँ एहि संकलनक नाम राखल- 'ललित समग्र' । मुदा सही अर्थ मे ई 'समग्र' नहि थीक । हमरा ललितक रचना मादे जतबा जे बूझल छल, तकरो उपलब्ध कर' मे सक्षम नहि भ' सकलहुँ । 'वैदेही' हो आकि 'पल्लव' आकि 'मिथिला दर्शन' आकि दरभंगावला 'मिथिला मिहिर'- ककरो सम्पूर्ण फाइल नहि उपलब्ध भ' सकल, जाहि सँ आर-आर सामग्री उपर होइतय, अथवा बहुतो झोल-झाल साफ होइतय । तखन एतबा जरूर जे ललित जाहि उपन्यास (कर्मण्येवाधिकारस्ते...)क तथा प्रेमकथा सभक लिखल होयबाक बात कहने छथि, से सबटा हुनक इच्छा मात्र छलनि, लिखल किछु टा नहि । जे लिखल छनि आ जकर सूचना छल तथा हमरा उपलब्ध नहि भ' सकल ओ सभ कथा अछि- 'स्पर्धा', 'समाजक सहयोग', 'बोलबम','कुलटा','प्रतिशोध' 'दीक्षा'  ।
हम एतय ललित-साहित्यपर विमर्श करवा सँ परहेज करैत छी । हमरा जे किछु हुनका मादे कहबाक छल से 'श्री ललित आ हुनक कथा यात्रा' नामक पोथी (डिसर्टेशनक पुस्तकक रूप )मे एक विद्यार्थीक बुद्धि सँ कहि चुकल छी । पश्चात एक लेखक रूपमे, ओकरे आधार मानि 'ललित' नामक मोनोग्राफ (साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित)मे फड़िछौने छी । तेँ ललितकेँ जनबाक लेल 'ललित समग्र'क संग-संग 'ललित' नामक मोनोग्राफकेँ पढ़बाक हम विनम्र आग्रह सेहो करैत छी ।
तखन एतबा एत' जरूर कह' चाहब जे ललित जीवन ओ जगतक लेखक छथि । हुनक लेखन प्रगतिशील सोच पर विश्वास करैत अछि, जत' ओ एक दिस परम्परागत रूढ़िक घोर विरोध करैत छथि, ओतहि एक नब बाट दिस चलबाक संकेत सेहो दैत छथि । जाहि-जाहि स्थिति-परिस्थितिकेँ आन-आन लेखकगण अबडेरैत रहलाह, ग्राम्य बूझि ताहि सँ कतिआइत रहलाह, ओहन सभटा अछूतकेँ ललित प्रतिष्ठा देलनि, सरज-सरल ठेठ ग्रामीणक ठोंठमे स्वर देलनि तथा ताहि सभक प्रतियें अपन सहमति सेहो व्यक्त कयलनि । ओ समयक महत्व केँ बुझलनि, ओकर हुंकारकेँ अकानलनि, आ तेँ भविष्यक प्रति अपन लेखनीमे साकांक्ष भेलाह ।
ताहि समय-शक्तिक पुजारी, परम्परित व्यवस्थाक विरोधी तथा नवीन पीढ़ीक आबेसी रचनाकार ललितक समग्र लेखन केँ एकठाम देखबाक इच्छा समस्त मैथिली पाठककेँ रहलनि । ई संकलन ताही अभावक पूर्ति दिस एक प्रयास थिक ।
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साभार स्रोत* 
संकलन संपादन - विभूति आनंद : ललित समग्र : प्रथम संस्करण -2012 : मैथिली अकादमी. 740/800 लालबहादुर शास्त्री नगर, पटना-23


[*स्पष्टिकरण : मैथिली मंडनपर एहि तरहक कोनो सामग्री मैथिली पाठक आ शोधार्थी धरि प्रयोजनीय सामग्री केँ पहुँचेवाक उद्देश्य सँ प्रस्तुत कयल जाइत अछि । एकर पाछू किनको व्यवसायिक अहित करवाक भावना नहि होइत अछि । संभव भेला पर सम्बंधित पक्ष सँ अनुमति लेवाक अथवा सम्बंधित पक्ष केँ सूचना देवाक चेष्टा कयल जाइत छैक । कैक बेर एकर जरूरति नहि बुझेला पर अथवा सम्पर्क सम्भव नहि भेलाक बावज़ूदो संदर्भ स्रोत केर साभार उल्लेख कयल जाइत छैक । मैथिली-मंडनक अपन सम्पूर्ण प्रस्तुति केँ दुर्भावनारहित राखवा लेल कृतसंकल्प अछि । तथापि सम्बद्ध पक्ष केँ जँ कोनो तरहक आपत्ति होइन तब्लॉग पोस्ट पर अपन प्रतिक्रिया मे अथवा जी-मेल पता maithilimandan@gmail.com पर अपन आपत्ति दर्ज करा सकैत छथि । यथाशीघ्र हुनक  आपत्तिक निपटारा मैथिली मंडनकप्राथमिकता होयत ।]

Monday, May 29, 2017

एखन सहरसा सँ : महेन्द्र

महेन्द्र जीक रचना- एखन सहरसा सँकेँ बहुत महत्वक संस्मरणात्मक आलेखक श्रेणी मे राखल जा सकैत अछि । ओ सहरसा मे बैसि के सुपौलके मोन पाड़ि रहल छथि ,आ एहि बहाने एकर भूगोल, इतिहास, दशा आ संस्कृतिक उल्लेखे टा नहि समीक्षो करहल छथि । ऐतिहासिक रूपसँ महत्वक हकदार होइतो सुपौल उपेक्षित आ अल्पज्ञात जिला रहल अछि । एहि जिलाक सांस्कृतिक विशेषता, विवशता, अभाव आ इतिहासक कतेको पहलू सँ अवगत होइबामे ई आलेख नीक मदद कसकैत अछि । एहि आलेखमे महेन्द्र जीक नेनपनसँ लके एखन धरिक अवलोकन आ विश्लेषण आयल छै । एहि आलेख मे सुपौल जिला मुख्यालये टा नहि एहि जिलाक किछु सुदूर गाम-ठाम आ मुख्यतः जिला मुख्यालयक दक्षिण बसल गाम सबहक नीक परिचयात्मक उल्लेख भेल छै । एहि मे आर कतेको एकदम नवीन जानकारी भेट सकैये जेना,  सुपौल क विलियम्स हाइस्कूल : सहरसा, मधेपुरा आ सुपौल तीनू जिलाक पहिल हाइस्कूल छलहि । वा, सुपौल मुख्यालयसँ किछुए दूर दक्षिण स्थित कर्णपुर गाम मे अंग्रेज राजक दौरान नून बनाके सत्याग्रही लोकनि कानून तोड़ने छलाह आ अपन देह पर लाठी झेलने छलाह । वा, ई जे सहरसा फारविसगंज रेलखंड पर सहरसा-सुपौलक मध्य अवस्थित गढ़ बरूआरी स्टेशनक नाम कहियो परसरमा स्टेशन छलहि ।
एहि आलेखकेँ पढ़ैत बुझाइत अछि, महेन्द्र जीकेँ सुपौल जिलाक अंतःलोक पर बहुत गहींर पकड़ छन्हि । भारती मंडनक अंक-13 (नव क्रमांक-1) मे प्रकाशित भेल एहि आलेखक सहज भाषा आ रोचक शैलीतँ बहुत बेसी प्रभावशाली छहिये ।

