Friday, September 12, 2025

लोक-शिक्षा मे मैथिलीक स्थान : बाबू भोलालाल दास

संदर्भ पोथी ‘मैथिलीक दधीचि : बाबू भोला लाल दास’ मे लेखक श्री शम्भुनाथ मिश्र सूचना देनय छथि जे पटोरी (भागलपुर) मे मैथिली पुस्तकालयक उद्घाटनक अवसर पर बाबू भोलालाल दास द्वारा देल गेल वक्तव्यक एहि लेख केर रूप मे 'मिथिला मिहिर'क अप्रैल 1944 अंक मे प्रकाशन भेल छल। बाबू भोलालाल दास दृष्टिसंपन्न अभियानी छलाह। हुनकर चिंतन आ विचार हमरा सबहक लेल अत्यंत महत्वपूर्ण अछि। एहि लेख मे व्यक्त हुनकर शिक्षा आ भाषा संबंधी विचार समृद्ध करैत अछि। एहि मे मातृभाषा मे शिक्षाक विषय मे भारतीय इतिहासक अनेक एहेन प्रसंगक उल्लेख अछि जे कम लोक केँ नहि बूझल हेतन्हि। मिथिला मे मातृभाषा मे शिक्षाक प्रश्‍न एखनहु लंबित अछि। ई लेख एहि प्रसंग मे प्रेरित करैत अछि। एहि मे संदर्भ पुस्तकक वर्त्तनी आ देवनागरी अंक केँ प्रायः यथावत राखबाक प्रयास कएल गेल अछि।

लोक-शिक्षा मे मैथिलीक स्थान

बाबू भोलालाल दास

एकटा बड़ महत्त्वपूर्ण प्रश्‍न ई उठैत अछि जे जनताक शिक्षा की बिना मातृभाषाक माध्यमे भए सकैछ? देशक प्रत्येक महान व्यक्ति के ई प्रश्‍न किछु दिन पूर्वहि सँ आह्वान करत आयल छैन्हि। कारण जे कतबो व्यापक, साध्य एवं उपयोगी अङ्गरेजी भाषा रहओ ओ एहि देशक हेतु सार्वजनिक भाषा नहि भए सकैछ। प्रत्येक विद्वान आओर राष्ट्र-कर्मी एहि सिद्धान्त के स्वीकार करबा मे सम्मत छथि। आनो दृष्टि मे वर्तमान शिक्षापद्धतिक एक योजना गेल अछि। किछु वर्ष पूर्वहि तएँ हेतु महात्मा गांधी प्रभृति देशक प्रधान नेतागण भावी शिक्षा पद्धतिक एक योजना तैयार कएलैन्हि जे सम्प्रति 'वर्धा स्कीमक, नामे प्रख्यात अछि। यहि योजनाक ध्येय छैक जनताक अनिवार्य शिक्षा। अंग्रेजो सरकार १५०-२०० वर्षक अभ्यन्तर १०-१२ प्रतिशत से अधिक लोक के शिक्षित नहि कए सकल तएँ अनिवार्य शिक्षाक अनिवार्यता। अस्तु, अन्यान्य विषयक समावेश करत वर्धा पद्धति ७म कक्षा पर्य्यन्त मातृ-भाषाक द्वारा शिक्षा देवाक विधान कएलक अछि। यावत् प्रत्येक कांग्रेस प्रान्त मे शिक्षा सुधारक हेतु प्रान्तीय कमिटी बनाए आ सबके मिलाए एक अखिल भारतीय कमिटीक निर्माण हो वा ई सब अपन-अपन मन्तव्य प्रकाशित करथि तावत् कांग्रेस मन्त्रि-मंडल सब ठाम सँ टूटि गेल किन्तु सरकार द्वारा प्रायः तकर कार्यक्रम कतहु नहि रोकल छैक। उप-स्थित विषय केँ बुझबाक हेतु एतबा कहि प्रकृत विषय पर अबैत छी। बिहारे प्रान्त मुदा बड़ विचित्र अछि। कहियो बुद्ध छलहुँ मुदा एखन तँ बुद्धुए बुझल जाए रहल छी। अन्यथा डिक्री तैयार हएबाक पूर्व कोन एहन प्रान्त अछि जतए इजरायक क्रिया कार्यगत हो ? एतय शिक्षा सुधार कमिटीक व्यवस्थो तावत् नहि प्रकाशित भेल कि हिन्दुस्तानी कमिटीक निर्माण भए गेल ओ तकरा तेसर कक्षा घरि प्रत्येक विषयक एवं ताहि सँ ऊपर नवम कक्षा पर्य्यन्त असाहित्यिक (Non-language) विषयक हिन्दुस्तानी पुस्तक निर्मित करएबाक ओ स्वीकृत करबाक अधिकार दए देल गेलेक। एकर की परिणाम भेल अछि वा होयत से शिक्षक वा शिक्षिते वर्ग कहताह मुदा ई विषय कोनहु रूपे उपेक्ष्य नहि अछि।

आब कनेक शिक्षा-निर्माण-कमिटीक व्यवस्थो सुनि लिय। १७ मार्च १९३६क पूर्णाधिवेशन मे (जाहि मे स्वयं डा० राजेन्द्र प्रसाद जी उपस्थित छलाह) सर्व सम्मति सँ ई स्वीकृत भेल जे सातम कक्षा पर्य्यन्त मैथिली भाषी नेनाक शिक्षा मैथिली द्वारा हो किन्तु कोनो विचित्र गतिए १९४० मे एहि निर्णय के उनटि देल गेल। किमविधिकम्, डा० राजेन्द्र प्रसाद जी ताहि उलट-फेर मे सहमत भए गेलाह ! कमिटी मे एक मात्र प्रो० अमर नाथ झा जी मैथिली बजनिहार छलाह अतः ओ एहि उलट-फेर सँ सहमत नहि भेलथिन्ह। हुनका एहि विषय पर अपन विरोध सूचक व्यवस्था देबाक अधिकार देल गेलेन्हि। फलतः हुनक अखण्डनीय नोट ओहि मे लागल अछि, जाहिसें मैथिलीक योग्यता, अधिकार ओ अनिवार्यता संगहि ओकरा प्रति कएल गेल अनर्गल अत्याचार प्रत्यक्ष अछि।

उक्त कमिटी अनिवार्य शिक्षाक जे योजना एहि रिपोर्टक द्वारा उपस्थित कएने छेक से व्ययसाध्य छैक। तावत् विश्‍वव्यापी युद्ध भारतक द्वारदेशमे आवि तुलाएल। सेक्रटेरियटक कोनहु कोनमे ई रिपोर्ट सड़ि रहल अछि। सरकार एकरा मंजूर करओ कोना ? मुदा तएँ की ? निर्णय (जजमेंट) हो वा नहि, जयपत्र (डिक्री) प्रस्तुत कएल जाओ वा नहि, हिन्दुस्तानी कमिटी कार्यकारिणी न्यायशालाक काज कइए रहल अछि। ओ संस्था ने केवल मैथिलीक अपितु हिन्दी पर्य्यन्तक हत्या भोथ छुरी सँ कए रहल अछि। सरकारकेँ एहि सभक कोन प्रयोजन छन्हि, ई तँ प्रत्येक बिहारवासोक गंभीर चिन्ताक विषय थीक।

हम हिन्दीक कोन कथा हिन्दुस्तानी पर्य्यन्तक विरोधी नहि छी। किछु दिन पूर्व जखन प्रान्तीय विश्‍वविद्यालय द्वारा मैथिलीक स्वीकृतिक हेतु यत्नवान छलहुँ तँ एहि प्रकारक मिथ्या धारणा हमरा विषयमे कतोक गोटाकै छलेन्हि मुदा ताहि युगक आब प्रायः अवसान भए गेल छैक। वर्धा स्कीममे मातृभाषा ओ राष्ट्र-भाषाक स्थान निर्धारित भय गेने एहि भ्रमक भाव समावेशो नहि छैक किन्तु शिक्षा बिभागक अधिकारी-वर्गकै एखनहुँ मातृभाषाक ई अधिकार भयावह, अमंगलसूचक एवं अप्रयोजक बूझि पड़ैत छैन्हि। हुनका भ्रम छैन्हि जे मैथिलीक स्वीकृति देने भोजपुरी ओ मगही सेहो ठाढ़ होयत एवं बिहार प्रांतमे भाषाक अनैक्य होयत। ई संदेह यथार्थ पूछी तँ आनो प्रांतक हेतु उपयुक्त छैक, कारण जे कतोक प्रांत मे दू-दू तीन-तीन मातृ‌भाषाक व्यवहार छैक। महात्मा गांधी आदि वर्द्धा योजनाक सूत्रधार गण एहि शंका सँ अनभिज्ञ नहि छलाह, तथापि मातृभाषाक विना जनशिक्षाक कल्पना असम्भव देखि ओ सब मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषाक पारस्परिक स्थान निर्देश कए देलथिन्ह। खरे महाशयक सभापतित्वमे जखन दिल्ली मध्य अखिल भारतीय शिक्षा सुधार कमिटीक अधिवेशन भेल तँ एहि कठिनताकें दृष्टिमे राखि ई निर्णय भेलैक जे मातृभाषाक अर्थ प्रत्येक बोली नहि प्रत्युत वैह बोली थीक जकरा किछु साहित्य छैक। ओ लिखैत छथि – ‘The Wardha scheme lays down that the medium of instruction shall be the mothertongue, that is the vernacular of the pupil. The Abbot-wood Report makes the same recommendation and few will be found to disagree. The committee unanimously approve, though they are aware that in certain provinces a difficulty might arise as more than one vernacular may be spoken, In making this recommendation the Committee will emphasise that the term "vernacular" connotes the literary language and not a dialect.

आब विचारवाक बात अछि जे बिहार मे मैथिलीक अतिरिक्त कोन भाषा साहित्यिक अछि। डा० श्री अमरनाथ झा उक्त उद्धरण दैत अपना विरोध सूचक नोटमे लिखेत छथि। “Magahi and Bhojpure are not literary language and they are ruled out” कहए नहि पड़त जे बिहार में केवल मात्र मैथिली साहित्यिक मातृभाषा अछि, सुतरां उपर्युक्त शंकाक स्थान नहि छैक। तथापि छोट-छोट दुधमुहाँ नेना सभक हेतु मातृभाषाक स्थानमे हिन्दुस्तानी शिक्षाक माध्यम राखल गेल अछि! हिन्द यावत् छलैक तावत् बात एक तरहक छलैक कारण जे हिन्दीक संस्कृत सँ अधिक सम्बन्ध छैक किन्तु हिन्दुस्तानी तँ ताहू सँ दूर पड़ि जाइत छैक। कोनो उच्च कक्षे मध्य उपयुक्त भए सकैछ, जखन विद्यार्थी के देश-विदेशक बहुत किछु ज्ञान भए जाइ छैन्हि किन्तु विचित्रता तँ ई अछि जे कमिटी मातृभाषाक सिद्धातकें सर्वतोभावेन, स्वीकार करैत ई निर्णय देने अछि ! क्रिमाश्‍चर्य्यगतः परम् ? कमिटी अपना रिपोर्टक धारा ११० मे लिखैत अछि जे - During this period of 7 years Basic Education, the question of the medium of instruction need not cause us any great difficulty. It is an accepted principle of proper education that knowledge should be imparted through the medium of the mother-tongue. We indorse it completely and we would admit of few exceptions.

