Friday, September 12, 2025

लोक-शिक्षा मे मैथिलीक स्थान : बाबू भोलालाल दास

संदर्भ पोथी ‘मैथिलीक दधीचि : बाबू भोला लाल दास’ मे लेखक श्री शम्भुनाथ मिश्र सूचना देनय छथि जे पटोरी (भागलपुर) मे मैथिली पुस्तकालयक उद्घाटनक अवसर पर बाबू भोलालाल दास द्वारा देल गेल वक्तव्यक एहि लेख केर रूप मे 'मिथिला मिहिर'क अप्रैल 1944 अंक मे प्रकाशन भेल छल। बाबू भोलालाल दास दृष्टिसंपन्न अभियानी छलाह। हुनकर चिंतन आ विचार हमरा सबहक लेल अत्यंत महत्वपूर्ण अछि। एहि लेख मे व्यक्त हुनकर शिक्षा आ भाषा संबंधी विचार समृद्ध करैत अछि। एहि मे मातृभाषा मे शिक्षाक विषय मे भारतीय इतिहासक अनेक एहेन प्रसंगक उल्लेख अछि जे कम लोक केँ नहि बूझल हेतन्हि। मिथिला मे मातृभाषा मे शिक्षाक प्रश्‍न एखनहु लंबित अछि। ई लेख एहि प्रसंग मे प्रेरित करैत अछि। एहि मे संदर्भ पुस्तकक वर्त्तनी आ देवनागरी अंक केँ प्रायः यथावत राखबाक प्रयास कएल गेल अछि।

लोक-शिक्षा मे मैथिलीक स्थान

बाबू भोलालाल दास

एकटा बड़ महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न ई उठैत अछि जे जनताक शिक्षा की बिना मातृभाषाक माध्यमे भए सकैछ? देशक प्रत्येक महान व्यक्ति के ई प्रश्‍न किछु दिन पूर्वहि सँ आह्वान करत आयल छैन्हि। कारण जे कतबो व्यापक, साध्य एवं उपयोगी अङ्गरेजी भाषा रहओ ओ एहि देशक हेतु सार्वजनिक भाषा नहि भए सकैछ। प्रत्येक विद्वान आओर राष्ट्र-कर्मी एहि सिद्धान्त के स्वीकार करबा मे सम्मत छथि। आनो दृष्टि मे वर्तमान शिक्षापद्धतिक एक योजना गेल अछि। किछु वर्ष पूर्वहि तएँ हेतु महात्मा गांधी प्रभृति देशक प्रधान नेतागण भावी शिक्षा पद्धतिक एक योजना तैयार कएलैन्हि जे सम्प्रति 'वर्धा स्कीमक, नामे प्रख्यात अछि। यहि योजनाक ध्येय छैक जनताक अनिवार्य शिक्षा। अंग्रेजो सरकार १५०-२०० वर्षक अभ्यन्तर १०-१२ प्रतिशत से अधिक लोक के शिक्षित नहि कए सकल तएँ अनिवार्य शिक्षाक अनिवार्यता। अस्तु, अन्यान्य विषयक समावेश करत वर्धा पद्धति ७म कक्षा पर्य्यन्त मातृ-भाषाक द्वारा शिक्षा देवाक विधान कएलक अछि। यावत् प्रत्येक कांग्रेस प्रान्त मे शिक्षा सुधारक हेतु प्रान्तीय कमिटी बनाए आ सबके मिलाए एक अखिल भारतीय कमिटीक निर्माण हो वा ई सब अपन-अपन मन्तव्य प्रकाशित करथि तावत् कांग्रेस मन्त्रि-मंडल सब ठाम सँ टूटि गेल किन्तु सरकार द्वारा प्रायः तकर कार्यक्रम कतहु नहि रोकल छैक। उप-स्थित विषय केँ बुझबाक हेतु एतबा कहि प्रकृत विषय पर अबैत छी। बिहारे प्रान्त मुदा बड़ विचित्र अछि। कहियो बुद्ध छलहुँ मुदा एखन तँ बुद्धुए बुझल जाए रहल छी। अन्यथा डिक्री तैयार हएबाक पूर्व कोन एहन प्रान्त अछि जतए इजरायक क्रिया कार्यगत हो ? एतय शिक्षा सुधार कमिटीक व्यवस्थो तावत् नहि प्रकाशित भेल कि हिन्दुस्तानी कमिटीक निर्माण भए गेल ओ तकरा तेसर कक्षा घरि प्रत्येक विषयक एवं ताहि सँ ऊपर नवम कक्षा पर्य्यन्त असाहित्यिक (Non-language) विषयक हिन्दुस्तानी पुस्तक निर्मित करएबाक ओ स्वीकृत करबाक अधिकार दए देल गेलेक। एकर की परिणाम भेल अछि वा होयत से शिक्षक वा शिक्षिते वर्ग कहताह मुदा ई विषय कोनहु रूपे उपेक्ष्य नहि अछि।

