भाषाक आधार पर प्रांतक गठन आधुनिक भारतक निर्माणक अभिन्न घटक रहल अछि। स्वतंत्रता सँ पूर्व कांग्रेस भाषावार
प्रांत निर्माण पर सैद्धांतिक रूप सँ सहमत छल। स्वतंत्रताक बाद नेहरू जीक अगुआइ वाला
कांग्रेस सरकार ओतने दुविधाग्रस्त रहल। ई सरकार नहि जानि कोन काल्पनिक आशंका सँ ग्रस्त
भ’ के भाषावार प्रांतक गठन मे टालमटोलक नीति अपनेबा मे बेसी सुविधा देखैत छल। जनाकांक्षाकेँ
ताक पर राखबाक एहि नीतिक गंभीर परिणाम रसे-रसे सोझां आबय लगलै। श्री पोट्टी
श्रीरामुलुक आंध्रक निर्माण लेल मृत्यु धरि अन्नक त्याग होए वा किछु अन्य प्रांतक
आकांक्षी जनता सबहक तीव्र आंदोलन, नेहरू जी केँ बैक-फुट पर आबय पड़लनि। भाषा
आधारित प्रांतक आकांक्षी ‘मिथिला’ सेहो छल। जनताक चेतना आ इच्छा शक्तिक अभावक
संगहि जनप्रतिनिधि लोकनिक घोर उदासीनता आ घोर-स्वार्थीवृत्ति कारणें, ई ओहि समय पृथक
प्रांतक समस्त पात्रता राखितो एकटा अलग प्रांतक रूप मे प्रतिष्ठित नहि भ’ सकल।
मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा मानल जाए वाला डॉ. लक्ष्मण झा दिसंबर 1952 ई. (पहिल अंक 15 दिसंबर 1952) सँ ‘मिथिला’ नामक एक साप्ताहिक पत्रक प्रकाशन शुरू केलनि। अपेक्षित जन-सहयोगक घोर अभाव आ अन्यान्य चुनौतीक सामना करैत अपन ईच्छाशक्ति, श्रम आ निजी साधनक बदौलते ओ अगस्त 1953 ई. (अंतिम अंक 10 अगस्त 1953) धरि एकर प्रकाशन कए संभव बना सकला। एहि पत्र मे भाषाधारित प्रांत, भाषा-अस्मिता, मिथिला आ देशक विभिन्न समस्या पर ओ टिप्पणी करैत रहैत छलाह। ‘मिथिला’ मे प्रकाशित हुनकर टिप्पणी आदिक संकलन श्री सुरेश्वर झाक संपादन मे 2002 मे ‘विचार-चिंतामणि’क नाम सँ प्रकाशित भेल । भाषाधारित प्रांत पर हुनक टिप्पणी मे सँ तीन टा टिप्पणी उपरोक्त पुस्तक सँ साभार एतय प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। लक्ष्मण झाक विवेचना क्षमता अत्यंत प्रभावी छन्हि आ हुनकर वैचारिकी स्वतंत्र ‘मिथिला’ राज्यक आंकांक्षी-जन केँ एखनहु प्रेरित करैत अछि।
मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा मानल जाए वाला डॉ. लक्ष्मण झा दिसंबर 1952 ई. (पहिल अंक 15 दिसंबर 1952) सँ ‘मिथिला’ नामक एक साप्ताहिक पत्रक प्रकाशन शुरू केलनि। अपेक्षित जन-सहयोगक घोर अभाव आ अन्यान्य चुनौतीक सामना करैत अपन ईच्छाशक्ति, श्रम आ निजी साधनक बदौलते ओ अगस्त 1953 ई. (अंतिम अंक 10 अगस्त 1953) धरि एकर प्रकाशन कए संभव बना सकला। एहि पत्र मे भाषाधारित प्रांत, भाषा-अस्मिता, मिथिला आ देशक विभिन्न समस्या पर ओ टिप्पणी करैत रहैत छलाह। ‘मिथिला’ मे प्रकाशित हुनकर टिप्पणी आदिक संकलन श्री सुरेश्वर झाक संपादन मे 2002 मे ‘विचार-चिंतामणि’क नाम सँ प्रकाशित भेल । भाषाधारित प्रांत पर हुनक टिप्पणी मे सँ तीन टा टिप्पणी उपरोक्त पुस्तक सँ साभार एतय प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। लक्ष्मण झाक विवेचना क्षमता अत्यंत प्रभावी छन्हि आ हुनकर वैचारिकी स्वतंत्र ‘मिथिला’ राज्यक आंकांक्षी-जन केँ एखनहु प्रेरित करैत अछि।
