Monday, December 11, 2017

मैथिलीक समस्या : रमानाथ झा

रमानाथ झा मैथिलीक समस्या सब पर गंभीरतापूर्वक विचार करय वला विद्वान छलाह । एहि मादे लीखल हुनक कएक टा लेख मैथिली आ अंग्रेजी मे भेटैत छैक । प्रस्तुत कयल जा रहल लेख एक एहिने लेख थिक । एहि लेख मे मैथिलीक प्रति बिहार आ भारत सरकारक द्वेषपूर्ण व्यवहारक चर्चा छैक, मिथिलामे जन चेतनाक अभावक चर्चा छैक आ अन्यान्य कतेको महत्वपूर्ण बात छैक । एहि लेख मे मैथिलीक राजनीतिक अधिकारक प्राप्तिक आवश्यकता यानी अष्टम अनुसूची मे एकर प्रवेशक आवश्यकता पर बड्ड ज़ोर देल गेल छैक । लेख केर किछु बिंदु सँ असहमतिक गुंजाइश सेहो भ' सकैये, मुदा एहि बात मे कोनो संदेह ने जे मैथिलीक शोधार्थी आ जिज्ञासु पाठकक लेल ई महत्वक सामग्री छैक । प्रस्तुत लेखकेँ पढ़ैत हमरा सबहक लेल इहो विचारणीय हेबाक चाही जे आब जखन की मैथिली केँ अष्टम अनुसूचीमे जगह भेट गेल छैक, की मैथिली आ मैथिलीभाषी केँ ओ सब प्राप्त भ’ गेल छैक, जकर अपेक्षा रमानाथ बाबूक एहि लेख मे व्यक्त भेल छैक वा एहि दिशा मे बहुत बेसी गंभीरताक संगे मैथिल सामूहिकता बलें बहुत रास आरो काज करवाक आवश्यकता छैक? एहि लेखक प्रकाशन  ‘मिथिला मिहिर’क 31.08.1969 अंक मे भेल छलहि । संदर्भक लेल मोहन भारद्वाज द्वारा संपादित आ वाणी प्रकाशन सँ 2010 मे प्रकाशित  'रमानाथ झा रचनावली' क तेसर खंडक उपयोग सेहो कयल जा सकैत अछि, जाहि मे ई पृष्ठ संख्या 197 सँ 201 धरि प्रकाशित भेल छैक ।


मैथिलीक समस्या
रमानाथ झा

       चारि बर्ष पूर्व जखन साहित्य अकादमीमे मैथिलीकेँ स्थान भेटलैक ओ मैथिलीक प्रतिनिधि भए हम ओकर कार्यकारिणी समिति एवं साधारण सभासँ भए अएलहुँ तखन हम, 'मैथिलीक वर्तमान समस्या' कहि एक गोट छोट पुस्तिका लीखि प्रकाशित कराए देल जाहिमे मैथिलीक समक्ष जे समस्या हमरा सभसँ बिशेष मौलिक ओ मार्मिक, सबसँ आवश्यक, प्रतीत भेल तकर नीक जकाँ उपपादन कए शिक्षित समाजक ध्यान ओहि दिसि आकृष्ट कएने छलहुँ । सरकारक मैथिली-सम्बन्धी नीतिक चर्चा कए हम ओहि मे कहने छलहुँ -
"यदि मैथिलीक प्रति न्याय नहि कएल जाएत, मैथिलीक उपेक्षाक नीति यदि छोड़ल जाएत, राष्ट्रभाषाक बेदी पर मैथिलीक बलिदान व्यापार यदि बन्द नहि होइत अछि तँ आओर आन्दोलन तँ हमर साध्य नहि होएत, परन्तु अकादमिक मंच परसँ, जाहिमे भारतक कए गोट साहित्यिक भाषाक प्रतिनिधि छथि, ई तँ हम उद्घोष कए कहि सकैत छिऐन्हि जे मैथिलीकेँ अपना घरमे बिहार सरकार भूखेँ मारि रहलैक अछि, राष्ट्रभाषाक वेदी पर जनमतक विरूद्ध मैथिलीक बलिदान के रहल अछि ।"

