Saturday, December 16, 2017

परिचायिका / लोचन : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय  'परिचायिका'  सँ लोचन आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
लोचन
[LOCHAN]
[पृष्ठ-23]
लोचन, जनिक पूरा नाम लोचन झा छलनि, मैथिली साहित्यमे प्रसिद्ध छथि अपन एक मात्र कृति ‘रागतरंगिणी’ ल’क’ । ‘रागतरंगिणी’ संगीत शास्त्रक पोथी थिक, जाहिमे राग-ताल आदिक ज्ञान कराओल गेल अछि, किन्तु एकर विशेष महत्व एहि ल’क’ भ’ जाइत अछि जे विद्यापति समेत संकलयिताक पूर्ववर्ती कविलोकनिक मैथिली पदक संकलन एहिमे कयल गेल अछि तथा स्वयं लोचनोक आठ गोट गीत अछि, जे हुनक काव्य-प्रतिभाक दिग्दर्शन करबैत अछि ।
एहि पोथीक आधार पर लोचनक प्रसंग निम्नांकित तथ्य ज्ञात होइत अछि ।
एहि ग्रन्थमे महाराज महेश ठाकुरसँ ल’क’ नरपति ठाकुर धरिक प्रशस्ति-श्लोक अछि । अतः ई नरपति  ठाकुरक समकालीन सिद्ध होइत छथि । चन्दा झा स्वयं लोचन द्वारा तैयार कयल गेल रागतरंगणीक दू गोट प्रतिलिपि देखने छलाह । पहिने जे देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जे ओ 1702 ई.क थिक । बादमे जे पाण्डुलिपि ओ देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जो ओ 1607 शाके (1685ई.)क लिखल छल । अनुमानतः रागतरंगिणीक रचनाकाल यैह थिक । डॉ. ‘श्रीश’ हिनक समय 1625-85 मानैत छथि ।
ई संगीत शास्त्रक प्रकाण्ड पण्डित छलाह, तेँ ने एहि शास्त्रक ग्रन्थक निर्माण कयलनि ।
ई अनुसन्धाता सेहो अवश्य छल होयताह, नहितँ विद्यापतिसँ ल’क’ अनेक कविक जे पद एहिमे भेटैत अछि, से नहि भेटैत । संगीत-मर्मज्ञक संग काव्य-मर्मज्ञ सेहो ई छलाह, तकर प्रमाण थिक पदक शुद्धता ।
ई स्वयं निष्णात कवि छलाह । हिनक आठ गोट पद जे एहिमे संगृहीत अछि, से हिनक विशिष्ट कवित्व प्रतिभाक निदर्शन करबैत अछि ।
हिनक महत्ताक प्रमाण ईहो थिक जे विद्यापति-गोविन्ददास जकाँ हिनको बंगाली विद्वान अपन कवि सिद्ध करबाक प्रयास कयलनि । हिनक मैथिलत्व आब निर्विवाद प्रमाणित भ’ चुकल अछि ।
रागतरंगिणी- एकर अद्यावधि पाँच संस्करण प्रकाशित भेल अछि । पहिल- बी.एस. सुखथंकर द्वारा बंबैसँ 1910 ई. मे, दोसर- दत्तात्रेय केशव जोशी द्वारा पूनासँ 1918 ई. मे, तेसर- दरभंगा राजप्रेस द्वारा बलदेव मिश्रक संपादन मे 1934 ई. मे, चारिम- पटना विश्वविद्यालयक मैथिली विकास-कोष द्वारा डॉ. शशिनाथ झाक संपाजनमे 1981 ई. मे । पहिल दू संस्करणमे मैथिली पद नहि देल गेल अछि ।
‘रामलोचनशरण-जयन्ती-स्मारक-ग्रन्थ’मे उल्लिखित अछिजे मिथिलेश महिनाथ ठाकुरक अनुज उत्तम कुमार नरपति ठाकुरक आज्ञासँ लोचन द्वारा संगीत-विषयक ग्रन्थ रागतरंगिणी लिखल गेल ।
[पृष्ठ-24]
रागतरंगिणीमे कुल एक सय तीन टा गीत संकलित अछि, जाहिमे उनतीस गोट कविक अनठानबे टा गीत अछि, शेष पाँच गीतक कवि अज्ञात छथि । ओ उनतीसो कवि थिकाह- विद्यापति, भवानीनाथ, अमृतकर, गजसिंह, सिंहभूपति, चन्द्रकला, कंसनारायन, गोविन्दकवि, लक्षमीनरायेन, जसोधर, जीवनाथ, दस-अवधान, सदानन्द, भीषम, चतुर्भुज, श्यामसुंदर, हरिदास, गंगाधर, श्रीनिवास मल्ल, पूरनमल्ल, प्रीतिनाथ नृप, चतुरानन, कुमुदी, रतनाञी, लखनचन्द राय, जयकृष्ण, धरणीधर, मधुसूदन तथा लोचन ।
रागतरंगिणीमे पाँच तरंग अछि । पहिलमे पुरुषराग-स्वरुप –कथन, दोसरमे रागिनी-स्वरूप-कथन, तेसरमे उत्पत्ति ओ नाद-निरूपण एवं तिरहुत देशमे विख्यात राग, चारिममे तिरहुति-देशीय संकीर्ण-राग-विवरण, तथा पाँचममे स्वर-प्रकरण, वीणा वाद्यक विषय ओ श्रुति-विभाग आदि वर्णित अछि ।
रागतरंगिणीमे तीन भाषाक प्रयोग भेल अछि- संस्कृत, ब्रजभाषा तथा मैथिली । एकर मुख्य भाषा संस्कृत अछि, जे सम्पूर्ण ग्रंथमे व्याप्त अछि । ब्रजभाषाक प्रयोग सेहो व्यापक रूपमे भेल अछि । हिनक समयमे संस्कृत जनसामान्यक भाषा रहि नहि गेल छल आ ई अपन ग्रन्थक प्रचार वृहत्तर क्षेत्रमे कर’ चाहैत छलाह, तेँ ओहि समयक सर्वाधिक प्रसरित ब्रजभाषाक स्थान देलनि । किन्तु ई छलाह मैथिल आ मैथिली हिनक प्रिय मातृभाषा छल, तेँ रागक उदाहरणक रूपमे जतेक गीत देलनि, सभ मैथिलीमे । मैथिलीक प्रयोग केवल तेसर आ चारिम तरंगमे अछि । मैथिलीकेँ लोचन ‘मिथिला’पभ्रंशभाषा’ कहलनि अछि ।
एहि ग्रन्थक महत्वक प्रसंग डॉ. जयकान्त मिश्रक निम्नलिखित उक्ति विषेषतः द्रष्टव्य थिक-  It is enough to note that while this work (Ragatarangini) is valuable in preserving the works of many otherwise little or unknown poets and in helping to determine their dates, it is an undying record of widespread poetical activity of the day. This work is also an evidence of the greatness of Lochans musical scholarship
लोचनक कवित्व प्रतिभाक निदर्शनक लेले बानगीक रूपमे हिनक एक शृंगार पद द्रष्टव्य- 

मलिन  वसन  विसमादलि  रे देखलि धनि खीनि
नयन - नीरें  परिपूरलि  रे  चित  चिन्ता -  लीनि
पास   बइसि  कत  पूछलि  रे  सत भाँति  बुझाए
तइयो   रहलि  तेहि भाँतहि  रे मरमसि शिर नाए
सुमुखि  न  सुख न सँभाषण  रे मुख नहि परगास
अनुखने  खिन  सोहागिनि  रे  तेज  दीप निसास
कमल  वदनि  मन  मानिक  रे  हरि  ऐसनि जाति
लोचन  भन   मन  जानक  रे मधुमति  देवि  कन्त
बुझ   महिनाथ  महीपति  रे   विरहिन   मन-मन्त
__________