एखन सहरसा सँ
महेन्द्र 
[पृष्ठ-127]
चारिम-पाँचम दशकमे भागलपुर जिलासँ फराक भेल एकटा स्वतंत्र जिला बनल-सहरसा । पहिने भागलपुरक ई उप-जिला, जकर थाना बनगाम रहै । बहुत पछाति सहरसाकें थाना आ सब-डिवीजन भेटलैक । माया बाबू कहैत रहथिन- सहरसाक जन्म उनटे भेलै-ए । एहि जिला कें पुरनका दू टा सब-डिवीजन छलै- सुपौल आ मधेपुरा । सहरसा एही दुनू सब-डिवीजन पर निर्भर छल । ने अपन थाना आ ने अपन सब-डिवीजन...।
सहरसा कें तहिया अंगरेजक बनाओल हाईलेट स्कूल छलै । यैह स्कूल कालान्तर मे मनोहर हाई स्कूल नामे परिचालित भेलै । बिहार सरकार पछाति एहि संस्थाकें राजकीय नहि राजकीयकृतक दर्जा देलकै । आब तँ एतय जिला गर्ल्स आ व्वायज स्कूल छै ।...मुदा एहिसँ बहुत पूर्वहि सुपौलमे विलियम्स स्कूल भरिसक 1889 ई॰ मे आएही लग-पास मे जेनरल हाई स्कूल मधेपुरामे खुजलै । ई दुनू एहि परोपट्टाक शिक्षा ओ विशिष्टताक दुआरें चर्चामे सबसँ ऊपर रहलै । कालान्तर मे ई दुनू संस्था अपन कार्य-संस्कृतिक कारणे नेतरहाटक शिक्षा, अनुशासन आ रीजल्ट मे समकक्ष भगेल ।
उच्च शिक्षामे सुपौल कने पछुआयल । ओहि सँ पूर्व 1952 ई॰ मे सहरसा कॉलेज, सहरसा आ 1953 ई॰ मे टी॰ पी॰ कॉलेज, मधेपुराक स्थापना भगेल छलै । ई दुनू कॉलेज भागलपुर विश्वविद्यालयक प्रीमियर कॉलेज छल ।
सुपौलक भारत सेवक समाज कॉलेज 1959 ई॰क आस-पास बनलै । मुदा एतुक्का सभसँ खास विशेषता रहलै एकर निजत्व । सामाजिक स्नेहसँ सिक्त परिवारिक सम्बन्ध ।
[पृष्ठ-128]
डीहवारक धरती हेबाक सभटा गुण सुपौलकें एखनहुँ उपलब्ध छैक । बाहरोसँ जे परिवार एतय आबि बसल, सभ भाइ-भैयारीक सरोकारमे रमैत सुपौलक खासम-खास भगेल मनसँ, तनसँ आ धनसँ...।
31, जनवरी 2009 ई॰ मे हम पी॰ जी॰ सेन्टर, सहरसासँ रिटायर भेलहुँ । एतधरि एबामे सुपौलक योगदान हमरा लेल अविस्मरणीय अछि । जन्म स्थान हेबाक गौरव आ व्यक्तित्वक निर्माणमे सुपौलक भूमिका जे हो, मुदा हमरा एखनहुँ ओतदुलार-मलार मे कोनो घट्टी अनुभव नहि होइत अछि । साँचे, जखन हम ओतजाइ छी तँ हमर वार्द्धक्य बिलाकनेनाक रूप ग्रहण कलैत अछि...।
सुपौल, नेपालक सीमासँ सटल अपन निजत्वक रक्षा करैत रहल अछि । बाढ़ि सँ बिलटल होइतो ई अपन सामाजिक, सांस्कृतिक ओ आर्थिक संस्कारकें जोगबैत रहल अछि । कहल जाइत अछि जे 1934 ई॰ सँ पहिने जखन रेलगाड़ीक परिचालन रहै- पूर्वांचल आ पश्चिमांचलक संबोधनो नहि छलै । मैथिलक संबंध-सरोकार, कुटुम आ कुटमैती, आबर-जातक उदाहरण लोक आन क्षेत्रकें दैत काल अपन विशाल क्षेत्र पर गर्वक अनुभव करैत छल । मुदा 1934-35क बाढ़ि आ भूकम्पक पछाति ई मधुर सरोकार...सब खतम...। दरभंगा जिलाक नजरिमे हम पूबा-डूबा भ गेलहुँ । मण्डी व्यवस्थापनमे जे सुपौल आगाँ छल, असुविधासँ भरल यातायातक दुआरें पिछड़लागल । एकहि सब-डिवीजनक निर्मली आ सुपौल धारक दुनू कात संवादहीनताक दंशसँ दुर्बल भगेल । तथापि दुनू स्थान व्यावसायिक ओ सामाजिक संस्कारमे भीजल असुविधहु मे जनचेतनाक हितचिंतक रहल । समयक चाँछ सँ आहत सुपौल आ निर्मली कहियो इस्सनहि कयलक ।
मरखाहि कोशीकें भोगैत शान्त-शीतल आ स्थिर स्थितप्रज्ञ सन सुपौल, चारूकात बसल भिन्न-भिन्न गामक बीचमे अपन सहिष्णु छवि बनौने हँसैत-मलरैत अपन विकासगाथा, अपनहि संस्कारक परिधिमे रहि कहैत रहल, बँटैत रहल । गाम-घर मे दुलारसँ लोक सुपौल कें सिपौले कहि संबोधित करैत अछि एखनो...।
सुपौलक चारूकातक गाम, गामे टा नहि आचरणे सरोकारी संस्कृतिक प्रतीक अछि । तें सुपौल बिना गाम आ गामक बिना सिपौल बुढ़ियाक फूसि...कनियो टा फराक नहि...एक दोसराक पूरक...। ओहिना जेना अस्पताल चौक । सभ दिस जाइत सड़क आ ओम्हरहु सँ अबैत सड़क एतहि आबि आत्ममिलन आ आत्ममंथन करैत अछि । समयक  संग ठाढ़ भेल एतुक्का सिरीशक गाछ अपन घेंच नमरा कसभ गामकें समाचार दैत अछि आ गामक सभ गतिविधिक सुधि-बुधि लैत एक दोसराक दुख-सुखक साक्षी बनैत अछि ।
अजुका तारीखमे जँ सहरसा सँ सुपौलक यात्रा करबाक हो तँ अहाँ दू टा बाटक उपयोग कसकैत छी । पहिल तँ रेलगाड़ी, जे एखनहुँ 29 कि॰ मी॰ डेढ़-दू घंटामे सुपौल पहुँचबैछ । उत्तर बिहारक ई क्षेत्र जे पूबा-डूबा नामे संबोध्य अछि, तकर अधिकांश क्षेत्र रेलक विकासक नाम पर रेलमंत्री लोकनिक आश्वासन पर संतोष करैत आयल अछि । भूकम्प आ बाढ़िसँ ध्वस्त स्वाधीनता पूर्व बनाओल मीटरगेजएखनहुँ ओही अवस्थामे उपयोग कैल –
[पृष्ठ-129]
- जाइत अछि । यैह बाढ़ि आ भूकम्प सुपौल आ निर्मलीकें फराक कदेलक । फारबिसगंजो सुपौलसँ भीन भगेल । ओ तआभारी रहबनि ललित बाबूक जे अपना कार्यकालमे सुपौल आ फारबिसगंजकें जोड़लनि । मुदा कपार मे जे लिखा कआयल अछि तकरा के मेटा सकैत अछि । 2008 ई॰क बाढ़ि फेर एहि खण्डकें चाटि गेल । जन-धनक नोकसानक संग-संग सौंसे कोशी आ पूर्णियाक रेल-रोड सम्पर्क खण्ड-खण्ड भगेल । देश एहि क्षेत्रक दुर्दशा पर द्रवित भराष्ट्रीय आपदा घोषित कदेलक । विश्वक अधिकांश देश आ देशक अधिकांश राज्य आगाँ बढ़िकएहि क्षेत्रक मुँह पोछलक । आब सुनै छी जे आठ बर्खक बाद कहाँदन सहरसा सँ पूर्णिया एकबेर फेर बड़ी रेल लाइन सँ जुटत । रोड तँ किछु दिन पूर्व जुटि गेल छल । मुदा सुपौल...ओहिना...।
...ओना सुपौल जेबाक लेल सुविधाजनक सड़के छैक । रेलसँ ओतपहुँचबामे जतेक समय लगैछ ताहिसँ बेसी प्रतीक्षामे काटपड़ैत छै । ओतबा कालमे सुपौल गेल जा सकैछ...अन्तर भाड़ाक छै...रेलसँ 10 टाका आ रोडसँ 40 टाका । मुदा बस आनत धरि  सुविधा सँ...ने हर-हर, ने खट-खट...। स्टैण्ड पर स्टार बस डिक लागल रहै छै । अहाँक मोन पर अछि...सड़क आब खूब विश्वसनीय भगेल छैक । सुपौल, सहरसा, मधेपुरा बिहारक प्रायः सभ पैघ शहरसँ जुटि गेल अछि । सुपौल कें एकटा लाभ भेटलैक एन॰ एच॰ 57क जे आसामक सिलचर, गुजरातक पोरबन्दरसँ जुटि गेल । ई एहि क्षेत्रक लाइफ लाइनबनि गेल छैक । एतबे नहि कोशी महासेतु तँ दरभंगा आ सुपौलकें मुट्ठीमे अँटा नेने अछि । भपटियाहीसँ दस कि॰ मी॰ पश्चिम ई महासेतु कोशी पर बनाओल अत्यंत दर्शनीय ओ आकर्षक सेतु अछि...।
मुदा दुखद कथा ई अछि जे साहित्यकार मायानन्द मिश्रक गाम बनैनियाँ कोशीमे विलीन भगेल । एही गाम बाटे जाइत रेलक रहड़िया स्टेशनक सिरखार आब बहुत गिद्ध दृष्टि देला पर कतहु झलकि सकैत अछि । नजरि जँ निर्बल हैत तँ नहियो देखि सकै छी । सूचना इहो अछि जे ओतुक्का हाई स्कूल भपटियाहीमे चलाओल जाइछ । बर्ख भरि पर फेरल जाइत अपना गामक बीटसँ काटल हनुमानी धूजाक बेगरता आब बनैनियाँकें नहि पड़ैछ । नारदी, पराती, नचारी-महेशवाणी आदि पारंपरिक गीत कोशी छीनि लेलक । आब तँ धीरे-धीरे बनैनियाँक सभ अच्छर बिला रहल अछि...अख्यासहुसँ उतरि रहल अछि...। मुदा सर्वेक पुरनका नक्शा मे बनैनियाँ एखनो जीबैत अछि ।
माया बाबू सदिखन चर्च करैत रहथि जे बनैनियाँमे तीन टा नन्दयोगानन्द, गुणानन्द आ मायानन्द । योगानन्द अपन कोनो कारणे नाम बदलि सीतारामरखलनि आ इन्कम टैक्स विभागक सर्वोच्च पद सँ रिटायर भेलाह । गुणानन्द, सुपौल लोकसभाक प्रतिनिधित्व कयलनि आ हमगामसँ मातृक, फेर दरभंगा, तखन पटना आ निर्णायक रूपमे सहरसा कॉलेजक मैथिली विभागमे व्याख्याता भेलहुँ आ सहरसे सुपौलक भरहि गेलहुँ । अर्थात दुनू नन्दक अपेक्षा हम. ..जकर सीमा सहरसे धरि सीमित रहल...एकदम कमजोर कड़ी...।
[पृष्ठ-130]
तखन हमरा हँसी लगैत छल । मुदा हम ई जनैत चुप भजाइत छलहुँ जे अपना सँ बेसी अपन अग्रज मित्रकें महिमामंडित करब हुनक आदति छलनि । निर्विकार-निश्छल अभिव्यक्ति । अपना सँ छोटक रचना पढ़लाक उपरान्त सभकें कहथि- तोहर रचना पढ़लिय’...ईर्ष्या भेल...हम एतेक नीक नै लीखि सकै छी । ...ई तहुनक व्यक्तित्वक महानता छलनि...तें मायाबाबूकें बनैनियाँ  मे नहि हुनक रचनामे ताकू...चैपालमे अभिव्यक्त घूटर भाइक स्वरसँ चीन्हू आ चीन्हू हुनक क्लासरूमक व्याख्यान आ मंचक मधुर उद्घोषणासँ...बनैनियाँ तँ आइ नव-नव गामक रूपमे विकास करहल अछि से विद्या आ वैभव, दूनू दृष्टियें ।
परसरमासँ दक्षिण बहैत खरिदाहा पुलक उतरबरिया पायासँ सुपौल जिला शुरु होइत  अछि । ओतसँ हरियरी देखार होमलगैछ । सड़कक दुनू कात आम-लुच्चीक बगान, बाँसक बीट आ बहुत रास गाछ सभ आँखिकें संतोष दैत छैक ।