ई हम 1966 मे लिखने छलहुँ । तहिआ सँ आइ धरि बिहार सरकारक नीतिमे कोनो परिवर्त्तन नहिए भेल अछि प्रत्युत श्री कर्पूरीठाकुरक सदृश मैथिली-भाषी जननेता बिहारक शिक्षा मन्त्रीक पदसँ बाजि गेलाह जे मैथिलीभाषी लोकक संख्या 'पचास लाख' होएत ओ लोकसेवा आयोगमे मैथिलीके स्थान "ओ नहि दए सकैत छथि ।" ओमहर केन्दीय सरकार जे एतेक दिन मैथिलीक हितक दिशामे जागरूक बुझि पड़ैत छल- कम सँ कम पण्डित जवाहरलाल तँ अवश्य मैथिलीक उद्धार कए देल- एमहर बिहारहिक सरकार जकाँ विरुद्ध नहि, तँ उदासीन अवश्य भए गेल अछि । गत वर्ष भारत सरकार भारतीय भाषा सबकेँ  विकासक योजना बनाए उन्नतिक पथ पर अग्रसर होएबाक हेतु पर्याप्त अनुदानक घोषणा कएलक ओ तदर्थ दिल्लीमे भारतीय भाषा समितिक स्थापना कएलक । ताहिमे मैथिलीकेँ स्थान नहि देल गेल । हम भारत सरकारक ओतए निवेदन कएल जे यदि भारतीय कोनहु भाषाकेँ केन्द्रीय सरकारक अनुदानक अपेक्षा छैक तँ से मैथिली थिक, कारण, मैथिलीकेँ अपन राज्य सरकार किछु मदति नहि करैत छैक । हमर निवेदन साहित्य अकादमी अग्रसारित कएलक । हम एकटा योजना सेहो बनाकए पठओलिएक जे दड़िभांग मे एक गोट मैथिली- प्रतिष्ठानक स्थापना कराए देल जाए जतएसँ मैथिलीक प्रकाशन होएत रहए ओ मैथिलीक उत्तम ग्रन्थ सभकेँ पुरस्कार देल जाए । मुदा शिक्षा विभागक राज्यपंत्री प्रो. शेर सिंहक उत्तर आएल जे "जेँ मैथिली संविधानक अष्टम अनुसूचीमे नहि अछि तेँ भारतीय भाषा समितिमे मैथिलीक समावेश सम्भव नहि अछि।" विचारल जाओ जे यदि अष्टम अनुसूची मे मैथिली रहैत तँ ई निवेदन करबाक अवसरे की होयत, तखन तँ अनुदान मैथिलीकेँ स्वतः प्राप्त रहितैक । प्रतिष्ठानक योजनाक प्रसंग उत्तर आएल जे -'चारिम योजनामे भाषाक प्रतिष्ठान राज्य-सरकारक क्षेत्रमे छैक तैँ एहि प्रसंगक निवेदन विहार राज्य-सरकारक ओतए कर्त्तव्य।'' साहित्य अकादमीक मान्यतासँ मैथिलीक मान्यताक प्रसंग कोनो अन्तर नहि भेल । बिनु राजनीतिक मान्यता प्राप्त भेने मैथिलीक उद्धारक दोसर कोनो मार्ग नहि अछि । बिहार सरकार राष्ट्रभाषा परिषदपर लाखक हिसाबें टाका व्यय करैत अछि, मुदा एतबा विवेक नहि छैक जे मैथिलीक हेतु किछु हजारो टाका दैक । बिहारकेँ मैथिलीक गौरव चाहिऐक मुदाविहारक राजनीतिक नेताकेँ एकर गौरव नहि, एकरासँ जेना द्वेष होइक !

