Tuesday, June 6, 2017

दधीचि तर्पण : राम लोचन ठाकुर

मैथिली आंदोलनक अग्रिम पांतिमे प्रतिबद्ध योद्धा बनि डटल रहनिहार बाबू भोलालाल दास मैथिलीक सम्मान आ उत्थानक लेल अपन सर्वस्व झौंकि देने छलाह । ओ सांस्कृतिक चेतनाक स्तर पर मैथिल केँ व्यवहारिक रूपसँ पहिलबेर एकबद्ध केनिहार व्यक्तिमे सँ एक छलाह । प्राथमिक शिक्षासँ ल’ के विभिन्न विश्वविद्यालय धरि मैथिलीक स्वीकृतिक लेल कएल गेल हुनक संघर्ष अविस्मरणीय अछि । हम सब मैथिल हुनक ऋणि छी आ रहब । हुनका आ हुनक विचार आ काजकेँ (जे बहुत बेसी महत्वक छै) जाननय हमरा सब लेल आवश्यक अछि । एही भावनाक संग हुनका पर केन्द्रित किछु आलेखआ उपलब्ध भेला पर हुनकर लिखल किछु सामग्रियो प्रस्तुत करबाक चेष्टा रहत । एहि क्रममे ई दोसर आलेखक प्रस्तुति थिक ।   
एहि श्रृंखला मे बासुकीनाथ झाक पहिल आलेख परिचयात्मक छल । रामलोचन ठाकुरक लिखल ई दोसर आलेख विचार प्रधान छैक । एहिमे भोलालाल दासकेँ स्मरण करैत मैथिली मिथिलाक चिंतासँ ओतप्रोत कतेको आरो प्रसंग आयल छैक । लेखकभोलालाल दासक व्यक्तित्व आ कृतित्त्व सँ जतबा प्रभावित छथि ततबा मैथिलीसँ जुड़ल इतिहासक कतेको प्रसंग आ मैथिलक सामान्य प्रवृत्तिसँ खिन्नो छथि।
एहि लेखमे भोलालाल दासतँ भेटता लेकिन आनो किछु नवीन आ बहसक उपयुक्त जानकारी वा दृष्टिकोण भेटि सकैत अछि । जेना एहिमे लेखकक एकटा धारणा व्यक्त भेल छन्हि - जे रवीन्द्रनाथक लीखल ‘जन गण मन’ विद्यापतिक लिखल ‘जय जय भैरवि’ गीतक अनुसरण करैत लिखल गेल छैक ।  
ई स्पष्ट कए देनए आवश्यक अछि जे एहि आलेखक प्रस्तुतिसँ ई अर्थ नहि लगाओल जाए जे ‘मैथिली मंडन’ एहि आलेखमे व्यक्त प्रत्येक विचार वा धारणासँ सहमत अछि। एहि आलेखमे किछु बात निश्चित रूपें आलोच्य छैक। 
प्रस्तुत दोसरो आलेख हैदराबाद सँ प्रकाशित देसिल बयना स्मारिका (मई 2017) सँ साभार लेल गेल अछि ।*  

दधीचि तर्पण
राम लोचन ठाकुर
हमरालोकनि तर्पण करैत छी । प्रत्येक वर्ष करैत छी । मुदा जाहि विभूति लोकनिक प्रसादात हमरालोकनिक अस्मिता-अस्तित्व, तिनका बड़ सहजताक संग बिसरि जाइत छी । वस्तुतः हमरालोकनिक जातिए तेहने अछि । हमरालोकनि अपन मूलकेँ बिसरि अन्तर्राष्ट्रीय होएबाक कल्पना करैत छी, सपना देखैत छी । विश्वक प्रथम गद्यग्रंथ वर्णरत्नाकरतकलनि  महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्रीक शिष्य। प्रकाशित कएलक कोलकाताक एशियाटिक सोसाइटी । कविपति विद्यापति रजनी-सजनी लिखैत छथि, तेँ हुनको मोजर नहि देल । धन्यवादक पात्र छथि नागेन्द्र नाथ गुप्त महाशय जे मात्र गीतक संग्रहेटा नहि केलनि, तकर व्याख्याक संग बसुमतीसँ प्रकाशितो करबओलनि । विद्यापति सिनेमा बनल बंगलामे, 1937 ई. मे । ऋषि अरविन्द सर्वप्रथम ओकर अंग्रेजी अनुवाद केलनि । रवीन्द्रनाथ पदावलीक नकल भानुसिंहेर पदावलीलिखलनि । हिनक जन-गन-मन....गीत विद्यापतिक जय-जय भैरवि....