परसरमाचर्चित गाम अछि । यैह गाम बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाईंक जन्मस्थली थिकनि । ओतय हुनक नेनपन आ किशोरावस्थाक चांचल्य छनि । गोचारण आ पठन-पाठनक संग संगी सभक बीच हँसी-चैल छनि...मुदा बाबाजीक परसरमा खाली जन्मस्थलीए टा रहलनि...बाकी भक्त आ आश्रमक संख्या आने ठाम बेसी रहलनि...एहि मे बनगाम सभसँ ऊपर अछि...।
एखन परसरमामे गोसाईं जीक पुस्तैनी भू-खण्ड पर बनाओल हुनक मंडप आ बैसिकीक लेल दलान अछि जाहिमे पुजेगरीक संग किछु भजनी भजन गाबि हुनक स्मरण करैत छनि ।
हिनक रचित भजन सधुक्करी मैथिली भाखामे रचित जीवन ओ जगतक मानवीय संवेदनाक प्रति भक्ति ओ आध्यात्मिक संदेश अछि जे मनुष्यकें अपनासँ साक्षात्कार करबैत   अछि । मैथिली संत साहित्यक अन्तर्गत हिनक अवदान विस्तारसँ रेखांकित भेल अछि । हिनक भजनावली मिथिला ओ आनहु ठाम अत्यन्त आदरक संग राखल ओ पढ़ल जाइत अछि । गोसाईंजी जीवनक कथा आ मनुष्यकें जीबाक कलाक ज्ञान करबैत अहंकारसँ दूर रहि लोक सेवाक पाठ पढ़ौने छथि । ओ नरकें भक्तिक मार्ग पर चलैत अपन रचनाकें सार्वजनीन कयने छथि जे मानव-सदुपयोगक संदेशसँ भरल अछि...। मिथिलाक लोक संगीतक भास पर आधारित हिनक भजन खूब गाओल जाइछ ।
...सहरसासँ सुपौल धरि जाहि रेलक उपयोग अदौसँ करैत आयल अछि तकर तेसर स्टेशनक नाम परसरमाथिकै । एहि ठामसँ ई गाम चारि वा पाँच कि॰ मी॰ पश्चिम स्थित छैक । भसकैत अछि अंग्रेजी सरकार आध्यात्मिक साधक लक्ष्मीनाथक नाम पर ई नाम रखने हो । ओना ई हमर व्यक्तिगत विचार थिक जकरा नहियो मानल जा सकैत अछि ।
परसरमाकें रेलसँ बेसी सड़केक सुविधा छैक। स्टेशन जेबाक लेल परसौनी, बरैल आ तखन बरुआरी अबैत छैक जतगाड़ीक ठहराव छैक । बरुआरियो दू टा आ बीचमे धार...स्टेशन लग यैह सभ गाम छैक । ...तखन परसरमाक नाम किएक...? मोन मे बहुत रास प्रश्न उठल...प्रश्नो स्वाभाविके रहय...। बरुआरीमे तत्कालीन जमींदार लाल साहेबक घर...
[पृष्ठ-131]
- अपने खूब प्रतिभाशाली ओ प्रभावशाली अंगरेजी सरकारक पसिन्नक राजा आ क्षमतामे अशेष व्यक्तित्व...।
हम जखन एहि स्टेशनकें क्रॉस करैत रही तँ बेर-बेर ई प्रश्न हमर उत्तर ताकबाक लेल प्रेरित करैत रहय । घूमि-फिरि कलाल साहेब सोझाँमे चमकि जाथि...हिनक अछैत परसरमानाम अंकित भजायब...ई रहस्य के खोलत...? एकरा तँ छीनब कहल जा सकैत अछि । गामक लोक परसरमानामक टिकट जखन कटबैत हैत तँ ओकर केहन मनोभाव हेतैक से सद्यः अनुमानित छल...मानसिक आ मनोवैज्ञानिक रूपें ओ लोकनि निश्चित प्रताड़ित अनुभव करैत रहल हैत से सोचब कठिन नहि छैक । की बितैत हेतै ग्राम्य देवता आ गौंआकें...अपराध बोधकें मोन मरमोसि कोना एक ग्लास पानि पीबि शांत भजाइत हैत...आदि-आदि प्रश्न हमरा एखनो अख्यासमे अबैत अछि...।
अख्यासल तँ ईहो अछि जे बाढ़ि, परसरमाकें सुपौलक सम्पर्कमे कहियो चैन सँ रहनहि देलकै । 51-52 ई॰ मे वैद्यनाथधाम जेबाक लेल ट्रेन परसरमे मे पकड़ने रही । फेर बख्तियारपुरसँ नाहे-नाह धमारा आ तकर बाद आगाँ बढ़ी...
दुर्दशा छलै...। मुदा 52-53 ई॰ मे ई रेलपथ आपसमे जुड़ैल । एही पथसँ देशक प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र बाबू स्पेशल ट्रेनसँ श्रमदानसँ बनल विश्वक प्रथम कोशी बान्हक उद्घाटनक लेल आयल रहथि सुपौल-बैरिया...। ओहू समयमे ट्रेन सुपौले धरि । ...हमरा इहो मोन पड़ैत अछि जे भरिसक 58-59 ई॰ मे तत्कालीन रेलमंत्री, राम सुभग सिंह सुपौल सँ आगाँक रेल विस्तारक लेल मालगोदाम परिसर मे आयोजित सभामे कोनो शिलान्यास कयने रहथि...ओकर बाद की भेलैक से मोन नहि पड़ैत अछि...।
मुदा गढ़-बरुआरी के निसाफक प्रतीक्षा छलै । कवि रघुनाथ मुखिया कहलनि जे ओ 1962 ई॰ धरिक टिकट पर परसरमास्टेशन छपल देखने अछि । बरैलक डॉ॰ धीरेन्द्र कहलनि जे ओ 1963 ई॰क आरंभहिमे आयोजनपूर्वक परसरमाक स्थान पर गढ़-बरुआरीक नामपट्ट लगबाक साक्षी छथि ।
एहि परिवर्त्तनक नेपथ्यकथा बहुत संवेदनशील अछि । हम जे अपना सर्वेक आधार पर बुझलियै तकर निष्पत्ति छलै वर्चस्वक लड़ाइ आ यैह वर्चस्व दुनू गामकें तनावग्रस्त कयने रहय । भीतरक कथा जे रहल हो मुदा स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक झगड़ा मोछ-मोछक झगड़ा कहल जा सकैत अछि । एहि तथ्यकें बरैलक तेरासी वर्षीय कवि अमरसेहो गछलनि...लाल साहेब मोकदमा कयलनि...भूप बाबू ओकील रहथि ।  गढ़-बरुआरीकें निसाफ भेटलै- से लालसाहेबक मुइलाक बाद । बरुआरी जे गढ़ी छल से गढ़गेल...हमरा जनैत ओहि कालखण्डमे कोनो रेलवे स्टेशनक नाम परिवर्त्तनक प्रायः ई पहिल घटना रहल हेतैक...।
मुदा परिवर्त्तनक एहि दृश्यकें लाल साहेब नहि देखि सकलाह । बरुआरीक संग हुनका जे निसाफ भेटलनि से हुनक आत्माकें निश्चिते जुड़ौने हेतनि । 25 दिसम्बर 1961 ई॰ कें हुनक निधन सभकें अप्रत्याशित घटना लगलैक । निधन आ निधन सँ सम्बन्धित कतेको कथा-उपकथा सुपौल स्टेशनसँ पूब बनाओल लाल साहेबक लाल कोठीसँ उड़लै जे  -
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- निर्णये नहि कपौलक जे असल मे बात की भेलै । समाचार तँ समाचार थिकै प्रत्यक्ष वा अप्रत्यक्ष पसरबे करतै...। मुदा सत्य वैह जे लाल साहेबक निधन भगेलनि आ हुनक स्मृति मात्रहि आब शेष रहत...।
गोर वर्ण, आकर्षक भरल-पूरल देह-यष्टि, कारी सूट आ कारीए हैट...आमक फाड़ा सन पैघ-पैघ एक जोड़ी आँखि पर ब्लैक गॉगुल्स...। डेरासँ एही ड्रेसमे बहराइत रहथि राजा साहेब । आगू-आगू दस मीटर पर मस्त चालिमे चलैत कारी भौर विदेशी नस्लक भयभीत करवला, मुँहमे साहेबक गोल्डेन मूठबला छड़ी लेने पोसा कुकूर आ सड़कक दुनू कात एहि मनोरम दृश्यकें देखलेल ठाढ़ आवाल-वृद्ध-वनिता 25 दिसम्बर 61क बाद कहियो नहि देखि सकल...।
ई दृश्य हमरा वृत्त-चित्र जकाँ ओहिना सोझाँमे पसरि जाइत अछि । तहिया चकला निर्मलीसँ सतमा पास कविलियम्स स्कूलमे नाम लिखौने रही । ओही बर्ख बच्चा भैयाकें पशुपालन विभागमे नोकरी भेटल रहनि । वीरपुरसँ ओ अपन काज आरंभ कयने रहथि । दरमाहा छलनि पचास टका पचास पैसा । देहातक भिजिटमे किछु आर उपार्जन कलैत रहथि । तकरे जोड़ि-जोड़ि एकटा सेकेण्ड हैण्ड साइकिल कीनने रहथि गाम अबरजात करबा लेल । ओ सभ शनिकें आबथि आ सोमकें भोरहरियेमे विदा भजाथि । भेलाहीमे जे दुइ तीन टा साइकिलक चर्चा छलै ताहिमे इहो एडगेलै ।
एहिसँ पूर्व हम परसरमाक नरेसर बाबू, कर्णपुरक मुक्तिनाथ बाबू आ वकील ज्ञानदत्त मिश्रकें नित्तह साइकिल हाँकैत देखने रहियनि । तहिया एकटा आरो साइकिल देखलियै- हुसुन बाबूक...। लोक बजैत रहै जे हुसुन बाबूक वाइ-साइकिलसनरेले थिकै मेड इन इण्डिया । जहिना अपने छिपगर तहिना साइकिल खड़गर-नमगर...अपना कद काठीक हिसाबसँ ओ कसबौने   रहथि ।
से बच्चा भैयाक साइकिल देखि आ छूबि पहिल बेर अपार आनन्द भेल रहय । भोर-साँझ पोछब, तेल देब हमरे ड्यूटी छल । भैया सोमकें जखन वीरपुर जेबाक लेल चलथि तँ हम झुनकू ठाकुरक घर धरि दौड़ल जाइते रही आ जखन भैया आ साइकिल मवेशी अस्पताल लग अढ़ भजाइ तहमहूँ निरुत्साहित घूमि आबी ।
ओना हम चोरा-नुका कसाइकिल सीखियो नेने रही।
हमर पिताजीक निधन 17 दिसम्बर 61 कें भगेलनि सुपौल अस्पतालमे इलाजक क्रममे । ई निधन हमरा लेल बहुत पीड़ादायक छल । घूर तपैत काल बच्चा भैया हुनक मृत्युक सूचना देने रहथि । तकर बाद जे होइ छै ओ मोन पाड़ि एखनो डेरा जाइ छी । कहाँदन बुच्चू बाबा आ नेपाल मरड़ जिज्ञासामे सान्त्वना देने रहथि । गामक लोक सभ एहि दुखमे सहभागी भेल रहथि ।
कक्काकें फरकी पर अस्पतालहि सँ आनल गेलनि आ बम्मा लग हुनक संस्कार भेल रहनि । कक्काकें तखन आगिसँ एकोरत्ती डेराइत नहि देखने छलियनि । पेटक पीड़ाक छटपटाहटि ओहो अनुभव नहि कयलनि...हमरा लागल छल डॉ. रामक दबाइ असरि करहल छनि आब ।
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समय बीतलगलैक...।