अतएव हमरा अपन स्थिति समस्त देशक साहित्यकारकेँ जनाएब आवश्यक भए गेल । भाग्यसँ ताहि हेतु हमराअवसर बड्ड सुन्दर भेटल । गत 2 अगसतकेँ अकादमीक बैसक बेल छल सभापतिक निर्वाचनक निमित्त । देश भरिसँ सदस्यलोकनि अओताह तँ किछु विचार-विनिमय हो अकादमी एक गोट विचार-गोष्ठीक आयोजन कएलक तीन ओ चारि अगस्तकेँ जाहिमे ओहि तीनि भाषाक समस्यापर निबन्ध पढ़ल गेल तथा विचार-विनिमय भेल जाहि तीनि भाषाकेँ साहित्य अकादमी मान्यता देने छैक, अष्टम अनुसूचीमे नामो छैक, परन्तु जकारा अपन राज्य नहि छैक । एहन तीनि गोट भाषा छैक संस्कृत, उर्दू तथा सिन्धी।  हम एहि विचार-गोष्ठीक निमित्त मैथिलीक समस्यापर निबन्ध लीखि पठओलिऐक जकरा राज्य छैक मुदा सरकार नहि छैक, स्टेट छैक, गवर्नमेंट नहि छैक ।  सर्वसम्मतिसँ हमर निबन्ध स्वीकृत भेल तथा 4 अगस्तकेँ ओतए पढ़ल गेल । ओहि पर विचार-विनिमय भेल । गोष्ठीमे भाषा-सबहिक प्रतिनिधि तँ छलाहे, भारत-सरकारक मनोनीत सदस्य सेहो छला ह। हमर निबंध गोष्ठीकेँ ततेक पसिन्न पड़लैक जे ओतहि निश्चय भेल जे ई सम्पूर्ण निबंध अकादमीक पत्रिका  'इंडियन लिटरेचर'क अग्रिम अंकमे प्रकाशित भए जाए । बिहार सरकारक उपेक्षानीति ओ भारत सरकारक उदासीनताक हम ओहिमे स्पष्ट विवरण प्रस्तुत कएने छी ओ एहि कथाकेँ नीक जकां बुझाए देने छी जे बिहार-सरकार जानिकेँ मैथिलीकेँ राष्ट्रभाषाक  वेदी पर बलिदान कए रहल अछि । हमरालोकनि भाषाकेँ राजनीतिक प्रश्न नहि बनबए चाहैत छी । मैथिल हिन्दीक विरोधी नहि छथि । राष्ट्रीय एकताक हेतु हमरा लोकनि अपन प्राचीन लिपिक त्याग कए देल जाहि कारणें ई सब अनुताप सहए पड़ैत अछि । परन्तु मैथिली-विरोधी नीतिक फलस्वरूप यदि मिथिलामे हिन्दीक विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ हो तँ तकर दोष मैथिलीभाषाभाषीकेँ नहि देल जाए; ताहि हेतु उत्तरदायी बूझल जाथि हिन्दी-साम्राज्यवादक पुजेगरीलोकनि जे आबहु बिहारकेँ हिन्दी-भाषी प्रान्त मानैत छथि ओ मैथिलीक अभ्युदयक प्रश्न अबितहिं भोजपुरी जो मगहीक प्रश्नकेँ आगाँ कए ओकर मार्गमे प्रतिबन्ध ठाढ़ करैत छथि । साहित्य अकादमीक मंचपरसँ ई उद्घोष हम सबकेँ सुनाए देल ओ आब जखन अकादमिक पत्रिका 'इंडियन लिटरेचर' मे ई प्रकाशित होएत तखन केवल भारतवर्षहिटामे  नहि, विश्वमे जतए कतहु भारतीय भाषाक आदर अछि सर्वत्र ई ज्ञापित भए जाएत जे भारतवर्ष एक भागक प्राचीन भाषा जकरा साहित्य अकादमीक मान्यता प्राप्त  छैक, जकर उत्कृष्ट रचना पर प्रतिवर्ष पुरस्कार भेटैत छैक, जकर बजनिहारक संख्या कोटिसँ कम तँ नहिए छैक, दू कोटिक लग पहुँचि जएतैक तकरा अपन राज्य बिहारक तँ कथे कोन, भारत सरकार समेत भूखें मारि रहलैक अछि। इएह थिक भारतवर्षक लोक कल्याणकारी राष्ट्र, इएह थिक भारतवासीक मौलिक अधिकार,इएह थिक भारतक राष्ट्रभाषा हिन्दीक साम्राज्यवाद! एही राष्ट्रभाषा हिन्दीक साम्राज्यवादक विरोधमे दक्षिणमे हिन्दीक वहिष्कार भए रहल अछि । एही साम्राज्यवादक दुष्परिणाम थिक जे राजस्थानी विद्रोहमे उठि ठाढ़ भेल अछि ओ अग्रिम वर्ष  साहित्य अकादमीक मान्यता प्राप्त कए अपनाकेँ स्वतंन्त्र घोषित कए रहल अछि ।