एवं मातृभाषाक द्वारा ७ वर्ष पर्य्यन्त शिक्षा देवाक सिद्धान्तकें पूर्ण रूपें स्वीकृत करैत बिहारक ई भाग्यविधाता लोकनि हिन्दुस्तानीए शिक्षाक माध्यम स्वीकृत कएलेन्हि अछि। एकर अर्थ ई मेल जे हिन्दी वा हिन्दुस्तानी हमर मातृभाषाक थीक। डा० सच्चिदानन्द सिंह अपना नोटमे स्पष्ट लिखने छथि जे 'हिन्दी बिहारक मातृभाषा नहि। ई एक पश्चिमी भाषा थीक जकरा हम राजनैतिक कारणे किछु काजक हेतु अपनौने छी।’ वस्तुतः हिन्दी वा हिन्दुस्तानी के बिहार राष्ट्र-माषा मानि सकैछ, मातृभाषा कोना मानत? आओर यदि कोनो भविष्यमे जन-साधारणक अनिवार्य शिक्षाक योजना हेतेक तँ बिना मैथिलीकें वर्धा स्कीमक स्थान देने कोनोटा उपाय नहि छैक। आइ ने काल्हि ओहो दिन अएवे करतेक।

सरकारी शिक्षा विभागक ई नीति किछु दिन आओर रहतैक मुदा हमरा सभक दृष्टि दूरदर्शी होमक चाही। कोनो प्रकारक गैर सरकारी शिक्षा प्रचारक उद्योगमे हम सब मातृभाषा ओ राष्ट्रभाषाक स्थान मे विपर्यय नहि आबे द, ई हमर अनिवार्य्य कर्त्तव्य होमक चाही। संख्या, एकर प्राचीन साहित्यक उत्कर्ष, एकर नैसर्गिक शक्ति, एकर दूरदेशी प्रभाव आदि सब किछु आश्‍चर्यजनक अछि। नेपाल, बंगाल, उड़िसा ओ आसाम पर एखनहुँ एकर पर्याप्त प्रभाव छैक। तखन की ई अपना घरहिमे विस्मृत, आनादृत ओ त्यक्त रहत ? हमरा जनैत एकरा द्वारा समाजक ओ सब अंग, जकरा शिक्षाक नितान्त आवश्यकता छैक आओर जकर चर्चा हम पूर्वमे कए चुकल छी, जाहि द्रुत गतिय शिक्षित भए सकत ततवा आन कोनो भाषाक द्वारा नहि। तएँ हेतु हम अपने सबहुँ सँ मैथिली ग्रन्थ संग्रहक विशेष अनुरोध करब। अपना देहातमे एखनहुँ लोरिक, दयालसिंह, सोठि कुमरि, नौका, बिहुला, सलहेस आदिक शतावधि ग्राम्य गीतक प्रचार अछि किन्तु ओ लुप्त भैल जाइछ। मरसिया अर्थात् दाहा मे मैथिलो गीतक प्रचार अछि। एहि सबकें लिपिबद्ध कए लेब एकान्त आवश्यक अछि।

हमरा बुझने बड़ शुभलक्षण थीक जे आब हिन्दीक अभिभावक लोकनिमे विकेन्द्री करणक भावना प्रबल वेगें जागृत भए रहल छैन्हि। आब ओ सब बूझि रहलाह अछि जे वस्तुतः प्रान्तीय मातृभाषाकें दबौने हिन्दीक उन्नति नहि भय सकैछ आओर ने हिन्दी-उर्दू क प्रतिद्वन्द्विते हँटत। आब केवल प्रयागके हिन्दीक कार्य्य क्षेत्र नहि मानि प्रांत-प्रांतमे मातृभाषाक आभिवृद्धि द्वारा राष्ट्र ओ राष्ट्रभाषाक मंगलमय भविष्य निर्मित भए रहल अछि। जहिना सोवियत रूस आइ अपना सोलहो प्रान्तकें पूर्ण स्वाधीनता दए देनेँ अछि, तहिना प्रत्येक प्रान्तीय मातृभाषाकें हिन्दीक -चूड़ान्त अभिभावकगण पूर्ण स्वतन्त्रता देबाक पक्षमे सन्नद्ध भए उठत्ल छथि। गत हरिद्वारक अखिल भारतीय हि० सा० सम्मेलन द्वारा बहुमतसँ विकेन्द्रीकरणक प्रस्ताव स्वीकृत भए गेल अछि। विशाल-भारतक भू०पू० सम्पादक पं० बनारसीदास चतुर्वेदी अपना प्रान्त बुन्देल खंडमे बुन्देली भाषाक उत्थानक हेतु प्रबल आन्दोलन ठाढ़ कए देने छथि। द्रुत गतिसँ बुन्देलीमे नवीन साहित्यक निर्माण भय रहल अछि, पुस्तक ओ पत्र-पत्रिकाक प्रकाशन बढ़ि रहल अछि। सर रात्धाकृष्ण सम्मुखम् चेट्टी अन्नामलय विश्‍वविद्यालयक दीक्षान्त भाषणमे गतवर्ष कहने छथि जे –

Of late there has been a revival of interest in the study of vernacular languages and there is a spirit of renaissance in the different cultures of India. I am not one of those who look upon this as a fissiparous tendency threatening the unity of India. Infact I consider that those who oppose this spirit are the enemies of Indian nationalism, for, they forget that Indian culture and nationalism are the Synthesis of different cultures and multi-national forces each with great traditions and a strong individuality.

-Searchlight 8.12.43.

अर्थात् - किछु दिनसँ प्रान्तीय मातृभाषाक अध्ययनमे जागृति उत्पन्न भेल अछि ओ भारतवर्षक भिन्न-भिन्न केन्द्रमे नव जीवनक संचार देखि पड़ैछ। हम ओहि व्यक्ति मे सँ नहि छी ने एहि भावनाकें भारतीय एकताक बाधक बुझे छथि। हम तँ वास्तवमे ओहि व्यक्तिकें भारतीय जातीयताक शत्रु बुझै छियन्हि जे एहि भावनाक विरोध करै छथि जाहि हेतु जे ओ व्यक्ति एहि बातकें बिसरि जाइ छथि जे भारतीय संस्कृति ओ जातीयता भिन्न-भिन्न संस्कृति ओ जातीयताक सामंजस्य थीक जकरा अपन-अपन विशेष परम्परा एवं सबल व्यक्तित्व छैक।

मैथिलीक क्षेत्रमे एहि बीच जे किछु कार्य्य भेल अछि तकर प्रतीक्षा दूर-दूरसँ कएल जाए रहल अछि। बुन्देलखंडक कार्य्यकर्तागण हमरा कार्य्यवाही के विशेष सतृष्ण दृष्टियें देखि रहल छथि ओ भिन्न-भिन्न मार्गें तकर सूचनो लए रहल छथि। एहना स्थितिमे हम सब की उदस्त भेल केवल सरकारी भिक्षाक मुखापेक्षी रहब?

भारतवर्ष - इङ्गलैंड, जर्मनी, फ्रांस, जापान आदिक समान कोनो छोट देश नहि। एहि सब देशक विस्तार एकर प्रान्त सबमे छैक। एकर तुलना चीन, रूस अथवा अमेरिकाक युनाइटेड स्टेटसँ भए सकैछ। एहि सब पैघ देश मध्य कतोक विस्तृत प्रदेश वा प्रान्त छैक जकरा पूर्ण रूपें स्थानीय स्वतंत्रता छैक। हँ, सब प्रान्तक कोनो एकेटा केन्द्र-शासन छैक। नेहरू-रिपोर्टमे भारतवर्षहुक हेतु तेहने विधान स्वीकृत भेल छलैक। जिन्ना साहेबक दुराग्रहें आइ किछु मुसलमान भाइ भने एकरा दू जातिक देश कहथु किन्तु विभागक आधार जाति सम्बन्धी नहि प्रान्त सम्बन्धी श्रेयस्कर भए सकैछ। तएँ चेट्टी महोदयक उपर्युक्त विचार अराष्ट्रीय हएबाक तँ कथे नहि शुद्ध रूपें राष्ट्रीय ओ जातीय भावनोद्भुत अछि।

समस्त राष्ट्रक कोनो एकटा भाषा होएब अनिवार्य्य ! उर्दू-मिश्रित हिन्दुस्तानी से राष्ट्रभाषा भय सकैछ मुसलमान सब देवनागरी लिपि अंगीकृत कय लेथि। किन्तु यावत् लिपिक झगड़ा रहत तावत् राष्ट्र भाषाक प्रश्‍न हल नहि भए सकत। मुदा हिन्दी, उर्दू अथवा हिन्दुस्तानी जे कोनो राष्ट्रभाषा हो से होऔ किन्तु से भाषा एतेकटा देशमे सब प्रान्तक मातृभाषो भए जाएत, से कोना संभव? हमरा हिन्दी वा हिन्दुस्तानीसँ विरोध एही ठाम होइछ। हिन्दीक प्राचीन पंथी लोकनि एतेक दिन धरि हिन्दीकें दूनू स्थान दिएबाक यत्ल कए रहल छलाह ओ छथि तएँ सफल नहि भए सकलाह। आब ओ लोकनि अपन क्षेत्र बूझि रहल छथि, अतः विकेन्द्रीकरणंक भावना उग्र रूप जागृत भेल जाइछ। जे राहुलजी हमरा सबहक मैथिली आन्दोलनक किछु वर्ष पूर्व मुजफ्फरपुरक वि० प्रा० हि० सा० (बिहार प्रांत हिंदी साहित्य) सम्मेलनक सभापतिक आसनसँ घोर विरोध कएने छलाह (जाहिपर हमरा ‘राहुलजीक अकारण कोप’ शीर्षक लेख 'मिथिला-मिहिर' मध्य देबए पड़ल) सएह महापण्डित राहुल सांकृत्यायनजी गत वर्षक जुलाई-अगस्त आदिक 'विशालभारत'क कतोक अंकमे प्रत्येक प्रान्तीय भाषाकें पूर्ण स्वतंत्रता देबाक मुक्त कंठे भैरवनिनाद कएने छथि। तहिना हमरा प्रान्तक सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय नेता देशरत्न डा० राजेन्द्रो प्रसाद) आइ ने काल्हि अवश्यमेव अपना पूर्व निर्णयकें यथार्थ बुझताह। हमर ते ई निश्चित धारणा अछि जे मगही आ भोजपुरीकें साहित्य नहि छैक तैँ की? जखनहि कोनो अनिवार्य्य शिक्षाक क्रम जारी हेतक आओर ओकरा सफल बनएबाक उद्देश्य रहतैक तँ ओहू दूनू मातृ-भाषाकें निम्न वर्गक शिक्षा पद्धतिमे स्वीकार करहि पड़तैक। मैथिलीक योग्यता तें सब प्रकारें निर्विवादे अछि।


साभार-स्रोत

मैथिलीक दधीचि : बाबू भोला लाल दास ( पृ.- 217-224)
लेखक : शम्भुनाथ मिश्र
प्रथम सं. : 1991
प्रकाशक : कर्ण गोष्ठी, कलकत्ता