प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

परिचायिका / मनबोध : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय  'परिचायिकासँ मनबोध आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
मनबोध
 [MANBODH]
[पृष्ठ-20]
मनबोधक स्थान मैथिली साहित्यमे महत्वपूर्ण अछि, तकर कारण जे ई विद्यापतिक परम्पराकेँ भंग क, शृंगार-प्रधान गीतक विपरीत, कथाकाव्यक माध्यमे मैथिलीक भण्डारकेँ भरलनि । शिल्पक स्तरपर, भावक स्तरपर, तथा वर्णन-चमत्कारक स्तर पर हिनक कविताक प्रयोग सफल सिद्ध भेल अछि । हिनक प्रसिद्ध रचना ‘कृष्णजन्म’ अछि, जाहि आधार पर मध्ययुगीन कविमे हिनक  स्थान अग्रगण्य अछि ।
जहिना विद्यापतिक पद लोक-कंठमे अपन स्थान बना अमर भ’ गेल, तहिना ‘कृष्णजन्म’ क चौपाइ सभ सेहो स्त्रीगण-पुरुषक कण्ठमे बैसि अपन कविकेँ अमर क’ देलक । विद्यापतिक पश्चात सर्वसाधारणक बीच जतेक लोकप्रिय मनबोध भेलाह, ततेक हिनक पूर्ववर्ती आन कोनो कवि नहि भ’ सकलाह । आइयो गाम-घरक बूढ़-पुरान स्त्रीगण-पुरुषक जीहपर कृष्णजन्मक अनेक चौपाइ विराजमान अछि ।
एतेक लोकप्रिय रहितो, हिनक परिचय ओ समय सुनिश्चित नहि अछि । हिनको प्रसंग विद्वानलोकनिमे मतबैभिन्य देखल जाइछ ।
म.म. डा. उमेश मिश्र हिनक परिचयक सम्बंधमे दू गोट विवरण देलनि अछि ।
1. ई मंगरौनीक रहनिहार छलाह । ई पलिबार जमदौली मूलक योग्यवंशक सोनमणि झाक, जे पैघ ज्यौतिषी रहथि, बालक छलाह ।
2. दोसर मतक अनुसार पगुलबाड़ बड़िआम मूलक जमसम-निवासी चान झाक ई बालक छलाह आ हिनक नामान्तर भेल छलनि । पंजीमे ‘भाषाकवि भोलन’क उल्लेख भेटैत अछि ।
प्रो. रमानाथ झाक अनुसार मनबोध नरौने मलिछाम मूलक जटेश झाक बालक छलाह । ग्रियर्सन साहेबक मतेँ हिनक निधन 1788 ई. मे भेलनि । अतः हिनका अठारहम शताब्दीक मानल गेल अछि ।
प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’क शब्दमे “कवि मनबोध पलिबाड़ मूलक ज्योतिर्विद सोनमणि झाक बालक छलाह । महाराज नरेन्द्र सिंहक समकालीन, अठारहम शताब्दीक पूर्व भाग हिनक समय मानल जाइछ ।”
‘कृष्णजन्म’ क अतिरिक्त हिनक एक आओर पोथी ‘दानलीला’क उल्लेख भेटैत अछि, किन्तु ई पोथी अद्यावधि अनुपलब्ध अछि । कहल जाइछ जे ई शृंगार रसक काव्य छल ।
कृष्णजन्म - ‘कृष्णजन्म’ एक आख्यान-काव्य थिक जकर कथानक गोकुल-मथुरा-द्वारकाक परिधिमे घुमैत कृष्ण जन्म, तखन कंसक वध आ तकर बाद जरासंघक संहार धरि सीमित अछि । स्मपूर्ण ग्रंथ के छन्द चौपाइमे रचित अछि । एकर कथा भागवत ओ हरिवंश पुराणसँ लेल गेल अछि । एहिपर हरिवंशक छाप -
[पृष्ठ-21]
 - ततेक गाढ़ अछि जे कतोक विद्वान एकर मौलिकतेपर संदेह व्यक्त क’ देलनि । किन्तु, पद ततेक रमनगर अछि, कथा ततेक छटासँ कहल गेल अछि जे ई सर्वथा मौलिकक स्वाद दैत अछि ।
उपलब्ध ‘कृष्णजन्म’ मे अठारह अध्याय अछि, मुदा पढ़ला उत्तर स्पष्ट होइत अछि जे दस अध्यायक बाद ओ छटा, ओ चमत्कारक अभाव अछि जाहि हेतु मनबोध प्रसिद्ध छथि । तेँ, ई संदेह कयल जाइछ जे एगारहसँ अठारह अध्यायक अंश, मनबोधक नामपर, कोनो आन कविक जोड़ल अछि ।
एकर रचना महाकाव्यक रूपमे नहि भ’क’ पौराणिक कथाक रूपेँ भेल अछि । महाकाव्यमे सर्ग होइत अछि, किन्तु कृष्णजन्ममे अध्याय अछि । तहुँ एकरा महाकाव्य कहब समीचीन नहि । एहिमे ‘काव्यकलाक अलंकार-चमत्कार नहि, लोकजीवनक सहज संस्कार अछि ।’ तेँ एकरा पौराणिक कथकाव्य कहब अधिक समीचीन होयत ।
मनबोधकेँ भाषाकवि कहल जाइत छनि । कृष्णजन्ममे जे भाषा प्रयुक्त भेल अछि तकरा निस्सन्देह लोकभाषा कहल जा सकैछ । “तत्कालीन साहित्यिक संस्कृत एवं अवहट्ट, जे संयुक्ताक्षरक प्रयोगक कारणेँ, कर्णपटु प्रतीत होमय लागल छल से घसि कय, कोमल उच्चारणसँ मजि-चिकनाकय, लोककंठक अनुकूल बनि गेल अछि । यथा कुमारी-कुम्मरि-कूमरि, हस्ती-हत्थी-हाथी, अर्जुन-अज्जुन-अरजुन, दुग्ध-दुद्ध-दुध, कार्य-कज्ज-काज, दर्व-दप्प-दाप आदि । उदाहरणस्वरूप, तेसर अध्यायक ई प्रसिद्ध चौपाइ देखल जा सकैछ-
कतओक  दिवस जखन बिति गेल । हरि पुनु हथगर गोड़गर भेल ।
से  कोन  ठाम  जतय  धरि जाथि । कय  बेरि अंगनहुँसँ  बहराथि ।
द्वार  उपरसँ  धरि  धरि  आनी । हरखथि  हँसथि जसोमति रानी ।
कय  बेरि  आगि  हाथसँ  छीनु ।  कय  बेरि  पलका  तकला  बीनु ।
कय  बेर  साप  धरय  पुनि  जाथि । कय बेर चून दही बदि खाथि ।
कौसल चलथि मारिकहुँ चाल । जसोमतिकाँ भेल जिबक जंजाल ।