क नकल थिक, सेहो बोध हमरा लोकनिकेँ नहि भेल । बंगभाषा ओ साहित्यक लेखक दीनेश चन्द्र सेन कहैत छथि जे बंगलाक सकल श्रेष्ठ कविक गुरु छथि विद्यापति । बंगला लिपिक उत्पत्तियो ओ मिथिलाक्षरसँ मानैत छथि । किन्तु हमरालोकनि एहन विलक्षण मिथिलाक्षरकेँ बिसरि देवाक्षरक अनुगामी भेल छी । कतेक कचोटक बात छैक जे 24 याजेन नाम आ 16 योजन चाकर एक भूखंड, जकरा इतिहास-पुराणमे विख्याता कहल गेल छैक, जाइठाम चारिटा दर्शनक रचना भेल छैक - तकरो बिसरा देल । विश्वक प्रथम गणतंत्रक जन्म जाइठाम भेलैक, जाइठाम शुक्ल यजुर्वेदक रचना भेल, सामवेदक रचना भेल, गायत्री मंत्रक रचना भेल आ कामशास्त्रक रचना भेल - तकरो बिसरऽमे हमरा लोकनिकेँ कनिञो कचोट नहि भेल । कोशीक उत्पात सहितो तकर व्यथा-कथा लिखबाक चेतना नहि भेल - लिखलनि एक बंगाली विभूति भूषण मुखोपाध्याय । अयाची सन्धाने सेहो हिनके कृतित्व छनि । मणिपद्म चर्च कएने छथि विभूति बाबू आ सतीनाथ भादुरीक, मुदा हुनकोसँ पूर्व पुणेमे अपन घर बना तकर नाम मिथिलारखलनि शरदिन्दु बन्दोपाध्याय । ई मुंगेरमे रहैत छलाह आ अन्तमे स्वामी विवेकानन्द जाहि रामायणकेँ सीताक चरित्रक आदर्श उपाख्यान कहने छथि, तिनको जन्म तँ मिथिलेमे भेल छल । आदिकवि वाल्मीकियोकेँ सीतासँ गप करबाक लेल महापंडित हनुमानसँ मानुसी भाषा बजओने छथि - अवश्यमेव वक्तव्यं मानुसी वाक्यमर्थवत्।आ एही परम्पराक अग्रिम कड़ी छलाह भोला बाबू, भोला लाल दास। ई अपन अस्थि-मज्जाये नहि, सम्पत्तियो बेचि मैथिलीक कल्याणमे लगा देलनि - हमरा लोकनि आइ तिनको मोन रखबाक लेल तैआर नहि । हम एकरा अपन सौभाग्ये बुझैत छी जे एक बेर हुनक दर्शन भेल छल - बाबू साहेब चौधरीक प्रेसमे ।
1964 ई. मे मैट्रिक पास कए कोलकाता आएल रही । बयस थोड़ छल, तेँ प्राइवेटे नोकरीक भरोस । सरकारी नोकरी तँ भेटल 1969 ई. मे । किन्तु मिथिला-मैथिली पहिने भेटि गेल । तहिया कोलकातामे बहुतो मैथिली-सेवी संस्था छलैक । बड़ काज भेल छैक एहिठामसँ । जँ ब्रजमोहन ठाकुरक प्रयास आ आशुतोष बाबूक सदाशयता नहि रहितनि, कीर्त्यानन्द सिंहक आर्थिक सहयोग नहि रहितनि, तँ जानि ने मैथिली कतय रहितथि! कलकत्ता विश्वविद्यालयमे 1919 ई. सँ मैथिली पढ़ाओल जाइछ, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय 1933 ई. मे किरण जीक प्रयासेँ मैथिलीकेँ मान्यता देलक । विचारणीय थिक जे जँ कलकत्ता विश्वविद्यालय एकरा स्वतंत्र भाषा नहि मानने रहैत तँ साहित्य अकादेमी किंवा संविधानमे स्थान पओनाइ कि सहज छल? स्वभावतः यात्री जी कोलकाताकेँ मिथिलाक लघु संस्करण कहने छथि ।
1969 ई. मे नोकरी भेटल आ कॉलेजमे नाम लिखाओल । कोनो सभामे सुनने रहियैक जे छात्रक अभावमे मैथिली नहि पढ़ाओल जाइत छैक, से मैथिली राखल । एकमात्र विद्यार्थी । आ अनुभव आरम्भ भेल अपन विभूति लोकनिक कृतित्व अनुसन्धान । एही क्रममे भेटला मैथिली दधीचि बाबू भोला लाल दास । किन्तु, ई कोन भोला थिकाह! नान्हिएटामे सिखाओल गेल छल जे ब्रह्मा सृष्टिकर्ता छथि, विष्णु पालनकर्ता आ भोला संहारकर्ता । मुदा हिनकामे तँ तीनू देवक रूप साक्षात!