चारिम दिन बच्चा भैया, एकटा अपरिचितक संग पाँच-सात गोटा मिलि गाछी गेलहुँ । अपरिचितक मादे पुछला पर कहल गेल जे ओ पूज्य (पात्र) रहथि । कक्काक सारा मे एखनो आगि शेष रहय, मुदा कक्का नहि छलाह । पूज्यक कथनानुसार पूजा-पाठ भेलै आ तकर बाद बच्चा भैया किछु-किछु बीछि नवका मटकुरीमे रखलनि आ कोनो साफ कपड़ा सँ मुँहकें बान्हि घुरि अयलहुँ । घूरन भैया एहि कर्मकें अस्थि-संचय कहलनि...। ...दलान पर सभा बैसल आ ओहीमे अगिला कार्यक्रमक योजना बनल । पढ़ुआ कक्का तकरा अरसट्ठाकहलनि । निर्णयानुसार वृषोत्सर्ग श्राद्ध सौंसे पाली ल’...तदनुसार निर्धारित योजनानुसार काजमे गति आबलगलैक। ई तारीख भरिसक 22 दिसम्बर छलैक ।
ओहि समयमे घरक सभसँ छोट नेना हमहीं रही आ काज लेबाक दुआरें हमरे बुधियार-होसियारक पदक पहिरा देने रहथि से हम बुझियै, मुदा साइकिलक लोभ हमरा आर ऊर्जावान बना दैत छल ।
भेलाहीसँ पाँच-छओ किलोमीटर पूब बभनगामा पड़ैत छैक। ई दाम्मपत्य गाम थिकै- वीणा-बभनगामा’...। आब अन्दौली सेहो फेंटम-फेंट भगेलैक । बभनगामामे तहिया बहिन, दीदीक सासुर आ पिताक मातृक रहनि । ओझाजी, पीसा आ राजो कक्का दूधक व्यवस्था ओत्तहि करबाक भार नेने रहथि । संवादवारीक लेल हमहीं जाइत रही ।
बभनगामा जेबाक दू टा बाट हम टेबने रही । कीर्त्तन भवनसँ सोझे पूब रेलवे लाइन पार करैत पहिने वीणा, तखन बभनगामा । दोसर बाट हमरा मोन पर छल...। बजार घुमबाक, स्टेशन देखबाक मोन होइत छल तओही बाटे ।
26, दिसम्बरकें गाममे घोल भेलै जे बरुआरीक लाल साहेब मरि गेला । गामक तहसीलदार रामजी मल्लिक एकर पुष्टि कयलनि । हमर जिज्ञासा बढ़ल...बभनगामा जेबाक क्रममे साइकिल स्टेशनक बाट धेलक...।
लाल साहेबक कोठीक कैम्पसमे लोकक करमान मृत्युक सत्यताकें पुष्ट कदेलक । पूबरिया बरण्डाक पलंग पर दुनियाँ भरिक निन्नमे मातल लाल साहेबक सौम्य आ शान्त देहयष्टि एखनो बहुत विलक्षण लागल रहय...सुनलियै, कहाँदन रातिमे जे सुतला से सुतले रहि गेला ।
मुदा परसरमा स्टेशनक नाम बदलबाक लेल जे ओ मोकदमा कयने रहथि, तकर निसाफ सूतल नहि रहल आ अन्ततः 1963 ई॰ मे परसरमाक स्थान पर गढ़-बरुआरीक नामपट्ट लगबाक ऐतिहासिक फैसला भेलै...लाल साहेबकें एहि निर्णयसँ निश्चिते शान्ति भेटल हेतनि...।
परसरमामे पचमुहानक प्रमुखता अछि । आब तओ जगह बहुत विकसित भगेल छैक । एही प्वाइन्टसँ लोक पूब बरुआरी, जगतपुर, एकमा-बभनगामा-वीणा-अन्दौली होइत सुपौल चल जाइत अछि । पच्छिम जाइत सड़क बलहा, सोल्हनी, सीहे, बकौर आ बान्हक –
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- भीतर चनैल चल जाइत अछि । उत्तर सुपौल, दच्छिन सहरसा आ बलहा सड़कक पाँजरे-पाँजर जाइत सड़क गाम चल जाइत अछि ।
सुपौल दिस नमरैत सड़क मल्हनीक बाद कर्णपुरक तीनमुहान छुबैत अछि । ऐ तीनमुहान पर बहुत पुरान एकटा इनार छै । आब तओतएकटा भव्य मंदिरो बनि गेल छैक । इनार तएखनो चालू छै ।
ऐ तीनमुहानसँ पच्छिम एकटा टोल छै खरैलजे एहि परोपट्टाक छलै आ परगन्ना छलै मल्हनी गोपाल । गोपालकिए जुटलै से हमरा एखनो धरि नहि बूझल भेल अछि । भेलाहीक डाकघर खरैले छै...।
कर्णपुर तीनमुहान पर अवस्थित मंदिरक पाँजरे-पाँजर दक्षिण सड़क जे नवहट्टा कें छूबैत छै, कर्णपुर एही पथक पहिल गाम थिकै । एकर शुरूहे मे सड़कक पच्छिम स्कूल, पूबमे कतिका कुमरक मंदिर आ तकरा आगाँमे कृष्ण मंदिर जतय भोर-साँझ गौंआक गेट-टूगेदर होइत रहै छै । एहि गामक कृष्णाष्टमीमे मधुरक नाम पुरुकिया (गुझिया) बनैत छै जे खूब स्वादिष्ट सनेस बनैत छै । कर्णपुरक कृष्ण-पूजाक उत्साह एहि गामक संस्कृति थिकै ।
स्वाधीनता संग्राममे बढ़ि-चढ़ि कभाग लेनिहार कर्णपुर विचारें-व्यवहारें आ संस्कारें अदौसँ उन्नत ओ व्यवस्थित गाम मानल जाइत अछि । स्वनामधन्य लहटन चौधरी आ लाल बाबा अंग्रेजी सरकारसँ मारि खेनिहार आन्दोलनीक पहिल लोक रहथि जे भारत माताक जयक नारा लगेबाक कारणे लाठीसँ ओधबाध कैल जाइत रहला...ई दुनू विभूति आइयो आन्दोलनक प्रतीक मानल जाइत छथि । स्वतंत्र भारतमे चैधरी जी कतेको बेर विधानसभा आ लोक सभाक प्रतिनिधित्व कयलनि । लाल बाबाक लाल वस्त्रक एक-एक सूत जा ओ जीलाह भारत माताक असली प्रतिनिधि बनि जीलाह ।
कर्णपुरक दच्छिन सीमान पर एक टिहुली अछि उन्नतोदर, गजपीठ ऊसर भूखण्ड...। यैह ओ जगह थिक जतय अंग्रेजक निर्णयक विरुद्ध नोन बनाओल गेल छल । सत्याग्रहीकें पुलिसक बर्बरता सहपड़ल छलै...।
एही भू-खण्डक बीच बाटे एकटा एकपेड़िया बनल अछि पच्छिम दिस । एहि एकपेड़ियासँ आवाल-वृद्ध-वनिताक मधुर स्वरमे बान्हल नचारी, महेशवाणी अनुगुंजित होइत बाबा तिलहेश्वर नाथ महादेवक दरबार पहुँचैत अछि नितः । विशेष करवि कें...।
एकर सटले दच्छिन अछि सुखपुर । विलियम्स हाइस्कूलक बाद निर्मित हाइस्कूल सुखपुरक प्रतिष्ठा अछि । हमर बालसंगी दिलीपक गाम आ बच्चा भैयाक सासुर । आम आर लुच्चीक औद्योगिक नगरी । सुखपुर है सुखधाम, जहाँ बिराजे लुच्ची आम । एतुक्का दुर्गापूजा आ दुर्गाक भसाओन अत्यंत आकर्षक आ औत्सुक्यसँ भरल होइत अछि ।
मुदा कर्णपुर शीर्ष गाम होइतहुँ आइधरि हाइ स्कूलक स्थापनामे पछुआयले रहल ।
...हँ, हम तीनमुहान पर ठाम अपन गाम भेलाहीकें अखियासै छी...। ओतसड़कक स्वरूप तीरे सन छै । नोक भेलाही, सुपौलकें छूबैत छैक । सुपौलसँ पहिने हमर पोस्टल एड्रेस अछि- मौजा-खरैल, टोला-भेलाही...हमर ई टोल, टोल नहि रहल- गाम भगेल । टोलाक कन्सेप्टआब बदलि गेलै...। टोलक व्यवहार आब नवतूरक लोक नहि –
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- करैए...। बुझलो नहि छै...गाम-घरमे टोलआब दिशासूचक छैक...पूबरिया, पछबरिया, उतरबरिया आ दछिनबरिया । अर्थात गामक विभाजन टोलमे आ शहरक विभाजन मोहल्लामे...छोट शहर वार्ड आ पैघ शहर सेक्टरमे बँटा गेल अछि । आजुक तिथिमे हमर गाम सुपौलमे अन्तर्लीन भगेल अछि आ एकटा स्वतंत्र वार्ड-19 बनल अछि ।
टोलसँ गाम, गामसँ वार्ड बनल भेलाहीअपन सीमामे अपनाकें विकासशील बनेबामे प्रयत्नशील अछि । एहि क्रियामे सुपौल पर निर्भरता बढ़ि गेल छैक जे स्वाभाविको अछि ।
मेन रोड एहि गामकें बीचो-बीच चीड़ैत सुपौल छूबैत अछि । ई हम अपना जहियासँ ज्ञान-प्राण भेल, तहियेसँ देखैत आयल छी । सड़कक दुनू कात बसल एहि गामक लम्बाइ बेसी आ चैड़ाइ कम अछि...। बाँस-काठ आ खढ़क कमी नहि रहबाक कारणे प्रायः सभ टोलक घर खढ़ेक बनैत रहलै । खाली उतरबरिया सीमा पर बुद्धू ठाकुरक घर पक्काक छलै...। गामक निम्न मध्यवित्त आ मध्यवित्त बहुल परिवार अपन-अपन हिस्साक श्रम पर भरोस राखि निर्वाह करैत छल । कदन्न आ सुअन्न एतसभ दिन उपजैत रहल...हर-बड़द पर निर्भर ई गाम पशुक सेवामे सदैव अग्रणी रहल...गौपालन आ महिसपालन एतआमदनीक माध्यम रहलै...। बकरी-छकरी पोसब सेहो सौखसँ बेसी आमदनीकें बढ़बैत छल । यैह कारण छल जे बूढ़ा सभक लगाओल सड़कक कातक गाछ कहियो छिपगर नहि भसकलै...
हमरा गाममे अदौसँ बाढ़ि अबैत रहलै...माटि परिवर्त्तनसँ उपजा नीके-ना होइत रहलै...। श्रमशील लोक अपना नीने सूतय आ अपना नीने उठै...। जे एहिसँ अलग किसिमक लोक छल ओकर लेल रिनं कृत्वा घृतं पीबैतसिद्धान्तक आश्रयी छल । पारंपरिक खेतीक संग-संग ठाकुरजीक ट्रैक्टर-थ्रेसर बेसी काज करै...हमरा गाममे सुकरातीक पखेब आ सीरपंचमीमे हर ठाढ़ हैब एखनो आकर्षक लगैत छैक...।
गामक पछबरिया टोलमे बसल ब्राह्मण अपन धर्मक रक्षा करैत पुबरिया आ दछिनबरिया टोल पर निर्भर रहल...अपन शालीनता आ सद्व्यवहार हिनका लोकनिकें कहियो उठल्लू नहि होमदेलकनि...मर्यादा ग्राम्य संस्कृतिक अनुरूप एखनो अछि ।
...हमर जन्म 6 जनवरी 1947 ई॰क माघ-फागुनमे भेल । इहो तखन बुझलियै जखन हाइर सेकेण्ड्री उतीर्णक सर्टिफिकेट पर अपन जन्मतिथि अंकित देखलियै।
तहिया गार्जियन अपन जेठ संतान मात्रक टिप्पणि बनबैत रहथि । शेष संतानक जन्मकुण्डली गामक मास्टर साहेबक हाथमे रहनि । बही पर लिखल तिथि जन्म भरिक लेल स्थायी...। हम अपना माता-पिताक चारिम पुत्र आ सभ भाइ-बहिनमे छठम स्थान प्राप्त कयने रही...।
हम सभ भाइ-बहिन मिला कमाता-पिताक सात संतान..। दू बहिन आ पाँच भाइ । एहिमे हमरासँ पैघ तीन अग्रज आ दुइ अग्रजा...। एहन स्थितिमे पैघ भ्राता कें छोड़ि शेष हमरा लोकनिकें बिना टिप्पणिक अपन-अपन जीवनपथ पर चल पड़ल । ज्ञात-अज्ञातक झंझटिसँ एकदम मुक्त...भगवती जे करथि....