आब कनेक शिक्षा-निर्माण-कमिटीक व्यवस्थो सुनि लिय। १७ मार्च १९३६क पूर्णाधिवेशन मे (जाहि मे स्वयं डा० राजेन्द्र प्रसाद जी उपस्थित छलाह) सर्व सम्मति सँ ई स्वीकृत भेल जे सातम कक्षा पर्य्यन्त मैथिली भाषी नेनाक शिक्षा मैथिली द्वारा हो किन्तु कोनो विचित्र गतिए १९४० मे एहि निर्णय के उनटि देल गेल। किमविधिकम्, डा० राजेन्द्र प्रसाद जी ताहि उलट-फेर मे सहमत भए गेलाह ! कमिटी मे एक मात्र प्रो० अमर नाथ झा जी मैथिली बजनिहार छलाह अतः ओ एहि उलट-फेर सँ सहमत नहि भेलथिन्ह। हुनका एहि विषय पर अपन विरोध सूचक व्यवस्था देबाक अधिकार देल गेलेन्हि। फलतः हुनक अखण्डनीय नोट ओहि मे लागल अछि, जाहिसें मैथिलीक योग्यता, अधिकार ओ अनिवार्यता संगहि ओकरा प्रति कएल गेल अनर्गल अत्याचार प्रत्यक्ष अछि।

उक्त कमिटी अनिवार्य शिक्षाक जे योजना एहि रिपोर्टक द्वारा उपस्थित कएने छेक से व्ययसाध्य छैक। तावत् विश्‍वव्यापी युद्ध भारतक द्वारदेशमे आवि तुलाएल। सेक्रटेरियटक कोनहु कोनमे ई रिपोर्ट सड़ि रहल अछि। सरकार एकरा मंजूर करओ कोना ? मुदा तएँ की ? निर्णय (जजमेंट) हो वा नहि, जयपत्र (डिक्री) प्रस्तुत कएल जाओ वा नहि, हिन्दुस्तानी कमिटी कार्यकारिणी न्यायशालाक काज कइए रहल अछि। ओ संस्था ने केवल मैथिलीक अपितु हिन्दी पर्य्यन्तक हत्या भोथ छुरी सँ कए रहल अछि। सरकारकेँ एहि सभक कोन प्रयोजन छन्हि, ई तँ प्रत्येक बिहारवासोक गंभीर चिन्ताक विषय थीक।

हम हिन्दीक कोन कथा हिन्दुस्तानी पर्य्यन्तक विरोधी नहि छी। किछु दिन पूर्व जखन प्रान्तीय विश्‍वविद्यालय द्वारा मैथिलीक स्वीकृतिक हेतु यत्नवान छलहुँ तँ एहि प्रकारक मिथ्या धारणा हमरा विषयमे कतोक गोटाकै छलेन्हि मुदा ताहि युगक आब प्रायः अवसान भए गेल छैक। वर्धा स्कीममे मातृभाषा ओ राष्ट्र-भाषाक स्थान निर्धारित भय गेने एहि भ्रमक भाव समावेशो नहि छैक किन्तु शिक्षा बिभागक अधिकारी-वर्गकै एखनहुँ मातृभाषाक ई अधिकार भयावह, अमंगलसूचक एवं अप्रयोजक बूझि पड़ैत छैन्हि। हुनका भ्रम छैन्हि जे मैथिलीक स्वीकृति देने भोजपुरी ओ मगही सेहो ठाढ़ होयत एवं बिहार प्रांतमे भाषाक अनैक्य होयत। ई संदेह यथार्थ पूछी तँ आनो प्रांतक हेतु उपयुक्त छैक, कारण जे कतोक प्रांत मे दू-दू तीन-तीन मातृ‌भाषाक व्यवहार छैक। महात्मा गांधी आदि वर्द्धा योजनाक सूत्रधार गण एहि शंका सँ अनभिज्ञ नहि छलाह, तथापि मातृभाषाक विना जनशिक्षाक कल्पना असम्भव देखि ओ सब मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषाक पारस्परिक स्थान निर्देश कए देलथिन्ह। खरे महाशयक सभापतित्वमे जखन दिल्ली मध्य अखिल भारतीय शिक्षा सुधार कमिटीक अधिवेशन भेल तँ एहि कठिनताकें दृष्टिमे राखि ई निर्णय भेलैक जे मातृभाषाक अर्थ प्रत्येक बोली नहि प्रत्युत वैह बोली थीक जकरा किछु साहित्य छैक। ओ लिखैत छथि – ‘The Wardha scheme lays down that the medium of instruction shall be the mothertongue, that is the vernacular of the pupil. The Abbot-wood Report makes the same recommendation and few will be found to disagree. The committee unanimously approve, though they are aware that in certain provinces a difficulty might arise as more than one vernacular may be spoken, In making this recommendation the Committee will emphasise that the term "vernacular" connotes the literary language and not a dialect.