मोन पड़ैछ किरण जीक श्रद्धांजलि । 1937 ई. मे सरिसवमे मैथिल महासभाक अधिवेशन   रहैक । भोला बाबू मैथिली पोथी प्रकाशनार्थ आर्थिक सहायताक अपील केने छलथिन । बस, आरम्भ भेल हुनक फज्झति । फज्झतिकर्ता लोकनिक नेता छलाह राजपंडित बलदेव मिश्र । जयगोविन्द मिश्र मैथिली पोथी प्रकाशनार्थ मैथिली साहित्य परिषदकेँ एकटा कपड़ा देलथिन । भोला बाबू तकरा महाराजा कामेश्वर सिंहक कर-कमलमे अर्पित कएलनि । महाराजक उदारता मैथिलीक बेरमे विपरीत रूप धारण कएलक । मात्र अढ़ाइ सए भेटलैक परिषदकेँ । जँ बजारेमे बेचल जाइत तँ एकर चारि बड़ अवश्य अबितैक ।
इएह छलाह भोला बाबू! सत्ते ओ भोला छलाह । निर्विकार भावेँ अविरल-अविराम विषपान करैत रहलाह अपन भू-भाषाक अस्मिता-अस्तित्व रक्षार्थ । प्रतिष्ठित हिन्दीक लेखक, ओ हिन्दीयोमे लिखैत रहलाह आ ताइसँ जे पाइक आमद भेलनि तकरा मैथिलीक पोथी छपेबामे लगओलनि । मोन पड़ैत छथि बंगलाक विख्यात रचनाकार शरतचन्द्र - प्रतिष्ठान जते पुरान, जते पवित्र, जते सनातन किएक ने हो, मनुक्खसँ पैघ नहि होइछ ।भोला बाबू सेहो एही मतक माननिहार छलाह । वस्तुतः मनुक्ख आइ धरि जते चीजक आविष्कार कएलक अछि, भाषाक स्थान ताहिमे सबसँ ऊपर छैक । सत्य कही तँ भाषाए ओ चीज थिक जे मनुक्खकेँ मानवता प्रदान करैछ । प्रार्थनासँ साहित्य-सर्जना धरि भाषाएपर निर्भर अछि । यद्यपि भाषा साध्य नहि, साधन थिक, जकरा माध्यमे मिथिला-मैथिलीक कल्याण कएल जा सकैछ। मुदा अपसोच जे बादक नेतालोकनि एहि बातकेँ सहजतासँ बिसरा देलनि । परिणाम समक्षे अछि । वस्तुतः इतिहासक पन्ना जँ उनटा कए देखल जाए तँ ई बात स्पष्ट भऽ जायत जे प्रत्येक महान पुरुष अपन जीवन कालमे समसामयिक एक वर्ग द्वारा आलोचित-अपमानित होइत रहलए; मुदा संगहि, ठीक एकर समानान्तर एक आओर वर्ग द्वारा पूजित-सम्मानित सेहो । उल्लेखनीय जे 1937 ई. मे भारतीनामक पत्र प्रकाशित करय लगलाह तँ सम्पादन करबाक लेल भुवन जीकेँ अनुरोध कएल । भुवन जी जखन नहिं गछलथिन, तँ अपने ओ काज कएलनि । किन्तु विडम्बना देखू जे पीठेपर भुवन जी विभूतिबहार कएलनि, जकर  पहिले अंकमे लिखलनि, ‘मैथिली साहित्य परिषदकायथक संस्था थिक आ भारतीथिक कैथिन । किन्तु भोला बाबूक व्यक्तित्व आ कृतित्वसँ परिचित लोक सभ हिनका मैथिली दधीचिक सम्मान देलक ।
मोन पड़ैत अछि भोला बाबूक अनमोल अवदानक कथा । जँ भोला बाबू नहि रहितथि तँ की पटना विश्वविद्यालय मैथिलीकेँ मान्यता देने रहैत? पाइ के देलथिन, ताइसँ महत्त्वपूर्ण थिक जे प्रयास के केलनि । भोला बाबू प्रत्येक अभावक पूर्त्ति लेल सतत तत्पर रहैत छलाह । मैथिली पढ़ाइ आरम्भ भऽ गेल मुदा पोथी नहि अछि । भोला बाबू अनति विलम्ब तकर पूर्त्ति कऽ दैत छलाह । ओ कतेक लिखलनि, कोन-कोन भाषामे लिखलनि, तकर आइयो निस्तुकी नहि भऽ सकल अछि । कमलेश झा कहियो कोलकातामे रहैत छलाह, आइ दरभंगा धयने छथि; हिनक दृष्टिमे ई सभ बात रहैत छनि । भोलालाल दास रचनावलीक प्रथम खण्ड ई प्रकाशित कएलनि 2008 ई.