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साभार संदर्भ

भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून, 2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल

[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। महेन्द्र जीक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]

Sunday, May 28, 2017

जत देखल तत कहए न पारिअ : गोविन्द झा

हमर सभक सौभाग्य थिक जे पं. गोविन्द झा चौरानबे बरखक अवस्थो मे रचनात्मक रूपें सक्रिय छथि । ‘भारती मंडन’ क नव क्रमांक-1 (अंक-13) मे प्रकाशित हुनक संस्मरणविधाक टटका रचना - ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ एकर उदाहरण थिक । गोविन्द बाबू लगभग शताधिक पुस्तकक लेखन-संपादन आ अनुवादसँ सम्बद्ध रहल छथि । पैघ भाषाविज्ञ आ वैयाकरणतँ छथिए मैथिली आलोचना आ सृजनमे सेहो हिनक बड्ड योगदान छन्हि । हिनक व्यक्तित्वक एक टा रूप शब्दकोशकारक सेहो छन्हि । शब्दक उत्पत्ति रहस्य आ अर्थ करबाक हिनकर विलक्षण कौशल बड्ड उपयोगी आ प्रभावी होइछ। एतेक विद्वता आ एतेक सुदीर्घ अनुभवक रहितो हिनकर व्यक्तित्वक सहजता आ विनम्रता अनुकरणीय अछि ।
ई कहब बेसी उपयुक्त होयत जे ‘जत देखल तत कहए न पारिअ’ हुनकर मिथिला- मैथिलीसँ सम्बद्ध किछु संस्मरण सबहकक कोलाज थिक। एहिमे कतहु मैथिली आंदोलन आ मैथिलीक आंदोलनधर्मी संस्था सबहक इतिहास आ आलोचना छैक, कतहु मैथिलक आपसी मतभेद आ द्वेषक उल्लेख छैक, कतहु मैथिली मिथिला लेल अदम्य संघर्षक उल्लेख छैक, कतहु स्वार्थक उल्लेख छैक तँ कतहु वृहत सामजिक हित आ उद्देश्य केर । एहि मे समकालीन मैथिली साहित्यकार आ मैथिली आंदोनकारी लोकनिक आत्मीय चर्चो भेल छैक । जिज्ञासु पाठक आ शोधार्थी लोकनिक लेल ई संस्मरण एहि रूपें महत्वपूर्ण भ’ सकैछ जे एहिमे वैह लिखल छैक जे गोविन्द बाबू अपन आँखिसँ देखलथि आ अपन विवेकसँ बूझलन्हि । एकरा दुर्लभ विनम्रतेतँ कहबै जे जीवन भरि रचनाशील क्यो लेखक विद्यापतिक पदक माध्यमें ई कहथि जे- जतबा देखलहुँ, ततबा अभिव्यक्त नहि क’ पाबि रहल छी !!

जत देखल तत कहए न पारिअ
गोविन्द झा



(पृष्ठ-82)
प्रस्तावना
जीवनमे सभकें नाना प्रकारक अनुभव होइछै आ से मन पड़ैत रहै छै । हमरा  अधिक काल ओ बात सभ मन पड़ैए जे मिथिला आ मैथिलीक संबंधमे हमर आँखिक समक्ष होइत रहल । सम्प्रति तकरहि मन पाड़ि-पाड़ि लिपिबद्ध कए रहल छी ।
मन पड़ैछ 1935क आसपास बहिनिसँ नेओंत लेअए पचही डेओढ़ी गेल रही । एतए हमर भागिन बाबू उमापति सिंहक घनिष्ठ मित्र रसिआरीक लखनजी (डॉ. लक्ष्मण झा) आएल रहथि । गप चलल मिथिलाक दशा पर । हम तीन वर्षक नेपाल-प्रवासक बाद हालहिमे घर घुरल रही । हमरा मुँहसँ बहराएल, हम तँ मिथिलाक नहि, नेपालक निवासी । लखनजी साक्षात लक्ष्मण भए गेलाह, अएँ, की कहल? जनै छी मिथिलाक सीमा कतए?
आइ दू हजार सोलह इसबी मे चिरंजीवी केदार काननक आग्रहें जत देखल तत कहए न पारिअलिखए बैसलहुँ तँ मन पड़ल ओ सीमा सिमराओं अर्थात सीमरक जंगल बाला गढ़ । एतहि मिथिलाक राजा आ मिथिलाक भाषा सेहो नेपालमे शरण लेल । मिथिला मोगलान भए गेल । नव राजा तँ भेलाह विशुद्ध मैथिल, परन्तु जूति पूरा-पूरा आनक । मोगलानमे संस्कृतक छाती पर फारसी बैसल, मैथिलीक छाती पर क्रमशः उर्दू, कचहरिआ हिन्दुस्तानी आ हिन्दी । धर्म आ साहित्यक क्षेत्रमे भगवान कृष्णक प्रसादें मैथिलीक जगह ब्रजभाषा लेलक तँ रामजीक प्रतापें हिन्दी । हम रामलीला देखि-देखि हिन्दी सीखल आ विद्यापति ठाकुरक बदला भिखारी ठाकुरक गीतक संग बटोहिया नाच देखि-देखि भोजपुरी सीखल । एहने छल हमर बाल्यकालक मोगलानक रंग आ मैथिलीक स्थिति ।
(पृष्ठ-83)
प्रसंग पर आउ । पचहीमे ओहि समय लखन जीक सिर पर एही मोगलानकें पुनः अखण्ड मिथिला बनएबाक धुन सबार छलनि । चेला मुड़लनि हमर उक्त भागिन बाबू उमापति सिंह आ डॉ. लक्ष्मीनारायण सिंहकें । लखनजी घर-घर चर्चित रहलाह, बाबू उमापति सिंह अचर्चिते रहि गेलाह । किएक से आगाँ कहब । लखनजी काशी प्रसाद जायसवाल रिसर्च इन्स्टिीच्यूट, पटनामे पदस्थापित भेलाह । निदेशक डॉ. अल्तेकर कहलथिन, झुमरी तिलैयाक उत्खनन स्थल पर गेल जाए । उत्तर भेटलनि, ओतए किछु नहि छैक, हम मिथिला जाएब, ओतए जतहि हमर कोदारि बजरत ततहि कुबेरक भंडार... । तुरन्त जवाब भेटि गेलनि, अवश्य गेल जाओ । बुझनुक छलाह, सोझे चलि देलनि ।
लखनजी नोकरी छोड़ि घर घुरलाह तँ पाया ढाहि गंगासँ हिमालय धरि अखंड मिथिला गणराज्य बनएबा मे लगलाह । ओहि समय बाबू उमापति सिंह आपूर्ति विभागमे सरकारी सेवामे छलाह तें प्रकट रूपें योग नहि दए गुप्त रूपें आर्थिक सहायता करैत रहलाह ।
लखनजी साप्ताहिक मिथिला चलबैत प्रेसक भारी कर्जदार भए गेलाह तँ इएह हिनक उद्धार कएल । हालमे जखन कि एहि पत्रिकाक अंक सभक खोज होअए लागल तँ समस्त अंक हिनके ओतए पाओल गेल ।
लखनजीक एहि जागरणसँ पहिनहिसँ मैथिल महासभा आदि नाना संगठन एहि क्षेत्र मे उतरि चुकल छल । हम एहन जाहि-जाहि संगठनक गतिविधि अपना आँखिएँ देखल तकर सुधि एकाएकी लेल जाए ।

मैथिल महासभा
पचहीसँ चलू मधुबनी मैथिल महासभाक अधिवेशनमे । आरम्भहिमे एतए एक विचित्र तमाशा भेल । महाराज अध्यक्षक आसन पर बैसलाह कि एक कोनमे नारा लागल--गद्दी छोड़ू, गद्दी छोड़ू ।महराजी लाठी उठल । सभ नाराबाज लंक लेलक । पाछाँ बूझल एकर सूत्रधार छलाह भुवनेश्वर सिंह भुवन । ओम्हर भुवनजी विभूति नामक मैथिली पत्रिका चलाओल । ओहिमे विज्ञापन बहराएल जे दू उपन्यास शीघ्र आबि रहल अछि । पहिल बूढ़ि गाइक लटकन आ दोसर रानी या बन्दिनी । स्पष्टतः दुनूक लक्ष्य छल महाराजक अन्तःपुरक रहस्योद्घाटन । महाराजक दिससँ चलल व्यंग्यचित्र आ व्यंग्यकाव्य-सिंहक कुलमे जन्म बिलाड़िक भेल भुवनमे हास, धुरखुर व्यर्थ हताश ।