कृष्णजन्ममे तद्भव शब्दक प्रयोगक अतिरिक्त मिथिलाक लोककोक्ति ओ मोहाबराक प्रयोग सेहो पर्याप्त भेल अछि । यथा- लाजक लेल मुख हेरलो न होय, एहिसँ सुखद साप बरु खाय, जुड़ायल कान, विधाता बंक, सब दुख जिव पनिछाय, आदि । ‘बाभन पोथी छत्री तीर’ ‘नेरु हरेयने जेहने धेनु गाय’ आदि कहबी सम्पूर्ण काव्यग्रन्थमे जीवन्तता आनि देने अछि । तत्कालीन चिन्तनकेँ कतहु व्यंग्यसँ तँ कतहु तीक्ष्ण कटाक्षसँ एहिमे उभारल गेल अछि ।
यैह कारण थिक जे कृष्णजन्म मिथिलामे पर्याप्त लोकप्रिय भेल । विद्यापतिक पद जकाँ ईहो पोथी सकलसाधारणक जीह पर विराजमान भ’ गेल । एहि लोकप्रियताक जड़िमे अछि कृष्ण सन लोकप्रिय चरितक बाल्यकालक वर्णन जे वात्सल्यसँ ओतप्रोत अछि, तथा सहज-सरल भाषाक प्रयोग एवं मिथिलाक सामाजिक-धार्मिक संस्कारक सफल चित्रण । भाषाक सहजताक निर्वाह करितो कवि एहिमे अलंकारक पर्याप्त प्रयोग कयलनि अछि । अन्यो काव्यगुणसँ ई कृति परिपूर्ण अछि ।
[पृष्ठ-22]
मैथिली साहित्यमे वात्सल्य रसक वर्णनक अभाव अछि । वर्तमानो काल मे कम कवि भेलाह अछि जे वात्सल्य रसक नीक जकाँ परिपाक क’ सकलाह अछि । तेहना स्थितिमे, मनबोधक महत्त्व आओरो बढ़ि जाइछ । मैथिलीमे तँ प्रायः मनबोधेसँ एहि रसक धारा आरम्भ होइत अछि । नेनाक लालन-पालन करब, ओकर चंचलताकेँ भोगब, ओहिसँ आनन्द उठायब, ओकरा उच्छृंखल बनवासँ रोकब, अपन एक-एकटा व्यवहारसँ ओकर चरित्र-निर्माण करब, नीकक शिक्षा देब, अधलाहसँ परहेज करब सिखायब, ओकर मोन पर कोनो तीव्र दबाव नहि देब- ई सभ तेहन तत्व अछि जे बालकक भविष्यक निर्माणमे सहायक होइत अछि । काव्य मे एकरा उतारब आ पुनि तकरा लोकप्रिय बनायब- कविक आसाधारण सामर्थ्यक काज थिक । एहू दृष्टिएँ मनबोधक काव्य-दृष्टि बाल-मनोविज्ञानक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म विन्दु धरि प्रवेश क’ गेलनि अछि ।
कृष्णक बाल-स्वभावकवर्णन करैत काल कवि कथाक सूत्रकेँ छोड़ैत नहि छथि तथा लगले-लागल कृष्णक ईश्वरत्वक भान पाठककेँ करा दैत छथि । कवि सावधान रहैत छथि जे पाठक वर्णनक रसानुभूति करैत एतेक दूर धरि नहि चलि जाय जे ओकरा मूल कथे विस्मृत भ’ जाइक । तेँ अमलार्जुनउद्धारक प्रकरण कृष्णक बाल-लीलाक बीचमे कवि राखि देलनि अछि-
भेलहि निसंक समय हरि पाओल
भरि-भरि पाँज उखरि ओंघरायल
गुड़कल –गुड़कल भिड़ुकल जाय
जतय  अछल  दुइ  बिर्छ  अकाय
जमला    अर्जुन   कमला    नाथ
जुगति  उपाड़ल  छुइल  न  हाथ
खसल   महातरु   हँसल   मुरारि
भेल    अघात   जगत   परिचारि

कृष्णजन्मक भाषाक प्रसंग डा. ग्रियर्सन कहने छथि- The poem is deserving of special attention as an example of the Maithili of the last century affording a connecting link between the old Maithili of Vidyapati and the modern Maithili of Harsnath Jha and the other writers of present day.  
एकर समर्थनमे प्रो. सुमनक एहि उक्तिकेँ देखल जा सकैछ- “कविक काव्य-प्रबन्ध पूर्वरंगक संगीतकक इंगितपर नहि, छन्दबन्धक उन्मुक्त वातावरणमे विकसित लक्षित होइछ । एहि दृष्टिएँ आधुनिक मैथिलीपर जतेक प्रभाव ज्योतिरीश्वर विदयापतिक नहि, गोविन्ददास-रामदासक नहि. उमापति-नन्दीपतिक नहि, ततेक मनबोधक पड़ल अछि ।”
तेँ डा. जयकान्त मिश्रक ई मान्यता जे- In the history of Maithili literature Manbodha occupies a very important place अक्षरशः सत्य अछि ।
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प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

Tuesday, December 12, 2017

अपन अयनामे धूमकेतु : धूमकेतु

मैथिली कथा साहित्यक एकटा प्रतिष्ठित नाम थिक- धूमकेतु । हुनकर एतय प्रस्तुत कएल जा रहल आत्मकथ्य केँ महत्वपूर्ण मानबाक कतेको कारण छै । एहिसँ धूमकेतु, हुनक निर्माण, हुनक परिवेश, हुनक दृष्टिकोण आ हुनका बहाने मैथिली साहित्य आ मिथिलाक इतिहासक कतेको आन प्रसंग केँ जानबाक अवसर भेटैत छैक । एहि आत्मकथ्यक सबसँ पैघ विशेषता छै, धूमकेतुक स्पष्टवादिता आ रचनात्मक ईमानदारी । धूमकेतु अपन सामंती संस्कार आ ताहिसँ निकासक छटपटाहटि केँ तँ स्वीकार करिते छथि, अपन पिताक व्यक्तित्व केर द्वैत्व केँ साफ-साफ प्रकट करबा सँ सेहो, हुनका कोनो परहेज नहि छन्हि । धूमकेतुमे आत्ममुग्धता आ आत्मप्रचारक प्रवृत्तिक नितांत अभाव देखार पड़ैत छैक, जकरा सामान्य मैथिल संस्कारक अपवादे कहल जा सकैत अछि ।  
एहि आत्मकथ्यक पहिल प्रकाशन कतय भेल छलहि, वा एकर मूल स्रोत की थिकै, से हमरा नहि बूझल अछि, मुदा एतय स्रोतक रूप मे देसिल बयना’, हैदराबादक जाहि स्मारिकाक उपयोग कयल गेल छैक ताहि मे एकरा राँचीसँ प्रकाशित पत्रिका ‘रचनाक अक्टूबर-दिसम्बर2003 अंक (पृष्ठ 4-6) सँ साभार लेबाक सूचना देल गेल छैक ।

अपन अयनामे धूमकेतु
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धूमकेतु


[पृ.-51]
जन्म हमर एहन परिवारमे भेल जतए समय बिताएब पहाड़ रहै छै । शरीरसँ कोनो काज करब हीन ओ करबाएब चतुरता मानल जाइत छैक । तज्जन्य हानि तँ बहुत भेलए एकाधटा लाभो  देखैमे अबैत अछि । जेना अखराहापर छड़ीक हाथेँ पठाओल गेल छी । मामूली गायन कियो अशुद्ध कऽ लेता तँ से नै बुझैमे आओत, से बात नै । आ सभसँ पैघ लाभ जे खिस्सा-पिहानी, पुस्तक- पत्रिकाक सान्निध्य बड़ नेनासँ रहल । पहिल शिक्षक छला - रानी टोलक पंडित घनानन्द झा । लोटा शब्दक सन्धि-विच्छेद धरि ओ मोन पड़ैत छथि । विद्या-व्यसनी केहन छला जे हुनक  लिखल घटकराजगोत्र-मूल-पाँजि आदि-आदि लौकिकताक पोथी घर-घर पहुँचल । अक्षरक ज्ञान हमर माइयोकेँ छलनि । पिता एकटा प्रेस संचालन करैत छला । विचारसँ गाँधीवादी छला, क्रियासँ सामन्त, तेँ शरच्चन्द्र आ प्रेमचन्द्र हमरा बहुत नेनासँ उपलब्ध होइत रहला । चाँदक फाँसी अंक हम पिताक तकिया तरसँ चोरा कऽ माइक सेवामे प्रस्तुत कऽ चुकल छी । हमरा लगैत अछि, अइसभ वातावरणक प्रभाव हमरा अवचेतनमे साहित्यक प्रति लगावकेँ जन्म देलक । तेँ फरिछा कऽ कहबो केलौं । तकर बाद जे मोन पड़ैत अछि, से अही लगावक विस्तार । 

राज इसकुल दरभंगाक जीवन पहिले पहिल मैथिली शब्दसँ परिचित  करौलक । हमर बाल-मन अवश्य गौरवान्वित भेल छल जे ओ जे हम बजै छी, एकटा भाषा थिकैक । कुमार गंगानन्द सिंहक आवास सचिव सदनकहबनि । प्रायः अइ लेल जे ओ महाराज दरभंगाक आप्त सचिव छलथिन । राजेक बंगलामे रहैत छलथिन । बड़कीटा नेमप्लेटक नीचाँमे रईस, श्रीनगरलिखल छलैक, ‘आप्त सचिवनै । कुमार साहेब बिहार राज्य हिन्दू महासभा आ नैशनल वार फ्रन्ट, दुनूक राज्याध्यक्ष छला । संगहि तत्कालीन जे साहित्यकारलोकनि छलाह तनिक आवागमन निरन्तर होइत रहनि । जे सचिव सदनक छात्र बाटहुमे भेटैत रहलाह ताहिमे हीरानन्द शास्त्री (आर्यावर्तक पूर्व सम्पादक) आ जितेन्द्र किशोर झा (टिस्कोक जनसम्पर्क अधिकारी) स्मरण अबैत छथि । जहाँ धरि मोन पड़ैत अछि, रचैक स्पृहा जेना ओइ बएसमे सभकेँ होइत छैक, हमरो भेल । महाराजाधिराज, दोसर विवाह मंगरौनी केने छला आ दरभंगासँ मधुबनी धरि स्पेशल ट्रेनमे बरियाति साजि कऽ कोबर करए मंगरौनी जाइत छला । ताहि शुभ अवसरपर आदरणीय गोलोकवासी मधुपजी कोबरगीत लिखने छला आ महाराज पाँच सए टाका पुरस्कार देने छलथिन । अयनामे जे पहिल हर्षित चेहरा उभरैत अछि, से अही बातपरक । प्रभाव केहन जे ओ रचना जे हम तत्काल प्रारम्भ कऽ देने रही सरकारमे दाखिल करैक लेल, तकर पाँती एखनो मोन अछि, यद्यपि अर्थ लगेबामे अपनो असौकर्य होइत अछि –
अहि-रिपु-पति-तिय सदसानीन
उर- माला- कर- शोभित  बीन
गोपी   –  वल्लभ   श्रीभगवान
रचल  काव्य  धय हुनके ध्यान
ई नै बुझि लेब जे ई पाँती हमर मा निषाद प्रतिष्ठांथिक । डंड-बैसक पहिनोसँ प्रारम्भ छलैक ।