परन्तु हमर उद्घोषसँ मैथिलीक प्रति सभक सहानुभूति भेलैक, नैतिक बल प्राप्त भेलैक से अवश्य मुदा ताहिसँ आगाँ की फल होएतैक? गोष्ठीमे चारू दिशिसँ हमरा प्रश्न कएल गेल जे एहन जखन स्थिति अछि ओ बिहार विधान सभाक कम सँ कम एक तृतीयांश सदस्य जखन मिथिलाभाषाभाषी छथि तखन सरकार एहन उपेक्षाक नीति किएक रखने अछि, कोना रखने अछि? वस्तुत: प्रजातन्त्रमे राजनीतिक स्वत्वक रक्षा केओ अपनहि कए सकैत अछि । साहित्य अकादमी तँ साहित्यिक मान्यता देलक, ताहिसँ अधिक ओ की कए सकत? हमर एके टा उत्तर छल, बड़ छोट आ बड़ सोझ, जे हमराअपन भाषाकेँ राजनीतिक प्रश्न नहि बनबए जनैत छी । नहि तँ हमरा लोकनि हिन्दीक प्रचारक निमित्त अपन लिपिक त्याग करितहुँ? एहि उत्तरसँ ओतय तँ सब संतुष्ट भेल, हमरा लोकनिक उदार भावनाक प्रति आदर देखौलक, मुदा प्रश्नतँ इएह अछि सब समस्याक जड़ि । राजनीतिक मान्यता प्राप्त करब आब मैथिलीक हेतु नितान्त आवश्यक भए गेल अछि ओ राजनीतिक मान्यता प्राप्त करबाक हेतु मैथिलीकेँ राजनीतिक समस्या बनबए पड़त, ओहि हेतु राजनीतिक संघटन करए पड़त, राजनीतिक आन्दोलन करए पड़त । ई समयक प्रभाव थिक अथवा एहि तथ्यक जागि रहल चेतना थिक जे श्रीयुत ललितनारायण मिश्रक सदृश नव-मिथिलाक वरिष्ठ जन-नेता जे भारत सरकारक राज्यमन्त्री छथि सौराठ सभामे बाजि गेलाह जे मैथिलीक हेतु, मैथिलकेँ आब मिथिलाक राज्य ने मांगए पड़ए? हालहिमे लहेरिआसरायमे मैथिली प्रचार सेवाक संघटन प्रारम्भ भेल अछि । अपन भाषा-सम्बंधी अधिकारक हेतु अनशन आरम्भ भए गेल छल ओ सुनैत छी पुनः आरम्भ होएत । हम नहि चाहैत छी- हमर संस्कृति ई नहि कहैत अछि- जे एहि हेतु हम ककरो विरोध करी, परन्तु आन्दोलन चलि गेला उत्तर ओकर की रूप रहतैक से के कहि सकैत अछि! अपना घरमे अपन उपेक्षाकेँ देखैत ओ भारतक अन्य भागमे अपन-अपन भाषाक हेतु की-की भए रहल छैक से जनैत हमहि कोना कहब, केओ कोना कहत जे मैथिलीक अभिवृद्धिक कथा जाए दिय, मैथिलीक अस्तित्वहुक हेतु राजनीतिक अधिकार प्राप्त करब आदि आवश्यक नहि भए गेल अछि ओ ताहि हेतु यदि आन्दोलन करए पड़ए तँ सहो विधेय नहि थिक ।