मे । लोकार्पण लेल हम कोलकातासँ गेल छलहुँ । विद्वानलोकनिक जे विचार सुनल, अपनो ओतेक नहिं जानल छल । अपन पयस्विनीमे सुमन जी लिखैत छथि–
जनिका नहि परबाहि आहि क्यो कहओ बताहो ।
मैथिलीक हित  लड़बे उचित   पहिरि सन्नाहो ।।
जे विधान-विद्वान, सुकविसम्पादक, वक्ता ।
उभय भारती-मिथिला-हित नित जे अधिवक्ता ।।
          दासमैथिलिक लालछथि जे अमोल भोला भला ।
माथ मातृभाषाक नहि झुकओ, कटओ बरु निज गला ।।’  
भोला बाबू अपने लिखैत छथि - केवल सुमने जी नहिं, प्रकारान्तरे मैथिली स्वीकृति-संघर्षक सफल सेनानी (वस्तुतः एक साधारण सेवक) रूपेँ स्व0 डॉ. उमेश मिश्र, राय बहादुर जयानन्द कुमर, ठाकुर सूर्य नारायण सिंह, पं. गिरीन्द्र मोहन मिश्र, स्व. कुमार गंगानन्द सिंह, प्रो. हरिमोहन झा, श्री अमर जी आदि अनेकानेक व्यक्ति एहि प्रकारक भाव हमरा वा परिषदक विषयमे व्यक्त कऽ चुकल छथि । कतेक गोटाकेँ मना कएल जाइत । एहि विषयक हम चर्चो नहिं करितहुँ, कारण ई आत्मप्रशंसे थिक, मुदा मैथिल समाजमे एहनो एक गुट भेल अछि जे डॉ. सुधाकर झा शास्त्रीकेँ अपना संस्मरण वार्तामे हमरा नामक तँ कथे नहि, ‘मैथिली साहित्य परिषदक ओहि विमल यशक चर्चो मात्र नहि करए देलकनि । परिषद रूपी पूर्ण चन्द्रक एहि राहुगणहिक अनुरोधे ई धर्म-संकट लिखल गेल ।
भोला बाबूक मादे लिखय बैसल छी । किछु प्रश्न छैक जे की लिखी आ की नहिं लिखी । जँ हिनक व्यक्तित्व आ कृतित्वक मादे सांगोपांग लिखी तँ एक महाभारते भऽ जायत । ओनहुना हिनक समस्त कृतित्वक ज्ञानो नहिञे अछि । ई एक नामी ओकिल छलाह, यशस्वी लेखक छलाह, आदरणीय सम्पादक छलाह । कथा-कविता-निबन्ध, पाठ्य-पुस्तक - सभ लिखैत छलाह । नीक आयोजक छलाह । विद्यापति जयन्ती हिनके आरम्भ कएल थिक । मुदा जँ एक वाक्यमे कही तँ ई खाँटी मैथिल छलाह । मैथिलीक प्रति हिनक अनुराग तँ छलहे, मिथिलाक्षरोक प्रति कनिञो थोड़ नहि । एकठाम ई लिखैत छथि - भारतवर्षहुमे एक लिपिक आन्दोलन होइत-होइत अनेकानेक अस्थिरो लिपि स्थिर भऽ गेल, केवल एकटा मैथिलिए लिपि एहन रहि गेल जे मैथिल जातिक उदासीनतासँ अपना अन्तिम घड़ीक प्रतीक्षा कऽ रहल अछि । परिषदक ओ मिथिलाक्षरांकन समितिक ई प्रधान कर्तव्य अछि जे एकरा स्वीकृतिक हेतु बद्धपरिकर भऽ जाए किन्तु एहि आयासमे सफलता तखनहि हएत जखन श्रीमान् मिथिलेशो मैथिलीक नेतृत्व ग्रहण करथि । की मिथिलाक्षरक प्रेमी राजपंडित श्रीयुत बलदेव मिश्रजी आदि महानुभाव एहि दिसि किछु ध्यान देताह?’ 