ओहि समयक एकटा घटना मोन पड़ैछ । बीचमे ई बुझि लेबाक थिक जे सचिव-सदन साहित्य आ भाषा - हिन्दी आ मैथिली - दुनूक केन्द छल । दिनकर आ राजा राधिकारमण अधिक काल पाहुन होइत छला । आचार्य रमानाथ झा, डॉ. सुभद्र झा, पंडित जयदेव मिश्र घंटो ओइ विवादमे प्रत्येक दिन शामिल होथि जे मैथिली वा हिन्दी भाषा-साहित्यक अभ्युन्नतिक लेल [पृ.-52]होइक । ताही दिनुक एकटा आर चित्र उभरैत अछि । शिशु मैथिली साहित्य परिषदक स्थापना दरभंगामे कयल गेल छलैक । उद्येश्य छलैक गामक प्राइमरी स्कूल धरि मैथिलीक चेतना जगाएब । मधुबनीमे प्रथम सम्मेलन भेल छलैक । अध्यक्षता केने छलाह प्रयाग विश्वविद्यालयक राजनीति विभागक छात्र पंडित चेतकर झा आ स्वागताध्यक्ष छलाह राँटीक श्रीमान् बाबू साहेबक बालक । जहाँ धरि हमरा मोन अछि, प्रायः 1945 ई. मे । हमरालोकनि राज स्कूल दरभंगासँ डेलीगेट भऽकऽ गेल रही - मणी भायक नेतृत्वमे । कवि-गोष्ठी आयोजित भेल छलैक । हमर रचना जे शास्त्रीजी गढ़ि देने छलाह, से ट्रेनसँ पौदानपर यात्रा करैक हीरोपनीमे उपरका जेबीसँ कतौ उड़ि गेल । स्मरणसँ हबड़-हबड़ लिखि तँ लेलौं मुदा बात जमलै नै ।

अही सभ कूद-फानमे भेलै जे आइसँ हमसभ आजाद । ने लाहौर हमर, ने ढाका । छौंड़ासभ साँस छोड़लक चल भाइ, परीक्षामे भारतक नक्शामे लंका-वर्मा छुटि गेने आब नम्बर नै कटतौ ।

स्वातंत्र्योत्तर काल हमर वैचारिक स्थिरता काल छल, तेँ उद्वेलनो चरमपर छल । अही कालमे हमरा लागल छल जे आचार्यलोकनिक देखाओल उद्येश्य आब काव्यक नै भऽ सकैत अछि । शोषण-उत्पीड़न केर अर्थ बुझऽ लगलियैक । बताह पतिक संग एकसरि रहैत बहिनिक सुख-दुख देखलियनि । ओइ विशाल सामन्ती परिवार, जकर पूर्वमे चर्चा कएल अछि, तकर धूरीमे अपन माए देखा पड़ली । गंगाइक पीठपर हमर गाँधीवादी पिता द्वारा बरिसाओल छड़ीक दागपर माएक देल नारिकर तेल लऽ जाइत हमरा कोनो विद्रोहक भाव मोनमे आएल हो, से नै मोन पड़ैत अछि । मुदा हम जाहि कालक जिक्र कऽ रहल छलौं, ताहिमे हमर मन ई निश्चित रूपसँ मानि लेलक जे हमरालोकनिक उद्धारक मार्ग मात्र मार्क्सवादी चिन्तनधारा भऽ सकैत अछि । उद्धारसँ हमर तात्पर्य दूटा अछि - पहिल, प्रचलित जीर्ण सामाजिक मूल्यसँ जे समसामयिक विडम्बनाक व्याख्या नै कऽ सकैत अछि आ दोसर जे मनुक्ख स्पष्ट रूपेँ मनुक्खक रूपमे स्थापित हो ।

अयनामे जे चेहरा उभरैत अछि, से हाटक गाछीमे टएर गाड़ीपर ठाढ़ भऽकऽ बहुत फड़कैत अल्फाजमे बहुत आग्नेय कविक वा सकरीसँ जयनगर धरि बिना टिकटक यात्रा, ‘जनशक्तिक प्रति बेचैत, नौटंकी स्टाइलमे शेर पढ़ैत कविक । अही कालमे मैथिलीसँ संग छुटि गेल । कतए की भऽ रहल छैक, उत्सुकतो खतम भऽ गेल । किछु उल्लेखनीय भैयो नै रहल छलैक । अही कालमे आदिवासी क्षेत्रमे कार्य करैत हमरा अनुभव भेल छल जे मातृभाषा कतेक महत्त्वपूर्ण थिक । कानून बना कऽ अंग्रेज अंग्रेजीएमे राजकाज चला गेल । मुदा, मनुक्खक जाहि मुक्तिक चर्चा हम ऊपर कएल अछि, से बिना मातृभाषाक कोना हएत? हमरा, मैथिलीमे एकटा सांस्कृतिक क्राइसिसक बोध अही कालमे भेल छल । मिथिला-मैथिल-मैथिली - हमर बाल मनपर ई अभिलेख छल । आ एकर उपयोगिता लोकक संग काज करैत काल बुझने छलियैक । हम आइयो एहि बातकेँ मानैत छी जे, जँ मिथिला तँ ताहिमे रहैवला मैथिल आ तनिक भाषा मैथिली । जनतंत्रमे सरकारो अही क्रममे जन तक पहुँचि सकत आ जन सेहो अपन सरकार अपने बना सकता । अही मानसिक स्थितिमे हम आज पावस की निशा में फिर तुम्हारी याद आई सँ बाहर भऽकऽ ई देवता छथि पाथरक खएता मुदा मिष्टान्न हलुवाधरिक यात्रा केने छलौं ।

तकर बादक जे अयना अछि ओहिमेक चेहरा सभकेँ देखा पड़ैए । हम बलौं ओकर बखान करी, बहुत झंझट ।

सभ छान-पगहा तोड़ि-ताड़ि जखन हमरा अपन पारिवारिक ताना-बाना आर्यावर्तक उपसम्पादकी छोड़ा कऽ जनकपुर पहुँचा देलक, आटा-दालिक भाव बाजारमे बूझब अनिवार्य भऽ गेल । ता मिथिला मिहिरसेहो उपलब्ध भेल । मिथिला मिहिरमाने एहन अयना, जाहिमे सभक चेहरा झक-झक देखाइए । ओकर फाइलसँ ई बात बुझल जा सकैत अछि । हमर चेहराक रंग बदलल लागत 1965क बाद । ओतय हम अपन मौलिक रूपमे छी । जे संचित अर्जित लबादा छल, प्रायः हम ओइसँ बहरेबाक यत्न करैत रहल छी । सीता, जे हमरालोकनिक आदर्श थिकी, ओ समस्त मैथिलानी जातिकेँ आइ दुर्गतिक पराकाष्ठापर पहुँचा देने छथि ।  प्रत्येक मैथिलानीमे जीबैत [पृ.-53]सीताक समर्पण-भावनाकेँ अपमानित-लांछित होइत देखि कऽ हम चुप नै रहल छी - 1951मे प्रकाशित अपन दीदीकथासँ लऽकऽ आइ धरि ।