Wednesday, June 25, 2025

भाषाधार प्रान्त : डॉ. लक्ष्मण झा

भाषाक आधार पर प्रांतक गठन आधुनिक भारतक निर्माणक अभिन्न घटक रहल अछि। स्वतंत्रता सँ पूर्व कांग्रेस भाषावार प्रांत निर्माण पर सैद्धांतिक रूप सँ सहमत छल। स्वतंत्रताक बाद नेहरू जीक अगुआइ वाला कांग्रेस सरकार ओतने दुविधाग्रस्त रहल। ई सरकार नहि जानि कोन काल्पनिक आशंका सँ ग्रस्त भ’ के भाषावार प्रांतक गठन मे टालमटोलक नीति अपनेबा मे बेसी सुविधा देखैत छल। जनाकांक्षाकेँ ताक पर राखबाक एहि नीतिक गंभीर परिणाम रसे-रसे सोझां आबय लगलै। श्री पोट्टी श्रीरामुलुक आंध्रक निर्माण लेल मृत्यु धरि अन्नक त्याग होए वा किछु अन्य प्रांतक आकांक्षी जनता सबहक तीव्र आंदोलन, नेहरू जी केँ बैक-फुट पर आबय पड़लनि। भाषा आधारित प्रांतक आकांक्षी ‘मिथिला’ सेहो छल। जनताक चेतना आ इच्छा शक्तिक अभावक संगहि जनप्रतिनिधि लोकनिक घोर उदासीनता आ घोर-स्वार्थीवृत्ति कारणें, ई ओहि समय पृथक प्रांतक समस्त पात्रता राखितो एकटा अलग प्रांतक रूप मे प्रतिष्ठित नहि भ’ सकल।
    मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा मानल जाए वाला डॉ. लक्ष्मण झा दिसंबर 1952 ई. (पहिल अंक 15 दिसंबर 1952) सँ ‘मिथिला’ नामक एक साप्ताहिक पत्रक प्रकाशन शुरू केलनि। अपेक्षित जन-सहयोगक घोर अभाव आ अन्यान्य चुनौतीक सामना करैत अपन ईच्छाशक्ति, श्रम आ निजी साधनक बदौलते ओ अगस्त 1953 ई. (अंतिम अंक 10 अगस्त 1953) धरि एकर प्रकाशन कए संभव बना सकला। एहि पत्र मे भाषाधारित प्रांत, भाषा-अस्मिता, मिथिला आ देशक विभिन्न समस्या पर ओ टिप्पणी करैत रहैत छलाह। ‘मिथिला’ मे प्रकाशित हुनकर टिप्पणी आदिक संकलन श्री सुरेश्वर झाक संपादन मे 2002 मे
विचार-चिंतामणिक नाम सँ प्रकाशित भेल । भाषाधारित प्रांत पर हुनक टिप्पणी मे सँ तीन टा टिप्पणी उपरोक्त पुस्तक सँ साभार एतय प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। लक्ष्मण झाक विवेचना क्षमता अत्यंत प्रभावी छन्हि आ हुनकर वैचारिकी स्वतंत्र ‘मिथिला’ राज्यक आंकांक्षी-जन केँ एखनहु प्रेरित करैत अछि।  
   

भाषाधार प्रान्त
तेलगु-भाषाक आधार पर आन्ध्र प्रान्तक निर्माण करब नेहरू सरकार गछलक तँ परंच तते घिनायकय जे कमे लोक केँ धन्यवाद देबाक उत्साह भेलै। विरोध सेहो भइए गेल कारण आन्ध्र-निर्माणक ई नवीन योजना जे जवाहरलाल जी देशक समक्ष रखलनि अछि से अपूर्णे नहिं दुष्टतापूर्णो छनि।
    भाषाक आधार पर भारत मे प्रान्त सभक संगठन हो एकर आन्दोलन पचासहु वर्षसँ अधिक दिन सँ चलि रहल अछि। 1908 मे कांग्रेस एहि विचार केँ सिद्धांतरूपेँ ग्रहण कयलक। एही आधार पर 1911 मे बंगालक अबंगला भाषी क्षेत्रकेँ अलग कय बिहार बनाओल गेल ओ बंगलाभाषी पूर्व बंगाल तथा पश्चिम बंगाल केँ मिलाय एक प्रांत बनल।
    1916 मे तलगुभाषी लोकनि आन्ध्र प्रान्तक निर्माणक मांग पेश कयलनि ओ एक साल बाद कांग्रेस एकरा स्वीकार कयलक। 1920 मे नागपुर कांग्रेस मे निश्चित भेल जे समस्त देशक प्रांतीय संगठन भाषहिक अनुसार हो, ओ ताही हिसाबें आन्ध्र, तमिलनाड, केरल, कर्णाट, महाराष्ट्र, उत्कल, गुजरात आदिक प्रान्तीय कांग्रेस कमिटी बनल।  विचार भेलै जे अंगरेज सरकार एहि सिद्धांत केँ मानय वा नहिं देश एवं ओकर प्रतिनिधि संस्था कांग्रेस ओहि पर चलब शुरू कय दियय। सैह भेल। एहिसँ भिन्न-भिन्न प्रान्तक कांग्रेस कार्य-कर्त्ता लोकनि स्वभाषा-भाषी जनताकेँ संगठित करबामे वेश सुविधा पौलनि।
    एहि कार्य सँ कांग्रेसक सुविधे टा छलै, असुविधा छलै अंगरेज शासक केँ। से ओ तँ भेल शत्रुए। ओकर असुविधा तँ अभिष्टे छल। जा अंगरेज रहल ता धरि भाषाधार प्रान्तक बेश गीत कांग्रेसक अधबवाधव मे गाओल गेल। बेचारा सभ कै बेरि मानयक हेतु प्रयासो कयलक यथा आसाम, उड़ीसा ओ सिन्धक निर्माण कय, परंच भाषा सभक सीमा निर्धारण ओ शासन सम्बंधी झंझट देखि पराइत रहल।
    कांग्रेसी बाबू लोकनि जे राजा भेला तँ हिनकहु ऊपर अंगरेजक भूत सवार भेल। इहो झंझट सँ डेराय लगला ओ एहि सवाल केँ तारय-बटाड़य लगला। देशकेँ यदि आन तरहेँ ई लोकनि सुभ्यस्त कयने रहितथि तँ संभव भाषाधार प्रान्तक समस्या एतेक विकट रूपमे तत्काल प्रकट नहि होइत। सुख-सुविधामे लोक एकटा किछु काल बिसरि जाइत परन्तु से तँ भेल नहि। सुविधाक अर्थकोन, देश बनि गेल नरक। कोनो यातना, कोनो पीड़ा बाकी नहि रहल। सर्वत्र रोग-शोक-परितापें हाहाकार मचल अछि। जाही खन जे एकर त्रुटि बताय एकरा पर आक्रमण करबक संकेत करै छै ताही खन तकरा संग लोक आँखि मूनि दौड़ि परै अछि।
    एहि अशांति सँ जान बचयबाक रास्ता कांग्रेसी लोकनि एखन बनौने छथि जवाहरलाल जीकेँ, ई लोकनि हुनका रामलीलाक मुरूत बनाय अंगने-अंगने शांतिक बिलौकी मंगने फिरै छथि। परंतु एहि मुरूतक रूप कतेक दिन धरि उद्विग्न समाज केँ शान्त राखत? नेहरू बाबूक कुलशील ओ बाग्छटासँ भूखल, पियासल, रुग्न, बेहाल ई अपार जन समूह कते दिन धरि मुग्ध रहत?
    नवीन आन्ध्रमे हैदराबादक तेलगु-भाषी इलाका नहि मिलाओल जाएत, कारण ताहिसँ हैदराबाद राज्यक अंगभंग हेतैक! तखन ई भाषाधार प्रान्त नहिं भेल, ई भेल विद्रोही आन्ध्र लोकनिकेँ शान्त करबाक किछु उपाय। नवीन कांग्रेसी राजालोकनिकेँ राजकीय भोग-विलासमे कोनो उपद्रवसँ बाधा नहि होनु ई तकर विधान मात्र। एहि दुष्ट बुद्धि ओ निकृष्ट आचरणक कोन दण्ड हो? विधान तँ छै, दुइ रूपक-शास्त्रक ओ व्यवहारक। भोगविलोनमत्त राजा शास्त्रीय दण्ड नहि लै अछि। ओकरा हेतु होइछै व्यवहारक दण्ड, जे भेल छै मिश्रमे, चीनमे, रूसमे, फ्रांसमे, ईंगलैंडमे आदि। से केहन लागत? परन्तु दोसर उपाय?
(‘मिथिला, 29 दिसम्बर 1952)   
 

भाषाधार प्रान्त
भारतक प्रायः सबपार्टी कहै अछि भाषा, भूमि, अर्थनीति ओ परम्पराक आधार पर प्रान्त सभक निर्माण हो। परंच क्रियामे सब आगूपाछू करै अछि। कांग्रेस पार्टी राजा अछि। ओ नवीन व्यवस्था करबासँ डरय ई स्वाभाविक। राजपद पर पहुँचल व्यक्तिक सर्वोपरि इच्छा रहै छै ओकर भोग करयक। ओ कोनो झंझट नहिं चाहै अछि। नवीन कार्य मात्र ओकरा हेतु झंझट, कारण पक्ष-विपक्षमे किछु ने किछु आन्दोलन हयब अनिवार्य ओ से भेनहि आनन्द मे बाधा।
    प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ओ कम्युनिस्ट पार्टी सिद्धान्त में भाषाधार प्रान्त रखने अछि परन्तु एहि विषयक कोनो भारतव्यापी योजना प्रस्तुत करयसँ डरै अछि। प्रजासोशलिस्ट त मिथिला आन्दोलनक विरोध पर्यन्त कयलक अछि। कम्युनिस्ट पार्टी लोकक बाट तकै अछि। अधिक लोककें जतय जाइत देखत प्रायः सैह पथ पकड़त। भाषाधार प्रान्त विषयक सम्मिलन आदि में पार्टीक सदस्य कहैछथि हमर पार्टी एखन एहि विषयमे अपन निर्णय नहिं कयलक अछि तें हम एखन एकर पक्ष नहि करब। पार्टी जयत जोरगर आंदोलन देखे अछि ततय आगुये चलैक कोशिश करै अछि, जतय आन्दोलन मन्द छै ततय विरोधीहु बनि जाइ अछि। कम्युनिस्ट पार्टी सन क्रांतिक सिद्धांत वधारयवला दल एहि रूपें जीतलाक ढोलिया बनय ई सर्वथा निन्दनीय।
(‘मिथिला’, 20 अप्रिल 1953)
 