आब विचारवाक बात अछि जे बिहार मे मैथिलीक अतिरिक्त कोन भाषा साहित्यिक अछि। डा० श्री अमरनाथ झा उक्त उद्धरण दैत अपना विरोध सूचक नोटमे लिखेत छथि। “Magahi and Bhojpure are not literary language and they are ruled out” कहए नहि पड़त जे बिहार में केवल मात्र मैथिली साहित्यिक मातृभाषा अछि, सुतरां उपर्युक्त शंकाक स्थान नहि छैक। तथापि छोट-छोट दुधमुहाँ नेना सभक हेतु मातृभाषाक स्थानमे हिन्दुस्तानी शिक्षाक माध्यम राखल गेल अछि! हिन्द यावत् छलैक तावत् बात एक तरहक छलैक कारण जे हिन्दीक संस्कृत सँ अधिक सम्बन्ध छैक किन्तु हिन्दुस्तानी तँ ताहू सँ दूर पड़ि जाइत छैक। कोनो उच्च कक्षे मध्य उपयुक्त भए सकैछ, जखन विद्यार्थी के देश-विदेशक बहुत किछु ज्ञान भए जाइ छैन्हि किन्तु विचित्रता तँ ई अछि जे कमिटी मातृभाषाक सिद्धातकें सर्वतोभावेन, स्वीकार करैत ई निर्णय देने अछि ! क्रिमाश्‍चर्य्यगतः परम् ? कमिटी अपना रिपोर्टक धारा ११० मे लिखैत अछि जे - During this period of 7 years Basic Education, the question of the medium of instruction need not cause us any great difficulty. It is an accepted principle of proper education that knowledge should be imparted through the medium of the mother-tongue. We indorse it completely and we would admit of few exceptions.

एवं मातृभाषाक द्वारा ७ वर्ष पर्य्यन्त शिक्षा देवाक सिद्धान्तकें पूर्ण रूपें स्वीकृत करैत बिहारक ई भाग्यविधाता लोकनि हिन्दुस्तानीए शिक्षाक माध्यम स्वीकृत कएलेन्हि अछि। एकर अर्थ ई मेल जे हिन्दी वा हिन्दुस्तानी हमर मातृभाषाक थीक। डा० सच्चिदानन्द सिंह अपना नोटमे स्पष्ट लिखने छथि जे 'हिन्दी बिहारक मातृभाषा नहि। ई एक पश्चिमी भाषा थीक जकरा हम राजनैतिक कारणे किछु काजक हेतु अपनौने छी।’ वस्तुतः हिन्दी वा हिन्दुस्तानी के बिहार राष्ट्र-माषा मानि सकैछ, मातृभाषा कोना मानत? आओर यदि कोनो भविष्यमे जन-साधारणक अनिवार्य शिक्षाक योजना हेतेक तँ बिना मैथिलीकें वर्धा स्कीमक स्थान देने कोनोटा उपाय नहि छैक। आइ ने काल्हि ओहो दिन अएवे करतेक।

