Saturday, December 16, 2017

परिचायिका / लोचन : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय  'परिचायिका'  सँ लोचन आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
लोचन
[LOCHAN]
[पृष्ठ-23]
लोचन, जनिक पूरा नाम लोचन झा छलनि, मैथिली साहित्यमे प्रसिद्ध छथि अपन एक मात्र कृति ‘रागतरंगिणी’ ल’क’ । ‘रागतरंगिणी’ संगीत शास्त्रक पोथी थिक, जाहिमे राग-ताल आदिक ज्ञान कराओल गेल अछि, किन्तु एकर विशेष महत्व एहि ल’क’ भ’ जाइत अछि जे विद्यापति समेत संकलयिताक पूर्ववर्ती कविलोकनिक मैथिली पदक संकलन एहिमे कयल गेल अछि तथा स्वयं लोचनोक आठ गोट गीत अछि, जे हुनक काव्य-प्रतिभाक दिग्दर्शन करबैत अछि ।
एहि पोथीक आधार पर लोचनक प्रसंग निम्नांकित तथ्य ज्ञात होइत अछि ।
एहि ग्रन्थमे महाराज महेश ठाकुरसँ ल’क’ नरपति ठाकुर धरिक प्रशस्ति-श्लोक अछि । अतः ई नरपति  ठाकुरक समकालीन सिद्ध होइत छथि । चन्दा झा स्वयं लोचन द्वारा तैयार कयल गेल रागतरंगणीक दू गोट प्रतिलिपि देखने छलाह । पहिने जे देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जे ओ 1702 ई.क थिक । बादमे जे पाण्डुलिपि ओ देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जो ओ 1607 शाके (1685ई.)क लिखल छल । अनुमानतः रागतरंगिणीक रचनाकाल यैह थिक । डॉ. ‘श्रीश’ हिनक समय 1625-85 मानैत छथि ।
ई संगीत शास्त्रक प्रकाण्ड पण्डित छलाह, तेँ ने एहि शास्त्रक ग्रन्थक निर्माण कयलनि ।
ई अनुसन्धाता सेहो अवश्य छल होयताह, नहितँ विद्यापतिसँ ल’क’ अनेक कविक जे पद एहिमे भेटैत अछि, से नहि भेटैत । संगीत-मर्मज्ञक संग काव्य-मर्मज्ञ सेहो ई छलाह, तकर प्रमाण थिक पदक शुद्धता ।
ई स्वयं निष्णात कवि छलाह । हिनक आठ गोट पद जे एहिमे संगृहीत अछि, से हिनक विशिष्ट कवित्व प्रतिभाक निदर्शन करबैत अछि ।
हिनक महत्ताक प्रमाण ईहो थिक जे विद्यापति-गोविन्ददास जकाँ हिनको बंगाली विद्वान अपन कवि सिद्ध करबाक प्रयास कयलनि । हिनक मैथिलत्व आब निर्विवाद प्रमाणित भ’ चुकल अछि ।
रागतरंगिणी- एकर अद्यावधि पाँच संस्करण प्रकाशित भेल अछि । पहिल- बी.एस. सुखथंकर द्वारा बंबैसँ 1910 ई. मे, दोसर- दत्तात्रेय केशव जोशी द्वारा पूनासँ 1918 ई. मे, तेसर- दरभंगा राजप्रेस द्वारा बलदेव मिश्रक संपादन मे 1934 ई. मे, चारिम- पटना विश्वविद्यालयक मैथिली विकास-कोष द्वारा डॉ. शशिनाथ झाक संपाजनमे 1981 ई. मे । पहिल दू संस्करणमे मैथिली पद नहि देल गेल अछि ।
‘रामलोचनशरण-जयन्ती-स्मारक-ग्रन्थ’मे उल्लिखित अछिजे मिथिलेश महिनाथ ठाकुरक अनुज उत्तम कुमार नरपति ठाकुरक आज्ञासँ लोचन द्वारा संगीत-विषयक ग्रन्थ रागतरंगिणी लिखल गेल ।
[पृष्ठ-24]