स्वजातिकेँ वस्तु बनाकऽ ओकरा संगेँ पशुवत व्यवहार हमरासभक एहन परम्परा थिक, जाहि दिस कनेको ध्यान नहि जाइत अछि - नै, स्त्रीजातियोक नै । अही वितंडावाद सभपर प्रकाश दैत एकटा कविता लिखने रही - एक बेर फेर राजधानीमे ।भीम बाबूकेँ देलियनि । मुदा ओ जब्त भऽ गेल । दू वर्षक बाद देवीजी हटली तँ भीम भाइकेँ प्रकाशित करैक अनुमति भेटलनि । अनुमतिक बातपर एकटा आर बात मोन पड़ैत अछि - अगुरबानक प्रकाशनक बाद जे पत्र आयल ताहिमे एकटा ललितजीक सेहो छल । लिखने छलाह - मनुक्खमे कतौ देवतो छैक, तकरो अन्वेषण हेबाक चाही ।प्रतिक्रियास्वरूप एकटा खिस्सा लिखाएल - मनुक्खक देवता ।अइ बेर सरकार नै, प्रकाशक जब्त कऽ लेलनि । ओ हेराइए गेल । बहुत बाद भऽकऽ संयोगसँ ओकर प्रति भेटल, तेँ बाँचल  । जे-से ।

प्रायः 1966-67मे आदरणीय किसुनजी सुपौलमे आधुनिक मैथिलीक शंख फुकने छलाह । हम प्रारम्भसँ पत्राचार द्वारा समस्त कार्य-कलापसँ जुड़ल रहलौं । मुदा ऐन अधिवेशनक समय हमरा अगत्या सिमरियामे बिताबए पड़ल छल । मुदा धीरू बाबू (प्रो0 धीरेश्वर झाजी) हमर एकटा कविता लऽ गेल छलाह आ सभामे बाँचनौ छला । जे प्रतिक्रिया कहैत आएल छला ताहिसँ हमर अद्यावधि विश्वास अछि जे कविताक संवेदनशील श्रोताक मादे सुपौल सभसँ आगू अछि । सुपौल नै जा सकबाक मजबूरी अन्ततः हमर मूक भऽ जेबामे फलित भेल छल । जँ अनिवार्यतः शब्द वापसो आएल तँ अनिवार्ये कार्यक हेतु । वैह मजबूरी हमर व्यक्ति, दृष्टि, रचनासभसँ परिलक्षित हएत।

अयनामे  हमर एकटा नव चेहरा  उभरैत लगैत अछि ।  एकटा प्रौढ़ धूमकेतुक ।  समस्त  घृणा-उपेक्षाक बीच भगजोगनी जकाँ अपनेमे जरैत धूमकेतुक । एहन धूमकेतुक जनिक चेहरा सभकेँ स्पष्ट देखाइत छनि । अपनेसँ व्याख्याक आवश्यकता की? मित्रगणक विशेष चर्चा हमरा कखनो अभीष्ट नै रहैत अछि । ओना बाबा आ अपन बीचमे हमरा दूटा धूमिल चेहरा अयनामे झलकैए - माथुर आ राघवाचार्य । मुदा हम, ने मैथिली साहित्यक अध्येता छी, ने ओकर इतिहास-भूगोलक ज्ञाता । जे रचै छी से मैथिलीमे, कारण हमर जे रचना-उपकरण छथि, जनिक हमरा प्रत्यक्ष ज्ञान अछि, से मैथिल थिका आ मैथिली बजै छथि । तेँ हमर दृष्टिदोषक व्याख्या तँ कोनो मैथिलीदाँए कऽ सकता ।

अयना- 2
 जैनेन्द एकटा महाग्रन्थ लिखने छथि - समय और हम। मोनमे अबैत अछि, समय तँ हमरहुसँ गुजरल अछि । एकटा निश्चित तिथिकेँ जे प्रकट भेल से समयसँ बाहर जाएत कतए? आ कालेक एकटा निश्चित अवधिमे तिरोहितो भऽ जाएत । मतलब जे समयसँ मुक्त क्यो नै अछि । अवतारो नै, मसीहो नै । हम तँ कहब जे कालदंशे व्यक्तिकेँ भाववाचकताक अभिव्यक्ति दैत छैक, ‘त्वजोड़ि कऽ ।

जे-से । मुदा ई अधिक काल होइत रहैत अछि जे मैथिलीक ओ कोन दंश थिक जे हमर अनन्य घूमकेतुकेँ प्रकट केलकनि, आ हमरा व्यक्तिकेँ एकटा त्वदऽ देलक। कथा-कविता तँ नै आ जे बहुत गम्भीर आलेख तँ सैकड़ो प्रस्तुत केने हएब । मुदा ओ सभ हमर थिक, घूमकेतुक नै थिकनि, घूमकेतुक त्वहमरासँ प्रखर छनि । मुदा डंक तँ हमरे लागल अछि । की थिक ओ?

रोटी कमा लैक लेल जे भाषा सहयोग देलक से हँसी लागत, अंग्रेजी रहल अछि । लीखि-बाजि लेबाक लूरि मजबूरी ।

 तखनि? मैथिलीक ई दंश? आ जहर आपादमस्तक व्याप्त? हमरा लागल एकर उत्स, कतौ ने कतौ कालप्रवाहमे अवश्य हेबाक चाही ।

मधुबनी शहरमे लघुसिंचाई योजनक जे ऑफिस छैकततएसँ लऽकऽ करीब-करीब पुल [पृ.-54]धरि टटघरमे स्थापित एकटा प्रेस छलैक, ‘मैथिल प्रिंटिंग वर्क्स। आइ कहि सकै छी जे ओकर  व्यवस्थापक हमर पिता छला । ताइ दिन नै बुझियै, ओ की छला, मुदा जे लोक आबनि, ताहिमे मैथिलीयो किताब छपाबैबला रहथि । स्वाभाविक छलै, जे-जे खिस्सा-पिहानी छपै, से एक प्रति हमरा माताकेँ उपलब्ध भऽ जाइनि । गोनू झाक चुटुक्का गोनू विनोदनामसँ छपल छलनि । प्रायः तीन कि चारि भागमे । दुपहरियामे ओकर परायण समय काटबाक पारिवारिक शगल रहैक, प्रायः ई पहिल दंश हो । कारण प्रारम्भिक प्रतिक्रिया हमरो यैह छल जे मैथिली हास्य-विनोदक द्वारा सरकारक मनोरंजनक अतिरिक्त आर किछु करबा जोग नै अछि । ताहि दिन ओही प्रेससँ माधवी-माधवछपल छलैक । हमरा मोन अछि, नायिकाकेँ अपहृत करैक चेष्टासँ पूर्व ओकरालोकनिक वार्त्तालाप हमर बहीनसभ बरमहल दोहरबैत रहथिन ।

अपना होइए जे ओइ दिनमे तँ बड़ नेना रही । हमर पिता पोन परक कलकलि कार्बोलिक साबुनसँ धो देता, ताहि लेल हुनका बहुत परिश्रम करबियनि । तखन फेर ई उपन्यास? मैथिली? ओना हमरा बुझने दंश ओही बएसक सभसँ कड़गर होइ छैक । तत्काल बोध नै हो, से बात फूट ।  हमरा तँ लगैत अछि जे राज स्कूलमे भर्ती भेलाक बाद मैथिलीक दोसर दंश कतौ अही लेल ने कहीं बेसी व्यापने होअए जे ओकरा प्रेसबला कालक जहरकेँ मात्र पुनः सक्रिय करऽ पड़लैक । राज स्कूलक वातावरण मैथिली केन्द्रित छलैक । ओकर प्रधानाध्यापककेँ हिन्दियो ने बाजऽ अबैन । ओना ताइ दिन स्कूलिंग केर प्रयास तँ सभ स्कूलमे रहै मुदा जाहि कालक राज स्कूलक चर्चा हम कऽ रहल छी, तकर जोड़ा नै रहै । ओइ स्कूलमे स्वभावतः राजसँ सम्पर्कित व्यक्तिक वार्डकेँ स्थान भेटैक, डिस्टिक बोर्डक मिडिल परीक्षाक सर्टिफिकेटक आधारपर । मायानन्द मिश्रजी छला, हमरालोकनिसँ बड़ सिनियर । संयोगात द्वितीय श्रेणीमे उत्तीर्ण भऽ गेला । विद्यालय त्यजन प्रमाण-पत्र हुनका पठा देल गेलनि, कैम्पसमे नै प्रवेश  पाबि सकला ।  ऑफिस एबाक चर्चा कोन! स्वैच्छिक-शैक्षिक अनुशासनक दृष्टिसँ एन.के. घोष सनक शिक्षक देखल नै ।