भाषाधार प्रान्त
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हालहि कर्णाटक प्रान्तक बेलगाँव कांग्रेस सरकारक भाषावार प्रान्तनीतिक व्याख्या कयल। हुनक कथन अछि आन्ध्रप्रान्त निर्माणक बाद एकवर्ष धरि ओकर कार्य संचालन देखि सरकार भाषाधार प्रान्त कमीशन नियुक्त करत, ई कमीशन देशभरिक प्रान्त पुनर्गठनक समस्या पर विचार करत। भाषाधार प्रान्त सम्बन्धी निर्णय ककरो पर लादल नहिं जायत, मतैक्य भेलापर कार्य सम्पादन हयत। लोकक डरयला-धमकयलासँ सरकार भाषाधार प्रान्तक स्वीकृति नहिं देत आन्ध्रप्रान्तक घोषणा श्री रामुलुक देहान्तक कारण नहिं भेल, वल्कि हुनक अनशनक कारण आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी निर्णय मे विलम्ब भऽ गेल।
    प्रधानमंत्रीजीक ई घोषणा साम्राज्यवादी लोकनिक औपनिवेशिक स्वतंत्रता सम्बन्धी नीतिक अनुरूप अछि। प्रतिकूल स्थिति कैं टारबाक हेतु कमीशनक नियुक्ति, मतैक्य शर्त तथा जन आन्दोलन एवं बलप्रयोगक निन्दा-ई सभ अछि साम्राज्यवादक अस्त्र। भारतीय स्वतंत्रता संग्राममे देशक अंगरेज राजालोकनि एहि सभ अस्त्रक प्रयोग करैत छला। श्रीरामुलुक अनशनक प्रति जे तिरस्कारभाव प्रधानमंत्री जी देखौल अछि सैह तिरस्कार भाव अंगरेज लोकनि गाँधीजी क अनशनक प्रति देखबै छल जाहि पर जवाहरलालजी खौंझाय उठै छला। हाल तक अंगरेजलोकनि कहै छला 1942 क आन्दोलनक किछु फल नहिं भेल। 1947 मे भारतकेँ जे स्वतंत्रता देल गेल से अंगरेज लोकनिक उदारता छल। बलक अभावमे दलित वर्गक लोककें अपन बुद्धि ओ विवेकक प्रति ई तिरस्कार सहै पड़े अछि। उन्मत्त राजालोकनिक यैह तिरस्कार भाव दलित वर्ग मे चेतना अनै अछि ओ तत्पश्चात् संघशक्ति । राजोन्मादक एक औषध अछि बलप्रयोग। समस्त संसारक इतिहास एकर प्रमाण अछि।
    बेलगांवक सभामे नेहरूजी बड़ विचित्र स्थिति मे छला। सभामण्डप पर आगमन होइतहि प्रबल विरोध होबय लागल। 'अहाँ कर्नाटक प्रान्त नहिं देल तें वापस जाउ'क नारा सभ दिससँ लगे छल। पन्द्रह मिनट धरि नेहरू साहेब सभा मंच पर ठाढ़ रहला, हुनका बजबाक अवसर नहिं देल गेल। तखन बड़ अनुनय विनय कय हल्ला शान्त कयल। हुनका हेतु ई स्थिति बड़ कष्टकर छल। ओ अभ्यस्त छथि सभामण्डपमे पहुँचि लाख-लाख लोकक साष्टांग प्रणाम ग्रहण करबाक। जे जनता हुनका पैरक धूलि-कणक हेतु लालायित रहै छल से हुनका सभासैं वापस जाय कहय, बाजय नहिं देयय ई केतेक असह्य ! एहि स्थिति मे नेहरूजी जे धैर्य देखाओल ताहि हेतु हुनका धन्यवाद ।
    कर्नाटक प्रान्तक आन्दोलन गत दू मासमे बेस प्रबल भेल अछि। दूमास पूर्व धरि मिथिलाप्रान्तक आन्दोलन सैं कर्नाटक बेसी अगुआयल नहिं छल। आन्ध्रप्रान्त सम्बन्धी घोषणा ओ कांग्रेसक हैदराबाद सम्मिलनक वाद कर्नाटक प्रान्त आन्दोलनमे खूब प्रगति भेल अछि। तीन सय वर्षक इतिहासमे मिथिला जहिना पछुआयल छल तहिना फेर पछुआयत ।
(‘मिथिला’, 18 मई 1953)

संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डल, दरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- 27-31

Saturday, June 21, 2025

डा० लक्ष्मण झा एक प्रखर व्यक्तित्व : मदनेश्वर मिश्र

डॉ. लक्ष्मण झाक जीवन आ कृतित्व सँ परिचित करेबाक उद्देश्य सँ श्री जयमंत मिश्रक एकटा लेख, एहि ब्लॉग पर अहि पोस्ट सँ पूर्व प्रकाशित कएल गेल छल। हुनकर लेख डॉ. सुरेश्वर झा क संपादन मे 2002 मे प्रकाशित डॉ. लक्ष्मण झाक किछु लेखटिप्पणी आदिक संकलन 'विचार-चिंतामणीमे प्ररोचनाक रूप मे प्रकाशित भेल छल। एहि क्रम मे पुस्तक मे मे सम्मिलित श्री मदनेश्वर मिश्रक लिखल एक टा महत्वपूर्ण संस्मरण प्रधान लेख उपरोक्त पुस्तकक संपादकक प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करैत प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।


डा० लक्ष्मण झा : एक प्रखर व्यक्तित्व


मदनेश्वर मिश्र

डॉ० लक्ष्मण झा एक प्रखर आ उच्चकोटिक विद्वान छलाह। ओ मैथिली भाषासाहित्यइतिहास आ अर्थशास्त्रक विशेष रूप अध्ययन कयने छलाह। मैथिली ओ मिथिलाक्षरक लेल हुनका अत्यन्त प्रेम छलनि। ओ पुरातत्वविद सेहो छलाह। भारत-छोड़ू” आन्दोलन मे जेल गेलाह आ ओतयसँ मुक्त भेलाक बाद बिहार सरकारक स्कॉलरशिप पर लन्दन विश्वविद्यालयसँ एम०ए० आ पी०एच०डी० करबालेल ओ इंगलैंड चलि गेलाह। 1947 ई० मे ओ एम०ए० आ 1949 ई० मे मिथिला एण्ड मगधविषय पर पी०एच०डी० लंदन विश्वविद्यालय सँ कयलनि। तकर बाद ओ स्वदेश वापस भ' गेलाह। एलाक किछु दिनक बाद ओ पटना विश्वविद्यालयमे अध्यापनक काज कयलनि। 1949 ई० सँ 1952 ई० धरि ओ जायसवाल शोध संस्थानपटनामे उपनिदेशकक पद पर काज कयलनि। तखन निदेशक छलाह स्वनामधन्य स्व० अल्तेकर। मुदा हुनका सँ डॉ० लक्ष्मण झा के पटरी नहि बैसलनि। 1952 ई० क प्रथम आम चुनाव मे सोशलिस्ट पार्टीक टिकट पर संसदक लेल चुनाव मे भागलेबाक कारणसँ डा० लक्ष्मण झाकें सरकारी सेवा छोड़य पड़लनि। दरभंगा संसदीय क्षेत्रसँ ओ चुनाव हारि गेलाह। तत्पश्चात्‌ किछु दिन ई सी०एम० कॉलेजमे इतिहासक व्याख्याता रहलाह। ओहि अवधिमे ओ मिथिला'” नामक मैथिली साप्ताहिकक प्रकाशन प्रारंभ कयलनि। किछु अंकक प्रकाशन भेलाक बाद ई बन्द भ’ गेल।
          ई प्रशंसनीय अछि जे लखन जी स्कूलक छात्रक समयसँ साइमन कमीशनक विरोध सँ 1942 धरि स्वतंत्रता आन्दोलनमे पूर्ण सक्रिय रहि भागलेलनि। लखनजी पहिने काँग्रेसमे छलाह आ बादमे सोशलिस्ट पार्टीमे सम्मिलित भगेलाह।
          बिहारमे कर्पूरी ठाकुरक नेतृत्व मे जखन सरकार बनल तँ 1977 ई० मे ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक नामसँ ललित बाबूक नाम सरकार द्वारा हटा देल गेलैक। ओहि समयमे हम एहि विश्वविद्यालयक कुलपति छलहुँ। हम कुलाधिपतिसँ भेटकए कहलियनिजे ई काज सरकार द्वारा उचित नहि भेल छैक। अपने जँ ललित बाबहूक नाम सरकार द्वारा पुनः जोड़बा सकी तँ ठीक छैक अन्यथा हम सरकारक एहि निर्णयक विरोधमे इस्तीफा दैत छी। अपने एकरा स्वीकार कएल जाओ। राज्यपाल डॉ० जगन्नाथ कौशल सेहो सरकारक एहि फैसलासँ दुखी छलाह। मुदा एक शालीन पदाधिकारी जकाँ सरकारक विरोधमे किछु बाजथि नहिं। हम तीन दिन निरन्तर राजभवन मे हुनकासँ अपन इस्तीफाक मंजूरीक हेतु निवेदन करैत रहलियनि। एहि बीच ओ सरकारहुँसँ विचार-विमर्श करैत रहलाह। मुदा हमरा सतत कहैत रहलाह जे भावनामे नहि बहू। अन्ततोगत्वा ओ हमरा जिद्द पर हमर इस्तीफा स्वीकार काएलनि आ हमरे आग्रह पर नव नियुक्त कुलपतिक नियुक्ति-पत्र सेहो हमरहि द' देलनि। डॉ० लक्ष्मण झाक नियुक्ति-पत्र ल' क' हम पटनासँ राति मे दरभंगा पहुँचलहुँ। डॉ० लक्ष्मण झाक नियुक्ति-पत्र हम अपन बधाईक संग तत्कालीन रजिस्ट्रार डॉ० शालिकनाथ मिश्रक हाथें हुनका पठा देलियनि आ हम भिनसरे दरभंगासँ पुर्णिया कॉलेजमे अपन प्रधानाचार्यक पद पर योगदान करबालेल विदा भ' गेलहुँ।
          जखन हम दरभंगामे कुलपति छलहुँ तँ डॉ० लक्ष्मण झासँ हमरा सम्पर्क बनल रहैत छल। कखनहुँ-कखनहुँ ओ हमरा किछु-किछु काजो करयलेल कहथि। एक दिन ओ हमरा टेलिफोन कयलनि जे एकटा डोम श्रीमल्लिक मिथिले विश्वविद्यालय सँ मैथिली मे एम०ए० पास कयने छथि। ई सामान्य बात नहि थिकैक। ओ हमरा कहलनि जे यदि संभव होइतँ विश्वविद्यालयमे हिनकर योग्यता देखि के कोनो पद पर नियुक्त कएलेल जाए। हम हुनका आश्वासन देलियनि जेँ अवसर अयला पर ओहि डोम विद्यार्थीक संग समुचित व्यवस्था कयल जेतैक। समय ऐलापर हुनक नियुक्ति विश्वविद्यालयमे तृतीय वर्गीय कर्मचारीक रूपमे कए लेल गेलनि आ ओ एखन मिल्लत कॉलेज मे प्राध्यापक पद पर नियुक्त छथि। एहि सँ ओ बड़ प्रसन्न भेल छलाह। प्रसन्न एहि कारणे जे समाजक निम्नतम वर्गक लोकक प्रति हमरहु ओहने सहानुभूति छल जेना हुनका छलनि।
          किछु दिनक बाद ओ पुनः टेलिफोन कयलनि आ कहलनि जे हुनका पता लागल छनि जे पंचोभ गाम मे हथिया नक्षत्र मे बिहाड़िक कारणें बहुत घर खसि पडल छैक। विश्वविद्यालयक काज हेबाक चाही जे एहेन विपत्तिक समयमे समाजक लोककेँ सहायता करय। हम हुनका कहलियनि जे हम हुनक विचार सँ सहमत छी। मुदा पहिने हम ओहि क्षेत्रक एहि समस्या सँ अवगत भए जाइ तखन हम अपने सँ विचार-विमर्श कए विश्वविद्यालय दिससँ समुचित कार्य करबाकलेल प्रवृत्ति होएब। हम ओही दिन कंसी-सिमरी आ पंचोभ दिस विदा भेलहुँ। हमरा धानक खेतमे किछ काज करैत गृहस्थ आ मजदूर सभसँ भेट भेल। ओ लोकनि हथियाक वर्षा सँ बड़ प्रसन्न छलाह। हम हुनका लोकनिसँ पुछलियनि जे घर सभ जे खसल छैक तकरासँ तँ बर्बादी भेल छैकओलोकनि कहलनि जे नहि एहन कोनो नोकसान नहि भेल छैक आ हमहूँ देखलियैक जे एक आधटा लटपटायल घर कतहु-कतडु झटक मे खसि पडल छलैक। ओलोकनि ईहो कहलनि जे हथियाक पहिने जे घर लटपटा जाइत छेक ओकर मरम्मत नहि क' खसबाक हेतु छोड़ि दैत छियैक जे खसलाक बाद ओकरा सांगोपांग उठायब। कहबाक अर्थ ई जे कोनो रिलीफक आवश्यकता नहि छलैक। डॉ० लक्ष्मण झा हमर रिपोर्ट! सँ अत्यन्त प्रसन्न भेलाह। हुनका दोसरो सूत्रसँ पता लागि गेल छलनि जे हथियाक वर्षा सँ कृषकसभ प्रसन्न छलाह। डॉ० लक्ष्मण झा पीड़ित वर्गक दुःख के देखि पसीज जाइत छलाह।
          यद्यपि ओ हमरा सँ उमेरमे जेठ छलाह मुदा अहू कारणेँ आदर दैत छलाह जे हम हुनका सँ पहिनहि ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयक कुलपति भगेल छलहुँ। अनुशासनक सतत पावन्द!
          हमर पुत्र डॉ० रलेश्वर मिश्रमिथिला विश्वविद्यालयक स्नात्कोत्तर इतिहास विभागक अध्यक्ष हुनका बहुत प्रिय छलथिन। जखन हम विश्वविद्यालयमे छलहुँ तेँ श्रीरलेश्वर हमरे संग रहैत छलाह। मुदा हमरा गेलापर हुनका डेराक समस्या भगेलनि। हम डॉ० झाकेँ एहि सम्बन्धमे संवाद देलियनि तँ अत्यन्त आत्मीयतासँ ओहि समयमे उपलब्ध एक नीके डेरा हुनका आबंटित कयलथिन। आत्मीयताक निर्वाह मे हुनका कहियो कमी नहि रहलनि।
          कुलपति भेलाक किछु दिनक बाद ओ पुर्णिया कॉलेजक निरीक्षण करबाक लेल पुर्णिया गेलाह। हुनका कॉलेजमे पता चललनि जे अस्वस्थताक कारण सँ हम अवकाश पर छी। ई सुनतहिं ओ नवरत्नहातामे अवस्थित हमर आवास पर हमरा देखबाक लेल तुरन्त आबि गेलाह। प्रचंड रौद आ गर्मा छलैक। सुस्तयलाक किछुए कालक बाद कहलनि-''हमरा खीरा खाइक इच्छा होइत अछि। हम भीतरसँ बहुत गर्मीक अनुभव क' रहल छी।'' हम कहलियनि जे खीरा तँ हमरा बाड़िये मे अछि आ तुरन्त खीरा काटिकहुनका देल गेलनि। बहुत प्रेम पूर्वक ओ खीरा खयलनि आ किछु देरक बाद कहलनिजे हुनक मोन बिल्कुल शान्त भगेलनि अछि। केहन आत्मीयता! किछु ठहरिक' भोजन कयलनि आ भोजनक सामग्री हुनका एहि कारण बहुत उत्तम लगलनि जे सामग्री सादा आ ताजा छलैक तथा मसालाक कमसँ कम व्यवहार भेल छलैक। ई ओ बेर-बेर बहजलाह। मिथिला विश्वविद्यालयक गणित विभागक अध्यक्ष डॉ० बी०एन० झा सेहो हुनक संग छलथिन। संध्याकाल ओ हमर आग्रह कएलहुँ पर नहि रुकलाह। अपन कार्य-क्रमक अनुसार ओ दर्शनशाह कॉलेजक निरीक्षण करबाक हेतु कटिहार चल गेलाह। हुनक पोशाक छल अत्यन्त साफ धोती आ उज्जर चादरि। एहि सादगीक सोझाँ मे के नहि नतमस्तक भजाएतएही भेषमे ओ विश्वविद्यालय कार्यालय जाथि, दूर-दराजक कॉलेज-निरीक्षण मे जाथि। हुनक सोच-विचार सेहो सीधा आ स्वच्छ। एहि विलक्षण कुलपति केँ देखि लोकक मोनमे स्वतः श्रद्धा उत्पन्न भजाइक।
          किछुए समय बाद विश्वविद्यालयक कुलपति पद सँ ओ हटि गेलाह। मुदा रहन-सहनबात-चीतमे कोनो अन्तर नहि। तकर बाद ओ पूर्व विधायक प्रेमचन्द्र शास्त्रीक सारामोहनपुरक निवासमे रहय लगलाह। हम जखन दरभंगा आबी ते हुनक भेट करबालेल ओतय जाइ। ओ बड़ प्रसन्न होथि आ देरतक बैसाकगप्प करथि। पुस्तकसँ हुनका बड़ अनुराग छलनि आ हुनकर निजी पुस्तकालयमे मूल्यवान पुस्तकक संग्रह छलनि। हमरा स्मरण अछि जे मिथिला साप्ताहिक पत्रकजकर ओ सम्पादक तथा प्रकाशक छलाहसब प्रकाशित अंक के एकठाम जिल्द बन्हाकएहमरा देने छलाह। ओहि पत्रिकाक सामग्री आ विशेष रूपें सम्पादकीय लेख सभसँ ई स्पष्ट अछि जे ओ मिथिला आ मैथिलीक प्रचार ओ प्रसारक लेल कोनो त्याग कसकैत छलाह। मैथिल संस्कृति हुनका रगरगमे भीजल छल।
          समाज सेवापर हुनका बहुत ध्यान रहनि। ओतँ हमरहुँसँ समाज-सेवा करबाबय चाहैत छलाहजाहिमे हमरा आपत्ति नहि छल। दरभंगामे हम जखन कुलपति छलहुँ तँ डॉ० अरुण कुमार मिश्रकेँजे सी० एम० कॉलेज मे प्राध्यापक छलाहओ एहि कारणें मानैत छलथिन जे समाज-सेवा सम्बन्धी जे काज ओ हुनका करय कहथिन से ओ सहर्ष आ रुचिपूर्वक करथिन।
          हम डॉ० सुरेश्वर झा केँ हृदयसँ धन्यवाद दैत छियनि जे ओ एहेन ऋषितुल्य व्यक्तिक जीवनक प्रमुख घटना आ विचारक संकलन तैयार कयलनि। हिनकर अध्यवसायिकता आ डॉ० लक्ष्मणझाक मिथिला ओ मैथिलीक प्रेमक लेल हिनकर आदर आ निष्ठा स्तुत्य अछि। 'विचार चिन्तामणिक संग्रहक लेल हम हुनका पुनः पुनः धन्यवाद दैत छियनि। डॉ० लक्ष्मण झाक स्मृति मे ओ ई एक गोट अनुपम काज कयलनि अछि।