मैथिली साहित्य परिषद
अगिला दिन प्रातःकाल मैथिली साहित्य परिषदक अधिवेशन भेल । एही ठाम बाबू भोलालाल दास मैथिली साहित्य परिषदक मन्त्रीक पद छोड़लनि आ ओहि पर अएलाह आचार्य रमानाथ झा ।
दरभंगामे परिषद्क विधिवत् स्थापना आ रजिस्ट्रेशन कएल । सदस्य भेलाह डॉ. सुभद्र झा, तन्त्रानाथ झा, ईशनाथ झा आदि । परिषद हमर पिताक लिखल मैथिलीक व्याकरण मिथिलाभाषाविद्योतनकेर हस्तलेख दू सए टाकामे किनलक । ई मैथिली पोथीक हस्तलेखक खरीदक प्रायः पहिल घटना भेल ।
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परिषदसँ उक्त विद्योतन आ किछु आओर पुस्तक प्रकाशित भेल । बीच-बीचमे कवि गोष्ठी    चलए । एक गोष्ठी दरभंगामे डॉ. अमरनाथ झाक सत्कारमे भेल । एहिमे प्रो. तन्त्रानाथ झाक कविता चललहुँ प्रियतमसँ मिलन काजतथा हमर कविता यौवनक हिलकोरमेप्रो. आनन्द मिश्र अपन कोकिलकंठसँ गाबि सुनाओल । एकर पहिल विशेषाधिवेशन मधुबनीमे भेल । पं॰ दीनबन्धु झाकें महावैयाकरणआ मुंशी रघुनन्दन दासकें साहित्य-रत्नाकरक उपाधि देल गेलनि । अगिला विशेषाधिवेशन मनीगाछीमे भेल । एहिमे पहिल बेर चन्द्रभानु सिंहक कुहकल कुररीकविता सुनल । परिषदक दलबन्दी देखल । डॉ. सुभद्र झाक ओजस्विता देखल । परिषद किछुए दिन चलल कि मैथिल ब्राह्मणक दू वर्गक द्वन्द्वयुद्धमे आहत भए सेज धएलक ।

प्रबुद्ध मैथिल समाज
मन पड़ैत छथि दूरक समधि प्रो॰ उमानाथ झा । मिथिलाक सन्दर्भमे हिनका क्रान्तिक अग्रदूत कहि सकैत छी । ई मित्रमंडली जुटाए प्रबुद्ध मैथिल समाज स्थापित कएल । प्रमुख सदस्य भेलाह वैज्ञानिक शचीनाथ झा (आचार्य रमानाथ झाक अनुज), प्रो॰ अनिरुद्ध झा, अधिवक्ता परमानन्द झा, प्रो॰ हरिमोहन झा आदि । एकर तीन लक्ष्य छल--जातिप्रथा भगाएब, वैज्ञानिक दृष्टि जगाएब तथा मैथिली भाषा आ साहित्यकें सजाएब । सदस्य लोकनि अपन-अपन जनेउ तोड़लनि । नवीन मैथिली साहित्य नामसँ एक पुस्तक (वा जर्नल कही) प्रकाशित कएलनि । एहिमे शचीनाथ झाक लेख छल सूर्य मंडलक उत्पत्ति । तात्पार्य ई जे प्रकृति स्वयं अपन सृष्टि आ संहार करैत रहैत अछि, एहि लेल ईश्वरक कल्पना व्यर्थ । किछुए दिनमे ई पोआरक धधरा भए गेल । केवल प्रो॰ हरिमोहन झा आ उमानाथ झा मैथिली साहित्यक श्रीवृद्धि करैत रहलाह । मन पड़ैत अछि, 1945क आसपास हिनक पहिल कथा आध घंटामिथिला मिहिरमे प्रकाशित भेल । एक पाठक एकरा निरर्थक प्रलाप कहलनि । हम उत्तर देलिअनि, ई थिक मैथिलीमे पहिल उत्तम मनोवैज्ञानिक कथा, तें अपनेकें प्रलाप बुझाएल । एहि तरहें प्रबुद्ध मैथिल समाज मैथिली साहित्यहुकें प्रबुद्ध करबाक दिस डेग देलक । एहि प्रबुद्ध लोकनिक कुचेष्टा बहुत दिन धरि होइत रहल । प्रायः एकमात्र हम एकर शिकार भए मनहि मन अपन जाति-धरम गमाओल ।
मन पड़ैत छथि पंडित वैद्यनाथ मिश्र यात्री । ई हमर पिताक शिष्यक शिष्य । ताहि सम्बन्धें यदा-कदा हमरा ओतए आबथि । एहि क्रममे ई हमरा लगसँ चिन्हलनि । 1950 ई॰ मे हिनक पोस्टकार्ड पहुँचल- हमरा हिन्दी शब्दकोश लिखबाक काज भेटल अछि, एहिमे अहीं सन चौचख सहकर्मी चाही । दौड़ले पटना पहुँचलहुँ । ओ काज तँ नहि भेटल, मुदा दोसर काज भेटि गेल । एहि बीच यात्रीजी नया टोलाक कंचन भवनमे भोजन करथि । साँझ कए ओकर छत पर गोष्ठी जमए । कहिओ काल हमहूँ पहुँचि जाइ । गोष्ठी बढ़ैत आ जमैत गेल । विचार भेल जे एकरा एक नाम आ रूप देल जाए । एहि उद्देश्यसँ अमरुदी मोहल्लामे आचार्य परमानन्द शास्त्रीक आवास पर बैसक भेल । यात्रीजी, बाबू लक्ष्मीपति सिंह, आचार्य परमानन्द शास्त्री, अधिवक्ता सत्यानन्द कुमर, अधिवक्ता अवधबिहारी झा, सुरेश्वर झा आदि उपस्थित
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-रहथि । यात्रीजी नाम देलनि चेतना । करीब एक वर्ष ई चेतना चलैत रहल । यात्रीजी आन नगरक यात्री भेलाह कि चेतना पर दमगर आ मुहगर लोक आसन जमबैत गेलाह । दोबारा स्थापना भेल । यात्रीजीक नाम उपेखि नव नाम देल गेल चेतना-समिति । चेतना तर पड़ल, समिति ऊपर । नव नामहिसँ एकर आधुनिकता, साहित्यिकता आ सादगी समाप्त भए गेल । क्रमशः मिथिला-मैथिल-मैथिली तर गेल, विद्यापति ऊपर अएलाह । अन्ततः विद्यापतिओ आराध्यमात्र रहि गेलाह, साध्य भेल केवल सम्पदा । रवीन्द्रनाथक शब्दमे ईंटेर उपर ईंट, माझारे मानव कीट । मुहथरि पर बैसल मुहपुरुख लोकनि पवित्र पर्वकें महामहोत्सव बनबैत गेलाह । एक समय उत्सवस्थल भेल मोइनुल हक स्टेडियम । देशक नामी नर्तकी, गबैया आ बजनिया पाहुन । बाड़ीक पटुआ तीत । समस्त मैथिल समाज आनन्द-विभोर । दोसर दृष्टिएँ देखी तँ चेतना समिति दू फाँक भए गेल- चेतना आ समिति । समिति समाजकें जगएबा-रिझएबामे लागल । चेतना साहित्यकें समृद्ध करबाक उद्देश्यसँ विद्यापति पर्वक अवसर पर कवि सम्मेलन आ विचारगोष्ठी चलबैत रहल आ हम एही दुनूमे रमैत रहलहुँ । मैथिलीक मंच पर साहित्य आ संगीतक बीच एक अभुत संगम चलल । एकर शिलान्यास कएल मैथिलीक कवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर । संग देलथिन सुगायक महेन्द्र झा । विद्यापति-पर्वक समारोहमे दर्शकक एक विशाल वर्ग एही दुनूक गीत सुनए दूर-दूरसँ आबए । ई छल बिनु वाद्यक संगीत आ बिनु कवित्वक कविता । एहि परम्पराक अन्तिम कवि-कलाकार भेलाह सियाराम झा सरस ।
एम्हर चेतना समिति लक्ष्मी आ सरस्वतीक पूजामे लागल रहल, ओम्हर मैथिली पर, विशेष कए युवावर्ग पर, नव-नव संकट आबए लागल । सहसा युवावर्ग सड़क पर उतरि आएल ।

निखिल भारतीय मैथिल छात्रसंघ
एक समय देशमे त्रिभाषा फर्मूला लागू भेल तँ मैथिलीभाषी प्रबुद्ध युवावर्ग मनसुबाएल जे आब राज्य लोक सेवा आयोगक प्रतियोगिता परीक्षामे मैथिलीक कृपासँ नैया पार लागि जाएत । परन्तु सिलेबसमे मैथिलीकें नहि देखितहि मैथिल छात्रक बीच आक्रोशक लहरि उठल । 1978क गणतन्त्र दिवस दिन भोरे पटनाक डाक बंगला चैराहा पर उत्तेजित मैथिलीभाषी छात्रसभक भीड़ लागि गेल । नारा लागल । अनशन चलल । सभ वर्ग, स्तर आ बएसक लोक आबि-आबि पीठ ठोकैत रहलाह । मैथिल छात्र पहिल बेर मैदानमे उतरल आ आश्वासन पाबि तत्काल शांत भेल । आन्दोलन तँ विफल भेल । तैओ सरकार हवाक रुखि देखैत तत्काल मैथिलीकें माध्यमिक शिक्षामे स्थान दए उत्तेजना शांत कएलक ।
एही बीच बिहार सरकार मैथिलीकें उपेखि उर्दूकें द्वितीय राजभाषा बनओलक । आक्रोश तीव्र होइत गेल । संघ 4 नवम्बर 1979 कें देश भरिक मैथिलीक संस्था सभकें हकारि विशाल जुलूसक संग राजभवन दिस बढ़ल । पुलिस रोकि देलक । संघ अपन मांग शिष्टमंडल द्वारा राज्यपालकें निवेदित कएलक । उक्त दुनू छात्र आन्दोलनकें देखैत सरकार कनेक नरम भए मैथिलीकें राज्य लोक सेवा आयोगक परीक्षामे स्थान दए देलक । करीब
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- सात वर्ष धरि मैथिल छात्र मातृभाषाक प्रसादें नीक-नीक पद आ प्रतिष्ठा पबैत गेल । राजनीतिमे एक प्रचंड बिहाड़ि उठल कि मैथिली फेर निष्कासित भए गेलीह । फेर निखिल भारतीय मैथिली छात्रसंघ 4 नवम्बर, 1989 कें तेसर बेर शंखनाद कएलक । मिथिलाक गाम-गामसँ आ देशक नगर-नगरसँ मैथिलीसेवी संस्था सभ अपन-अपन नेता आ कार्यकर्ताक संग जुटैत गेलाह । उत्तेजित जुलूस राजभवन दिस बढ़ल । लाठी चलल । किछु रक्तपातो भेल । किछु मान्य गुरुजन धरहेरिआ भए प्राणपात रोकल ।
उपर्युक्त तीनू आन्दोलन हम कातहिसँ देखैत आ कखनहुँ जोसमे आबि नारा सेहो लगबैत रहलहुँ । आशा जागल, आ लगले बिलाइओ गेल । किएक? आन्दोलनक तीनू तोड़मे लोक तँ बहुत देखल, जन एको गोट नहि । ईहो देखल जे दू वर्गक लोक एहिसँ दूरे रहलाह, सरकारक सेवक आ तथाकथित जनसेवक । हमहूँ सरकारक सेवक, तैओ चोरा-नुका देखैत आ किछु करैत सेहो रहलहुँ ।