मैथिलीक मादे कहैत छलौं जे मैथिली स्वैच्छिक वातावरणक केन्द्रमे छलै । दरभंगा राजक दिससँ मैथिली भाषा-साहित्यक हेतु पटना विश्वविद्यालयमे रमेश्वर चेयरकऽ देल गेल छलैक । आठवाँ वर्गमे मैथिली, संस्कृतक विकल्प रूपमे स्वीकृत भऽ गेल छलैक । पं. जयदेव मिश्र, चं.मि. महाविद्यालयमे मैथिलीक व्याख्याता नियुक्त छला । पाठ्यपुस्तक दारिद्र्य-बोध उपस्थित छलैक । आ अइ समस्त वातावरण बीच शलाका-पुरुषक रूपमे छला - स्वनामधन्य कुमार श्री गंगानन्द सिंह । गणेशकेँ मैथिलीमे लम्बोदर कही कि गजानन, ताहिपर विवाद चलैक । योगा बाबू भलमानुसक पहिल प्रति लऽकऽ ओतहि उपस्थित भेल छला । गुरुवर अमरजीक गुदगुदीछपि कऽ ओत्तहि पहुँचल   छलनि । भांगपीने शेरमशेर भुअंकर त्रिपुंड, बहुत प्रखर जनौं, मुदा भुवनमोहिनी मुसकानबला फोटो फाइन आर्ट कॉटेजसँ बनि कऽ ब्लॉक बनैसँ पूर्व ओतहि प्रदर्शित भेल छलैक । बगलमे राजक विशाल पुस्तकालय, जाहिमे पंडित प्रवर रमानाथ झा जीक साधना । सात दिनपर एकटा कऽ मैथिली रचना नेने प्रकट होमऽबला राजगजटअर्थात् मिथिला-मिहिरसेहो, कम काल नै, वातावरणकेँ उद्वेलित कऽ जाइ । स्वनामधन्य सम्पादक पंडित हीरानन्द झा शास्त्रीक धुनिञाक खोजजहिया छपि कऽ आएल छलैक, प्रायः एक बेर कऽ सभ पढ़ने होएत ।

जाहि समयक चर्चा कऽ रहल छी - 42क आन्दोलनक झमाड़ अंग्रेजी राजकेँ हिला देने छलैक । सम्भव थिक, युद्धकालमे लागल छलैक, तेँ बेसम्हार भेल होइ । कुमार गंगानन्द सिंह हिन्दू महासभाक प्रान्तीय अध्यक्ष छला । तेँ हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तानबला वातावरण सभसँ मुखर छलैक । राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, कामेश्वर सिंह मस्तआदिकेँ पाँच दिन आबि कऽ रहबाक अवसर होइनि, शिवपूजन सहाय, रामधारी सिंह दिनकर’, पं0 जगन्नाथ मिश्र, प्रिंसिपल बी.एन.ए. सिन्हा  हिन्दी-हिन्दू-हिन्दुस्तानबला गोष्ठीक रत्न छला । मुदा ओइ कालसँ निःसृत एकटा आवश्यकताक रूपमे मैथिली एलै आ पूरा राज्यकेँ एहि बातक चिन्ता भेलै जे मैथिलीकेँ, ओकरा बढ़ाकऽ राखब चाहैत  छलैक । तेँ, मिथिला-मैथिल-मैथिली सेहो ओही सचिव-सदन मे रूप लैत छलैक । प्रभाव [शेषांश पृ.-62]आ हाथ रमानाथ बाबूक छलनि । कॉलेजक छात्र-संघो की करितय? सी.एम. कॉलेजमे पढ़ाइ छल - एकटा मात्र छात्र छल । स्मृतिसँ कहऽ कही तँ हम कहि सकै छी जे हिन्दी-हिन्दू- हिन्दुस्तान तुराइए तर पता नै कखनि हमरा ई जहर व्यापल । सम्भव थिक, प्रतिक्रिया भेल हो । मुदा हमरालोकनि एकटा अखिल भारतीय शिशु मैथिली साहित्य सम्मेलनक पहिल अधिवेशन मधुबनीमे कऽ छोड़ल ।
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स्रोत
मिथिला विभूति पर्व स्मारिका  (भोलालाल दास आ धूमकेतु पर केन्द्रित)  तेसर विशेषांक
हैदराबाद सिकन्दराबाद, 14 मइ2017
संपादक- चन्द्रमोहन कर्ण
प्रकाशक : देसिल बयना मैथिली साहित्य मंच,  हैदराबाद-सिकन्दराबाद

Monday, December 11, 2017

मैथिलीक समस्या : रमानाथ झा

रमानाथ झा मैथिलीक समस्या सब पर गंभीरतापूर्वक विचार करय वला विद्वान छलाह । एहि मादे लीखल हुनक कएक टा लेख मैथिली आ अंग्रेजी मे भेटैत छैक । प्रस्तुत कयल जा रहल लेख एक एहिने लेख थिक । एहि लेख मे मैथिलीक प्रति बिहार आ भारत सरकारक द्वेषपूर्ण व्यवहारक चर्चा छैक, मिथिलामे जन चेतनाक अभावक चर्चा छैक आ अन्यान्य कतेको महत्वपूर्ण बात छैक । एहि लेख मे मैथिलीक राजनीतिक अधिकारक प्राप्तिक आवश्यकता यानी अष्टम अनुसूची मे एकर प्रवेशक आवश्यकता पर बड्ड ज़ोर देल गेल छैक । लेख केर किछु बिंदु सँ असहमतिक गुंजाइश सेहो भ' सकैये, मुदा एहि बात मे कोनो संदेह ने जे मैथिलीक शोधार्थी आ जिज्ञासु पाठकक लेल ई महत्वक सामग्री छैक । प्रस्तुत लेखकेँ पढ़ैत हमरा सबहक लेल इहो विचारणीय हेबाक चाही जे आब जखन की मैथिली केँ अष्टम अनुसूचीमे जगह भेट गेल छैक, की मैथिली आ मैथिलीभाषी केँ ओ सब प्राप्त भ’ गेल छैक, जकर अपेक्षा रमानाथ बाबूक एहि लेख मे व्यक्त भेल छैक वा एहि दिशा मे बहुत बेसी गंभीरताक संगे मैथिल सामूहिकता बलें बहुत रास आरो काज करवाक आवश्यकता छैक? एहि लेखक प्रकाशन  ‘मिथिला मिहिर’क 31.08.1969 अंक मे भेल छलहि । संदर्भक लेल मोहन भारद्वाज द्वारा संपादित आ वाणी प्रकाशन सँ 2010 मे प्रकाशित  'रमानाथ झा रचनावली' क तेसर खंडक उपयोग सेहो कयल जा सकैत अछि, जाहि मे ई पृष्ठ संख्या 197 सँ 201 धरि प्रकाशित भेल छैक ।


मैथिलीक समस्या
रमानाथ झा

       चारि बर्ष पूर्व जखन साहित्य अकादमीमे मैथिलीकेँ स्थान भेटलैक ओ मैथिलीक प्रतिनिधि भए हम ओकर कार्यकारिणी समिति एवं साधारण सभासँ भए अएलहुँ तखन हम, 'मैथिलीक वर्तमान समस्या' कहि एक गोट छोट पुस्तिका लीखि प्रकाशित कराए देल जाहिमे मैथिलीक समक्ष जे समस्या हमरा सभसँ बिशेष मौलिक ओ मार्मिक, सबसँ आवश्यक, प्रतीत भेल तकर नीक जकाँ उपपादन कए शिक्षित समाजक ध्यान ओहि दिसि आकृष्ट कएने छलहुँ । सरकारक मैथिली-सम्बन्धी नीतिक चर्चा कए हम ओहि मे कहने छलहुँ -
"यदि मैथिलीक प्रति न्याय नहि कएल जाएत, मैथिलीक उपेक्षाक नीति यदि छोड़ल जाएत, राष्ट्रभाषाक बेदी पर मैथिलीक बलिदान व्यापार यदि बन्द नहि होइत अछि तँ आओर आन्दोलन तँ हमर साध्य नहि होएत, परन्तु अकादमिक मंच परसँ, जाहिमे भारतक कए गोट साहित्यिक भाषाक प्रतिनिधि छथि, ई तँ हम उद्घोष कए कहि सकैत छिऐन्हि जे मैथिलीकेँ अपना घरमे बिहार सरकार भूखेँ मारि रहलैक अछि, राष्ट्रभाषाक वेदी पर जनमतक विरूद्ध मैथिलीक बलिदान के रहल अछि ।"