[कलशस्थापन/28-9-2000]
 
संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ० लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ० सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डलदरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- XV-XVIII

Friday, June 20, 2025

कीर्तिर्यस्य स जीवति (लक्ष्मण झा प्रसंग) : जयमन्त मिश्र

मैथिली भाषा-अस्मिताक अलख जगौनिहार मे डॉ. लक्ष्मण झा क विशिष्ट स्थान छन्हि। हुनका मिथिला राज्य आंदोलनक पुरोधा कहल जाइत छन्हि। ओ असमानांतर प्रतिभा आ योग्यता सँ संपन्न व्यक्ति छलाह। सुविधा आ भौतिक उन्नतिक सहज  उपलब्ध अनेक रास अवसर केँ अस्वीकार कए ओ अपन जीवन मैथिली आ मिथिलाक लेल समर्पित कदेलन्हि। मिथिला सन ऊसर-चेतनाक क्षेत्र मे जाहि जीबटता आ जुनूनक संगहि ओ काज केलनिओ सबदिन अनुकरणीय रहत। ओ दृढ़ नैतिक मूल्य सँ अनुशासित एक कठोर तपस्वी जीवन जीबैत रहलाह। मिथिलाक नव पीढ़ी हुनका विषय मे जानि कृतज्ञ आ प्रेरित होए ई आवश्यक अछि। हुनकर बहुत रास महत्वपूर्ण काज एखन धरि असंकलित अछि। एहि दिसा मे हमरा लोकनिक ध्यान जायब अत्यंत आवश्यक अछि।

    डॉ. सुरेश्वर झा क संपादन मे हुनक किछु लेख आ टिप्पणी आदिक संकलन 'विचार-चिंतामणीक नाम सँ 2002 मे प्रकाशित भेल छल।किताब मे सम्मिलित कएल गेल किछु अन्य सामग्री डॉ. लक्ष्मण झाक जीवन आ कृतित्व सँ परिचित होएबाक उद्देश्य सँ उपयोगी अछि। श्री जयमंत मिश्रक ई लेख पुस्तक मे प्ररोरचना क रूप मे प्रकाशित अछि। लेख उपरोक्त पुस्तक सँ संपादकक प्रति आभार व्यक्त करैत प्रस्तुत कएल जा रहल अछि। 

लगभग साढे सात बरख सँ ‘मैथिली मंडन’ ब्लॉग पर कोनो सामग्री पोस्ट नहि क’ सकल छलहुँ। एहि लेल हार्दिक खेद अछि। आशा करैत छी जे आगां एहेन दीर्घ विरामक स्थिति नहि बनय।