सरकारी शिक्षा विभागक ई नीति किछु दिन आओर रहतैक मुदा हमरा सभक दृष्टि दूरदर्शी होमक चाही। कोनो प्रकारक गैर सरकारी शिक्षा प्रचारक उद्योगमे हम सब मातृभाषा ओ राष्ट्रभाषाक स्थान मे विपर्यय नहि आबे द, ई हमर अनिवार्य्य कर्त्तव्य होमक चाही। संख्या, एकर प्राचीन साहित्यक उत्कर्ष, एकर नैसर्गिक शक्ति, एकर दूरदेशी प्रभाव आदि सब किछु आश्‍चर्यजनक अछि। नेपाल, बंगाल, उड़िसा ओ आसाम पर एखनहुँ एकर पर्याप्त प्रभाव छैक। तखन की ई अपना घरहिमे विस्मृत, आनादृत ओ त्यक्त रहत ? हमरा जनैत एकरा द्वारा समाजक ओ सब अंग, जकरा शिक्षाक नितान्त आवश्यकता छैक आओर जकर चर्चा हम पूर्वमे कए चुकल छी, जाहि द्रुत गतिय शिक्षित भए सकत ततवा आन कोनो भाषाक द्वारा नहि। तएँ हेतु हम अपने सबहुँ सँ मैथिली ग्रन्थ संग्रहक विशेष अनुरोध करब। अपना देहातमे एखनहुँ लोरिक, दयालसिंह, सोठि कुमरि, नौका, बिहुला, सलहेस आदिक शतावधि ग्राम्य गीतक प्रचार अछि किन्तु ओ लुप्त भैल जाइछ। मरसिया अर्थात् दाहा मे मैथिलो गीतक प्रचार अछि। एहि सबकें लिपिबद्ध कए लेब एकान्त आवश्यक अछि।

हमरा बुझने बड़ शुभलक्षण थीक जे आब हिन्दीक अभिभावक लोकनिमे विकेन्द्री करणक भावना प्रबल वेगें जागृत भए रहल छैन्हि। आब ओ सब बूझि रहलाह अछि जे वस्तुतः प्रान्तीय मातृभाषाकें दबौने हिन्दीक उन्नति नहि भय सकैछ आओर ने हिन्दी-उर्दू क प्रतिद्वन्द्विते हँटत। आब केवल प्रयागके हिन्दीक कार्य्य क्षेत्र नहि मानि प्रांत-प्रांतमे मातृभाषाक आभिवृद्धि द्वारा राष्ट्र ओ राष्ट्रभाषाक मंगलमय भविष्य निर्मित भए रहल अछि। जहिना सोवियत रूस आइ अपना सोलहो प्रान्तकें पूर्ण स्वाधीनता दए देनेँ अछि, तहिना प्रत्येक प्रान्तीय मातृभाषाकें हिन्दीक -चूड़ान्त अभिभावकगण पूर्ण स्वतन्त्रता देबाक पक्षमे सन्नद्ध भए उठत्ल छथि। गत हरिद्वारक अखिल भारतीय हि० सा० सम्मेलन द्वारा बहुमतसँ विकेन्द्रीकरणक प्रस्ताव स्वीकृत भए गेल अछि। विशाल-भारतक भू०पू० सम्पादक पं० बनारसीदास चतुर्वेदी अपना प्रान्त बुन्देल खंडमे बुन्देली भाषाक उत्थानक हेतु प्रबल आन्दोलन ठाढ़ कए देने छथि। द्रुत गतिसँ बुन्देलीमे नवीन साहित्यक निर्माण भय रहल अछि, पुस्तक ओ पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन बढ़ि रहल अछि। सर रात्धाकृष्ण सम्मुखम् चेट्टी अन्नामलय विश्‍वविद्यालयक दीक्षान्त भाषणमे गतवर्ष कहने छथि जे –

Of late there has been a revival of interest in the study of vernacular languages and there is a spirit of renaissance in the different cultures of India. I am not one of those who look upon this as a fissiparous tendency threatening the unity of India. Infact I consider that those who oppose this spirit are the enemies of Indian nationalism, for, they forget that Indian culture and nationalism are the Synthesis of different cultures and multi-national forces each with great traditions and a strong individuality.

-Searchlight 8.12.43.

अर्थात् - किछु दिनसँ प्रान्तीय मातृभाषाक अध्ययनमे जागृति उत्पन्न भेल अछि ओ भारतवर्षक भिन्न-भिन्न केन्द्रमे नव जीवनक संचार देखि पड़ैछ। हम ओहि व्यक्ति मे सँ नहि छी ने एहि भावनाकें भारतीय एकताक बाधक बुझे छथि। हम तँ वास्तवमे ओहि व्यक्तिकें भारतीय जातीयताक शत्रु बुझै छियन्हि जे एहि भावनाक विरोध करै छथि जाहि हेतु जे ओ व्यक्ति एहि बातकें बिसरि जाइ छथि जे भारतीय संस्कृति ओ जातीयता भिन्न-भिन्न संस्कृति ओ जातीयताक सामंजस्य थीक जकरा अपन-अपन विशेष परम्परा एवं सबल व्यक्तित्व छैक।

मैथिलीक क्षेत्रमे एहि बीच जे किछु कार्य्य भेल अछि तकर प्रतीक्षा दूर-दूरसँ कएल जाए रहल अछि। बुन्देलखंडक कार्य्यकर्तागण हमरा कार्य्यवाही के विशेष सतृष्ण दृष्टियें देखि रहल छथि ओ भिन्न-भिन्न मार्गें तकर सूचनो लए रहल छथि। एहना स्थितिमे हम सब की उदस्त भेल केवल सरकारी भिक्षाक मुखापेक्षी रहब?