भाषाधार
प्रान्त
तेलगु-भाषाक आधार पर
आन्ध्र प्रान्तक निर्माण करब नेहरू सरकार गछलक तँ परंच तते घिनायकय जे कमे लोक केँ
धन्यवाद देबाक उत्साह भेलै। विरोध सेहो भइए गेल कारण आन्ध्र-निर्माणक ई नवीन योजना
जे जवाहरलाल जी देशक समक्ष रखलनि अछि से अपूर्णे नहिं दुष्टतापूर्णो छनि।भाषाक आधार पर भारत मे प्रान्त सभक संगठन हो एकर आन्दोलन पचासहु वर्षसँ अधिक दिन सँ चलि रहल अछि। 1908 मे कांग्रेस एहि विचार केँ सिद्धांतरूपेँ ग्रहण कयलक। एही आधार पर 1911 मे बंगालक अबंगला भाषी क्षेत्रकेँ अलग कय बिहार बनाओल गेल ओ बंगलाभाषी पूर्व बंगाल तथा पश्चिम बंगाल केँ मिलाय एक प्रांत बनल।
1916 मे तलगुभाषी लोकनि आन्ध्र प्रान्तक निर्माणक मांग पेश कयलनि ओ एक साल बाद कांग्रेस एकरा स्वीकार कयलक। 1920 मे नागपुर कांग्रेस मे निश्चित भेल जे समस्त देशक प्रांतीय संगठन भाषहिक अनुसार हो, ओ ताही हिसाबें आन्ध्र, तमिलनाड, केरल, कर्णाट, महाराष्ट्र, उत्कल, गुजरात आदिक प्रान्तीय कांग्रेस कमिटी बनल। विचार भेलै जे अंगरेज सरकार एहि सिद्धांत केँ मानय वा नहिं देश एवं ओकर प्रतिनिधि संस्था कांग्रेस ओहि पर चलब शुरू कय दियय। सैह भेल। एहिसँ भिन्न-भिन्न प्रान्तक कांग्रेस कार्य-कर्त्ता लोकनि स्वभाषा-भाषी जनताकेँ संगठित करबामे वेश सुविधा पौलनि।
एहि कार्य सँ कांग्रेसक सुविधे टा छलै, असुविधा छलै अंगरेज शासक केँ। से ओ तँ भेल शत्रुए। ओकर असुविधा तँ अभिष्टे छल। जा अंगरेज रहल ता धरि भाषाधार प्रान्तक बेश गीत कांग्रेसक अधबवाधव मे गाओल गेल। बेचारा सभ कै बेरि मानयक हेतु प्रयासो कयलक यथा आसाम, उड़ीसा ओ सिन्धक निर्माण कय, परंच भाषा सभक सीमा निर्धारण ओ शासन सम्बंधी झंझट देखि पराइत रहल।
कांग्रेसी बाबू लोकनि जे राजा भेला तँ हिनकहु ऊपर अंगरेजक भूत सवार भेल। इहो झंझट सँ डेराय लगला ओ एहि सवाल केँ तारय-बटाड़य लगला। देशकेँ यदि आन तरहेँ ई लोकनि सुभ्यस्त कयने रहितथि तँ संभव भाषाधार प्रान्तक समस्या एतेक विकट रूपमे तत्काल प्रकट नहि होइत। सुख-सुविधामे लोक एकटा किछु काल बिसरि जाइत परन्तु से तँ भेल नहि। सुविधाक अर्थकोन, देश बनि गेल नरक। कोनो यातना, कोनो पीड़ा बाकी नहि रहल। सर्वत्र रोग-शोक-परितापें हाहाकार मचल अछि। जाही खन जे एकर त्रुटि बताय एकरा पर आक्रमण करबक संकेत करै छै ताही खन तकरा संग लोक आँखि मूनि दौड़ि परै अछि।
एहि अशांति सँ जान बचयबाक रास्ता कांग्रेसी लोकनि एखन बनौने छथि जवाहरलाल जीकेँ, ई लोकनि हुनका रामलीलाक मुरूत बनाय अंगने-अंगने शांतिक बिलौकी मंगने फिरै छथि। परंतु एहि मुरूतक रूप कतेक दिन धरि उद्विग्न समाज केँ शान्त राखत? नेहरू बाबूक कुलशील ओ बाग्छटासँ भूखल, पियासल, रुग्न, बेहाल ई अपार जन समूह कते दिन धरि मुग्ध रहत?