कीर्तिर्यस्य स जीवति  (लक्ष्मण झा प्रसंग

जयमन्त मिश्र

डॉ० लक्ष्मणझा,  आदरणीय लखन जीमिथिलाक ओ विभूतिभारतक ओ सपूत छलाह जकरा पर मिथिले नहि सम्पूर्ण भारतके गौरव छैक। ओ सात्त्विक गुणक साकार रूप ओ सात्त्विक विचारक मूर्तिमान स्वरूप लाह। हुनक आहार-व्यवहार तथा वेश-भूषा सर्वथा सात्विक छलनि। साफ च्छ धोती आ उज्जर दपदप तौनी हुनक मुख्य परिधान छलनिजे भव्य भालक अभाग छरहर देह मे बहुतनीक लगैत छलनि।
स्वच्छ विचारक अनुरूप व्यवहार हुनक जीवन-पद्धतिक विशिष्ट अंश छलनि। अपन सिद्धान्तक विपरीत दोसर विचार सँ समझौता नहि करब हुनक अभ्यास छलनि।
    हमर अग्रज प्रख्यात अभियन्ता प्रो० राजेन्द्रमिश्र आ डा० झा समवयस्क छलाह। दूनू व्यक्ति 1949-50 ई० मे उच्च शिक्षा-प्राप्तिक हेतुसंगहि लन्दनमे रहैत छलाह। डा० झा पी-एच०डी० डिग्री लए लन्दन से अपन देश वापस आबिरहल छलाह। हम ओहि समय पटना विश्वविद्यालयमे छात्र छलहुँ।
    भैया पत्र सँ सूचित कएलनि जे लखन जी पटना पहुँचि रहल छथि। कंचन भवनमे डा० सुभद्रझाक संग ठहरताह। हुनकासँ सविस्तार समाचार ज्ञात होएत।
    प्रायः 50 ई० क जनवरी छलैक। बारह बजे दिन मे हम डा० झा सँ भेटकरबाक हेतु कंचन भवन गेलहुँ। डा. झा बाहर रौदमे पटिया पर बैसलभीतर पाकक्रिया मे संलग्न डा. सुभद्रझासँ , गप्प कए. रहल छलाह। हम पैर छूबि प्रणाम करैत अपन नाम कहलियनि। आउ-आउ कहि स्नेहसँ अपने लगमे बैसौलनि। ई अपन पी.एच.डी.क प्रसंग लन्दन मे अपन गाइडक संग सैद्धान्तिक मतभेद पर बात कए रहल छलाह। एही प्रसंग ई डा. सुभद्रझासँ कहलथिन जे हम अपन गाइड केँ 'हरदीबजाइएक छोड़लियनि। ओहिना मन अछिडा. सुभद्रझा कड़छु मे देल कड़ू तेलसरिसौमिरचाइ के चुलहा पर पटकिभीतरसँ दौड़ि 'लखनजी अओ लखन जीबहुत दिनुक बाद हरदी बजएबाक बात अहाँ मुहें सुनल अछिई कहैत हुनका भरि पाँज पकड़ि पटियापर बैस गेलाह। किछुकालक बाद कहलथिन जे आलूक साना तैयार अछिभात भइए गेल अछि। आब चलू बिनु छौंकले दालिक संग भोजनकए पटना मार्केट चली आ ओतहि अहाँ केँ तौनी कीनि दी। भोजनकए जाबत सुभद्र बाबू गंजीकुर्ता पहिरि बाहर आअएलाहओही बीच डा. झा संक्षेपमे लन्दनक समाचार आ भैयाक कुशलादि कहलनि। हुनक उक्तिमे अग्रजक स्नेहक अनुभूति भए रहल छल।
    दूनू डाक्टर लगले पटना-मार्केट चललाह। हमहूँ पाछाँ लागल मार्केट धरि अएलहुँ। ओतए एक दोकान पर ''यहाँ सभी प्रकारके वस्त्र मिलते हैं" एहन साइन बोर्ड देखि ओकरा सँ तौनी मंगलखिन। प्रायः तौनीक अर्थ नहि बूझि ओ कहलकैन 'नहीं है'। एहिपर दूनू गोटे एकस्वर सँ कहलथिन जे यातँ तौनी आनू या अपन साइन बोर्ड के उठाक फेकू। ई लोकनि तौनी क बदला चादरि मांगलए तैयार नहि। दोकानदार तौनी बुझैत नहि। अन्ततः ओ अनुनय विनय पूर्वक कलजोड़ि हिनका लोकनिकेँ विदा कएलक।
    डा. झाक जीवन-यात्रामे विपरीत परिस्थितिक संग समझौता नहिकरबाक हुनक अटल सिद्धान्त हुनका कतहु विशिष्टपद पर स्थिर नहि रहए देलकनि एहि बातक सविस्तार चर्चा डा. सुरेश्वर झा हुनक परिचयक प्रसंग कएने छथि।
    हम बिहार विश्वविद्यालयमुजफ्फरपुर मे जखन संस्कृत छात्र संघ तथा मैथिली छात्र संघ दूनूक अध्यक्ष छलहुँ तखन दूनू संघक संयुक्‍त वार्षिक अधिवेशनमे संस्कृत मैथिली दुहुक ज्ञाता विद्वान केँ अध्यक्षता करबाक हेतु आमन्त्रित करतै लियनि। ओहिक्रममे एक बेर डा. लक्ष्मणझा अध्यक्षताक हेतु आएल छलाह। विहार विश्वविद्यालयक विद्वन्मण्डलीमे डा. झाक अध्यक्षीय भाषण बहुत विशिष्ट भेल छलनि। मैथिलीक प्रसंग हुनक बहुत उपादेय सुझाव सब भेल छलनि। ओहि अवसर पर मैथिली-कविसम्मेलनमे अनेक मैथिलीक कवि आएल छलाह। हुनक सुझावक बादो कविलोकनि मार्ग-व्ययक रूपमे विदाई नेने छलाह से डा. झा देखैत छलथिन।
    सबके गेलाक बाद जखन हुनका मार्ग-व्यय मात्र लेबाक आग्रह कएलियनितँ कने रुष्ट भए ओ कहलनि-''हमरो कविए बूझि लेलहुँ कीहम मौन भए सब सूनि प्रणाम कएलियनि। रिक्शा पर संगमे बैसि बस-स्टेण्डधरि आबिबसपर चढ़ाए पुनः प्रणाम कए वापस भेलहुँ।
    1978 ई. मे जखन ओ “मिथिलाविश्वविद्यालयक कुलपति छलाहतखन 8 मार्च, 78 के हम हुनक बेलाक पुरना डेरामे भेट करए गेल छलियनि। 11 बजे दिनक समय छलैक। ओ आंगनक चापाकलमे चाउर धो रहल छलाह। चुलहापर अदहन खौलाइत छलनि। कहलनि-अहाँ बैसू। हम चाउर लगाक ओहिमे आलूदए देत छियैक तखने अहाँ सँ गप्प करब।
    हमर जिज्ञासा भरल आँखि देखि ओ कहए लगलाह-विश्व विद्यालयक नोकरभनसिया के अपन काज नहि करए दैत छियैक। हम कतेक दिन कुलपति रहब तकर कोनो ठेकान नहि। कर्पूरी के कहि देने छियेक जे कखनहु हम छोड़ि देब। एही कारणें कुलपति-निवासमे नहि रहैत छी। मदनेश्वरजी ओहिमे रहि बहुत राहड़ि लगौने छलाह। तैयार होयबासँ पहिने छोडिकचल गेलाह। हम तैयार कराएसबटाके उचित मूल्यपर बेचि विश्वविद्यालयक कोशमे जमा करवा देलियैक अछि। हम कहलियनि-अपने जखन वेतनो मे केवल एकेटा रूपया लैत छियैकतखन और वस्तुक कोन बात।
    'हैँहमर इहोशर्त मानिएकए कर्पूरी हमर नियुक्ति कएने अछि'। जनैछीआइ कालिजे मध्यम मार्गी लोक अछि सैहटा कुलपतिक पदपर बनल रहि सकैत अछि। हम जनैत छी जे हम एकभगाह लोकछी। कतेक काल धरि कतए रहब तकर कोनो ठेकान नहि। मन पड़ैत अछिराजेन्द्र बाबूक संग लन्दनक ओ जीवन दूनूगोटे ओतए बड़ प्रसन्न रही।
    ताधरि चाउर सिद्ध भएगेल छलनि। आलूक साना बनौलनि। हमरो पुछलनि। ओहि दिन दालि नहि बनौने छलाह। आलूक सानाक संग प्रेमपूर्वक भात खएलनि। किछु काल गप्प कए विश्वविद्यालय विदा भेलाह। प्रायः साल भरि रहिपुष्कर पलाश वन्निलिप्तिओ कुलपति पदकेँ त्यागि देलनि।
    हम जखन संस्कृत विश्वविद्यालयमे कुलपति छलहुँप्राय: 84 ई.क बातथिकडाक्टर साहेब अस्वस्थ भए दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पतालक पेयिंग वार्ड मे छलाह। भेट करए जाइत छलियनि। जखन स्वस्थ भए ओतए सँ अएबाक दिन निश्चित भेलनि तँ हम निवेदन कएलियनि जे एतएसँ जएबाकाल हम गाड़ी नेने आएब आ डेरापर पहुँचादेब।
    ओ कहलनि-गाड़ी अहाँक अपन ते नहि थिक। विश्व विद्यालयक गाड़ी सँ ओना जाएब ठीक नहि। कोनो व्यवस्था भए जएतैक। अहाँ केँ एहि हेतु बहुत-बहुत साधुवाद।
    अन्तिम भागमे डा. झा मोहनपुरमे एक इष्ट व्यक्तिक डेरामे रहेत छलाह। एकदिन ओतए भेट करए गेल छलियनि। कहलनि जे  आइकालि एकमास एतएएकमास गाममे रहैत छी। गाम गेल छलहुँ। हमर भौजीजनिका हमरा प्रति बहुत स्नेह रहैत छनि आ पूर्वमे हमर कुलपति रहबाक भावनो रहैतछनिकहलनि जे एहिवेर अपना खेतये धान बहुत कम भेल। खेसाड़ी बढ़ियाँ भेल अछि। खेसाड़ी बेचिकएथोड़ेक चाउर लए लैत छी। हम कहलियनि अपना खेतमे जे उपजल अछि हम सैहटा खाएब। खेसाड़ीक रोटी हमरा नीक लगैत अछि। हमर बात मानि ओ खेसाड़ीक रोटी बनबैत रहलीह।
    डाक्टर साहेबक एक अन्तरंग मित्रसँ एकदिन हम पुछलियनि-डा. साहेब वैवाहिक जीवनसँ एना विरक्‍त कियैकरहलाह। ओकहलनि-जखन लखनजीक ओ अवस्था छलनि ते हुनकासँ ई जिज्ञासा कएने छलियनि। ओ कोनो संस्कृतज्ञक मुहेँ सुनल एक श्लोक सुनौलनि-
जनितो मनुजो द्विपदस्तु सदाप्रियया सहितश्चतुरंग्रिरभूत्‌ पशुवत्‌,
जनितेन सुतेन च षट्चरणो भ्रमतीह पुनर्भुवि षटपदवत्।
तनयात्‌ तनयः प्रभवेच्च यदा अरूणद्धि स्वयं मकरीकृमिवत्‌
अधुनापि मनुष्य तनुं विदधत्‌किमु संभज नन्‍दसुतं मुनिवत्‌।।'
विवाह सँ पूर्व लोक 'द्विपद मनुष्यरहैत अछि। पाणि ग्रहणक बाद और दू पैर क संग 'चतुष्पदपशु-तुल्य भए जाइत अछि। जखन सन्तति होइत छैक तखन और दू चरण जोड़ि 'षट्पद भ्रमरक समान बनि जाइत अछि। सन्तति सँ जखन सन्‍तति होइत छैक तखन मकड़ाक जालमे फँसि जाइत अछि। जाधरि मनुष्य-शरीर धारण कएने रहैछ तावतेधरि मुनिजन जकाँ ईश्वरक ध्यान कए सकैत अछि। तपस्वी मुनि जौं नहियो बनि सकी तँ मनुष्यधरि बनल रहीई अभिलाषा अछि।एहिसौं डा. झाक मनोभाव केँ जानल जा सकैछ।
    'हरि अनन्त हरि कथा अनन्ताजकाँ डॉ. लक्ष्मणझाक जीवन-कथा अनन्त अछि। हुनक जीवन-यात्रामे सबसँ पैघ विशेषता ई देखल गेल अछि जे ओ जाहि सिद्धान्त के मानैत छलाह ओकर अक्षरशः अपन जीवन मे अनुपालन करैत छलाह। ' त्यागात्‌ शान्तिः'' एहि तथ्यकेँ मानि आजीवन त्यागीबनि निष्काम कर्म करैत रहलाह। ''ज्ञानं भारः क्रियांविना'' एकरा बुझैत अपन ज्ञानकेँ व्यवहारमे चरितार्थ करैत रहलाह। कामपर विजय प्राप्त कए क्रोध ओ लोभकेँ निरस्त करैत रहलाह।
     यस्तु क्रियावान्‌पुरुषः स विद्वान!" एहि सदुक्तिक ओ ज्वलन्त उदाहरण छलाह। एहन त्यागीतपस्वीमनस्वीमनीषीक पुण्य-स्मृतिमे “विचार चिन्तामणिक प्रकाशन अत्यन्त श्लाध्य प्रयास थिक। एहिमे डा. झाक मिथिलामैथिलमैथिली क उत्थानक दिशा मे सुचिन्तित विचार संकलित अछि। देशक राजनीतिशिक्षादीक्षाक प्रसंग हुनक भावना संगृहीत अछि। हुनक प्रकाशितअप्रकाशित कृतिक विषयपर सूचना देलगेल अछि। हुनक जीवन-यात्राक सविस्तार प्रामाणिक विवरण प्रस्तुत कएल गेल अछि। एहिमे हुनक अपन कटु-मधु अनुभवक दिग्ददर्शन भेटैत अछि।
    एतदर्श डा. सुरेश्वर झाजीकेँ शतशः साधुबाद दैतछियनि जे ओ बहुत परिश्रम आ पूर्ण मनोयोग सँ सब सामग्री केँ संकलित कए पुस्तकाकारमे एकरा प्रस्तुत कएने छथि।
विश्वासअछिवर्तमान संघर्षमय जीवनमे लोक एहि “'चिन्तामणि'' क प्रकाशमे चिन्ता सँ दूर रहबाक प्रयास करत। इतिशम्‌।
[अनन्त चतुर्दशी/12-9-2000]