विद्यापति-पर्व
उपर्युक्त उपलब्धि सभमे विद्यापति-पर्वक बड़ विशिष्ट भूमिका रहल । एकर शुभारम्भ के, कहिआ, कतए कएल से कहि नहि । हम ई पर्व सभसँ पहिने 1942क आसपास दरभंगामे देखल । मिथिला कॉलेज मे मैथिलीक प्रोफेसर जयदेव मिश्रक अध्यक्षतामे कातिक धवल त्रयोदशी दिन विद्यापतिक स्मृति दिवस मनाओल गेल । हम कविता पढ़ल -
आइ विद्यापतिक संस्मृति रूप धए नव पर्व आएल
आइ नोरक संग-संगहि एक नूतन गर्व आएल
ज्ञातव्य जे विद्यापतिक आयु अवसान कार्तिक शुक्ल त्रयोदशीकें भेल बात लोक तखन जनलक जखन 1940 ई॰ मे म॰ म॰ परमेश्वर झाक मिथिलातत्त्वविमर्शप्रकाशित भेल । सभसँ पहिने आ एकमात्र एहीमे ई कातिक धवल भेटल । एहि पर लगले मधुप जीक नजरि पड़ल होएतनि किएक तँ ई राघोपुर डेओढ़ीक हरिनन्दन सिंह मेमोरिअल ट्रस्टक निधिसँ प्रकाशित भेल जतए मधुपजी सतत आदर पबैत रहलाह । चेतना समिति एहि पर्वकें आकर्षक बनाए देलक जे ई घरसँ बाहर धरि पसरैत मैथिली आ मैथिल समाज पर धाख जमबैत गेल ।

साहित्य अकादेमी मे
फेर आउ चेतना समिति दिस । भाषा आ साहित्यक विकास हेतु बनल साहित्य अकादेमीमे ओएह भाषा लेल गेल जे संविधानक आठम अनुसूचीमे परिगणित भेल । आन भाषा सभक पहिल लक्ष्य भेल एहिमे प्रवेश । एहि हेतु चेतना समिति निर्णय कएलक जे अकोदमीक सदस्य लोकनिओकें मैथिलीसँ परिचित करएबाक हेतु एक पुस्तिका लिखल जाए । भार हमरा भेटल । झटपट दू पुस्तिका तैयार भेल- ‘Maithili : What it is and What it claims’ तथा ‘मैथिलीक समस्या’ । एहि काल मे मणिपुरी, नेपाली, डोगरी, कोंकणी आ राजस्थानी ईहो पाँच भाषा मैथिलीकें संग देलक । जेना-तेना छबो सफल भेल ।
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आठम अनुसूची मे
उक्त छबो भाषाक अगिला लक्ष्य भेल संविधानक आठम अनुसूचीमे प्रवेश । अप्रासंगिक होइतहुँ एतए स्पष्ट कए दी जे ई आठम अनुसूची की थिक । संविधान-सभामे निर्णय भेल जे सरकारक राजकाजक भाषा हिन्दी हो आ तकर स्वरूपक निर्धारण भारतक प्रमुख भाषा सभक प्रतिनिधि लोकनि करथि । कोन-कोन भाषा प्रमुख तकर तालिका थिक आठम अनुसूची । पछाति संघ लोकसेवा आयोग निर्णय कएलक जे प्रतियोगिता परीक्षामे केवल आठम अनुसूचीक भाषा रहत । फलतः कोनहु भाषाक हेतु एहि अनुसूचीमे प्रवेश जीवन-मरणक प्रश्न भए गेल ।

विचार-गोष्ठी
एहि स्थितिमे चेतना समिति 1989 ई॰ मे निर्णय कएलक जे अकादेमी धरि पहुँचल उपर्युक्त छबो भाषाक प्रतिनिधि लोकनि एकत्र भए एहि प्रसंग विचार-विमर्श करथि । हम एकर संयोजक बनाओल गेलहुँ । कोनो तेहन निष्कर्ष नहि बहराएल । समस्याक विभिन्न पार्श्व पर आलेख पढ़ल गेल । आलेख सहित समस्त कार्यविवरण हम भाषा आ समाज नामसँ 1989 ई॰ मे सम्पादित कएल जे 14 वर्षक बाद 2003 मे प्रकाशित भेल । ई विलम्ब सूचित करैत अछि जे एहि बीच चेतना समिति अपन मूल उद्देश्य सँ कतेक दूर होइत गेल । एहि बीच नेपाली, मणिपुरी आ कोंकणी अपन जनबल आ पराक्रमसँ 1993 मे आठम अनुसूचीमे स्थान पाबि गेल । चेतना समिति ईंटेर उपर ईंट जोड़ैत नाच-गान आ भोज-भातक संग सलौनी पाबनि करैत रहल ।
एक दिन सब को दाता राम जपैत अचानक एक नेता मैथिलीकें कलबल उठाए भारतक प्रमुख भाषा सभक पांक्तिमे बैसाए देलनि । हमरा जनैत एहि नेताजीक योगदान ओहने छल जेहन गोवर्धन पर्वत उठएबामे भगवान श्रीकृष्णक । उठओलक सभ गोपगण मिलिकें, गिरिधर गोपाल भेलाह एकसरे द्वारकाधीश ।
आब एहि गोपगणक भूमिका देखल जाए । चेतना-समितिसँ चलल विद्यापति-पर्व गामसँ महानगर धरि पसरैत गोष्ठीसँ महा-सम्मेलन आ महान-उत्सव होइत गेल । से देखि-देखि घर आ बाहरक सभ वर्गक असंख्य लोक मैथिलीक आ मैथिल समाजक जागरूकतासँ प्रभावित होइत गेल । सांसदो लोकनिकें एकर भान होइत गेलनि । हस्ताक्षर अभियान द्वारा बोराक बोरा माङपत्र संसद पहुँचैत रहल । एही सभक सम्मिलित सुपरिणाम थिक आठम अनुसूचीमे मैथिलीक प्रवेश । एतए यात्री जीक एक आखर मन पड़ैत अछि – किदन कहाँदन भेल, विआह भगेल ।

कलकत्ता विश्वविद्यालय मे
आब शिक्षा दिस चलू । एहिमे मैथिलीक प्रवेश सभसँ पहिने 1915 ई॰ मे कलकत्ता विश्वविद्यालयमे भेल । एतए एक कहबी मन पड़ैछ-जकरा माए नै झुलाबै तकरा मौसी झुलाबै । कहल जाइछ जे धन्य आशुतोष बाबू जे मैथिली 1917 ई॰ मे एकहि संग मैट्रिकसँ एम॰ए॰ धरि पहुँचि गेल । विवाद चलैत रहल जे मैथिलीकें आशुतोष बाबू लगके पहुँचाओल ।
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संयोगवश कलकत्ता विश्वविद्यालयक पोस्ट ग्रेजुएट कौन्सिलक भूतपूर्व सदस्य पंडित श्री ब्रजमोहन ठाकुर, एम॰ए॰बी॰एल॰ केर हाथक लिखल किछु पन्ना उपलब्ध भेल । चेतना-समिति तकरा हमरासँ सम्पादित कराए विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेशनामक एक पुस्तिकामे प्रकाशित कएलक । एहिसँ स्पष्ट भए गेल जे प्रवेश आशुतोष बाबूक कृपासँ नहि, मैथिल श्रीमन्त आ विद्यावन्त महानुभाव लोकनिक मातृभाषानुरागसँ भेल । कलकत्ता विश्वविद्यालय मैथलीक मदमे एको कौड़ी खर्च नहि कएलक । आनक देल टाका सधितहि मैथिलीक पढ़ाइ बन्द होअए लागल तँ ज्योतिर्विद बबुआजी मिश्र 1942 धरि निःशुल्क मैथिली पढ़बैत रहलाह ।

हिन्दू विश्वविद्यालय मे
पछाति 1933 ई॰ मे कांजीनाथ झा किरणक सत्प्रयास आ महामना मदनमोहन मालवीयजीक सद्विवेक सँ बनारस मैथिली हिन्दू विश्वविद्यालयमे सेहो प्रविष्ट भेल । परन्तु मन पड़ैछ बर बुड़िबक तँ जैतुक के लेत । सभ सुविधा उपलब्ध रहितहुँ छात्रक कतहु पता नहि । अपन मूड़ अपनहि हम चाँछल दोख देब गए काही ।

पटना विश्वविद्यालय मे
एतए मैथिलीक प्रवेश कोना भेल से चेतना समितिसँ प्रकशित विश्वविद्यालय मे मैथिलीक प्रवेश केर द्वितीय अध्यायमे देखल जाए । ई अध्याय हम डॉ. सुधाकर झासँ डिक्टेशन लए-लएकें लिखल । एतए मैथिलीक प्रवेश नीचाँसँ उपर दिस कच्छप गतिएँ प्रबल विरोधक अछैत होइत गेल । एकर श्रेय मिथिलाक माटिकें छैक जाहिमे केवल विद्याक खेती होइत रहल आ मुहगर मैथिल विद्वान सभ शिक्षाक क्षेत्रमे अबैत गेलाह । पूर्णाहूति देलनि दरभंगा-नरेश ओहिना जेना कलकत्ता विश्वविद्यालयमे पुरैनिया-नरेश ।