परन्तु ई हताशाक विचार थिक, अन्तःकरणसँ हम आन्दोलनक पक्षमे नहि छी । हमरा लोकनिक जे संस्कृति अछि तकर जे संस्कार हृदयमे दृढ़ भए गेल अछि तकरा आब एहि वयसमे हटएबो सम्भव नहि अछि । हमरा लोकनिक संस्कृतिमे कर्तव्यपालनक शिक्षा अछि । कर्तव्यक पालन कएनहि अधिकार प्राप्त भए सकैत छैक । विश्वामित्र ओ वशिष्ठक उपाख्यान एकरे शिक्षा दैत अछि । युद्ध पर्यन्त कएलेँ वशिष्ठ विश्वामित्रकेँ ब्रह्मर्षि नहि स्वीकार कएल, ताहि हेतु विश्वामित्रके 'ब्राह्मण्य' प्राप्त करए पड़ल । यदि समस्त मैथिलीभाषाभाषी जन-समुदाय अपन भाषाक प्रति अपन कर्त्तव्य बुझे लागए तं संसारमे कोनो शक्ति नहि छैक जे हमरा अपन अधिकारसँ वंचित राखि सकए । अधिकार पाबि यदि तद्नुरूप कर्त्तव्यक पालन नहि करब तँ प्राप्तो अधिकार नहि राखि सकब-ओहिसँ च्युत भए जायब । ई कथा की हमरा कहए पड़त जे एक सए शिक्षित व्यक्तिमे एको व्यक्ति मातृभाषाक प्रति अपन कर्त्तव्यक भावना समेत नहि करैत छी । जे लोकनि नेता कहाए सभामे मंचपरसँ बड़का-बड़का व्याख्यान दैत छथि ताहूमे कए व्यक्ति मैथिलीक प्रति अपन कर्त्तव्यक पालन करैत छथि? कहैत छिऐक जे दू कोटि जनता मैथिलीभाषाभाषी अछि, मुदा दू कोटि जनताकेँ अपन मातृभाषा मैथिलीक प्रति गौरवक अनुभव करबाक अवसर दैत छियैक? हम तँ बुझैत छी जे मैथिलीक दीनता, दुरव्यवस्था, उपेक्षा-सब किछु अछि मैथिलीभाषाभाषीक अकर्मण्यताक कारणेँ, कर्त्तव्यक प्रति परांगमुखताक कारणेँ, अपनानमे नाना प्रकारक भेद-भावसँ सामूहिक चेतनाक अभावक कारणें। हम ककरहु अनुत्साहित नहि करैत छी, जतेक संस्था वा जे केओ व्यक्ति मैथिलीक हेतु जे कोनो कार्य करैत छथि किंवा जे कोनो आंदोलन करैत छथि; सबहुक प्रति हमर हार्दिक शुभकामना, अजस्र सद्भाव । मुदा सबसँ हमर एग गोट मात्र विनम्र निवेदन जे आओर जे आन्दोलन करैत जाइ ओहि संग एक गोट ईहो आन्दोलन कएल जाओ जे समस्त मैथिलीभाषाभाषी क्षेत्रमे, समस्त जनसमुदायकेँ आपागर जनताकेँ ई बुझाए दिऔक जे ओहो मैथिली बजैत अछि, मैथिली ओकरो मातृभाषा थिकैक, अपन भाषाक प्रति सबकेँ किछु ने किछु कर्त्तव्य छैक ओ ताहि कर्त्तव्यक पालन थोड़-बहुत अपन-अपन योग्यताक अनुसार सब केओ करए ।

हमरा तँ विश्वास अछि जे तेहन सत्य ओ सबल हमर पक्ष अछि ओ ताहि महामायाक नाम पर हमर भाषाक नाम अछि जे एकर हानि भए नहि सकैत छैक, एकर अभ्युदय अवश्यम्भावी छैक । हँ, यदि हमरा लोकनि जागरूक रहब, सचेष्ट रहब, ओ नीतिक मार्ग धएने चलब तँ ओकर गति द्रुततर होयत । जय मैथिली!
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