ध्यान देबाक बात थिक जे बलदेव मिश्र हिनक जे फज्झति केने छलथिन, से हम पहिनहि लिखि चुकल छी, किन्तु तिनको प्रति हिनक कथन कते संयमित छनि! ज्ञात भेल अछि जे मैथिलीक वरिष्ठ कवि-साहित्यकार गंगेश गुंजन मिथिलाक्षरक विरुद्ध आ देवाक्षरक पक्षमे अपन मत प्रकाशित केलनिहें । एकरा विडम्बना नहि तँ आर की कहल जायत? कहियो पण्डित गोविन्द झा कहने छला जे जय-जय भैरवि....विद्यापतिक रचना नहिं छनि ।वस्तुतः मैथिलीक विरोध मैथिले द्वारा वर्तमानमे संक्रामक रोगक रूप लेने जा रहल अछि । हिन्दी पटरानी थिक, मेवाक आसमे तकर सेवा कएनिहारक अभाव नहि, अपन मैथिली रचनाकेँ हिन्दी अनुवाद कए प्रकाशित करओनाइ फेसन भऽ गेल अछि, मुदा जननी जन्मभूमिच स्वर्गादपि गरीयसीकेँ केना बिसरल जायत? ई की मनुष्यता होयत? भोला बाबूकेँ एकर बोध छलनि । तेँ ओ माँ बदलि डाइनक पूजार्चनाक विरोधी छला । मिथिलाक्षरक प्रचारोपायजे प्रथम खण्डक पृष्ठ 49 पर देल गेल अछि, से देखि कोनो मैथिली-प्रेमीक सूप सन छाती भऽ जेतनि - ई विश्वास हमरा अछि । धन्यवादक पात्र छथि कमलेश जी । मोन पड़ैत अछि मधुप जीक श्रद्धांजलि - 
दिवंगत मिथिलाक भोला पूज्य भोलालाल दासक संस्मरणमे निरन्तर
नदनदी निर्माणक युगल-निज-नयन-नीरद-नीर निकरक विन्दुनिर्मित हार
निसर्गोद्भव भवक वैभव-भक्ति-मण्डल-मण्डित
मानस मधुप मम समर्पित करइत मङै अछि –
फेर ओहने आबि भोला अपन भोलापन देखबिते,
भेद-भावक दुर्गकेँ ओहिना ढहबिते,
अबुधवान्धववर्गकेँ गंगा नहबिते हमर भाषाकेँ चराँते बुझनिहारहुँकेँ सिहबिते,
राजनीतिक पाँकमे फाँसल हुनक रक्षित अपन भाषाक शकटी केर करथि उद्धार ।
जाहिठाम सुमन जी, मधुप जीक एहन विलक्षण भावना, ताहिठाम आनक बाते की हो!   भोला बाबूक आर एक पोथी हमरा प्राप्त भेल अछि, ओ थिक बाबू भोलालाल दास  रचनावलीक दोसर खण्ड । एकरो सम्पादक छथि, फूलचन्द्र झा प्रवीण । अर्थ सहयोग छनि शारदानन्द दास परिमलकेर । एहि खण्डमे मैथिली सुबोध व्याकरणमैथिली व्याकरण प्रबोधअछि । भोला बाबूक तप-साधनाकेँ मोन पाड़ैत यादि अबैत छथि यासेर अराफात -
‘You ‍are‍ the ‍generation ‍that‍ will
reach the sea and hoist the flag
of‍ Palestine ‍over‍ Tel‍ Aviv.’