प्राथमिक शिक्षा मे
          मन पड़ैत छथि मित्रवर डॉ. जयकान्त मिश्र जे प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मैथिली हो ताहि हेतु चेतना समितिकें संग कए सुप्रीम कोर्ट धरि लड़ैत अन्तिम निर्णय मैथिलीक पक्षमे प्राप्त कएल । बिहार सरकार तकरो अवहेलना करैत रहल । मिथिलाक केओ सपूत अवमाननाक केस नहि कएल । हँ, सुप्रीम कोर्टक निर्णय पर उत्सव अवश्य मनाओल गेल ।
एक समय मैथिली प्राथमिक आ माध्यमिक दुनू शिक्षाक माध्यम घोषित भेल । सभ पाठ्यपुस्तक प्रकाशित भेल । केओ किननिहार नहि । एहि दुखद स्थिति पर पाठ्यपुस्तक निगमक एक अधिकारी हमरा समक्ष मित्रवर जयकान्त मिश्र पर अशोभन कटाक्ष कएल । प्रतिक्रियामे ओ तुरन्त दू मोन पोथी कीनि हमरा संग कए मिथिला चललाह । सकुरीमे टमटम पर लादि दुनू जन किरणजीक सोतिपुरा दिस चललहुँ । बाटमे एकटा कुकुरक बच्चा टमटम तर पिचाए गेल कि पाँच लठिधर बाट छेकि पाँच सय हरजाना ठोकि देलक । हम मैथिलीक नाम पर माफी मङलहुँ तँ मुहतोड़ उत्तर भेटल, हम मैथिली-तैथिली नहि जानी । जेना-तेना आगु बढ़लहुँ । भरि दिन झुझुरकोना खेलाए जहिना जतबे लदने गेलहुँ तहिना ततबे लदने साँझ खन सकुरी घुरि अएलहुँ । मैट्रिक परीक्षामे मैथिली प्रश्नपत्रो छपल । परन्तु छात्र एको
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- नहि । ककरा लेल एतेक बेहाल भेलहुँ, हम पुछलिअनि तँ जयकान्त बाबू कनेक गम्भीर भए कहलनि, धैर्य धरू । हुनक ई धैर्य अंतिम श्वास धरि अटल रहल । जे हाल भेल पाठ्यपुस्तक निगमक सैह हाल भेल हमरो चारि पोथीक । एक समय देशमे त्रिभाषा फरमूला चलल । बिहार सरकारक निर्णय भेल जे प्राथमिक शिक्षा मे निजी प्रकाशकक मैथिली पुस्तक लए तत्काल काज चलाओल जाए । तुरन्त पटनाक एक प्रतिष्ठित प्रकाशक भारती भवन हमरासँ तीन पुस्तक लिखओलक- अपन लोक, अपन पाठशाला आ अपन समाज । मैथिली जगत एही तीनू पुस्तकमे पहिल बेर आ प्रायः अन्तिम बेर मोटगर आर्ट पेपर पर बहुरंगी चित्रसँ भरल ऑफसेट प्रिंट देखलक । हम टाका गनबाक सपना देखए लगलहुँ । किछुए दिनमे सरकार स्पष्ट कए देलक जे मैथिली संविधानक आठम अनुसूचीमे नहि अछि तें तीनमे एकर गणना नहि । प्रकाशक, लेखक आ मैथिली-प्रेमी तीनूक सपना समाप्त । ओहि तीनू पोथीकें तँ कबाड़खानामे शरण भेटलैक, मैथिलीक भेटलो शरण छिनाए गेलैक ।

मिथिला राज्य
मैथिली महासभासँ सँ जागल चेतना तीन लक्ष्य लए चलल- पहिल मिथिला राज्य, दोसर मैथिलीक मान्यता आ तेसर मैथिलीक विकास । मिथिला राज्य माङए चललाह मधेपुरक बाबू जानकी नन्दन सिंह तँ पहिल देशद्रोही घोषित भेलाह । दोसर अपराधी भेलाह डॉ. लक्ष्मण झा जे जनताक अदालतमे दंडित आ लज्जित भए संत भए गेलाह । तैओ किछु उन्मादी मैथिल लोकनि राजनीतिक रणमे उतरैत आ चित्ते खसैत रहलाह । जे कहिओ देह मे माटि नहि लगओलनि से जँ गामक अखाढ़ा पर उतरथि तँ इएह हाल हो । हम कातहिसँ देखि-देखि हँसैत रहलहुँ । मैथिलीकें जूति थोड़, मनोरथ बड़ गोट । राज्यक माङ तँ उठल, मुदा नागालैण्ड आ गोरखालैण्ड जकाँ कोनहु विषयमे स्वायत्तताक माङ प्रायः कहिओ नहि उठल ।

उपसंहार
दीर्घ जीवनमे बहुत किछु देखल । सभ कातहिसँ । मन पड़ैत अछि अपने लिखल एक पाँती-
बाट-घाट मे नमस्कार कए कृपया हमरा लजाउ नहि
हम चुप्पे ससरए चाहै छी कृपया हमरा बजाउ नहि
हमरा ई संकोची स्वभाव एकान्तसेवी बनाए देलक तैओ कनिष्ठ-वरिष्ठ बहुत विद्वान आ साहित्यकार के लगसँ चीन्हल । बहुतोक संस्मरण यत्र-तत्र लिखल । केवल दू जन बेर-बेर मन पड़ैत रहलाह तैओ संस्मरण नहि कए सकलहुँ । अस्तु, आइ जतबे-ततबे स्मरण कए ओहि त्रुटिक पूर्ति कए रहल छी  । पहिल थिकाह रामकृष्ण झा किसुनआ दोसर थिकाह राजकमल चैधरी ।

रामकृष्ण झा किसुन
मिथिला मिहिर 1965क आसपास चरम उत्कर्ष पर रहए । हम अधिक काल शेखरजीक आवास पर जाइ । ओतहि एक दिन संयोगवश रामकृष्ण झा किसुनसँ पहिल भेंट भेल ।
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दुनूक जन्म एक्के वर्ष 1923 ई॰ । हमर जन्मतिथि 10 अक्टूबर, हुनक 1 जनवरी । दुनूक पहिल पाठ लघुकौमुदी आ अमरकोष । बगए-बानि आ पहिरन (खादीक पएजामा-कुरता) सेहो समान । देहक रंगमे ओ राम, हम गोविन्द । गप एहने हल्लुक बात सभसँ आरम्भ भए मैथिलीक आ मिहिरक दशा-दिशा पर चलैत रहल । हम कोसीक पछबारि पार, ओ पुबारि पार । ओ कोसी टपि कहिओ-काल पटना आबथि तँ साहित्यकार सभक बीच तेना घेराए जाथि जे हमरा दर्शनो दुर्लभ । भेंट नहि होएबाक एक आओर कारण छल । हम 1965 सँ 1977 धरि सरकारी काजमे तेना पेराइत रहलहुँ जे आन किछु नहि सूझए । जखन एहि सँ मुक्त भए मैथिली अकादमी अएलहुँ ता ओ दर्शनीयसँ स्मरणीय भए गेल छलाह । एतए प्रकाशनक प्रभारी भेलहुँ आ पहिल काज भेटल किसुन रचनावलीक प्रकाशन । एक पंथ दू काज, कर्तव्यक पालन आ किसुन साहित्यक पारायण । संयोजक भेलाह मोहन भारद्वाज आ सामग्री बटोरलनि किसुन जीक आत्मा वै जायते पुत्रः आयुष्मान केदार कानन । सम्पादन कएल प्रो॰ मायानन्द मिश्र । हमर योगदान भेल केवल प्रूफ देखब जाहिमे जस कम अजस बेसी भेटैत रहल । एही क्रममे पहिल बेर जानल जे मैथिली कविताक जराजीर्ण धाराकें नव बाट धरओनिहार भगीरथ इएह थिकाह । सीताराम झा, यात्रीजी, किसुनजी आ राजकमलजी ई तीनू मानू मैथिली तारसप्तकक तीन प्रमुख स्वर भेलाह ।

राजकमल चैधरी
एतएसँ चलू राजभाषा-विभाग । एहि सरकारी दफ्तरक उसठ काज आ उदास वातावरणमे किछु दिन रंग अनलनि राजकमल चैधरी । ओ बौआइत-ढहनाइत पटना पहुँचलाह आ सचिवालयमे असिस्टेंट भेलाह । अधिक समय राजभाषा विभागमे हमरे लग बिताबथि । हुनक इसकुलिआ भजार आ हमर सहकर्मी सुशील झा सेहो पहुँचि जाथि । काव्य-शास्त्रा-विनोद तीनू एक संग । एक कवि, दोसर पंडित, तेसर विनोदी । एही क्रममे हम उदीयमान राजकमलकें चीन्हल आ ओ नूतन पंडित गोविन्द झाकें । एक दिन हमरा मुँहसँ बहराएल, अहाँक गुरु रामकृष्ण झा किसुन’..., कि ओ मुखर भए उठलाह, गलत बूझल अहाँ । हुनका तँ चिन्हलिअनि, राजकमलकें नहि चिन्हलिअनि । एतए ई रमन-चमन किछुए दिन चलल । ओ कलकत्ताकें गहलनि, हम पटनामे खुटेसल रहलहुँ । कलकत्ता हुनका खूब धारलक । ओ क्रमशः आवारासँ मसीहा भए गेलाह । किछु दिनक बाद हुनक पत्र आएल- कवितासंग्रह स्वरगन्धा छपि रहल अछि, अहाँ भूमिका लिखि दिअ । राजभाषा विभागमे गप करैत हुनका हमरामे किछु आधुनिकताक बोध लक्षित भेलनि, तें ई अनुरोध । हमरा साहस नहि भेल । लिखि देलिअनि, हमरा आधुनिक कविता बुझबामे नहि अबैत अछि, यात्री जीसँ लिखाउ । चट उत्तर आएल, तखन हम अपनहि लिखब । हुनकासँ हमरा एतबे सम्पर्क । इएह बेर-बेर मन पड़ैत रहैत अछि ।

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साभार संदर्भ

भारती मंडन, अंक-13 (नवक्रमांक-1), जनवरी-जून, 2017
संपादक : केदार कानन
प्रकाशक : कामाख्या झिंगुर साहित्य कला परिषद, मलाढ आ किसुन संकल्प लोक, सुपौल

[लगभग एक दशक बाद ‘भारती-मंडन’क प्रकाशन फेरसँ शुरू भेल छैक। नवांक-1 (अंक-13) फेरसँ अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक संगे पाठक लोकनिक बीच छैक। एहि अंक मे उपयोगी आ बेस महत्वक कतेको सामग्री प्रकाशित भेल छैक। मैथिली मंडनक ई प्रयास रहत जे एहेन किछु सामग्री एतय उपलब्ध कराओल जाए। गोविन्द बाबूक प्रस्तुत रचना एहि प्रयासक एक कड़ी थिक।]