ई हम 1966 मे लिखने छलहुँ । तहिआ सँ आइ धरि बिहार सरकारक नीतिमे कोनो परिवर्त्तन नहिए भेल अछि प्रत्युत श्री कर्पूरीठाकुरक सदृश मैथिली-भाषी जननेता बिहारक शिक्षा मन्त्रीक पदसँ बाजि गेलाह जे मैथिलीभाषी लोकक संख्या 'पचास लाख' होएत ओ लोकसेवा आयोगमे मैथिलीके स्थान "ओ नहि दए सकैत छथि ।" ओमहर केन्दीय सरकार जे एतेक दिन मैथिलीक हितक दिशामे जागरूक बुझि पड़ैत छल- कम सँ कम पण्डित जवाहरलाल तँ अवश्य मैथिलीक उद्धार कए देल- एमहर बिहारहिक सरकार जकाँ विरुद्ध नहि, तँ उदासीन अवश्य भए गेल अछि । गत वर्ष भारत सरकार भारतीय भाषा सबकेँ  विकासक योजना बनाए उन्नतिक पथ पर अग्रसर होएबाक हेतु पर्याप्त अनुदानक घोषणा कएलक ओ तदर्थ दिल्लीमे भारतीय भाषा समितिक स्थापना कएलक । ताहिमे मैथिलीकेँ स्थान नहि देल गेल । हम भारत सरकारक ओतए निवेदन कएल जे यदि भारतीय कोनहु भाषाकेँ केन्द्रीय सरकारक अनुदानक अपेक्षा छैक तँ से मैथिली थिक, कारण, मैथिलीकेँ अपन राज्य सरकार किछु मदति नहि करैत छैक । हमर निवेदन साहित्य अकादमी अग्रसारित कएलक । हम एकटा योजना सेहो बनाकए पठओलिएक जे दड़िभांग मे एक गोट मैथिली- प्रतिष्ठानक स्थापना कराए देल जाए जतएसँ मैथिलीक प्रकाशन होएत रहए ओ मैथिलीक उत्तम ग्रन्थ सभकेँ पुरस्कार देल जाए । मुदा शिक्षा विभागक राज्यपंत्री प्रो. शेर सिंहक उत्तर आएल जे "जेँ मैथिली संविधानक अष्टम अनुसूचीमे नहि अछि तेँ भारतीय भाषा समितिमे मैथिलीक समावेश सम्भव नहि अछि।" विचारल जाओ जे यदि अष्टम अनुसूची मे मैथिली रहैत तँ ई निवेदन करबाक अवसरे की होयत, तखन तँ अनुदान मैथिलीकेँ स्वतः प्राप्त रहितैक । प्रतिष्ठानक योजनाक प्रसंग उत्तर आएल जे -'चारिम योजनामे भाषाक प्रतिष्ठान राज्य-सरकारक क्षेत्रमे छैक तैँ एहि प्रसंगक निवेदन विहार राज्य-सरकारक ओतए कर्त्तव्य।'' साहित्य अकादमीक मान्यतासँ मैथिलीक मान्यताक प्रसंग कोनो अन्तर नहि भेल । बिनु राजनीतिक मान्यता प्राप्त भेने मैथिलीक उद्धारक दोसर कोनो मार्ग नहि अछि । बिहार सरकार राष्ट्रभाषा परिषदपर लाखक हिसाबें टाका व्यय करैत अछि, मुदा एतबा विवेक नहि छैक जे मैथिलीक हेतु किछु हजारो टाका दैक । बिहारकेँ मैथिलीक गौरव चाहिऐक मुदाविहारक राजनीतिक नेताकेँ एकर गौरव नहि, एकरासँ जेना द्वेष होइक !

अतएव हमरा अपन स्थिति समस्त देशक साहित्यकारकेँ जनाएब आवश्यक भए गेल । भाग्यसँ ताहि हेतु हमराअवसर बड्ड सुन्दर भेटल । गत 2 अगसतकेँ अकादमीक बैसक बेल छल सभापतिक निर्वाचनक निमित्त । देश भरिसँ सदस्यलोकनि अओताह तँ किछु विचार-विनिमय हो अकादमी एक गोट विचार-गोष्ठीक आयोजन कएलक तीन ओ चारि अगस्तकेँ जाहिमे ओहि तीनि भाषाक समस्यापर निबन्ध पढ़ल गेल तथा विचार-विनिमय भेल जाहि तीनि भाषाकेँ साहित्य अकादमी मान्यता देने छैक, अष्टम अनुसूचीमे नामो छैक, परन्तु जकारा अपन राज्य नहि छैक । एहन तीनि गोट भाषा छैक संस्कृत, उर्दू तथा सिन्धी।  हम एहि विचार-गोष्ठीक निमित्त मैथिलीक समस्यापर निबन्ध लीखि पठओलिऐक जकरा राज्य छैक मुदा सरकार नहि छैक, स्टेट छैक, गवर्नमेंट नहि छैक ।  सर्वसम्मतिसँ हमर निबन्ध स्वीकृत भेल तथा 4 अगस्तकेँ ओतए पढ़ल गेल । ओहि पर विचार-विनिमय भेल । गोष्ठीमे भाषा-सबहिक प्रतिनिधि तँ छलाहे, भारत-सरकारक मनोनीत सदस्य सेहो छला ह। हमर निबंध गोष्ठीकेँ ततेक पसिन्न पड़लैक जे ओतहि निश्चय भेल जे ई सम्पूर्ण निबंध अकादमीक पत्रिका  'इंडियन लिटरेचर'क अग्रिम अंकमे प्रकाशित भए जाए । बिहार सरकारक उपेक्षानीति ओ भारत सरकारक उदासीनताक हम ओहिमे स्पष्ट विवरण प्रस्तुत कएने छी ओ एहि कथाकेँ नीक जकां बुझाए देने छी जे बिहार-सरकार जानिकेँ मैथिलीकेँ राष्ट्रभाषाक  वेदी पर बलिदान कए रहल अछि । हमरालोकनि भाषाकेँ राजनीतिक प्रश्न नहि बनबए चाहैत छी । मैथिल हिन्दीक विरोधी नहि छथि । राष्ट्रीय एकताक हेतु हमरा लोकनि अपन प्राचीन लिपिक त्याग कए देल जाहि कारणें ई सब अनुताप सहए पड़ैत अछि । परन्तु मैथिली-विरोधी नीतिक फलस्वरूप यदि मिथिलामे हिन्दीक विरोधी आन्दोलन प्रारम्भ हो तँ तकर दोष मैथिलीभाषाभाषीकेँ नहि देल जाए; ताहि हेतु उत्तरदायी बूझल जाथि हिन्दी-साम्राज्यवादक पुजेगरीलोकनि जे आबहु बिहारकेँ हिन्दी-भाषी प्रान्त मानैत छथि ओ मैथिलीक अभ्युदयक प्रश्न अबितहिं भोजपुरी जो मगहीक प्रश्नकेँ आगाँ कए ओकर मार्गमे प्रतिबन्ध ठाढ़ करैत छथि । साहित्य अकादमीक मंचपरसँ ई उद्घोष हम सबकेँ सुनाए देल ओ आब जखन अकादमिक पत्रिका 'इंडियन लिटरेचर' मे ई प्रकाशित होएत तखन केवल भारतवर्षहिटामे  नहि, विश्वमे जतए कतहु भारतीय भाषाक आदर अछि सर्वत्र ई ज्ञापित भए जाएत जे भारतवर्ष एक भागक प्राचीन भाषा जकरा साहित्य अकादमीक मान्यता प्राप्त  छैक, जकर उत्कृष्ट रचना पर प्रतिवर्ष पुरस्कार भेटैत छैक, जकर बजनिहारक संख्या कोटिसँ कम तँ नहिए छैक, दू कोटिक लग पहुँचि जएतैक तकरा अपन राज्य बिहारक तँ कथे कोन, भारत सरकार समेत भूखें मारि रहलैक अछि। इएह थिक भारतवर्षक लोक कल्याणकारी राष्ट्र, इएह थिक भारतवासीक मौलिक अधिकार,इएह थिक भारतक राष्ट्रभाषा हिन्दीक साम्राज्यवाद! एही राष्ट्रभाषा हिन्दीक साम्राज्यवादक विरोधमे दक्षिणमे हिन्दीक वहिष्कार भए रहल अछि । एही साम्राज्यवादक दुष्परिणाम थिक जे राजस्थानी विद्रोहमे उठि ठाढ़ भेल अछि ओ अग्रिम वर्ष  साहित्य अकादमीक मान्यता प्राप्त कए अपनाकेँ स्वतंन्त्र घोषित कए रहल अछि ।