रागतरंगिणीमे कुल एक सय तीन टा गीत संकलित अछि, जाहिमे उनतीस गोट कविक अनठानबे टा गीत अछि, शेष पाँच गीतक कवि अज्ञात छथि । ओ उनतीसो कवि थिकाह- विद्यापति, भवानीनाथ, अमृतकर, गजसिंह, सिंहभूपति, चन्द्रकला, कंसनारायन, गोविन्दकवि, लक्षमीनरायेन, जसोधर, जीवनाथ, दस-अवधान, सदानन्द, भीषम, चतुर्भुज, श्यामसुंदर, हरिदास, गंगाधर, श्रीनिवास मल्ल, पूरनमल्ल, प्रीतिनाथ नृप, चतुरानन, कुमुदी, रतनाञी, लखनचन्द राय, जयकृष्ण, धरणीधर, मधुसूदन तथा लोचन ।
रागतरंगिणीमे पाँच तरंग अछि । पहिलमे पुरुषराग-स्वरुप –कथन, दोसरमे रागिनी-स्वरूप-कथन, तेसरमे उत्पत्ति ओ नाद-निरूपण एवं तिरहुत देशमे विख्यात राग, चारिममे तिरहुति-देशीय संकीर्ण-राग-विवरण, तथा पाँचममे स्वर-प्रकरण, वीणा वाद्यक विषय ओ श्रुति-विभाग आदि वर्णित अछि ।
रागतरंगिणीमे तीन भाषाक प्रयोग भेल अछि- संस्कृत, ब्रजभाषा तथा मैथिली । एकर मुख्य भाषा संस्कृत अछि, जे सम्पूर्ण ग्रंथमे व्याप्त अछि । ब्रजभाषाक प्रयोग सेहो व्यापक रूपमे भेल अछि । हिनक समयमे संस्कृत जनसामान्यक भाषा रहि नहि गेल छल आ ई अपन ग्रन्थक प्रचार वृहत्तर क्षेत्रमे कर’ चाहैत छलाह, तेँ ओहि समयक सर्वाधिक प्रसरित ब्रजभाषाक स्थान देलनि । किन्तु ई छलाह मैथिल आ मैथिली हिनक प्रिय मातृभाषा छल, तेँ रागक उदाहरणक रूपमे जतेक गीत देलनि, सभ मैथिलीमे । मैथिलीक प्रयोग केवल तेसर आ चारिम तरंगमे अछि । मैथिलीकेँ लोचन ‘मिथिला’पभ्रंशभाषा’ कहलनि अछि ।
एहि ग्रन्थक महत्वक प्रसंग डॉ. जयकान्त मिश्रक निम्नलिखित उक्ति विषेषतः द्रष्टव्य थिक-  It is enough to note that while this work (Ragatarangini) is valuable in preserving the works of many otherwise little or unknown poets and in helping to determine their dates, it is an undying record of widespread poetical activity of the day. This work is also an evidence of the greatness of Lochans musical scholarship
लोचनक कवित्व प्रतिभाक निदर्शनक लेले बानगीक रूपमे हिनक एक शृंगार पद द्रष्टव्य- 

मलिन  वसन  विसमादलि  रे देखलि धनि खीनि
नयन - नीरें  परिपूरलि  रे  चित  चिन्ता -  लीनि
पास   बइसि  कत  पूछलि  रे  सत भाँति  बुझाए
तइयो   रहलि  तेहि भाँतहि  रे मरमसि शिर नाए
सुमुखि  न  सुख न सँभाषण  रे मुख नहि परगास
अनुखने  खिन  सोहागिनि  रे  तेज  दीप निसास
कमल  वदनि  मन  मानिक  रे  हरि  ऐसनि जाति
लोचन  भन   मन  जानक  रे मधुमति  देवि  कन्त
बुझ   महिनाथ  महीपति  रे   विरहिन   मन-मन्त
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प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

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