रवीन्द्र ठाकुर कहैत छथि –
नागिनीरा चारिदिके फेलितेछे विषाक्त निःश्वास
शान्तिर ललित वाणी सोनाइबे व्यर्थ परिहास,
          विदाइ नेवार आगे
ताइ डाक दिये जाइ
दानबेर साथे संग्रामेर तरे
प्रस्तुत हतेछे जारा प्रति घरे-घरे।’
बंगलाक विख्यात कवि विष्णु देक शब्दमे –
तोमार ओ दीप्ति मुक्ति पाबेइ आमार चित्ते
कोनो तरुण तमाले,
एक दिन, एक राते कोनो एक काले।
जानि नहि से दिन, से राति, से काल मिथिलामे कहिया आओत! किन्तु भोला बाबूक ई कामना-भावना अवश्ये छलनि आ ताहि लेल ओ सतत संघर्ष करैत रहलाह । किन्तु मिथिला- मैथिलीक जे वर्तमान अवस्था देखि रहल छी, ताहिमे तँ ई बात सोचलो नहिं जा सकैत अछि । मैथिलीक सम्मान परदेशेमे भेटलैक आ आइयो ई परदेशेपर निर्भर अछि, खाहे कोलकाता हो वा हैदराबाद-सिकन्दराबाद । भनहिं पुरस्कार सबटा दरभंगा-मधुबनीए धरि सीमित हो । मैथिलीक अधिकांश साहित्यकार मगह-दिल्ली धेने छथि । बहुतोक घरक भाषा हिन्दी अछि । आइ ने तँ भोला बाबू छथि, आ ने मैथिली आ हिन्दीलिखनिहार जनकवि यात्री जी । तखन तँ अपन श्रद्धांजलिए टा दऽ सकैत छियनि एहि संकल्पक संग जे आजीवन मैथिली लिखैत रहब, बजैत रहब ।
 भोला तँ भोले छलाह, कतबा कही कमाल।
एक शब्दमे जँ कहीमैथिलीक  ओ लाल ।।
मैथिलीक ओ लाल, भाल-भूषण मिथिला के ।
बाधा-विघ्नक काल, कएल जीवन्त शिला के ।।
कह लोचन कविराय, दधीचि बनल बंभोला ।
मैथिलीक बनि दास, पूज्य मैथिल हित भोला ।।

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साभार संदर्भ
देसिल बयना  (मिथिला विभूतिपर्व स्मारिका)
[पृष्ठ सं. : 21-24]
मई’ 2017
संपादक : चन्द्रमोहन कर्ण
प्रकाशक : देसिल बयना , मैथिली साहित्य मंच
118-एच.आइ, जी, मदीनागुडा, पो. मियाँपुर, हैदराबाद- 500049


[*हैदराबादक मैथिली साहित्यकेँ समर्पित संस्था देसिल बयना वर्ष भरिमे दू गोट विशेष कार्यक्रमक आयोजन करैत अछि - नवम्बर मे विद्यापति स्मृति समारोह आ मई मे मिथिला विभूति पर्वक । एहि दुनू अवसर पर स्मारिकाक प्रकाशन सेहो कयल जाइत छैक । देसिल बयना स्मारिकाक लोकप्रियता दिनानुदिन बढ़लै ये । सामग्रीक प्रचूरता वला एहि स्मारिका मे विभिन्न विधा आ विभिन्न स्तरक रचनाक समावेश रहैत छैक । एहिमे कतेको रचना उल्लेखनीय होइछ । एकर श्रेय संपादक चन्द्रमोहन कर्ण जीकेँ छन्हि जे सामग्री संयोजनसँ ल के टाइपिंग आ प्रूफ रीडिंग तकक काज असगरे गंभीर दायित्वबोधक संग करैत छथि । देसिल बयना औपचारिक रूपें स्मारिका होइतो अपन चरित्रमे मैथिलीक छौमाही साहित्यिक पत्रिका जेना अछि । 
एहि संस्थाक मई’ 2017क मिथिला विभूति पर्वक आयोजन बाबू भोलालाल दास आ धूमकेतु पर केन्द्रित छलहि ।  स्वभाविकरूपें एहि अवसर पर प्रकाशित स्मारिकामे हिनका दुनू गोटय पर केन्द्रित बहुत रास सामग्री प्रकाशित भेल अछि । ओहिमे से किछु सामग्री मैथिली मंडन पर उपलब्ध करेबाक प्रयास रहत ।] 

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