संदर्भ
विचार चिंतामणि
डॉ. लक्ष्मण झा
संकलन एवं संपादन- डॉ. सुरेश्वर झा
प्रकाशक- मिथिला मण्डलदरभंगा
प्रकाशन वर्ष- 2002
पृष्ठ- IX-XIII

Saturday, December 16, 2017

परिचायिका / लोचन : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय  'परिचायिका'  सँ लोचन आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
लोचन
[LOCHAN]
[पृष्ठ-23]
लोचन, जनिक पूरा नाम लोचन झा छलनि, मैथिली साहित्यमे प्रसिद्ध छथि अपन एक मात्र कृति ‘रागतरंगिणी’ ल’क’ । ‘रागतरंगिणी’ संगीत शास्त्रक पोथी थिक, जाहिमे राग-ताल आदिक ज्ञान कराओल गेल अछि, किन्तु एकर विशेष महत्व एहि ल’क’ भ’ जाइत अछि जे विद्यापति समेत संकलयिताक पूर्ववर्ती कविलोकनिक मैथिली पदक संकलन एहिमे कयल गेल अछि तथा स्वयं लोचनोक आठ गोट गीत अछि, जे हुनक काव्य-प्रतिभाक दिग्दर्शन करबैत अछि ।
एहि पोथीक आधार पर लोचनक प्रसंग निम्नांकित तथ्य ज्ञात होइत अछि ।
एहि ग्रन्थमे महाराज महेश ठाकुरसँ ल’क’ नरपति ठाकुर धरिक प्रशस्ति-श्लोक अछि । अतः ई नरपति  ठाकुरक समकालीन सिद्ध होइत छथि । चन्दा झा स्वयं लोचन द्वारा तैयार कयल गेल रागतरंगणीक दू गोट प्रतिलिपि देखने छलाह । पहिने जे देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जे ओ 1702 ई.क थिक । बादमे जे पाण्डुलिपि ओ देखने छलाह, ताहिसँ सिद्ध होइछ जो ओ 1607 शाके (1685ई.)क लिखल छल । अनुमानतः रागतरंगिणीक रचनाकाल यैह थिक । डॉ. ‘श्रीश’ हिनक समय 1625-85 मानैत छथि ।
ई संगीत शास्त्रक प्रकाण्ड पण्डित छलाह, तेँ ने एहि शास्त्रक ग्रन्थक निर्माण कयलनि ।
ई अनुसन्धाता सेहो अवश्य छल होयताह, नहितँ विद्यापतिसँ ल’क’ अनेक कविक जे पद एहिमे भेटैत अछि, से नहि भेटैत । संगीत-मर्मज्ञक संग काव्य-मर्मज्ञ सेहो ई छलाह, तकर प्रमाण थिक पदक शुद्धता ।
ई स्वयं निष्णात कवि छलाह । हिनक आठ गोट पद जे एहिमे संगृहीत अछि, से हिनक विशिष्ट कवित्व प्रतिभाक निदर्शन करबैत अछि ।
हिनक महत्ताक प्रमाण ईहो थिक जे विद्यापति-गोविन्ददास जकाँ हिनको बंगाली विद्वान अपन कवि सिद्ध करबाक प्रयास कयलनि । हिनक मैथिलत्व आब निर्विवाद प्रमाणित भ’ चुकल अछि ।
रागतरंगिणी- एकर अद्यावधि पाँच संस्करण प्रकाशित भेल अछि । पहिल- बी.एस. सुखथंकर द्वारा बंबैसँ 1910 ई. मे, दोसर- दत्तात्रेय केशव जोशी द्वारा पूनासँ 1918 ई. मे, तेसर- दरभंगा राजप्रेस द्वारा बलदेव मिश्रक संपादन मे 1934 ई. मे, चारिम- पटना विश्वविद्यालयक मैथिली विकास-कोष द्वारा डॉ. शशिनाथ झाक संपाजनमे 1981 ई. मे । पहिल दू संस्करणमे मैथिली पद नहि देल गेल अछि ।
‘रामलोचनशरण-जयन्ती-स्मारक-ग्रन्थ’मे उल्लिखित अछिजे मिथिलेश महिनाथ ठाकुरक अनुज उत्तम कुमार नरपति ठाकुरक आज्ञासँ लोचन द्वारा संगीत-विषयक ग्रन्थ रागतरंगिणी लिखल गेल ।
[पृष्ठ-24]
रागतरंगिणीमे कुल एक सय तीन टा गीत संकलित अछि, जाहिमे उनतीस गोट कविक अनठानबे टा गीत अछि, शेष पाँच गीतक कवि अज्ञात छथि । ओ उनतीसो कवि थिकाह- विद्यापति, भवानीनाथ, अमृतकर, गजसिंह, सिंहभूपति, चन्द्रकला, कंसनारायन, गोविन्दकवि, लक्षमीनरायेन, जसोधर, जीवनाथ, दस-अवधान, सदानन्द, भीषम, चतुर्भुज, श्यामसुंदर, हरिदास, गंगाधर, श्रीनिवास मल्ल, पूरनमल्ल, प्रीतिनाथ नृप, चतुरानन, कुमुदी, रतनाञी, लखनचन्द राय, जयकृष्ण, धरणीधर, मधुसूदन तथा लोचन ।
रागतरंगिणीमे पाँच तरंग अछि । पहिलमे पुरुषराग-स्वरुप –कथन, दोसरमे रागिनी-स्वरूप-कथन, तेसरमे उत्पत्ति ओ नाद-निरूपण एवं तिरहुत देशमे विख्यात राग, चारिममे तिरहुति-देशीय संकीर्ण-राग-विवरण, तथा पाँचममे स्वर-प्रकरण, वीणा वाद्यक विषय ओ श्रुति-विभाग आदि वर्णित अछि ।
रागतरंगिणीमे तीन भाषाक प्रयोग भेल अछि- संस्कृत, ब्रजभाषा तथा मैथिली । एकर मुख्य भाषा संस्कृत अछि, जे सम्पूर्ण ग्रंथमे व्याप्त अछि । ब्रजभाषाक प्रयोग सेहो व्यापक रूपमे भेल अछि । हिनक समयमे संस्कृत जनसामान्यक भाषा रहि नहि गेल छल आ ई अपन ग्रन्थक प्रचार वृहत्तर क्षेत्रमे कर’ चाहैत छलाह, तेँ ओहि समयक सर्वाधिक प्रसरित ब्रजभाषाक स्थान देलनि । किन्तु ई छलाह मैथिल आ मैथिली हिनक प्रिय मातृभाषा छल, तेँ रागक उदाहरणक रूपमे जतेक गीत देलनि, सभ मैथिलीमे । मैथिलीक प्रयोग केवल तेसर आ चारिम तरंगमे अछि । मैथिलीकेँ लोचन ‘मिथिला’पभ्रंशभाषा’ कहलनि अछि ।
एहि ग्रन्थक महत्वक प्रसंग डॉ. जयकान्त मिश्रक निम्नलिखित उक्ति विषेषतः द्रष्टव्य थिक-  It is enough to note that while this work (Ragatarangini) is valuable in preserving the works of many otherwise little or unknown poets and in helping to determine their dates, it is an undying record of widespread poetical activity of the day. This work is also an evidence of the greatness of Lochans musical scholarship
लोचनक कवित्व प्रतिभाक निदर्शनक लेले बानगीक रूपमे हिनक एक शृंगार पद द्रष्टव्य- 

मलिन  वसन  विसमादलि  रे देखलि धनि खीनि
नयन - नीरें  परिपूरलि  रे  चित  चिन्ता -  लीनि
पास   बइसि  कत  पूछलि  रे  सत भाँति  बुझाए
तइयो   रहलि  तेहि भाँतहि  रे मरमसि शिर नाए
सुमुखि  न  सुख न सँभाषण  रे मुख नहि परगास
अनुखने  खिन  सोहागिनि  रे  तेज  दीप निसास
कमल  वदनि  मन  मानिक  रे  हरि  ऐसनि जाति
लोचन  भन   मन  जानक  रे मधुमति  देवि  कन्त
बुझ   महिनाथ  महीपति  रे   विरहिन   मन-मन्त
__________