भारतवर्ष - इङ्गलैंड, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदिक समान कोनो छोट देश नहि। एहि सब देशक विस्तार एकर प्रान्त सबमे छैक। एकर तुलना चीन, रूस अथवा अमेरिकाक युनाइटेड स्टेटसँ भए सकैछ। एहि सब पैघ देश मध्य कतोक विस्तृत प्रदेश वा प्रान्त छैक जकरा पूर्ण रूपें स्थानीय स्वतंत्रता छैक। हँ, सब प्रान्तक कोनो एकेटा केन्द्र-शासन छैक। नेहरू-रिपोर्टमे भारतवर्षहुक हेतु तेहने विधान स्वीकृत भेल छलैक। जिन्ना साहेबक दुराग्रहें आइ किछु मुसलमान भाइ भने एकरा दू जातिक देश कहथु किन्तु विभागक आधार जाति सम्बन्धी नहि प्रान्त सम्बन्धी श्रेयस्कर भए सकैछ। तएँ चेट्टी महोदयक उपर्युक्त विचार अराष्ट्रीय हएबाक तँ कथे नहि शुद्ध रूपें राष्ट्रीय ओ जातीय भावनोद्भुत अछि।

समस्त राष्ट्रक कोनो एकटा भाषा होएब अनिवार्य्य ! उर्दू-मिश्रित हिन्दुस्तानी से राष्ट्रभाषा भय सकैछ मुसलमान सब देवनागरी लिपि अंगीकृत कय लेथि। किन्तु यावत् लिपिक झगड़ा रहत तावत् राष्ट्र भाषाक प्रश्‍न हल नहि भए सकत। मुदा हिन्दी, उर्दू अथवा हिन्दुस्तानी जे कोनो राष्ट्रभाषा हो से होऔ किन्तु से भाषा एतेकटा देशमे सब प्रान्तक मातृभाषो भए जाएत, से कोना संभव? हमरा हिन्दी वा हिन्दुस्तानीसँ विरोध एही ठाम होइछ। हिन्दीक प्राचीन पंथी लोकनि एतेक दिन धरि हिन्दीकें दूनू स्थान दिएबाक यत्ल कए रहल छलाह ओ छथि तएँ सफल नहि भए सकलाह। आब ओ लोकनि अपन क्षेत्र बूझि रहल छथि, अतः विकेन्द्रीकरणंक भावना उग्र रूप जागृत भेल जाइछ। जे राहुलजी हमरा सबहक मैथिली आन्दोलनक किछु वर्ष पूर्व मुजफ्फरपुरक वि० प्रा० हि० सा० (बिहार प्रांत हिंदी साहित्य) सम्मेलनक सभापतिक आसनसँ घोर विरोध कएने छलाह (जाहिपर हमरा ‘राहुलजीक अकारण कोप’ शीर्षक लेख 'मिथिला-मिहिर' मध्य देबए पड़ल) सएह महापण्डित राहुल सांकृत्यायनजी गत वर्षक जुलाई-अगस्त आदिक 'विशालभारत'क कतोक अंकमे प्रत्येक प्रान्तीय भाषाकें पूर्ण स्वतंत्रता देबाक मुक्त कंठे भैरवनिनाद कएने छथि। तहिना हमरा प्रान्तक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय नेता देशरत्न डा० राजेन्द्रो प्रसाद) आइ ने काल्हि अवश्यमेव अपना पूर्व निर्णयकें यथार्थ बुझताह। हमर ते ई निश्चित धारणा अछि जे मगही आ भोजपुरीकें साहित्य नहि छैक तैँ की? जखनहि कोनो अनिवार्य्य शिक्षाक क्रम जारी हेतक आओर ओकरा सफल बनएबाक उद्देश्य रहतैक तँ ओहू दूनू मातृ-भाषाकें निम्न वर्गक शिक्षा पद्धतिमे स्वीकार करहि पड़तैक। मैथिलीक योग्यता तें सब प्रकारें निर्विवादे अछि।


साभार-स्रोत

मैथिलीक दधीचि : बाबू भोला लाल दास ( पृ.- 217-224)
लेखक : शम्भुनाथ मिश्र
प्रथम सं. : 1991
प्रकाशक : कर्ण गोष्ठी, कलकत्ता

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