परन्तु हमर उद्घोषसँ मैथिलीक प्रति सभक सहानुभूति भेलैक, नैतिक बल प्राप्त भेलैक से अवश्य मुदा ताहिसँ आगाँ की फल होएतैक? गोष्ठीमे चारू दिशिसँ हमरा प्रश्न कएल गेल जे एहन जखन स्थिति अछि ओ बिहार विधान सभाक कम सँ कम एक तृतीयांश सदस्य जखन मिथिलाभाषाभाषी छथि तखन सरकार एहन उपेक्षाक नीति किएक रखने अछि, कोना रखने अछि? वस्तुत: प्रजातन्त्रमे राजनीतिक स्वत्वक रक्षा केओ अपनहि कए सकैत अछि । साहित्य अकादमी तँ साहित्यिक मान्यता देलक, ताहिसँ अधिक ओ की कए सकत? हमर एके टा उत्तर छल, बड़ छोट आ बड़ सोझ, जे हमराअपन भाषाकेँ राजनीतिक प्रश्न नहि बनबए जनैत छी । नहि तँ हमरा लोकनि हिन्दीक प्रचारक निमित्त अपन लिपिक त्याग करितहुँ? एहि उत्तरसँ ओतय तँ सब संतुष्ट भेल, हमरा लोकनिक उदार भावनाक प्रति आदर देखौलक, मुदा प्रश्नतँ इएह अछि सब समस्याक जड़ि । राजनीतिक मान्यता प्राप्त करब आब मैथिलीक हेतु नितान्त आवश्यक भए गेल अछि ओ राजनीतिक मान्यता प्राप्त करबाक हेतु मैथिलीकेँ राजनीतिक समस्या बनबए पड़त, ओहि हेतु राजनीतिक संघटन करए पड़त, राजनीतिक आन्दोलन करए पड़त । ई समयक प्रभाव थिक अथवा एहि तथ्यक जागि रहल चेतना थिक जे श्रीयुत ललितनारायण मिश्रक सदृश नव-मिथिलाक वरिष्ठ जन-नेता जे भारत सरकारक राज्यमन्त्री छथि सौराठ सभामे बाजि गेलाह जे मैथिलीक हेतु, मैथिलकेँ आब मिथिलाक राज्य ने मांगए पड़ए? हालहिमे लहेरिआसरायमे मैथिली प्रचार सेवाक संघटन प्रारम्भ भेल अछि । अपन भाषा-सम्बंधी अधिकारक हेतु अनशन आरम्भ भए गेल छल ओ सुनैत छी पुनः आरम्भ होएत । हम नहि चाहैत छी- हमर संस्कृति ई नहि कहैत अछि- जे एहि हेतु हम ककरो विरोध करी, परन्तु आन्दोलन चलि गेला उत्तर ओकर की रूप रहतैक से के कहि सकैत अछि! अपना घरमे अपन उपेक्षाकेँ देखैत ओ भारतक अन्य भागमे अपन-अपन भाषाक हेतु की-की भए रहल छैक से जनैत हमहि कोना कहब, केओ कोना कहत जे मैथिलीक अभिवृद्धिक कथा जाए दिय, मैथिलीक अस्तित्वहुक हेतु राजनीतिक अधिकार प्राप्त करब आदि आवश्यक नहि भए गेल अछि ओ ताहि हेतु यदि आन्दोलन करए पड़ए तँ सहो विधेय नहि थिक ।

परन्तु ई हताशाक विचार थिक, अन्तःकरणसँ हम आन्दोलनक पक्षमे नहि छी । हमरा लोकनिक जे संस्कृति अछि तकर जे संस्कार हृदयमे दृढ़ भए गेल अछि तकरा आब एहि वयसमे हटएबो सम्भव नहि अछि । हमरा लोकनिक संस्कृतिमे कर्तव्यपालनक शिक्षा अछि । कर्तव्यक पालन कएनहि अधिकार प्राप्त भए सकैत छैक । विश्वामित्र ओ वशिष्ठक उपाख्यान एकरे शिक्षा दैत अछि । युद्ध पर्यन्त कएलेँ वशिष्ठ विश्वामित्रकेँ ब्रह्मर्षि नहि स्वीकार कएल, ताहि हेतु विश्वामित्रके 'ब्राह्मण्य' प्राप्त करए पड़ल । यदि समस्त मैथिलीभाषाभाषी जन-समुदाय अपन भाषाक प्रति अपन कर्त्तव्य बुझे लागए तं संसारमे कोनो शक्ति नहि छैक जे हमरा अपन अधिकारसँ वंचित राखि सकए । अधिकार पाबि यदि तद्नुरूप कर्त्तव्यक पालन नहि करब तँ प्राप्तो अधिकार नहि राखि सकब-ओहिसँ च्युत भए जायब । ई कथा की हमरा कहए पड़त जे एक सए शिक्षित व्यक्तिमे एको व्यक्ति मातृभाषाक प्रति अपन कर्त्तव्यक भावना समेत नहि करैत छी । जे लोकनि नेता कहाए सभामे मंचपरसँ बड़का-बड़का व्याख्यान दैत छथि ताहूमे कए व्यक्ति मैथिलीक प्रति अपन कर्त्तव्यक पालन करैत छथि? कहैत छिऐक जे दू कोटि जनता मैथिलीभाषाभाषी अछि, मुदा दू कोटि जनताकेँ अपन मातृभाषा मैथिलीक प्रति गौरवक अनुभव करबाक अवसर दैत छियैक? हम तँ बुझैत छी जे मैथिलीक दीनता, दुरव्यवस्था, उपेक्षा-सब किछु अछि मैथिलीभाषाभाषीक अकर्मण्यताक कारणेँ, कर्त्तव्यक प्रति परांगमुखताक कारणेँ, अपनानमे नाना प्रकारक भेद-भावसँ सामूहिक चेतनाक अभावक कारणें। हम ककरहु अनुत्साहित नहि करैत छी, जतेक संस्था वा जे केओ व्यक्ति मैथिलीक हेतु जे कोनो कार्य करैत छथि किंवा जे कोनो आंदोलन करैत छथि; सबहुक प्रति हमर हार्दिक शुभकामना, अजस्र सद्भाव । मुदा सबसँ हमर एग गोट मात्र विनम्र निवेदन जे आओर जे आन्दोलन करैत जाइ ओहि संग एक गोट ईहो आन्दोलन कएल जाओ जे समस्त मैथिलीभाषाभाषी क्षेत्रमे, समस्त जनसमुदायकेँ आपागर जनताकेँ ई बुझाए दिऔक जे ओहो मैथिली बजैत अछि, मैथिली ओकरो मातृभाषा थिकैक, अपन भाषाक प्रति सबकेँ किछु ने किछु कर्त्तव्य छैक ओ ताहि कर्त्तव्यक पालन थोड़-बहुत अपन-अपन योग्यताक अनुसार सब केओ करए ।

हमरा तँ विश्वास अछि जे तेहन सत्य ओ सबल हमर पक्ष अछि ओ ताहि महामायाक नाम पर हमर भाषाक नाम अछि जे एकर हानि भए नहि सकैत छैक, एकर अभ्युदय अवश्यम्भावी छैक । हँ, यदि हमरा लोकनि जागरूक रहब, सचेष्ट रहब, ओ नीतिक मार्ग धएने चलब तँ ओकर गति द्रुततर होयत । जय मैथिली!
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