नवीन आन्ध्रमे हैदराबादक तेलगु-भाषी
इलाका नहि मिलाओल जाएत, कारण ताहिसँ हैदराबाद राज्यक अंगभंग हेतैक! तखन ई भाषाधार
प्रान्त नहिं भेल, ई भेल विद्रोही आन्ध्र लोकनिकेँ शान्त करबाक किछु उपाय। नवीन
कांग्रेसी राजालोकनिकेँ राजकीय भोग-विलासमे कोनो उपद्रवसँ बाधा नहि होनु ई तकर
विधान मात्र। एहि दुष्ट बुद्धि ओ निकृष्ट आचरणक कोन दण्ड हो? विधान तँ छै, दुइ
रूपक-शास्त्रक ओ व्यवहारक। भोगविलोनमत्त राजा शास्त्रीय दण्ड नहि लै अछि। ओकरा
हेतु होइछै व्यवहारक दण्ड, जे भेल छै मिश्रमे, चीनमे, रूसमे, फ्रांसमे, ईंगलैंडमे
आदि। से केहन लागत? परन्तु दोसर उपाय?
(‘मिथिला, 29 दिसम्बर 1952)
भाषाधार
प्रान्त
भारतक
प्रायः सबपार्टी कहै अछि भाषा, भूमि, अर्थनीति ओ परम्पराक आधार पर प्रान्त सभक निर्माण हो। परंच क्रियामे सब आगूपाछू
करै अछि। कांग्रेस पार्टी राजा अछि। ओ नवीन व्यवस्था करबासँ डरय ई स्वाभाविक।
राजपद पर पहुँचल व्यक्तिक सर्वोपरि इच्छा रहै छै ओकर भोग करयक। ओ कोनो झंझट नहिं
चाहै अछि। नवीन कार्य मात्र ओकरा हेतु झंझट, कारण
पक्ष-विपक्षमे किछु ने किछु आन्दोलन हयब अनिवार्य ओ से भेनहि आनन्द मे बाधा।(‘मिथिला’, 20 अप्रिल 1953)
भाषाधार
प्रान्त
प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू हालहि कर्णाटक प्रान्तक बेलगाँव कांग्रेस सरकारक भाषावार
प्रान्तनीतिक व्याख्या कयल। हुनक कथन अछि आन्ध्रप्रान्त निर्माणक बाद एकवर्ष धरि
ओकर कार्य संचालन देखि सरकार भाषाधार प्रान्त कमीशन नियुक्त करत, ई कमीशन देशभरिक प्रान्त पुनर्गठनक समस्या पर विचार करत। भाषाधार प्रान्त
सम्बन्धी निर्णय ककरो पर लादल नहिं जायत, मतैक्य भेलापर
कार्य सम्पादन हयत। लोकक डरयला-धमकयलासँ सरकार भाषाधार प्रान्तक स्वीकृति नहिं देत
आन्ध्रप्रान्तक घोषणा श्री रामुलुक देहान्तक कारण नहिं भेल, वल्कि
हुनक अनशनक कारण आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी निर्णय मे विलम्ब भऽ गेल।(‘मिथिला’, 18 मई 1953)
संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डल, दरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- 27-31
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