प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006

परिचायिका / मनबोध : भीमनाथ झा

इंटरनेट पर मैथिली साहित्कार सबहक जीवन आ कृतित्व पर विवरणात्मक लेख प्रायः अनुपलब्ध अछि। पाठकशोधार्थी आ विद्यार्थी सबहक लेल ई स्थिति बहुत असुविधाजनक अछि । भीमनाथ झाक कृति 'परिचायिका' एहि दिसा मे नीक मदति कसकैत अछि। 'मैथिली मंडनसमय समय पर हुनक एहि कृति सँ साहित्यकार लोकनिक परिचय प्रस्तुत करबाक प्रयास करत। एकरा परिचायिका’ श्रृंखलाक अन्तर्गत प्रस्तुत कएल जायत।
ध्यान राखी जे 'परिचायिकामूलतः सूचनात्मक लेख सबहक संकलन थिक। इहो ध्यान राखी जे एकर तथ्यक संगहि दृष्टिकोण केँ अंतिम नहि मानल जा सकैछ। अपन मत सुनिश्चित करबा लेल आनो स्रोत सबहक मदति लेबाक चाही। 'मैथिली मंडन' पर कयल जा रहल प्रस्तुति त्रुटिहीन होइ, एहि बातक ध्यान राखल जाइत छैक, मुदा प्रामाणिक आ त्रुटिहीन संदर्भक रूपमे मूल किताबेक उपयोग कएल जेबाक चाही। 
एहि किताबसँ कोनो सामग्री केँ प्रस्तुत करैत 'मैथिली मंडन'क एहि सँ सहमत भेनय अनिवार्य नहि  अछि। एकर प्रस्तुति क पाछाँ विशुद्ध रूपें अकादमिक खगता केँ पूरा करबाक भावना अछि। एहि मे अपन व्यावसायिक हित साधब वा किनको व्यावसायिक अहित करबाक कोनो दुर्भावना निहित नहि अछि । एहि प्रस्तुतिक लेल लेखकसँ अनुमति लेल गेल छैक, तथापि कोनो सम्बद्ध पक्षकेँ जँ कोनो तरह तरहक आपत्ति होइन्ह, तँ ओकर निपटारा 'मैथिली मंडन'क प्राथमिकता होयत।
एतय  'परिचायिकासँ मनबोध आ हुनक कृतित्व पर केन्द्रित आलेख अक्षरशः प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
मनबोध
 [MANBODH]
[पृष्ठ-20]
मनबोधक स्थान मैथिली साहित्यमे महत्वपूर्ण अछि, तकर कारण जे ई विद्यापतिक परम्पराकेँ भंग क, शृंगार-प्रधान गीतक विपरीत, कथाकाव्यक माध्यमे मैथिलीक भण्डारकेँ भरलनि । शिल्पक स्तरपर, भावक स्तरपर, तथा वर्णन-चमत्कारक स्तर पर हिनक कविताक प्रयोग सफल सिद्ध भेल अछि । हिनक प्रसिद्ध रचना ‘कृष्णजन्म’ अछि, जाहि आधार पर मध्ययुगीन कविमे हिनक  स्थान अग्रगण्य अछि ।
जहिना विद्यापतिक पद लोक-कंठमे अपन स्थान बना अमर भ’ गेल, तहिना ‘कृष्णजन्म’ क चौपाइ सभ सेहो स्त्रीगण-पुरुषक कण्ठमे बैसि अपन कविकेँ अमर क’ देलक । विद्यापतिक पश्चात सर्वसाधारणक बीच जतेक लोकप्रिय मनबोध भेलाह, ततेक हिनक पूर्ववर्ती आन कोनो कवि नहि भ’ सकलाह । आइयो गाम-घरक बूढ़-पुरान स्त्रीगण-पुरुषक जीहपर कृष्णजन्मक अनेक चौपाइ विराजमान अछि ।
एतेक लोकप्रिय रहितो, हिनक परिचय ओ समय सुनिश्चित नहि अछि । हिनको प्रसंग विद्वानलोकनिमे मतबैभिन्य देखल जाइछ ।
म.म. डा. उमेश मिश्र हिनक परिचयक सम्बंधमे दू गोट विवरण देलनि अछि ।
1. ई मंगरौनीक रहनिहार छलाह । ई पलिबार जमदौली मूलक योग्यवंशक सोनमणि झाक, जे पैघ ज्यौतिषी रहथि, बालक छलाह ।
2. दोसर मतक अनुसार पगुलबाड़ बड़िआम मूलक जमसम-निवासी चान झाक ई बालक छलाह आ हिनक नामान्तर भेल छलनि । पंजीमे ‘भाषाकवि भोलन’क उल्लेख भेटैत अछि ।
प्रो. रमानाथ झाक अनुसार मनबोध नरौने मलिछाम मूलक जटेश झाक बालक छलाह । ग्रियर्सन साहेबक मतेँ हिनक निधन 1788 ई. मे भेलनि । अतः हिनका अठारहम शताब्दीक मानल गेल अछि ।
प्रो. सुरेन्द्र झा ‘सुमन’क शब्दमे “कवि मनबोध पलिबाड़ मूलक ज्योतिर्विद सोनमणि झाक बालक छलाह । महाराज नरेन्द्र सिंहक समकालीन, अठारहम शताब्दीक पूर्व भाग हिनक समय मानल जाइछ ।”
‘कृष्णजन्म’ क अतिरिक्त हिनक एक आओर पोथी ‘दानलीला’क उल्लेख भेटैत अछि, किन्तु ई पोथी अद्यावधि अनुपलब्ध अछि । कहल जाइछ जे ई शृंगार रसक काव्य छल ।
कृष्णजन्म - ‘कृष्णजन्म’ एक आख्यान-काव्य थिक जकर कथानक गोकुल-मथुरा-द्वारकाक परिधिमे घुमैत कृष्ण जन्म, तखन कंसक वध आ तकर बाद जरासंघक संहार धरि सीमित अछि । स्मपूर्ण ग्रंथ के छन्द चौपाइमे रचित अछि । एकर कथा भागवत ओ हरिवंश पुराणसँ लेल गेल अछि । एहिपर हरिवंशक छाप -
[पृष्ठ-21]
 - ततेक गाढ़ अछि जे कतोक विद्वान एकर मौलिकतेपर संदेह व्यक्त क’ देलनि । किन्तु, पद ततेक रमनगर अछि, कथा ततेक छटासँ कहल गेल अछि जे ई सर्वथा मौलिकक स्वाद दैत अछि ।
उपलब्ध ‘कृष्णजन्म’ मे अठारह अध्याय अछि, मुदा पढ़ला उत्तर स्पष्ट होइत अछि जे दस अध्यायक बाद ओ छटा, ओ चमत्कारक अभाव अछि जाहि हेतु मनबोध प्रसिद्ध छथि । तेँ, ई संदेह कयल जाइछ जे एगारहसँ अठारह अध्यायक अंश, मनबोधक नामपर, कोनो आन कविक जोड़ल अछि ।
एकर रचना महाकाव्यक रूपमे नहि भ’क’ पौराणिक कथाक रूपेँ भेल अछि । महाकाव्यमे सर्ग होइत अछि, किन्तु कृष्णजन्ममे अध्याय अछि । तहुँ एकरा महाकाव्य कहब समीचीन नहि । एहिमे ‘काव्यकलाक अलंकार-चमत्कार नहि, लोकजीवनक सहज संस्कार अछि ।’ तेँ एकरा पौराणिक कथकाव्य कहब अधिक समीचीन होयत ।
मनबोधकेँ भाषाकवि कहल जाइत छनि । कृष्णजन्ममे जे भाषा प्रयुक्त भेल अछि तकरा निस्सन्देह लोकभाषा कहल जा सकैछ । “तत्कालीन साहित्यिक संस्कृत एवं अवहट्ट, जे संयुक्ताक्षरक प्रयोगक कारणेँ, कर्णपटु प्रतीत होमय लागल छल से घसि कय, कोमल उच्चारणसँ मजि-चिकनाकय, लोककंठक अनुकूल बनि गेल अछि । यथा कुमारी-कुम्मरि-कूमरि, हस्ती-हत्थी-हाथी, अर्जुन-अज्जुन-अरजुन, दुग्ध-दुद्ध-दुध, कार्य-कज्ज-काज, दर्व-दप्प-दाप आदि । उदाहरणस्वरूप, तेसर अध्यायक ई प्रसिद्ध चौपाइ देखल जा सकैछ-
कतओक  दिवस जखन बिति गेल । हरि पुनु हथगर गोड़गर भेल ।
से  कोन  ठाम  जतय  धरि जाथि । कय  बेरि अंगनहुँसँ  बहराथि ।
द्वार  उपरसँ  धरि  धरि  आनी । हरखथि  हँसथि जसोमति रानी ।
कय  बेरि  आगि  हाथसँ  छीनु ।  कय  बेरि  पलका  तकला  बीनु ।
कय  बेर  साप  धरय  पुनि  जाथि । कय बेर चून दही बदि खाथि ।
कौसल चलथि मारिकहुँ चाल । जसोमतिकाँ भेल जिबक जंजाल ।

कृष्णजन्ममे तद्भव शब्दक प्रयोगक अतिरिक्त मिथिलाक लोककोक्ति ओ मोहाबराक प्रयोग सेहो पर्याप्त भेल अछि । यथा- लाजक लेल मुख हेरलो न होय, एहिसँ सुखद साप बरु खाय, जुड़ायल कान, विधाता बंक, सब दुख जिव पनिछाय, आदि । ‘बाभन पोथी छत्री तीर’ ‘नेरु हरेयने जेहने धेनु गाय’ आदि कहबी सम्पूर्ण काव्यग्रन्थमे जीवन्तता आनि देने अछि । तत्कालीन चिन्तनकेँ कतहु व्यंग्यसँ तँ कतहु तीक्ष्ण कटाक्षसँ एहिमे उभारल गेल अछि ।
यैह कारण थिक जे कृष्णजन्म मिथिलामे पर्याप्त लोकप्रिय भेल । विद्यापतिक पद जकाँ ईहो पोथी सकलसाधारणक जीह पर विराजमान भ’ गेल । एहि लोकप्रियताक जड़िमे अछि कृष्ण सन लोकप्रिय चरितक बाल्यकालक वर्णन जे वात्सल्यसँ ओतप्रोत अछि, तथा सहज-सरल भाषाक प्रयोग एवं मिथिलाक सामाजिक-धार्मिक संस्कारक सफल चित्रण । भाषाक सहजताक निर्वाह करितो कवि एहिमे अलंकारक पर्याप्त प्रयोग कयलनि अछि । अन्यो काव्यगुणसँ ई कृति परिपूर्ण अछि ।
[पृष्ठ-22]
मैथिली साहित्यमे वात्सल्य रसक वर्णनक अभाव अछि । वर्तमानो काल मे कम कवि भेलाह अछि जे वात्सल्य रसक नीक जकाँ परिपाक क’ सकलाह अछि । तेहना स्थितिमे, मनबोधक महत्त्व आओरो बढ़ि जाइछ । मैथिलीमे तँ प्रायः मनबोधेसँ एहि रसक धारा आरम्भ होइत अछि । नेनाक लालन-पालन करब, ओकर चंचलताकेँ भोगब, ओहिसँ आनन्द उठायब, ओकरा उच्छृंखल बनवासँ रोकब, अपन एक-एकटा व्यवहारसँ ओकर चरित्र-निर्माण करब, नीकक शिक्षा देब, अधलाहसँ परहेज करब सिखायब, ओकर मोन पर कोनो तीव्र दबाव नहि देब- ई सभ तेहन तत्व अछि जे बालकक भविष्यक निर्माणमे सहायक होइत अछि । काव्य मे एकरा उतारब आ पुनि तकरा लोकप्रिय बनायब- कविक आसाधारण सामर्थ्यक काज थिक । एहू दृष्टिएँ मनबोधक काव्य-दृष्टि बाल-मनोविज्ञानक सूक्ष्मसँ सूक्ष्म विन्दु धरि प्रवेश क’ गेलनि अछि ।
कृष्णक बाल-स्वभावकवर्णन करैत काल कवि कथाक सूत्रकेँ छोड़ैत नहि छथि तथा लगले-लागल कृष्णक ईश्वरत्वक भान पाठककेँ करा दैत छथि । कवि सावधान रहैत छथि जे पाठक वर्णनक रसानुभूति करैत एतेक दूर धरि नहि चलि जाय जे ओकरा मूल कथे विस्मृत भ’ जाइक । तेँ अमलार्जुनउद्धारक प्रकरण कृष्णक बाल-लीलाक बीचमे कवि राखि देलनि अछि-
भेलहि निसंक समय हरि पाओल
भरि-भरि पाँज उखरि ओंघरायल
गुड़कल –गुड़कल भिड़ुकल जाय
जतय  अछल  दुइ  बिर्छ  अकाय
जमला    अर्जुन   कमला    नाथ
जुगति  उपाड़ल  छुइल  न  हाथ
खसल   महातरु   हँसल   मुरारि
भेल    अघात   जगत   परिचारि

कृष्णजन्मक भाषाक प्रसंग डा. ग्रियर्सन कहने छथि- The poem is deserving of special attention as an example of the Maithili of the last century affording a connecting link between the old Maithili of Vidyapati and the modern Maithili of Harsnath Jha and the other writers of present day.  
एकर समर्थनमे प्रो. सुमनक एहि उक्तिकेँ देखल जा सकैछ- “कविक काव्य-प्रबन्ध पूर्वरंगक संगीतकक इंगितपर नहि, छन्दबन्धक उन्मुक्त वातावरणमे विकसित लक्षित होइछ । एहि दृष्टिएँ आधुनिक मैथिलीपर जतेक प्रभाव ज्योतिरीश्वर विदयापतिक नहि, गोविन्ददास-रामदासक नहि. उमापति-नन्दीपतिक नहि, ततेक मनबोधक पड़ल अछि ।”
तेँ डा. जयकान्त मिश्रक ई मान्यता जे- In the history of Maithili literature Manbodha occupies a very important place अक्षरशः सत्य अछि ।
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प्रकाशक : भवानी प्रकाशनमुसल्लहपुरपटना-800006
सर्वाधिकार : भीमनाथ झा
परिवर्धित द्वितीय संस्करण : 1985
मुद्रक : मुरलीधर प्रेसपटना-800006